Monday, May 14, 2018

"Impulses"--444--"सहज-उत्थान-व्यवस्था"(03-12-17)


"सहज-उत्थान-व्यवस्था"

"हम सहज-अभ्यासियों के चित्त/सम्पर्क में समय समय पर अनेको सहजी अक्सर आते रहते हैं। यदि हम सूक्ष्मता से गौर करें तो पाएंगे कि अक्सर उनके यंत्र की स्थिति की प्रतिक्रिया हमारे सूक्ष्म यंत्र में भी घटित होती हुई आभासित होती है।

जिसके परिणाम स्वरूप हमारे यंत्र की किसी नाड़ी में बाधा महसूस होती या किसी चक्र/चक्रों में कोई पकड़ आती हुई प्रतीत होती है। और हम जाने अनजाने में ज्यादातर यही निष्कर्ष निकालते हैं कि उस सहजी का यंत्र किसी किसी कारण से बाधित है।

साथ ही घोर अज्ञानता वश ये बात हम अन्य सहजियों को भी बताने लगते हैं और वे सहजी उन बातों को सुन कर बिना अपने यंत्र पर उक्त सहजी की स्थिति को चैक किये आगे बढ़ाते जाते हैं।

और इस प्रकार से हम आधी अधूरी समझ मानसिक जानकारी के आधार पर एक "श्री माँ" के बच्चे को सभी की नकारात्मक दृष्टिकोण का केंद्र बना देते हैं।

क्या हम एक तथ्य जानते हैं ? कि यदि कोई हमारी स्थिति से अच्छा यंत्र हमारे चित्त में या सम्पर्क में आएगा तो हमारे स्वमं की बाधित नाड़ी चक्रो को ही उजागर करेगा।

क्योंकि उसके यंत्र से प्रवाहित होने वाली उच्च आवृति घनत्व (Frequency & Intensity)की ऊर्जा हमारे यंत्र में प्रविष्ट होकर हमारे स्वम् के यंत्र को स्वच्छ करने की प्रक्रिया में लग जाती है।

जिसके फलस्वरूप हमारी स्वम् की असंतुलित नाड़ी पकड़े हुए चक्रो का आभास हमें हमारे स्वम् के यंत्र में होने लगता है। और अज्ञानता वश हम इस अपनी स्वम् की नकारात्मक आंतरिक स्थिति का दोष उस उच्च अवस्था के सहजी पर लगा देते हैं।

जैसे हम जब भी "श्री माँ" के समक्ष ध्यान में बैठकर अपने यंत्र पर चित्त डालते हैं तो हमारे यंत्र की समस्त रुकावटें हमें नाड़ी-बधाओं चक्रो की पकड़ के रूप में हमारे अपने यंत्र में उजागर होने लगती हैं।

ठीक यही कार्य "श्री माँ" उस उच्च दर्जे के सहजी के यंत्र से अपने "निराकार" स्वरूप के द्वारा हमारे यंत्र पर भी कर रही होती हैं। किन्तु अब प्रश्न ये उठता है कि संपर्क/चित्त में आये सहजी की स्थिति की वास्तविकता हम कैसे जानेंगे।

मेरी चेतना चिंतन के मुताबिक जब किसी सहजी के संपर्क में आने या उक्त सहजी को चित्त में लाने के परिणाम स्वरूप हमारा यंत्र बाधाओं को हमारे यंत्र में प्रगट करने लगे।

तो उस क्षण पूर्ण एकाग्रता से हम अपनी चेतना को अपने स्वम् के सहस्त्रार मध्य हृदय पर ले जाकर गौर करें कि हमारे इन दोनों मुख्य चक्रो में किस आवृति की ऊर्जा महसूस हो रही है और जानकर अपनी इस स्थिति को अपने संज्ञान में संचित कर लें।

इसके बाद पुनः उक्त सहजी के सहस्त्रार मध्य हृदय पर अपना चित्त ले जाएं 20-30 सेकिंड तक वहीं रख कर ऊर्जा को महसूस करें। इसके बाद उसके इन दोनों चक्रो की प्रतिक्रियाओं को अपने स्वम् के दोनो चक्रों यानि सहस्त्रार मध्य हृदय पर पूर्ण एकाग्रता के साथ महसूस करें कि हमारे दोनों चक्रो पर ऊर्जा बढ़ रही है या घट रही है।

यदि हमें उसके दोनो चक्रो पर चित्त रखने के बाद अपने दोनो चक्रों में ऊर्जा बढ़ती हुई महसूस हो तो निश्चित रूप से उस सहजी की स्थिति हमसे बेहतर है।

और ऐसी अवस्था में हमारे स्वम् के बाधित चक्र नाड़ी हमारे यंत्र पर प्रगट हो रहे हैं। इसके विपरीत उसके इन दोनों चक्रों पर चित्त रखने के उपरांत यदि हमें हमारे इन दोनो मुख्य चक्रों में ऊर्जा घटती महसूस हो।

अथवा नगण्य प्रतीत हो तो यकीनन उक्त सहजी का यंत्र बाधित है जिसे हमारा यंत्र संतुलित करने में संलग्न हो गया है।जिसके कारण हमें बाधा/पकड़ महसूस हो रही है।

दूसरी स्थिति में यदि हम अभी भी अपने सहस्त्रार मध्य हृदय में ऊर्जा को महसूस नहीं कर पाते तो हमें अपनी स्वम् की विशुद्धि में अपनी चेतना को कुछ सैकिंड तक रखकर यंहा पर ऊर्जा प्रवाह को अथवा अपनी विशुद्धि की स्थिति को समझना होगा।

उसके उपरांत उस सहजी की विशुद्धि में अपने चित्त को 20-30 सैकिंड तक रखकर उसकी विशुद्धि में प्रवाहित होने वाली ऊर्जा की प्रतिक्रिया को अपनी स्वम् की विशुद्धि में देखना होगा कि ऊर्जा बढ़ रही है या घट रही है।

यदि बढ़ रही होगी तो उस सहजी की ऊर्जा-स्थिति हमसे बेहतर है और यदि घट रही होगी तो उसकी वायब्रेशन की स्थिति हमसे कमतर है।
दोनो ही अवस्था में यदि हम ये नोटिस करते हैं कि उस सहजी के सहस्त्रार मध्य हृदय/विशुद्धि में चैतन्य कम/नगण्य है।

तो उस सहजी के यंत्र की नकारात्मक चर्चा अन्य सहजियों के बीच करने के स्थान पर बड़े प्रेम अपने पन के साथ अपने चित्त के द्वारा से उसके सहस्त्रार के माध्यम से उसके यंत्र में अपने ध्यान की हर बैठक में कम से कम 5 मिनट के लिए ऊर्जा जब तक प्रवाहित करते रहें जब तक उसके यंत्र से नकारात्मक संकेत आते रहें।

और इसके विपरीत दोनो ही अवस्था में हम ये पाते हैं कि उस सहजी का यंत्र हमसे बेहतर अवस्था में है। तो प्रतिदिन उस सहजी के सहस्त्रार मध्य हृदय/विशुद्धि पर चित्त रखकर अपने ध्यान की प्रत्येक बैठक में चित्त के द्वारा 5-7 मिनट तक ऊर्जा ग्रहण करते रहें जब तक भी हमें अपने चक्रों में पकड़ महसूस होती रहे।

साथ ही उस सहजी के यंत्र की अच्छी अवस्था के बारे में अन्य से भी बताएं ताकि अन्य सहजी भी उस अच्छे यंत्र का लाभ उठा सकें। वास्तव में किसी भी सहजी के द्वारा खुले हृदय से की गई किसी अन्य यंत्र की प्रशंसा से "श्री माँ" अत्यंत प्रसन्न होती हैं।

क्योंकि वो हम सभी के बीच प्रेममयी सम्मानमई व्यवहार ही चाहती हैं। हमें ये समझना होगा कि जो भी सहजी हमारे चित/सम्पर्क में आता है उसे स्वम् "श्री माँ" किन्ही मुख्य कारणों से हमारे नजदीक लाती हैं।

अतः उस सहजी के बारे में नकारात्मक धारणा बना कर उसका प्रचार करना साक्षात "श्री माँ" का विरोध करना ही है।वास्तव में ये एक आध्यात्मिक अपराध की श्रेणी में ही आता है।

ये तथ्य की बात है कि तकनीकी रूप से हम सभी के यंत्र अलग अलग स्तर पर ही विकसित होते है।

अतः सभी यंत्रो की इस विभिन्नता को मद्देनजर रखते हुए स्वम् "श्री माँ" ही एक दूसरे सहजी के द्वारा समस्त यंत्रो को उनकी आवश्यकतानुसार विभिन्न आवृति घनत्व की ऊर्जा के द्वारा लाभान्वित करने की व्यवस्था करती हैं।

यदि हम इस पहलू को समझना चाहें तो इसके के लिए हम बिजली के विभिन्न उपकरणों की विद्युत आवश्यकता को समझ सकते हैं। कि ये अलग अलग उपकरण अलग अलग विद्युत क्षमता Ampr पर ही सुचारू रूप से कार्य करते है।

यदि हम विभिन्न प्रकार के उपकरणों को एक ही प्रकार Ampr विद्युत क्षमता प्रवाहित करेंगे तो या तो ये जल जाएंगे या ठीक प्रकार से कार्य ही नहीं कर पाएंगे या हमें उपयोग करने पर हानि पहुंचाएंगे।

ठीक इसी प्रकार से "श्री माँ" हम सभी के यंत्रो के लिए हमारे स्वम् के यंत्र की प्रवहण/ग्रहण क्षमता के मुताबिक ही अन्य यंत्रो से मिलवाती हैं। अतः किसी भी "श्री माँ" के यंत्र के बारे में अनर्गल नकारात्मक प्रचार करना "श्री माँ" के प्रेम वात्सल्य की गरिमा को ठेस पहुंचाना ही है।

ये सब "श्री माँ" की कार्यप्रणाली नेटवर्क का ही हिस्सा है अतः हमको उनकी व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाने का कोई अधिकार ही नहीं है। 

फिर भी यदि हम अपने अहंकार, ईर्ष्या घृणा की भावनाओं से प्रभावित होकर इस प्रकार के नकारात्मक प्रवहण से बाज नहीं आते तो फिर ये चेतना क्या बताए..........हमें तैयार रहना चाहिए कि हमारे साथ क्या क्या नकारात्मक हो सकता है........????"

-----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
(03-12-17)


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