Friday, February 24, 2017

"Impulses"--344--'समर्पण'

'समर्पण'


"हिंदी भाषा का शब्द 'समर्पण' वास्तव में दो शब्दों से मिलकर बना है, यदि हम इस शब्द की संधि विच्छेद करें तो यह, सम + अर्पण, यानि सम=एक समान और अर्पण=चढ़ाना यानि अर्पित कर देना।

इसका मतलब है कि:-

i)
जब तक हमारी दोनों नाडियों, यानि 'इड़ा नाड़ी व् 'पिंगला नाडी' में दौड़ती ऊर्जा-धारा,

ii) हमारे दोनों, बाएं व् दायें अगन्या चक्रों की गति व्

iii) हमारी दोनों बाईं व् दाईं विशुद्धि में ऊर्जा का आवागमन ठंडक के रूप में दोनों हथेलियों में समान अवस्था में महसूस हों तब तक हम "श्री माँ" को कुछ भी अर्पण करने योग्य नहीं होते।

इसीलिए सब लोग अक्सर कहते हैं, कि "माँ हम सबकुछ समर्पित करतें हैं", फिर भी समर्पण नहीं हो पाता।

जब हम एकाग्रचित्त ध्यान अवस्था में अपनी दोनों हथेलियों में ऊर्जा के दौरे को गोल गोल घूमता महसूस कर रहे होते हैं, तब ही हम वास्तविक संतुलित अवस्था होते हैं।

यानि हमारी चेतना हमारे चित्त के साथ 'सुषुम्ना' के ऊध्र्वगामी-ऊर्जा प्रवाह के साथ इसी मध्य नाडी पर गति कर रही होती है, जिसके परिणाम स्वरूप हमारी चेतना का संपर्क "माँ आदि शक्ति" से घटित हो रहा होता है।

इस जुड़ाव की दशा में ही "माँ आदि" हमारे समर्पण की सच्ची भावनाओं को स्वीकार कर हमें समर्पण का सामर्थ्य प्रदान करती हैं

इस समर्पण की योग्यता का एहसास हमें, गहन ध्यान-अवस्था में, मध्य हृदय और सहस्त्रार में घटित होने वाले इक सुखद ऊर्जा-युक्त खिंचाव की अनुभूति के रूप में भी होता है।"


(Hindi word 'Samarpan' is made of two words, like 'Sam'+'Arpan', which means 'Sam'=Equal, 'Arpan'=Surrender.

It means, when and until we feel:-

i) Some flow of 'Energy' in both our Left(Ida) and Right(Pingla) Nadies in Equal Intensity,

ii) Some movement of 'Energy' into our both the Left and Right Agnya in equal frequency and

iii) Some going and coming 'Energy' into our both, Left and Right Vishudhi with equal pressure either with Cool feelings into our both the palms.

We will not be eligible to surrender anything to "Shree Maa" in spite of praying or reciting before "Her" ,"We surrender everything to you "Shree Mata Ji", still then actual surrender do not take place.

When we would be feeling 'Rotating Energy' right into our both the palms during meditative state at a time, only then we use to be in balanced state.

At this time our Awareness and our Attention use to be moving into our 'Sushummna Nadi' along with 'Upwardly' Flow of Energy.

Then our Awareness establish connectivity with the 'Power of Adi Shakti' and then "Shree Maa Adi Shakti" provides us our actual Surrender after accepting our True Feelings through this connectivity.


We can acknowledge this feeling of the Eligiblity of Surrender by realizing a 'Pleasent Pulling Sensation of Energy' into our Central Heart and Sahastrara during Deep Meditative State."

-------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"

Saturday, February 18, 2017

"Impulses"--343--"ध्यान-विभिन्नता"

"ध्यान-विभिन्नता"

"हम सभी को सहज योग को बढाने के लिए अन्य प्रचार-प्रसार व् ध्यान के कार्यों के साथ साथ एक बेहद आवशयक कार्य और भी करना है। और वो कार्य है, एक दूसरे के जाग्रति देने व् ध्यान कराने के कार्यों में व्यर्थ की कमिया निकाल-निकाल कर उनके द्वारा किये जाने वाले 'चेतना' के कार्यों में बाधा पहुंचाई जाए।

क्योंकि यह अनुपम कार्य समस्त देवी-देवताओं की ही देखरेख में "उन्ही" की सहायता से, "उन्ही" के द्वारा हम सभी के यंत्रों के इस्तेमाल के जरिये आगे बढ़ ही रहा है। हमें चाहिए कि हम, 'जागृत चेतनाओं' के द्वारा अपनी अपनी चेतनाओं के स्तर के अनुसार आत्मसाक्षात्कार देने व् ध्यान कराने के विभिन्न तौर-तरीकों की तो आलोचना करें और विरोध करें।

इस प्रकार की आलोचना ज्यादातर अनुभव-विहीन मानसिक-ज्ञान सूचनाओं के आधार पर ही की जाती है। क्योंकि किसी भी साधक/साधिका के सत्य ध्यान-अनुभवों व् अनुभूतियों को एवम् "श्री माता जी" के द्वारा बताये गए 'गूढ़ ज्ञान' को गहन-ध्यान-अवस्था में अपने यंत्र में महसूस किये बिना आलोचनात्मक टिप्पड़ी कर कार्य करने वाले सहजियों को हतोत्साहित करना वास्तव में घोर अज्ञानता व् अनुभव विहीनता का ही परिणाम है।

"श्री माता जी", "माँ आदि शक्ति" हैं और जो स्वम् 'ज्ञान का भण्डार' हैं, "उनके" 'लेक्चर्स' के शाब्दिक अर्थ को मानसिक स्तर पर अपनी अपनी शैक्षणिक योग्यता व् विद्वता के आधार पर समझ कर गहन-साधकों के वास्तविक ध्यान व् ध्यान-चिंतन के अनुभवों को नकारना, उन पर अनर्गल आक्षेप लगाना, उनको कोई भी उपनाम दे देना उनके 'आत्म-ज्ञान' को अपने किताबी ज्ञान के आधार पर गलत ठहराना अत्यंत हास्यपद है।

क्या कोई ऐसा साधक है इस पूरे विश्व में है, जो "श्री माता जी" का 'विकल्प' बन उनके द्वारा बताई गई बातों की व्याख्या कर सके ?
क्या कोई भी 'महानतम साधक' ये जान सकता है कि उच्चतम चेतना की किन किन अवस्थाओं में "श्री माँ" ने हमें अपने समस्त लेक्चर्स दिए हैं ?उस काल व् परिस्थिति विशेष में "श्री माँ" की बातों का क्या आशय था ?

क्या हम "श्री माँ" की बातों पर अपने वक्तव्य जारी कर सकने की हैसियत रखते हैंलेकिन घोर अन्धकार से ग्रसित होकर हममें से कुछ सहजी "श्री माता जी" की वाणी के जरिये दूसरो को शिक्षा जरूर देते रहते हैं। यहाँ तक कि दूसरे साधकों की बात ठीक प्रकार से सुने व् अपने यंत्र के माध्यम से समझे बिना ही उनकी सत्य बाते गिराने का प्रयास करते रहते हैं।

चाहे "श्री माँ" की बाते उन्हें स्वम् ही तो अनुभव हो रहीं हों और ही समझ रही हो पर हममे से कुछ ऐसे तथाकथित सहजी "माँ" के ज्ञान के आधार पर ज्ञानी व् महान जरूर बन जाते हैं और अकेले में दूसरो की निगेटिविटी के डर कर गुपचुप अपने चक्र साफ कर रहे होते हैं।ये बहुत ही आश्चर्य की बात है।

वास्तव में भय और सच्चा ज्ञान एक दूसरे के विरोधी हैं, यदि सच्चा ज्ञान है तो किसी भी प्रकार का भय होगा और यदि भय मौजूद है तो समझना चाहिए कि अभी सच्चा ज्ञान प्राप्त ही नहीं हुआ है।

जो भी "श्री माँ" ने अपने लेक्चर्स के माध्यम से हमें बताया है उस 'मार्ग दर्शन' के प्रकाश में हम अपने अपने स्तर पर 'पवित्र 'ऊर्जा' के प्रवाह व् गतिविधियों के माध्यम से प्रारंभिक स्तर पर थोडा बहुत अनुभव कर पाते हैं जो अक्सर अन्य साधकों के अनुभवो से थोडा बहुत टेली हो जाता है।

किन्तु जहाँ बात आती है उच्च अवस्था के गूढ़-ध्यान-अनुभवों की तो वो आसानी से एक दूसरे से मैच नहीं हो पाते हैं। और शायद जहाँ तक मेरी चेतना जानती है, कि "श्री माता जी" ने कुछ प्रारंभिक ध्यान अनुभवों को छोड़कर साधकों के गहन-ध्यान अनुभवो का अपने लेक्चर्स में वर्णन भी नहीं किया है जिनके आधार पर हम अपने ध्यान-अनुभवों का मिलान कर सके या चेक कर सकें।

परंतु "उन्होंने" उच्च-ध्यान-अनुभवों के कुछ परिणामों के बारे में जरूर बताया है ताकि ध्यान में उच्च अवस्थाओं को स्पर्श करने वाले "उनके" प्रेम मई उन ध्यान-परिणामों के आधार पर स्वम् की स्थिति का आंकलन कर सकें और सही दिशा में अग्रसर हो सकें।क्योंकि हम सभी अपनी गहनता व् अभ्यास के आधार पर ही सूक्ष्म अनुभव प्राप्त करते हैं, तो बताइये भला वो किसके अनुभव से टेली होंगे।

हाँ, एक उसी काल का सच्चा ध्यान-यात्री अपने अनुभव के आधार पर उनके ध्यान-अनुभवों व् अनुभूतियों का अनुमोदन अवश्य कर सकता है क्योंकि वह उन समस्त अनुभवों व् अनुभूतियों से या तो गुजर चुका होता है या गुजर रहा होता है। केवल और केवल 'विचार रहित अवस्था' में बहती हुई ऊर्जा की धाराओं की अनुभूति और उस अवस्था में प्रस्फुटित होने वाले 'आंतरिक ज्ञान' पर चलकर उससे प्राप्त होने वाले लाभ ही हमें सत्य का आभास करा सकते है।

इसके अतिरिक्त हम साधकों के पास स्वम् के सत्य को समझने का कोई भी विकल्प उपलब्ध नहीं है। ये तो वही बात हो गई कि एक व्यक्ति अमेरिका गया, दूसरा व्यक्ति जापान गया, तीसरा व्यक्ति अफ्रीका गया और चौथा व्यक्ति अंटार्टिका गया, तो भला उन चारों के यात्रा अनुभव भला कैसे एकसे हो सकते हैं, और उन चारो के यात्रा वर्णनों व् अनुभवो की आलोचना हम किस आधार पर कर सकते हैं।

हाँ ये संभव है की यदि कोई व्यक्ति इन चारों स्थानों पर पहले जा चुका हो तो वो थोडा बहुत अपने अनुभव के आधार पर कुछ वक्तव्य जारी कर सकता है, परंतु बोलने से पूर्व जाने के समय के अंतराल व् परस्थितियों को भी ध्यान रखना में होगा।क्योंकि काल, स्थिति व् परिस्थिति का अंतर अनुभव व् अनुभूति को भी बदल देता है।

और एक और बात हम सभी को अच्छे से समझनी चाहिए कि "श्री माता जी" ने बताया है कि हमारे सहस्त्रार में 1000 ब्रह्मरंध्र हैं जिनसे हमारी 1000 सूक्ष्म नाड़ियाँ जुडी हैं जिनमें समस्त ब्रह्मरंध्र खुलने के बाद "माँ आदि शक्ति" की समस्त शक्तियां बहना प्रारम्भ हो जाती हैं।

तो इसका मतलब मेरी चेतना के अनुसार ये हुआ कि जैसे जैसे हमारे सहसत्रार के छिद्र खुलते जाएंगे वैसे वैसे "माँ आदि शक्ति" की समस्त शक्तियां हमारे भीतर भी जागृत होती जाएंगी जिनके कारण हमारे स्वम् के ध्यान की गहनता में उतरने के तरीकों में भी परिवर्तन आता जाएगा जो कि स्वाभिक है।

क्योंकि "श्री माता जी" के अनुसार "माँ अदि शक्ति" के 1000 अवतरण हुए हैं तो हम सबको समझना चाहिए कि ध्यान में गहरे जाने के भी कम से कम 1000 तरीके तो अवश्य ही होंगे। इसके अतिरिक्त "श्री माता जी" के कथनानुसार 10 सद-गुरु भी अवतरित हुए हैं जिन्होंने हमें "परमपिता" से जुड़ने के रास्ते बताये,'जिनका' ज्ञान हमारे नाभि चक्र के जागृत होने पर हमें प्राप्त होने लग जाता है।

जिसके परिणाम स्वरूप सहस्त्रार तक पहुँचने के लिए हमें कम से कम 10 और तरीके प्राप्त हो जाते हैं।साथ ही जब हम 'स्वम् का गुरु' बन कर "परम" के साथ एकाकार होने लगते हैं तो 11 वां तरीका भी जन्म लेने लगता हैं। जिसके कारण हर साधक/साधिका का ध्यान में जाने का एक अलग ही अंदाज व् तरीका हो जाता तो निश्चित रूप ऐसे 'जागृत' साधक/साधिकाओं के द्वारा अन्य लोगों को ध्यान के तौर-तरीके सिखाने व् बताने का अंदाज अवश्य ही अलग अलग होगा।

हाँ यह बात सत्य है कि यदि कोई सहज साधक/साधिका "परमात्मा" से ऐकाकारिता (सहस्त्रार) को अनुभव नहीं कर पा रहा है तो वह निश्चित रूप से ध्यान के एक ही प्रकार के तरीके को बारम्बार रिपीट करता रहेगा क्योंकि अभी तक वह केवल अपने मन(लेफ्ट-अगन्या) में संचित व् अंकित तरीके का ही पालन ही कर रहा है।

यानि कि निष्कर्ष यह निकलता है एक वास्तविक गहन साधक/साधिका को "माँ अदि शक्ति" के साथ सहस्त्रार पर जुड़ने के कम से कम 11 तरीके व् "श्री माँ" के सम्पूर्ण साम्राज्य का आनंद लेने के कम से कम 1000 तरीके उपलब्ध हो सकते हैं।


जिनके कारण 'उच्चकोटि' के साधक/साधिकाओं के ध्यान के तौर-तरीकों में भी समय समय पर बदलाव आता चला जायेगा जिसके कारण विभिन्न प्रकार की ऊर्जा की आवृति(Frequency) व् ऊर्जा के घनत्व(Intensity) की अनुभूति में भी परिवर्तित होते जाएंगे जिसके परिणाम स्वरूप उनके बताने व् सिखाने के तरीके भी बदलते जाएंगे।"

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"Jai Shree Mata Ji"