Wednesday, January 31, 2018

"Impulses"--429--"एक अदद सच्ची बदुआ की दरकार"(24-07-17)

"एक अदद सच्ची बदुआ की दरकार"(24-07-17)
"ये जो उपरोक्त घटना है हमारे समाज में कोई नई नहीं है, जाने कितनी ही अबोध मासूम बच्चियां, बेटियां, बहने, माताएं, धर्मपत्नियाँ इन नर-पिशाचों की दरिंदगी हैवानियत का शिकार हो चुकी हैं।
एक वर्ष पहले ऐसा ही एक केस एक स्टूडेंट के साथ धर्मशाला, हिमाचल में हुआ था जिसके साथ बड़ी ही क्रूरता के साथ बलात्कार किया गया था, उसमें भी महान लोगों की संतानें शामिल थीं, इस घटना को भी दबा दिया गया था।
लगभग एक साल पहले एक 17-18 साल की बच्ची का चेहरा जला विकृत शव उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के घर के पिछवाड़े मिला था।
लगभग एक-दो माह पूर्व एक लड़की शव सामूहिक बलात्कार के बाद एक डस्ट बिन में ठूंसा हुआ मिला था जिसमें सैंकड़ो कीड़े पड़ चुके थे, उसके पिता ने किसी तरह अपने हाथों से निकाल कर अंतिम संस्कार किया था।
कुछ साल पहले मुजफ्फर नगर चौराहे पर उत्तरांचल की सैंकड़ों महिलाओं का सामूहिक बलात्कार हुआ था।
और कुछ ही महीने पहले दिल्ली-पंजाब हाइवे पर गाड़ियों को रोक रोक कर कुछ दरिंदों के द्वारा उनके परिजनों के सामने ही सामूहिक बलात्कार हुआ।
बुलंद शहर हाइवे पर भी कुछ ही दिन पहले दो घटनाओं में गाड़ियों को रोक कर परिजनो के सामने सामूहिक बलात्कार हुए।
हमारे देश में हजारों इस प्रकार की वीभत्स घटनाये घट चुकी हैं किन्तु हमारे देश की कानून व्यवस्था धृत-राष्ट्र का चोला ओढ़े बस कानून के नाम पर कुछ दिन खाना पूरी करके शांत हो जाती है और ऐसे नराधमों का मनोबल निरंतर बढ़ाती ही रहतीं हैं।
क्योंकि जिन स्त्रियों बच्चियों के साथ ये घटनाएं घटित होती हैं वो किसी राज-नेता, बड़े अधिकारी, जज से ताल्लुक नही रखतीं, वो तो मात्र हमारे तथाकथित लोकतांत्रिक देश की साधारण जनता मात्र होती है।
तो भला हमारे देश का वर्तमान भविष्य तय करने वाले इन बड़े नेताओं, ऊंचे ओहदों पर बैठे अधिकारियों, जजों, सचिवों को क्यों कर कष्ट होगा।
चिल्ला चिल्ला कर गरीबों के हित की चिंता का बखान करने वाले महान नेता गण इन मुद्दों पर कार्यवाही करना तो दूर की बात, इन पाशविक घटनाओं पर ज्यादातर अपने विचार व्यक्त करने से भी परहेज करते हैं।
ऐसे में वो पुरुस्कार वापस करने वाले महान बुद्धिजीवी जाने किसी कोने में छुप जाते है, जो जात-पांत, नीति-अनीति, असहिष्णुता के नाम बात बात पर पुरुस्कार वापस करने की धमकी देते रहते है, उनकी नजरों में शायद ये कोई अपराध है ही नही।
जाने इन घटनाओं पर अनेको धर्मों की रक्षक सेनाएं संगठन कहाँ चले जाते हैं जो अपने अपने वर्गों, जातियों धर्मों के लोगों की रक्षा करने का दम्भ भरते हैं।
एक 'निर्भया कांड' पर ही कुछ कार्यवाही की गई थी क्योंकि हमारे देश के युवाओं ने उसको न्याय दिलाने की कमर कस ली थी क्योंकि ये कांड हमारे देश की राजधानी में हुआ था।
इस प्रकार की घटनाओं के अतिरिक्त मानवता को शर्मसार करने वाली अनेको और भी घटनाएं हमारे मुल्क में घटित होती ही रहती हैं।किंतु हमारे देश के कानून के आत्मा से मरे हुए रक्षको को कोई फर्क नही पड़ता।
जैसे काश्मीर में कई साल पहले भयानक कत्लेआम हुआ और वहां से हजारों लोगों को अपना घरबार छोड़कर आना पड़ा क्या उनको आज तक कुछ न्याय मिला।
एक बार हमारे देश की पूर्व प्रधान मंत्री की हत्या पर इन बड़े लोगों की प्रतिक्रिया जरूर हुई तो सामूहिक हिंसा में  निर्दोष 'सिखों' बच्चों को उनके ही परिजनों के सामने बेहरहमी से मार डाला गया, उनके घर जला दिए गए,उनका सारा सामान लूट लिया गया।
इस भयानक हिंसा की टीस आज भी उन परिवारों के हृदय को निरंतर झखझोरती रहती है पीड़ा देती रहती है।
हमारे देश के माथे पर कलंक रूपी घटना भी उन लोगों के साथ हुई जिन सिखों के पूर्वजों का अत्यंत गौरवमयी इतिहास रहा है जिनकी कुर्बानियों के लिए हमारा देश हमारे देशवासी सदा के लिए ऋणी रहेंगे।
यदि 'गुरु गोबिंद सिंह' जी ने इन्ही सिखों की फौज बना कर मुगल आतताइयों आक्रांताओं से हमारी रक्षा की होती तो हमारे देश का इतिहास कुछ और ही होता और हम लोग मुगलों के अत्याचार सहते हुए उनकी गुलामी कर रहे होते।
इंसानियत को शर्मसार करने वाला गोधरा कांड भी इस कड़ी में शामिल है।और भी जाने कितनी हृदय विदारक भयानक नरसंहारों की घटनाएं हैं जिनके विरोध में इस कानून ने आज तक कुछ नही किया।
सरकारें, जज, कानून मंत्री बदलते गए पर किसी को कुछ न्याय मिला।क्योंकि ज्यादातर ऊंचे पदों वाले लोग वास्तव में मृत-आत्माएं हैं जिनके पास हृदय ही नही है जो मानवता की रक्षा के लिए धड़कता है।
हालांकि कुछ अरसा पूर्व इन सभी बुरी घटनाओं के बारे में इन घटनाओं पर कुछ अच्छे लोगों, संगठनों कानूनी प्रतिक्रियाओ का रेडियो, टेलीविज, अखबारों के द्वारा पता लगता रहता था।
किन्तु वर्तमान समय में सरकार के 'अच्छे दिनों' के वादे के चलते बुरी घटनाओं की खबरें भी आसानी से नही मिल पाती हैं जिनसे सरकार की छवि पर प्रश्न चिन्ह लग जाए।
और यदि किसी भी अखबार या चैनल ने कोई खबर दे दी जिससे सरकार की अच्छी छवि को ठेस पहुंचे तो बस उसकी खैर नही।काला धन निकालने के लिए तुरंत सी बी आई का छापा तो उसके प्रतिष्ठान घर पर पड़ना पक्का है।
और यदि किसी व्यक्ति ने ऐसा कुछ भी शोशल मीडिया पे डाल दिया तो उसको तो पक्की तौर पर जेल होनी तय है।
किसी ने हिरण इत्यादि का शिकार कर दिया तो इसे हजारों बार सारे चैनलों अखबारों में बताया जाता रहेगा और कानूनी कार्यवाही का भी पूरा विवरण दिया जाएगा।
किन्तु यदि हमारे देश के निर्दोष नागरिकों को मार दिया गया तो उसकी खबरें ही नदारत हो जाएंगी।
वो तो भला हो फेस बुक और व्हाट्स एप्प का कि ये विदेशी कम्पनी के द्वारा संचालित हैं, तो कहीं कहीं से बुरी खबरें भी मिलती ही रहती हैं अन्यथा हम तो सब तथाकथित 'राम राज्य' के ख्वाबों में ही डूब कर अपने जीवन को धन्य मानकर 'जी हुजूरी' करते हुए अपना जीवन गुजार देते।
वास्तव में इतनी विभीषक घटनाओं से व्यथित होकर मानवता से प्रेम करने वाले लोगों का तो हृदय ही फटने लगता है और आंखों में आंसू छलकने लगते हैं।
जीवात्मा पीड़ा से सिहर उठती है, और मन ये सोचने पर मजबूर हो जाता है कि मानवता की रक्षा करने के लिए हम साधारण नागरिक क्या करें।
ऐसे राक्षसों के खिलाफ बाहरी रूप से हम उनको सजा देने के लिए कानून अपने हाथ में लेकर कुछ कर नही सकते क्योंकि कानून के रक्षक 'बड़े लोग' उल्टे हमारे ही खिलाफ केस लगा देंगे और हमारा ही उत्पीड़न प्रारम्भ कर देंगे।
इस स्थित में मेरी चेतना के अनुसार हमें एक कार्य सामूहिक या व्यक्तिगत स्तर पर कोई एक समय सुनिश्चित करके करना होगा।
इन दुष्टताओं को समाप्त करने के लिए हम सभी के पास एक बहुत ही अचूक हथियार है जो सदा कार्य करता है, और अनादि काल से कार्य करता ही रहा है।
यदि हम "जागृत चेतना" हैं तो हमें अपने सहस्त्रार मध्य हृदय से जुड़कर पहले तो अत्याचार के शिकार लोगों की पीड़ाओं को अपने हृदय में 5-10 मिनट तक महसूस करना होगा।
और प्रतिक्रिया स्वरूप इन दुष्टों के लिए यदि हमारे हृदय में क्रोध आक्रोश की ज्वालायें धधकती हैं हमारे दिल से कोई श्राप निकलता है तो उसे उन तक जाने देंना होगा।
और फिर "श्री महा काली" का ध्यान अवस्था में आव्हान करें और उनसे इन नरपिशाचों राक्षसों को नष्ट करने के लिए दिल से प्रार्थना भी करनी होगी।
और यदि हम साधारण आम मानव हैं तो अपने मन को पीड़ितों पर ले जाएं और उनकी तकलीफों को अपने दिल में महसूस करते हुए ऐसे घिनौने लोगों को जितना हो सकें दिल से भरपूर बद्दुआएं दें जिनसे उनका नाश हो जाये।
साथ ही अपने दिल में रहने वाले और आसमान में रहने वाले अपने "ईश्वर" का स्मरण करें और उनके सामने इन कुकृत्यों को रखते हुए "उनसे" इन आतताइयों को नष्ट करने के लिए दिल से प्रार्थना करें।
क्योंकि सच्चे दिल से निकली एक आह पूरे पूरे साम्राज्य को नष्ट करने की ताकत रखती है, इसके लिए तो मानव जाति का इतिहास गवाह है।
जब कभी सच्चे निर्दोष मानवों के हृदयों से बदुआएँ निकलती हैं तो इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड धरा की रक्षा करने वाली समस्त शक्तियां जागृत हो जाती हैं और अनेकों रूपों में इस धरा पर अवतरित होकर दुष्टों का संहार करती हैं।
"श्री माता जी" ने अपने 'वचनों' में कहा था कि, 'समस्त देव-गण रुद्र मेरे अवतरण के साथ "मेरे" शरीर में आये हैं।जब "मेरे" स्थूल शरीर का कार्य काल समाप्त हो जाएगा तो 'ये' सभी मनुष्य रूप धारण कर लेंगे।'
"श्री माता जी" के इस कथन को आत्मसात करते हुए हमें ये समझना होगा कि हम 'जागृत चेतनाएं' निरीह अशक्त नहीं हैं।हमारे भीतर समस्त देवी-देवताओं रुद्रों की शक्तियां सक्रिय हैं।
हमें कोई बाहरी रूप से हथियार नही उठाना वरन अपने चित्त चेतना के द्वारा इन शक्तियों को मानवता की रक्षा करने के लिए पूर्ण हृदय शुद्ध इच्छा से मात्र दिशा-निर्देशित करना हैं।
अतः इस चेतना का आप सभी अच्छी उच्चकोटि की जीवात्माओं से विनम्र निवेदन है कि इस विश्व में शांति सौहार्द को स्थापित करने के लिए इन हैवानो के विरुद्ध इनको समाप्त करने के लिए अन्य कार्यों के साथ साथ अपने हृदय में "परमात्मा" से प्रार्थना करें।
मानवीय स्तर पर इनके लिए कुछ श्राप/बद्दुआएं अवश्य दें।विश्वास कीजिये 'ईश्वरी' शक्तियां अपने तरीके से जरूर कार्य करेंगी।
और साथ ही इस चेतना का अपने समस्त सहज साथियों से अनुरोध है कि भजनों की बेसुधी, नृत्य की मस्ती, ध्यान समाधि की निद्रा, "श्री माता जी" के विभिन्न आशीर्वादों के उत्सवों, ध्यान-सेमिनारों, शक्ति-पूजाओं, आत्मसाक्षात्कार के कार्यक्रमों, बीमारी ठीक करने वाले शिविरों, चक्र नाड़ियां स्वच्छता की क्रियाओं शुद्धि-अनुष्ठानों के साथ साथ प्रतिदिन मात्र 5-10 मिनट ध्यानस्थ में मानवता को कलंकित करने वाले मानव रूपी दुष्टात्माओं के खात्मे के लिए चित्त से कार्य करने के भी कुछ समय निकालें ताकि हमारी धरा पर अमन चैन कायम हो सके।
यदि इस 'आत्म-प्रवाह' से किसी के मन को कुछ तकलीफ पहुंची हो तो ये चेतना क्षमा प्रार्थी है किंतु अपराध बोध से ग्रसित नही है क्योंकि ये चेतना इसे भी "श्री माँ" के द्वारा प्रदत एक अति आवश्यक उत्तर दायित्व मानती है।"
-------------------------------------Narayan 

"Jai Shree Mata Ji"