Friday, January 19, 2018

"Impulse"--427--"अन्तरदुर्भावना"

"अन्तरदुर्भावना"

"बड़ा आश्चर्य होता है ये देखकर कि "श्री माँ" द्वारा प्रदत्त 'आत्मिक जागृति' का अवसर प्राप्त करने के बाद भी हमारे भारत में कुछ सहज अनुयाइयों के बीच एक बात सदा चर्चा का विषय बनी ही रहती है। 

और वो है किसी भी महिला/पुरुष सहजी का किसी अन्य पुरुष/महिला सहजी के साथ मिलकर सहज का कार्य करना उनके बीच में घटित होने वाली आत्मिक-घनिष्टता के बारे में अन्य सहजियों के बीच होने वाली नकारात्मक निम्न स्तर की बातों का होना।

ये देखकर बहुत हैरानी होती है कि हममे से अनेको सहजी बिना कुछ ठीक प्रकार सोचे समझे किसी के भी बारे में इस प्रकार की तुच्छ चर्चाओं में लिप्त हो जाते हैं।

कभी कभी तो इन बातों को देखकर ऐसा प्रतीत है कि हममें से कुछ लोग अभी भी एक साधक/साधिका का जीवन जीकर वही पूर्व के निम्न दर्जे के संसार में ही जी रहे हैं। जहां पर सभी एक दूसरे के बारे में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए अनर्गल बाते करते रहते हैं।

यदि सहज कार्यक्रमों में किसी महिला सहजी के पास में कुछ पुरुष सहजी उसके अनुभव सुनने समझने के लिए बैठ जाएं उनके ज्ञान का लाभ उठा आनंदित हो जाएं। 

या किसी पुरुष सहजी के पास उनकी बातें सुनने के लिए कुछ महिला सहजी बैठ जाएं और अपनी कुछ समस्याओं का निवारण पा लाभान्वित होकर अन्य सहजियों को बता दें।  

तो कुछ कट्टर संस्था-धारी, 'पद-प्रिय' सहजियों को ये बात बहुत नागवार गुजरती है। और वो उन महिला/पुरुष सहजियों के बारे में बिना सिर-पैर की निकृष्टम बाते फैलाना प्रारम्भ कर देते हैं।

यहां तक कि उनके सांसारिक जीवनों को निशाना बना कर मनघड़ंत उल्टी सीधी बाते अपने गिरे हुए आंतरिक स्तर मानसिकता के अनुरूप अन्य सहजियों के बीच फैलाना प्रारम्भ कर देते हैं।

वो ये सब ईर्ष्या, कुंठा अहंकार से वशीभूत होकर करते हैं, क्योंकि कहीं कहीं उनके भीतर में वो भी ये चाहते रहे कि सहजी उनके भी चारों तरफ बैठें ओर उनके अनुभवों बातों को पसंद करें, उनकी तारीफ करें। किन्तु उनकी चेतना में गहनता सामर्थ्य होने के कारण उनकी ये कामना अधूरी रह जाती है।

वास्तव में उनकी अंतर्निहित हींन भावना ही उन्हें तकलीफ दे रही होती जिसको वे अन्य लोगों को बदनाम करने का प्रयास करके तुष्ट कर रहे होते हैं।

इससे एक बात तो साबित हो जाती है कि उनके भीतर अभी 'सहज' घटित ही नही हो पाया है जिसके कारण वो स्वम् के भीतर देखने के स्थान पर अन्य सहजियों की गतिविधयों को देखकर उनके बारे में गलत सलत प्रचारित करने में लगे हैं।

उन बेचारों को तो ये भी भान नही है कि किसी जागृत चेतना के बारे में झूठी अभद्र बातें फैलाने से समस्त देवगण रुद्र कितने कुपित होते हैं और वे नाराज होकर उनको कितने प्रकार के कष्ट देने वाले हैं।

ऐसे लोग तो बस अपनी नकारात्मकताओं के वशीभूत होकर अपने सहज में आने से पूर्व की दुष-प्रवत्तियों में लिप्त होकर अपना ही नुकसान किये जा रहे हैं। 

एक तरीके से वो अज्ञानतावश "श्री माँ" के विपरीत ही कार्य कर रहे हैं।क्योंकि किसी भी सहजी की चेतना में आत्मज्ञान सद्ज्ञान को जगाने वाली कोई और नहीं स्वम् "श्री माता जी" ही हैं।

"जो "अपने" विभिन्न यंत्रों को "अपनी" इच्छा से विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए "अपने" अनेको माध्यमो के जरिये तैयार करती हैं। "वही" हैं "जो" अनेको प्रकार के सुंदर संयोगों का सृजन करती हैं।  

जिनके परिणाम स्वरूप अनेको जागृत चेतनाएं एक दूसरे से मिलती हैं और एक दूसरे के ज्ञान, प्रेम, सानिग्ध्य, मित्रता घनिष्ठता का लाभ उठा कर आत्मिक तृप्ति संतोष का अनुभव करती हैं।

क्योंकि अमूमन समस्त जीवात्माएं अनेको प्रकार की अतृप्ति की भावनाओं इच्छाओं के कारण बारम्बार जन्म लेती रही हैं। जिनको संतुष्ट करने के लिए "श्री माँ" आत्मसाक्षात्कार के उपरांत उनके आत्मिक विकास के लिए अलग अलग चेतना के स्तर की जीवात्माओं से उनको मिलवा कर उनकी आंतरिक छटपटाहट को दूर करती हैं।

और जब किसी भी गहन प्रेममयी वात्सल्यमयी सहजी के द्वारा किसी दूसरे सहजी की आंतरिक परेशानी उलझन दूर हो जाती है तो स्वाभिक रूप से वो उस सहजी के साथ आत्मिक प्रगाढ़ता को महसूस करता है और उसके साथ का आनंद उठाने के कोई भी अवसर खोना नही चाहता।

परिणाम स्वरूप जब भी उसे किसी भी सामूहिकता में जाने का मौका मिलता है तो वह उस सहजी को ही खोजता है और खोज कर उसके सानिग्ध्य का जरूर आनंद उठाता है अथवा उसके साथ सहज का कार्य करना प्रारंभ कर देता है।

वास्तव में एक दूसरे सहजी के साथ नजदीकी महसूस करने के पीछे उन दोनों की चेतना के स्तर में कहीं कहीं समानता का होना या पूरकता का होना पाया जाता है। 

जिसके कारण सहजी एक दूसरे की बातों का, ज्ञान का, मित्रता का, प्रेम वात्सल्य का भरपूर आनंद उठाते हैं अपने अस्तित्व में आंतरिक दिव्यता प्रसन्नता की अनुभूति करते हैं।

वास्तव में उच्च कोटि की 'प्रकाशित चेतनाएं' किसी भी प्रकार के लिंगभेद(Gender-ism) से परे होती हैं और ही उन पर सांसारिकता के स्तर का कोई भी नियम, सिद्धान्त कर्मफल लागू ही होता है। 

और ही उनका कोई सांसारिकता से आच्छादित प्रारब्ध का पुनर्निर्माण ही होता है जिसके कारण उन्हें पुनः जन्म लेने के लिए बाध्य होना पड़े।

ऊपरी तौर पर देखने में ऐसी उच्च दर्जे की चेतनाएं आम मानवों जैसा साधारण जीवन ही जीती हैं, समस्त प्रकार के मानवीय उपक्रमों भावनाओं से गुजरती है।  

किंतु फिर भी वो हर प्रकार के सांसारिक कर्मफलों से मुक्त होती हैं। सांसारिक, मानसिक सामाजिक दृष्टिकोण से यदि उनसे तथाकथित पाप भी हो जाये तो वो भी पुण्य में ही परिवर्तित हो जाता है।

यानि "परमात्मा" उनसे जो भी कराते हैं वो केवल और केवल पावनता, शुभता श्रेष्ठता ही लिए होता है। इस स्तर के सहजियों का ऊर्जा क्षेत्र अत्यंत विकसित होता है जिससे अन्य लोगों के अनेको प्रकार के कष्ट पीड़ाएँ उनके सम्पर्क में आने से स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं।

उनकी कुण्डलिनी आत्मा अत्यंत सशक्त होती है जो उनके चक्रों नाड़ियों को स्वच्छ कर उनके भीतर के सुप्त ज्ञान को की जागृति में प्रस्फुटन देकर उनके भीतर आत्मसंतोष का संचार करती है।

अतः किसी भी सहजी को किन्ही दो विपरीत लिंग के सहजियों की नजदीकी मित्रता के बारे में कुछ भी नकारात्मक नही बोलना चाहिए और ही प्रचारित करना चाहिए।  

अन्यथा अत्यंत गंभीर परिणामों से उसे अवश्य गुजरना पड़ेगा। कौन किसके साथ जुड़ेगा, रहेगा, कार्य करेगा, बैठेगा या चलेगा, ये कार्य केवल और केवल "श्री माँ" का है।

क्योंकि सहज में आने से पूर्व हम अपने सहज-माध्यम के अतिरिक्त किसी को जानते तक थे, किन्तु "माँ" के नेटवर्क के चलते अनेको सहजियों के साथ हम जुड़ते हैं  

और ज्यादातर सहजियों से आत्मिक लगाव अनुभव करते हैं। समस्त सहजियों के बीच अलग-अलग स्तर तीव्रता के आनंदाई लगाव को घटित कराने में "श्री माँ" के प्रेम का ही तो हाथ है।

यदि फिर भी कोई ये सोचे कि किन्ही सहजियों के बीच कुछ तथा कथित ठीक नही चल रहा है तो उसका फल देना "माँ" का ही कार्य है। अतः उनकी गतिविधियों को "श्री माँ" के ऊपर ही छोड़ देना चाहिए, अपनी ओर से कोई भी गलत बात निकालनी नही चाहिए। 

किससे किसको क्या प्राप्त होना है इसकी व्यवस्था स्वम् "श्री माँ" ने की हुई है।तो भला किसी को क्या पड़ी है किसी के भी बारे में कुछ उल्टा-सीधा बोले। 

"श्री माँ" के अनुसार मानव देह में हमारा ये अंतिम जन्म हो सकता है अतः मेरी चेतना के अनुसार हमारे समस्त पूर्व जीवनो की समस्त कमियों के एहसासों वास्तिक आंतरिक, आवश्यकताओं, इच्छाओं, भावनाओं एवम बहुप्रतीक्षित कर्मफलों को संतुलित करने के लिए ही "वो" उन समस्त जीवात्माओं को एक दूसरे से स्वम् ही मिलवाती जुड़वाती हैं।

ताकि किसी भी जागृत जीवात्मा के भीतर किसी भी भावना, स्थिति, स्थान या वस्तु से सम्बंधित कोई भी अधूरापन शेष रह जाये और अपने मानवीय जीवन के अंतिम समय में कोई भी जागृत मानव "परमपिता" से अगले जीवन के लिए कोई भी सांसारिक अथवा आध्यात्मिक इच्छा प्रगट कर पाए।

जब उनको मिलाने वाली स्वम् "श्री माता जी" ही हैं तो "वही" उनके सही गलत आचरण को देखेंगी और प्रतिफल देंगी। यही हमको अपने भीतर समाधान लाना होगा अन्यथा हम ध्यान में उत्थान के स्थान पर पतन के गर्त में धकेल दिए जाएंगे।

जरा नकारात्मक टिप्पड़ियां करने वाले सहजी कुछ देर अपने भीतर चिंतन करके देंखें कि, जब दूसरे देशों से महिला-पुरुष सहजी ग्रुप्स में एक साथ हमारे भारत में आते हैं 

तो क्या तब भी वो विदेशी महिला-पुरुष सहजियों के बारे में या उनके रिश्तों के बारे में मूर्खतापूर्ण ऐसी ही टिप्पड़ी करते है खराब बाते प्रचारित करते हैं।

यदि नहीं करते तो हमारे भारतीय सहजियों के प्रति उनके दृष्टिकोण में इतनी दूषितता निम्मनता क्यों है ? 

जबकि सभी सहजी एकसी पात्रता रखते हैं तो ऐसे सहजी भारतीय विदेशी सहजियों में भेदभाव क्यों रखते हैं ?

 जबकि विदेशी सहजियों का रहन-सहन तौर तरीके तो भारतीय सहजियों से तो और भी ज्यादा खुले होते हैं ?

इन बातों में भी ऐसे सहजियों का दुहरा व्यक्तित्व ही प्रदर्शित होता है। इसका मतलब है कि ऐसे सहजियों की निश्चित रूप से अभी समझ ही विकसित नही हो पाई है। वो अपने 'कुण्डलिनी जागरण' के बाद भी अपने सीमित दायरे में पशु की भांति अभी भी बंधे हुए हैं।

और ऐसे सहजियों की बातों में आकर उनका सहयोग करते हुए उनके दुष्प्रचार को आगे बढ़ाने वाले सहजी तो समझ में उनसे भी गए गुजरे हैं।

और जब इतनी निम्न अवस्था है तो सहज योग में ऐसे लोग आखिर कर क्या रहे हैं ?

ये सदमार्ग तो हकीकत में केवल और केवल "परमात्मा" उनकी सम्पूर्ण रचना को हृदय से प्रेम करने वाले मानवों के लिए ही उपलब्ध हुआ है।

क्या किन्ही सहजियों के बारे में इस प्रकार की तुच्छ गिरी हुई बातें करने से 'आत्मज्ञान' प्राप्त हो जाएगा ?

क्या इन निकृष्ट बातों से वायब्रेशन बढ़ जाएंगे ? क्या इस प्रकार की तुच्छता हमें उत्थान की ओर ले जाएगी ?

क्या "श्री माता" जी अन्य सहजियों की बुराइयां करने से प्रसन्न हो कर "अपने" हृदय में स्थान दे पाएंगी ?

क्या इस प्रकार की ओछी छुद्र बातों में लिप्त होकर हम अपने मोक्ष के अधिकारी बन पाएंगे ?

इस चेतना का हृदय से इस प्रकार की निकृष्ट धारणाओं को अपने भीतर में स्थान देने वाले समस्त सहजियों से विनम्र निवेदन है।


कि वो सभी एक बार सच्चे हृदय से ध्यान के दौरान अपने इन कार्यों, धारणाओं बातों की ओर स्वम् अपने ह्रदय के भीतर झांक कर गंभीर चिंतन द्वारा एक बार देखें तो सही कि, आखिर हम सहज में क्या करने के लिए लाए गए हैं और हम क्या करने में लिप्त हो गए है।"

-------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata ji"

No comments:

Post a Comment