Wednesday, October 28, 2015

"Impulses"---260

"Impulses"

1) "Today's life has become so mechanical and busy as we could hardly spare some time for the preparation of our 'Next Journey' whereas if we plan to go out of the town for two days, we usually start arranging essentials which might be needed during the planned journey at least one week prior.......just sit for few minutes peacefully and think about.......we know the dates and day of two days journey but we are not aware of the schedule of our Last Journey which might be spontaneous and instant........Are we ready.......have we saved some money (Good Wishes and Blessings) for this Sure-Departure."

("हम सभी का आजकल का जीवन अति व्यस्त व् इतना मशीनी हो गया है कि हम यात्रा की तैयारी के लिए नहीं निकाल पाते हैं जबकि यदि हम अपने शहर से बहार दो दिन के लिए भी जाते हैं तो हम उस सुनिश्चित यात्रा के लिए यात्रा के दौरान स्तेमाल होने वाले आवशयक सामान को एक सप्ताह पहले ही एकत्रित कारण प्रारम्भ कर देते हैं।

जरा थोड़ी देर बैठिये और शांति से सोचिये, कि इस दो दिवस की यात्रा की हमें दिन व् तिथि मालूम होती है लेकिन हमें अपनी उस 'अंतिम यात्रा' का कोई भी तिथि -चार्ट पता नहीं होता जो यकायक स्वतः ही घटित हो जाती है। क्या हम उस यात्रा के लिए आज और अभी तैयार हैं ? क्या हम उस सुनिश्चित-सफर के लिए कुछ धन बचा चुके हैं जो शुभकामनाओं व् आशीर्वादों के रूप में इस यात्रा में काम आने वाल है ?")


2) "If we depend on Borrowed Money and Borrowed Spiritual knowledge then it becomes a burden over our consciousness which usually hampers our growth in both the fields like Materialistic and Spiritual.

Because it decreases our potential and Capability slowly and finally leads to inferiority Complex which often makes us susceptible to Severe Depression which often convert into Aggression and aggression leads to Distorted Mental Disposition which makes us Jealous and Bias of other,s Traits and Achievements.

("यदि हम उधार के पैसे एवं दूसरों से उधार लिया गया आध्यात्मिक ज्ञान के ऊपर निर्भर करते हैं तो यह हमारी जागृति पर एक बोझ बन जाता है जो हमारी भौतिक व् आध्यात्मिक उन्नति को नुकसान पहुंचाता है।

क्योंकि यह हमारी विशेषताओं व् क्षमता को धीरे धीरे कम करता जाता है और अंत में हीं भावना की ओर ले जाता है जो अक्सर हमें गहरे अवसाद में धकेल देती है जो बाद में 'आक्रमकता' में परिवर्तित हो जाती है और आक्रमकता हमें विकृत मानसिकता की ओर ले जाती है जो हमें दूसरों के गुणों व् उपलब्धियों के प्रति ईर्ष्यालु व् प्रतिद्वन्दी बना देती है।")

-------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


Saturday, October 24, 2015

Sahaj Yoga(Video)-52--Deep Meditation-'E H'--2--19-12-14

"Elimination of Evils is one of the Prime Tasks for the Children of "Shree Maa" through Attention"

Monday, October 19, 2015

"Impulses"----259

"Impulses"

1) "Our Being is just like a Car, the Outer Body of this Car is our Gross Body, the inner Mechanism of this car is our Subtle Body, all kinds of Parts of this car are our Inherent Deities, Our Consciousness is the GPS of this Car, Our Attention works as Steering of this Car, Our Awareness is the Rider of this Car, Our Spirit is the Driver of this Car, "Maa Adi Shakti' is the workshop of this Car and "Almighty" is the owner of this Car Company.
So, just, hand over this Car to the 'Driver' and enjoy this beautiful Ride by enjoying the journey of this life without being frightened of any kinds of Accidents as well as without worrying about it's problems.

(हमारा मानवीय अस्तित्व एक कार की तरह है, इस कार का बाहरी आवरण हमारी स्थूल देह है, इस कार की भीतरी मशीनरी हमारा सूक्ष्म यंत्र है, इसके समस्त कल-पुर्जे हमारे भीतर में स्थित देवी-देवता हैं, हमारी जागृति इस कार का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम है, हमारा चित्त इस कार का स्टीयरिंग व्हील है,हमारी चेतना इस कार की सवारी है, हमारी आत्मा इस कार की ड्राइवर है, "माँ आदि शक्ति" इस कार की कार्य-शाला हैं, और "परमपिता" इस कार कम्पनी के मालिक हैं।
अत: इस कार को कार ड्राइवर के हवाले कर के इस सुन्दर जीवन यात्रा का आनंद उठायें व् किसी भी प्रकार की होने वाली दुर्घटना व् इस कार में हो सकने वाली खराबी की चिंता करें।")


2) "Human Emotions are just like Gas which is produced by friction between Actual Needs and Existing Desires, such kind of emotions always try to seek an out let in the form of a Genuine Loving and Compassionate person who can absorb and appreciate all such feelings with great care and understanding."

("मानव की मानसिक भावनाएं गैस की तरह होती है जो मनुष्य की वास्तविक आवश्यकताओं व् वर्तमान इच्छाओं के बीच होने वाले घर्ष से उत्पन्न होती है। इस प्रकार की भावनाएं सदा एक वास्तविक वात्सल्य से युक्त मानव रुपी यंत्र को तलाशती रहतीं हैं जो दूसरे मानव की समस्त प्रकार की अनुभूतियों व् भावनाओं को अपने भीतर शोषित कर सके व् बहुत समझदारी जिम्मेदारी के साथ उनका सम्मान कर सके।")



3) "God is available all the time at every place, we are not supposed to think about Temples, Special Places, System, Procedure of Worship, Enchanting of Mantras and Preparation for Connectivity, just remember 'Him' with our True Heart and 'Inhale' "His Power" through our Crown(Sahastrara) of our Head, within few seconds 'He' would be at your 'Door' (Sahastrara) and then into your Lobby (Heart) after a warm welcome by your Consciousness"

("परमात्मा" हर समय हर स्थान पर उप्लब्ध होते हैं इसीलिए हमें सदा मंदिरों , विशिष्ट स्थानों, विधि,पूजा के तौर तरीके, मंत्रो-चारण व् ,परम के साथ जुड़ने की तैयारी के बारे में नहीं सोचना चाहिए। जरा "परमात्मा" को से स्मरण करें और उनकी शक्तियों को सहस्त्रार के माध्यम से ग्रहण करें। कुछ ही क्षणों में "वो" आपकी चेतना के द्वारा स्वागत करने के उपरान्त आपके सहस्त्रार रूपी द्धार पर उपस्थित हो जायेंगे और उसके बाद आपकी हृदय रूपी लॉबी में प्रवेश कर जायेंगे।"

--------------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"

Tuesday, October 13, 2015

Sahaj Yoga(Video)---51--Deep Meditation--"E.H"--1--18-12-14

"An Assignment to "Enlightened Warriors"  

"Impulses"---258

"Impulses"

 Happy "Navratre" to all Enlightened Souls,...........))))))))))))

"समस्त जागृत चेतनाओं को "नव-देवियों" की शक्ति व् प्रेम के माध्यम से अपने भीतर में घटित होने वाले "नव-जागरण" के 'सुन्दर व् पावन अवसर' का पूर्ण जागरूकता के साथ लाभ उठाने के लिए इस चेतना की ओर से "नवरात्रों"की सार्थकता के लिए हृदय-प्रेम से परिपूर्ण अनेकानेक शुभकामनाएं।
इन श्रेष्ठतम दिवसों लाभ उठाने के लिए ध्यानस्थ अवस्था में अपने मन, चित्त व् चेतना को निरंतर अपने सहस्त्रार व् हृदय में बनाये रखते हुए "माँ" की पवित्र ऊर्जा को महसूस करते हुए "माँ भगवती" से प्रार्थना करें कि,--------

"हे श्री माँ" मेरे मन के भीतर अभी भी यदि कोई कोई भूत, राक्षस या शैतान निवास करता हो तो कृपया उन सभी को नष्ट कर मुझे सदा के लिए अपने "श्री चरणों" में बनाये रखने का सामर्थ्य प्रदान कीजिये और मेरे हृदय से समस्त प्रकार की "परमात्मा व् प्रकृति" विरोधी दूषित भावनाओं को नष्ट कर मुझे अपनी "आत्मा" के आनंद में स्थित कर दीजिये।"

वास्तव में हमारा मस्तिष्क या तो मन के आधीन कार्य करता है और हमें नित नए झमेलों में फंसाता रहता है और हमें पतन के गर्त में धकेलता जाता है और अंत में हमें पूर्ण रूप से नष्ट कर देता है।

या फिर हृदय से संचालित होता है और हृदय के संरक्षण में गतिशील रहकर अनेको प्रकार के रचनासत्मक कार्य करने की हमें प्रेरणा देता है जिसके कारण हम अपने साथ साथ अन्य लोगों के भी हर क्षेत्र में कल्याण का माध्यम बनते हैं।

अतः हृदय का पूर्ण लाभ उठाने के लिए हमें अपने हृदय में "माँ जगदम्बा" को जागृत करना होगा जो मन की मलिनता रुपी काई के साफ होने पर ही जागृत हो सकती हैं और ये मलिनता केवल और केवल "ध्यानस्थ अवस्था" में सहस्त्रार से हृदय में आने वाली "दिव्य ऊर्जा" रूपी अमृत से ही नष्ट हो सकती है।

वर्ना मानव अपने मन में स्थित नकारात्मक शक्तियों के चंगुल में फंस कर अपने अनमोल मानवीय जीवन को पूर्णतया नष्ट कर डालता है और अनेको प्रकार के नरकों का भागी बनता है।"

"या देवी सर्वभूतेषु............. "शक्ति"रूपेण संस्थिता........नमस्तस्य........नमस्तस्य.........न मस्तस्य.......नमो नमः"

----------------Narayan


"Jai Shree Mata ji"

Tuesday, October 6, 2015

"Impulses"---257

"Impulses"

1)”After merging of this Gross Body into five Elements again our soul carries Mind and Awareness for the next Life Cycle either to Gross Body or to Subtle Body. So we have got golden Chance in this present life to develop our Awareness by solving all the queries and suppressed instincts of our mind so that our mind would not create any kind of regret and repent before our soul which might be troublesome and torturing for It.

But we should do something like good that our all the senses could give a cheerful Farewell to our soul. For this, our Spirit is there to give Its services to guide us every moments, we are supposed to interact with it for such communication through ‘Deep Meditation.

("हमारी स्थूल देह के पाँचों तत्वों में विलीन होने के बाद हमारी जीवात्मा हमारे मन व् चेतना को अगले जीवन चक्र की ओर ले जाती है चाहे हमारा अगला जीवन स्थूल देह के रूप में हो या सूक्ष्म रूप में। इसीलिए हमारे पास हमारे वर्तमान जीवन में हमारे लिए एक सुनहरी मौका है जिसके माध्यम से हम अपनी चेतन को विकसित करके अपने मन के सभी प्रश्न व् दमित व्रतियों को हल कर सकते हैं ताकि हमारा मन हमारी जीवात्मा के सामने कसी भी प्रकार का पछतावा उत्पन्न करे जो हमारी जीवात्मा के लिए बेहद पीड़ा दायक व् परेशानी उत्पन्न करने वाला होगा।
लेकिन हमें कुछ ऐसा अच्छा करना होगा की उस घडी में हमारी समस्त ज्ञानेन्द्रियाँ हमारी जीवात्मा को हर्षित विदाई दे सकें। इस कार्य के लिए मारी आत्मा हमको हर पल मार्गदर्शन देने के लिए उपस्थित हैहमको अपनी आत्मा के साथ गहरे ध्यान के माध्यम से सदैव संपर्क बनाये रखना चाहिए।")


2) ”Some times we can see the Destination but we have to find its way towards the same destination. So we should move towards our target with Eagerness like a Thirsty, Patience like a Hunter, Strength like a Lion, Balance like an Eagle and Big Heart like an Entrepreneur to tolerate little losses to gain big Profit, only then we can get success by hitting our actual Goal.”


("कभी कभी हम अपनी मंजिल को देख पाते है ेकिन हमें वहां तक पहुँचने के लिए रास्ता ढूंढना पड़ता है। इसीलिए हमको अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए जैसे एक प्यासा पानी की ओर तीव्र गति से बढ़ता है,जैसे कि एक शिकारी अपने शिकार को प्राप्त धैर्य धारण करता है, जैसे शेर अपने भीतर की शक्ति से लबरेज रहता है, जैसे एक गरुण उड़ते हुए संतुलन बनाये रखता है और जैसे एक उद्दमी बड़े लाभों के लिए छोटी छोटी हानियों को सहने के लिए बड़ा दिल रखता है, केवल इन्ही स्थितियों को धारण करने पर ही हम अपने लक्ष्य को भेद सकते हैं।"

---------------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"