Tuesday, April 9, 2024

"Impulses"--662-- "सत्य के प्रति उत्तरदायित्व"

 "सत्य के प्रति उत्तरदायित्व"

"एक जागृत/प्रकाशित चेतना को पूर्ण निर्भयता के साथ झूठ मानवता विरोधी शक्तियों से ऐसे ही आजीवन संघर्षरत रहना चाहिए।

जैसे एक नन्ही सी चिड़िया समय समय पर आने वाली आंधियों/तूफानों के कारण नष्ट होने वाले अपने घोंसले को तिनका तिनका जोड़ कर पुनः बनाने में आजीवन जुटी रहती है।

क्योंकि एक जागरूक/उत्क्रान्तित मानव जानता है कि यह जीवन स्थाई नहीं है,एक एक दिन इसका निश्चित रूप से अंत हो ही जाएगा।

तो क्यों कर वह अपने "रचयिता" के द्वारा प्रदान किये गए कर्त्तव्यों से विमुख रहे और "उनके" समक्ष शर्मिंदगी का सामना करे।

जो भी लोग मानवता के हितैषी बन सत्यता के पक्ष में अपनी चेतना को निरन्तर बनाये रखते हैं,वे अपने जीवन काल में ही मुक्ति का आनंद ले पाते हैं और उनके साथ "परमात्मा" की समस्त शक्तियां निरंतर बनी रहती हैं।

यहां तक कि उनकी दैहिक मृत्यु के बाद भी समस्त 'दिव्य शक्तियां' उनकी जीवात्मा का पूर्ण सौरक्षण करते हुए उनकी चेतना को अमरत्त्व प्रदान करती हैं।

उच्च दर्जे के अनेकों मानवों को अमरत्त्व प्राप्त हुआ है, वे आज भी अपने उत्कृष्ट कार्यों के कारण समय समय पर हम सभी के द्वारा स्मरण किये जाते हैं।

यही नहीं यदि अशरीरी अवस्था में भी यदि उनकी चेतना असत्य मानवता विरोधी तत्वों के खिलाफ अपनी सूक्ष्मतम अवस्था में भी सक्रिय रहना चाहती हैं तब भी 'परम शक्तियां' उनकी चेतना के माध्यम से कार्य करती रहती हैं।

इसके विपरीत जो लोग मानवता का अहित करने वाले दुष्टों का किसी किसी रूप में सहयोग करते हैं।अथवा ऐसे नराधमो के खिलाफ तो कोई आवाज उठाते हैं और ही उनका विरोध करते हैं और ही "परमात्मा" से ऐसे निम्नतम लोगों को समाप्त करने की प्रार्थना ही करते हैं।

तो यह बात सुनिश्चित है कि 'चुप' रहने वाले ऐसे सभी मानवों को भी प्रकृति,ग्रहों,गणों रुद्रों के प्रकोप का भाजन बनना पड़ता है फिर चाहे वे कितना भी पूजा पाठ ध्यान में समय लगाते हैं।

ऐसे लोगों के जीवनों में अचानक से ऐसी ऐसी विपत्तियाँ/तकलीफें/बीमारियां/दुर्घटनाएं धमकती हैं जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।

साथ ही ऐसे मानवों के द्वारा देह त्यागने के उपरांत इनकी जीवात्माओं को विभिन्न प्रकार की यंत्रणाओं को जन्म जन्मांतर तक भोगना भी पड़ता है।

"परमपिता परमेश्वर" ने मानव को समस्त प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ इसीलिए बनाया है ताकि वह सत्य,मानवता प्रकृति का सहयोग कर सके।

यदि अज्ञानता अहंकार से घिरा मनुष्य, मानव धर्म,'प्रकृति' "परमात्मा" के नियमों की अनदेखी/खिलाफत करना प्रारंभ कर देता है तो वह इस सृष्टि के लिए अनुपयोगी होने लगता है।

जिसके परिणाम स्वरूप इस 'रचना' की रक्षा करने वाली समस्त शक्तियां उसके बाह्य अस्तित्व को अनेको तरीकों से शनै शनै नष्ट करना प्रारम्भ कर देती हैं।

जिस प्रकार से खराब फल/सब्जी के भीतर सुप्त अवस्था में रहने वाले सूक्ष्म जीवी जागृत होकर उसे नष्ट करना प्रारम्भ कर देते हैं जिसके परिणाम स्वरूप सड़न उत्पन्न होने लगती है।

मानव चेतना को अपने शिकंजे में लेने वाली समस्त प्रकार की नकारात्मक मनोवृतियां/प्रवृतियां जैसे झूठ,फरेब,चालाकी,धूर्तता,मक्कारी,अहंकार,ईर्ष्या,प्रभुत्व,कट्टरता,धर्मांधता,व्यक्तिवादिता आदि भी एक प्रकार की सड़न ही हैं।"


-------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


(16-03-2022)