Thursday, December 30, 2021

"Impulses"-557-"धन"

 "धन"


"धन हमारे सांसारिक जीवन के लिए अति आवश्यक संसाधन है इसकी कमी से हम काफी कष्ट महसूस करते हैं।

अतः अपनी आवश्यकतानुसार 'प्रचुर' मात्रा में धनार्जन करना चाहिए।

किन्तु ध्यान रहे कि इस धन को अर्जित करने के लिए किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य करें और ही किसी के धन को छल,बल,बेईमानी धोखे के जरिये छीने/लूटें।

अन्यथा यह धन 'अलक्ष्मी' को आकर्षित करेगा जो विष के रूप में परिवर्तित होकर आपके जीवन के सुख,शांति,सन्तोष,बरकत, स्वास्थ्य को लील जाएगी।

और आप इसी जन्म में हर प्रकार की परेशानी में लगातार घिरते ही चले जायेंगे,और हो सकता है आपको पाई पाई के लिए मोहताज भी होना पड़े।

जितने भी भिखारी हमें सड़क पर भीख मांगते नजर आते हैं, ये वही लोग हैं जिन्होंने अपने पूर्व जीवन में छल किया है अथवा जम के कामचोरी की है।

वास्तव में पूर्ण निष्ठा, मेहनत,लगन ईमानदारी से कमाया गया धन ही 'श्री लक्ष्मी' को आपके घर सदा के लिए बसने के लिए आमंत्रित करता है जो आपको हर प्रकार की समृद्धि,खुशहाली,संम्पन्नता आनंद प्रदान करती हैं।"

---------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


07-11-2020

Monday, December 27, 2021

"Impulses"-556-"ध्यान एक माध्यम"

 "ध्यान क माध्यम" 


"जैसे रॉकेट का प्रयोग किसी भी 'उपग्रह' को उसकी कक्षा में स्थापित करने के लिए किया जाता है।

और जब वह उपग्रह अपनी कक्षा में स्थापित हो जाता है तो उस उपग्रह के लिए उस राकेट की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

इसके बाद वह उपग्रह उन सभी सूचनाओं को धरती तक पहुंचता रहता जिसके लिए वह तैयार किया गया।

ठीक इसी प्रकार से 'ध्यान' की बैठकों का उपयोग भी हमारी 'चेतना' को "परमात्मा" के साम्राज्य में स्थापित करने के लिए ही किया जाता है।

जब हमारी चेतना "परमपिता" से एकाकारिता स्थापित कर लेती है तो ध्यान की बैठकों की आवश्यकता भी समाप्त हो जाती है।

साधक/साधिका बिन ध्यान में उतरे ही ध्यानस्थ होते हैं और "उनके" सन्देश हृदय से ग्रहण कर सभी मानवों तक प्रसारित करते रहते हैं।"

-------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


06-11-2020

Tuesday, December 21, 2021

"Impulses"--555-- "आत्म-मुग्धता v/s आत्म-प्रेम"

 "आत्म-मुग्धता v/s आत्म-प्रेम"


आत्म-मुग्धता का आधार 'हीन भावना' है जबकि आत्म-प्रेम का आधार 'आत्म-सम्मान' है।

आत्म-मुग्ध मानव की प्रवृति प्रदर्शन कारी होती है, वह जो भी करता है, वह लोगों को दिखाने के लिए ही करता है।साथ ही वह अपने कार्यो का श्रेय स्वयम लेते हुए स्वयं को श्रेष्ठ महान सिद्ध करता रहता है।

उसका उद्देश्य लोगों की प्रशंसा पाना ही होता है,ताकि लोगों की तारीफ से उसकी हीन भावना उसके मन में ज्यादा तक्लीफ दे।

जबकि आत्म-प्रेमी स्वभाव से शांत,शालीन सौम्य होता है, वह जो भी करता है अपनी जीवात्मा की प्रसन्नता उसके सानिग्ध्य का आनद उठाने के लिए ही करता है।

उसे कभी भी अपने द्वारा किये गए कार्यो के प्रदर्शन करने की इच्छा नहीं होती और ही उसे किसी की तारीफ की ही हसरत होती है।

हाँ, वह अन्य लोगों को अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देने के लिए अपनी बातें,अनुभव कार्यो को सबके साथ अवश्य बांटता रहता है।

किन्तु वह अपने किसी भी कार्य का श्रेय कभी भी स्वयम नहीं लेता क्योंकि वह जानता है कि वह कुछ भी नहीं है। जो भी उससे करवाया जा रहा है वह "प्रभु" की इच्छा प्रेरणा के द्वारा ही घटित हो रहा है।"

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"Jai Shree Mata Ji"


05-11-2020

Friday, December 17, 2021

"Impulses"--554- "मोहग्रस्त, ईर्ष्यालु और अहंकारी, कबहुँ न जाने 'प्रेम' की बानी"

 "मोहग्रस्त, ईर्ष्यालु और अहंकारी, कबहुँ जाने 'प्रेम' की बानी"


"तीन वर्गों के मानवों पर अपना अनमोल प्रेम कभी नहीं लुटाना चाहिए।

पहला है, मोहग्रस्त मानव:-मोह में आकंठ डूबा हुआ मानव आपके प्रेम को आपका उत्तरदायित्व समझ कर आपके प्रेम को अत्यंत हल्के में लेता रहेगा और समय समय पर आपका तिरस्कार भी करता रहेगा।

दूसरा है अहंकारी मानव:-अहंकार से आच्छादित मानव आपके प्रेम को आपकी कमजोरी समझ कर आपकी चेतना पर रात दिन शासन करता हुआ आपको और भी ज्यादा दबाता चला जायेगा।

तीसरा है ईर्ष्यालु मानव:-जिस मानव के भीतर ईर्ष्या कूट कूट कर भरी होती है वह सदा आपके नजदीक बना रहता है।

और आपके प्रेम का प्रयोग आप ही के विरुद्ध करके आपको भारी हानि पहुंचा सकता है।"


----------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


04-11-2020