Tuesday, November 29, 2016

"Impulses"--319--"मुफ़्त वाद-एक कोढ़"

"मुफ़्त वाद-एक कोढ़"(19-02-16)

"काफी अरसे से अपने मुल्क की दुर्दशा पर चिंतन चल रहा है,ध्यानस्थ अवस्था में चित्त के माध्यम से तो कार्य चलता ही रहता है किन्तु भीतर से कुछ लिखने की आज प्रेरणा मिली है।अपने चारों ओर अवलोकन कर चिंतन-मनन करते हुए एक तथ्य की बात मेरी चेतना में प्रगट हुई कि हमारे देश की दुर्दशा के लिए वास्तव में जो कारण है उन कुछ मूल कारणों में से एक बड़ा कारण है ओर वो है 'मुफ़्त खोरी'

जिसके कारण 'स्वाभिमान' भारत के ज्यादातर नागरिक लालच में अपने स्वाभिमान को कुचल कर हर चीज को मुफ़्त में प्राप्त करना चाहते हैं।जिसकी प्रथा हमारे देश की आजादी के बाद से कुछ सत्ता व् धन के लालची नेताओं ने सत्ता में बने रहने के लिए वोटरों को लुभाने के लिए कुछ मुफ़्त सुविधाएँ देश के आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों की प्रगति के नाम पर उपलब्ध करा दीं जो वास्तव में अल्पकालिक थीं, वही मुफ्तखोरी विभिन्न प्रकार की सब्सिडी व् निशुल्क सुविधा के रूप में आज 'देशद्रोह' के रूप में प्रगट हो रही है।

आज पूरा विश्व आतंकवाद की चपेट में है क्योंकि कुछ प्राचीन काल के लुटेरे जो हर चीज को बिना मेहनत करे दूसरों से लूट कर उपभोग करना चाहते थे वही अब विभिन्न प्रकार के आतंकवादी संगठनो के रूप में फलफूल रहे हैं।

हमारा देश महान् और उदार है जिसने प्राचीन काल से ही सभी प्रकार के धर्मों को अपने हृदय में स्थान दिया है, इसी कारण से सबसे ज्यादा संत, सदगुरु, अवतरण, पीर, पैगम्बर, नबी, आलिया, दरवेश, पीर व् उच्च दर्जे के नेताओं व् मानवों की चेतनाओं ने इस पवित्र धरा पर जन्म लिया है।

ये सभी उच्च दर्जे की चेतनाएं पूर्ण रूप से स्वाभिमानी रहे हैं जिहोने अपने भोजन व् आवास का प्रबंध करने के लिए श्रम किया है जो कभी भी जनता के चढ़ावे पर निर्भर नहीं रहे। प्रारम्भ करते हैं 'सनातन धर्म' से जिसका आरम्भ काल "श्री राम" के आगमन से माना जाता है।

"श्री राम" राज पाट त्याग कर वनो में ही रहे जहाँ उन्होंने स्वम् के भोजन का प्रबंध स्वम् किया, जिसका उदहारण मारीच नाम के मृग के शिकार के रूप में उपलब्ध है।उन्होंने कभी भी अपने महा भक्त "श्री हनुमान " से स्वम् के भोजन का प्रबन्ध करने के लिए नहीं कहा।

द्वापर में "श्री कृष्ण" जी गायों को चराने जंगल ले जाया करते थे, उन्होंने भी मुफ़्त में भोजन नहीं किया। और तो और "उन्होंने" अपने परम मित्र सुदामा को जो आर्थिक रूप से बेहद गरीब थे, की कभी आर्थिक मदद नहीं की और ही स्वाभिमानी सुदामा ने ही उनसे कुछ माँगा।

एक और उदाहरण राजा हरीश चंद्र का है, कि जब उनका राज पाट छिन गया तो उन्होंने शमशान घाट में नौकरी कर के अपना व् परिवार का पेट पाला।

ईसाई धर्म के रचयिता "श्री जीसस" भी अपनी आजीविका का के लिए शायद बड़ई का पत्थर का कार्य करते थे क्षमा कीजियेगा उनके जीवन के बारे में मुझे ज्यादा पता नहीं है।

"इस्लाम" धर्म की स्थापना करने वाले "श्री मोहम्मद" ने एक चरहावे के रूप में अपने व् अपने परिवार के भोजन का प्रबंध किया।और उन्होंने अपने अनुयायियों को कहा था कि अपने घर से 5 घर इधर और 5 घर उधर में रहने वाले लोगों का ख्याल रखो।

कि कोई भूखा सो पाये, इसका पालन कुछ लोगों के द्वारा करने पर देखा जाता था कि जो रोटी उन्होंने बराबर के घरों में दी थी वो पुनःउनके पास वापस जाती थी जो स्वाभिमान व् करुणा का बहुत बड़ा उदाहरण है।

जिनकी शिक्षा के कारण आज भी बहुत से सच्चे मुसलमान केवल अपनी मेहनत पर ही निर्भर करते हैं, 'हलाल का खाते हैं, मुफ़्त का खाना उनके लिए हराम है'

बौद्ध धर्म के सूत्राधार "श्री बुध" ने भी सिदार्थ के रूप में अपने वैभव शाली जीवन को त्याग कर 'शिक्षक' के रूप में अपने भोजन का प्रबंध स्वम् किया। उन्होंने लोगों को अहंकार से मुक्त करने के लिए 'भिक्षा' के माध्यम से जीविकोपार्जन पर बल दिया किन्तु मुफ़्तखोरी नहीं सिखाई।

उधर जैन धर्म के संस्थापक "श्री महावीर" जी तो इतने स्वाभिमानी थे कि वो तो अपने भोजन के लिए किसी से कहते तक नहीं थे, यहाँ तक कि वो तो "भगवान्" से भी अपने भोजन के लिए नहीं कहते थे। उन्होंने भी 'शिक्षक' का कार्य किया जो भी कुछ शिक्षा देने के बदले में लोग दे जाते थे वही ग्रहण करते थे।

यहाँ तक कि असाध्य रोग से ग्रस्त हो जाने पर अपने परिवार पर बोझा बनने के स्थान पर उन्होंने अपने अनुयायियों को भोजन व् जल का त्याग कर स्वाभिमान के साथ 'प्रभु' का स्मरण करते हुए मृत्यु(संथालन) का वरण करने का मार्ग सुझाया।

और सिख धर्म की नीव डालने वाले "श्री नानक" ने तो आजीवन सारे संसार में घूम घूम कर शिक्षा बांटी और स्वम् अपने भोजन का प्रबंध किया। वो शायद उस काल में दुनिया के सबसे ज्यादा भ्रमण करने वाले एक मात्र"सदगुरु" व् "शिक्षक"रहे हैं।

उनकी शिक्षा का इतना बड़ा असर उनके अनुयायियों पर आया है कि आज तक मैंने किसी भी सिख को किसी भी कारण से भीख मांगते नहीं देखा, वो शान से मर तो सकते हैं परंतु किसी और की मेहनत का कभी खाना नहीं चाहते बल्कि भूखों को भोजन करा कर ही प्रसन्न होते हैं।

हम सभी की प्रिय "श्री माता जी श्री निर्मला देवी जी" ने भी सहज योग की शुरूआती काल में अपनी सोने की चूड़ियाँ व् गहने बेच बेच कर सहज के कार्यों को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने पति 'सर सी पी श्रीवास्तव जी' से कभी भी इस कार्य के लिए कोई सहायता नहीं ली।
और अपने बच्चों यानि सहज अनुयाइयों को भी अपने स्वम् के कमाए पैसों से ही सहज कार्यक्रमों को अटेंड करने की ही प्रेरणा दी।

"12 वर्ष की छोटी आयु में जब "उनके" माता पिता स्वतन्त्रता संग्राम में शरीक होने कारण स्वतन्त्रता प्राप्त होने तक जेल में ही रहे, तब भी "उन्होंने" अत्यंत कठिनाइयों के वाबजूद भी बिना किसी से कुछ अपेक्षा रखे स्वाभिमान के साथ अपने समस्त बड़े व् छोटे भाई बहनो का पूरा ख्याल रखा।

और हमारे स्वतंत्रता सेनानियों से ज्यादा स्वाभिमानी कौन हो सकता है भला जिन्होंने परतंत्र होने के स्थान पर मृत्यु को सहर्ष गले लगाया।

जब हमारे देश का इतिहास इतना गौरवमई व् स्वभिमान से ओतप्रोत रहा है तो आखिर ये मुफ्तखोरी की फितरत कहाँ से पैदा हो गई।
इसका एक ही मतलब है कि ऐसे फ्री का खाने वाले किसी भी धर्म से ताल्लुक नहीं रखते और ही ऐसे लोग धार्मिक हो सकते हैं और ही देशभक्त हो सकते हैं। मेरी चेतना के अनुसार मुफ्तखोरी ही देशद्रोह व् अधार्मिकता की प्रथम सीढ़ी है।

ऐसा प्रतीत होता है शायद ऐसे लोग पूर्व जीवनों के लुटेरों व् 'भिक्षकों' की संताने ही हैं जो अलग अलग धर्म के अनुयाइयों के घरों में जन्मे हैं, जो अपनी पूर्व जीवन की फितरत को आज भी कायम रखें हैं।

ऐसे लोगों से ज्यादा स्वाभिमानी व् सम्मानीय तो हमारे देश का 'मेहतर समाज' हैं जो यदि पैसे लेते हैं तो नालों में उतरकर, हमारे घरों के आस पास का कूड़ा करकट साफ़ कर हमारे राष्ट्र को स्वच्छ रखने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं, जो कोई अन्य ये कार्य नहीं कर पाता।

बहुत आश्चर्य होता है कि यदि कोई सड़क पर खाना बाँट रहा होता है तो ज्यादातर खाना खाने वाले ऐसे लोग होते हैं जिनको रोटी का कोई कष्ट नहीं होता।

बिहार की कुछ जनता की मुफ्तखोरी की चाहत एक का एक ताजा उदाहरण बिहार सरकार में चुने गए मंत्री हैं जिनमे से शायद ही कोई स्नातक हो, ज्यादातर तीसरी कक्षा से 10 वी पास ही हैं, जरा चिंतन कीजिये ऐसे मंत्रियों से भला बिहार का क्या कल्याण होगा। क्योंकि बिहार के जादातर लोगों को बहुत सी मुफ़्त सहूलियतें मिलने का आश्वासन दिया गया था।

कुछ अरसा पहले यही मुफ्तखोरी के प्रति आकर्षण दिल्ली वासियों में नजर आया राज्य सरकार के इलेक्शन में। महज बिजली के बिलों में कुछ छूट व् फ्री पानी, फ्री वाई फाई के के चक्कर में अच्छे खासे पैसे से संपन्न लोगों ने एक ऐसे इंसान को जिता दिया जिसके पास राष्ट्र हित के लिए कुछ करने की कोई ठोस प्लानिंग ही नहीं है जिसके तुगलकी निर्णयों ने दिल्ली की जनता के लिए ही अनेको परेशानियां खड़ी कर दीं है और अब ये महानुभाव देशद्रोहियों की हिमायत करते नजर रहे हैं।

उससे भी कुछ समय पूर्व काश्मीर में भयानक बाढ़ आई थी जिससे निबटने में हमारी केंद्र सरकार ने पूरी जान लगा दी थी और स्वर्ण मंदिर से भी सवा लाख लोगों का खाना भी समस्या रहने तक रोज जाता था व् हमारे देश की जनता ने भी आर्थिक रूप से भरपूर सहयोग किया था। परंतु फिर भी वहां के कुछ मुफ्तखोर पाकिस्तान के ही नारे लगा रहे थे और हमारे राहत के कार्यों में लगे जवानो पर पत्थर ही फेंक रहे थे।

ऐसे लोगों की भी हमारे देश के कुछ नेता व् जनता हिमायत करती है और उनको सही ठहराती है। बड़े ही अफ़सोस की बात है।
ज्यादातर मुफ़्तखोर लोग जितनी छूट का लाभ उठाते हैं उससे कई गुना ज्यादा पैसे वो लोग अपने ऐशो आराम व् विभिन्न शौकों में व्यय कर देते हैं चाहे वो ज्यादा कमाते हों या कम।तो जरा चिंतन कीजिये कि सरकारी पैसा तो विकास कार्यों में खर्च हो तो सभी को कितना लाभ होगा

और मुफ्तखोरों के नाम पर जितनी भी योजनाएं बनती हैं उन पर होने वाले व्यय का 70 प्रतिशत पैसा तो मुफ्तखोरी को बढ़ावा देने वाले नेता व् ऊंचे ओहदों पर बैठे अफसर ही खा जाते हैं।

वास्तविकता ही यही है कि हमारे देश में गरीबों के नाम पर मुफ़्त खोरी को बढ़ावा केवल वोट बैंक को सुरक्षित करने के लिए ही किया जाता है जिससे भ्रष्टाचार में चार चाँद ही लगते हैं।पर मुफ्तखोर ये अच्छी तरह जान लें कि वो अपनी आगामी पीढ़ियों को बर्बादी की ओर ही धकेल रहे हैं।

मुफ्तखोरी व् लूटने की चाह के कारण ही हमारे देश की आर्थिक रूप से कमजोर जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है क्योंकि उनको केवल ये पता है कि जब तक हमारे देश में सत्ता व् पैसे के लालची नेता मौजूद हैं तब तक बिना कुछ करे मुफ़्त में बहुत कुछ मिलता रहेगा।और ये नेता तभी तक रहेंगे जब तक हमारे देश के कुछ नागरिकों के भीतर मुफ्तखोरी विद्यमान रहेगी।

यदि हममे से कुछ वास्तव में ये सोचते है की हम देशभक्त हैं, हम राष्ट्र के हितेषी हैं तो आज से अभी से ही सबसे पहले फ्री वाली चीजों का त्याग करना होगा, अपने स्वाभिमान के गौरव में स्वम् खड़े होकर अपने भारत का सर स्वाभिमान से और ऊंचा करना होगा।तभी कुछ बात बनेगी और हमारे देश की आंतरिक समस्याओं का अंत होना प्रारम्भ हो जाएगा।

मेरा अपने देश की सम्मानीय जनता से विनम्र आग्रह है कि 'मुफ्तवाद' रूपी दानव 'रक्तबीज' का अंत करने के लिए अपने भीतर में अर्ध सुप्त 'स्वाभिमान' रुपी "श्री काली" को जगाना होगा जो इस "रक्तबीज रूपी दानव" के खून की हर बूँद को पीकर हमारे राष्ट्र को गद्दारों, आताताइयो व् आतंकवादियों से मुक्त करा सकें।

मेरी चेतना की ये अभिव्यसक्ति किसी भी राजनैतिक पार्टी या वर्ग से प्रेरित नहीं है वरन ये तो अपने देश की दुर्दशा, व् इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कुछ मूलभूत कारणों व् इस देश के कुछ सत्ता व् धन लोभी नेताओं व् नागरिको के नैतिक व् आत्मिक पतन को देखकर प्रगट हुई है।

तो मैं कोई लेखक हूँ, और ही कोई वक्ता हूँ, और ही मैं ज्यादा पढ़ा लिखा ही हूँ बल्कि अपने देश का एक मामूली सा किन्तु स्वाभिमानी नागरिक जरूर हूँ, जो अपने देश के स्वाभिमान को बनाये रखने में अपनी ओर से अपनी सामर्थ्यानुसार प्रयासरत है। अतः किन्ही व्याकरण व् आंकड़ो की त्रुटियों की प्रति क्षमा प्रार्थी भी हूँ।

मेरे इन उदभावों का उद्देश्य किसी की भावना को आहात करना नहीं है वरन मेरे देश के करोड़ों देशवासियों की आहात भावनाएं को मेरे हृदय से प्रस्फुटित उदगारों के माध्यम से  तनिक राहत पहुँचाना मात्र ही है।"


""जरा सोचिये जब एक सांसारिक माता-पिता अपनी संतान के कमाने लायक हो जाने पर उसे बाहर जा कर रोटी कमाने की नसीहत देतें है और घर बिठाकर उसे रोटी नहीं खिलाते तो हम अपने राष्ट्र से कैसे उम्मीद कर सकते है कि वो हमें मुफ़्त में सुविधाये दे दे।""

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."जय.........हिन्द......वंदे.....मातरम्".(19-02-16)

-------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"