Wednesday, October 20, 2010

अनुभूति---27---"दीवाली"----19.11.08

"दीवाली"

जब से "माँ आदि" "निर्मला" बन के आईं, तभी से धरा पर दीवाली आई
"सहस्त्रार" दीपक में चैतन्य तेल डाला है, चित्त की बाती से इसको जलाया है

जलता है जब सहस्त्रार दीपक, दुःख, तकलीफ कीट-पतंगे बन-बन कर इस पर आते हैं
मिटा-मिटा कर अपने-अपने अस्तित्वों को, साधक को मुक्त करते जातें हैं
प्रकाश में इसके मानव देख पाता है स्वम को, वर्ना तब तक सताता है खुद को

पाकर स्वम को आत्मा स्वरुप, निरानंद में गोते लगता है
पुनर्स्म्रित कर पूर्व गलतियों को, हृदय से ठहाके लगता है

देख कर दुःख दूसरे मानवों का, अश्रुपूरित हो जाता है
भुलाकर स्वम अपनी पीडाओं को, हृदय से वह उन्हें गले लगाता है
उठकर स्वम पावों पर अपने, औरों को भी उठता है

देकर चैतन्य सहस्त्रार से अपने, सबको जाग्रति देता जाता है
अनुभूति कर हृदय सहस्त्रार में स्पंदन की, और सभी को भी कराता है

लेकर तपस हृदय में अपने, ताप से सबको मुक्त कराता है
देखकर मुस्कान मुरझाये चेहरों पर, तब ही वह मुस्काता है

होकर अनुगृहित "श्री चरनन" में, वहीँ पर चित्त को सदा लगाता है

जलाकर हर दिन "सहस्त्रार दीपकों" को, "दीवाली" हर पल मनाता है

---------नारायण



Thursday, October 7, 2010

"Impulses"----"चिंतन"-------Contemplation---------6------07.10.10

"Impulses"----"चिंतन"

1)" अक्सर लोग क्रोध को बुरा मानते हैं और "श्री माँ" भी कहतीं हैं कि क्रोध बहुत बुरी चीज होती है बेहतर है इसे छोड़ ही दिया जाये। क्रोध केवल ध्यान की गहनता में उतरने के बाद ही छूट पाता है, गहनता पाने के लिए क्रोध की शक्ति का भी सदुपयोग किया जा सकता है, अजमा के देखियेगा, जब भी कभी बहुत क्रोध आये तो इसके ऊपर अपने चित्त को बैठा दो सीधा "श्री माँ " से मिला देगा। इसी प्रकार से दुःख की शक्ति का भी उपयोग किया जा सकता।"

2) " यदि कोई भी आपके साथ बुरे से बुरा करता चला जाये आपसे इर्ष्या भी करे और आप उसकी शकल भी देखना चाहें तो उससे नफरत करने की जगह उसके मन कि बुराई से खूब घृणा करे, कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि आप आत्म्साक्छात्कारी हैं, आपकी चित्त की तीव्र शक्तियां किसी भी घटना को अंजाम देंगी उसके मन की बुराई को जलाकर राख कर देंगी। हमें किसी के शरीर , जीवात्मा आत्मा से घृणा नहीं करनी है क्योंकि ये तीनो चीजें ही परमात्मा के द्वारा बनाई गयी हैं। मन मनुष्य के द्वारा अच्छी बुरी भावनाओं से ही निर्मित होता है। "

3)" दूध नित्य पीने से हड्डियाँ मजबूत होती हैं और दुःख ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार करने से हमारा दिल मजबूत होता है।"
---------मिताली (13 yrs)
4) "Truth is the son of God, and we are also son & daughter of God, the difference is, "Truth never cheats any one but we may cheat."
---------Mitali (9 yrs)

5)" If we become capable to let others feel "God" only then, we can say we are following purity."

6) "बहुत से साधक इसीलिए ध्यान करते हैं कि अपने नकारात्मक प्रारब्ध को परिवर्तित कर सकें। यह असंभव है, क्योंकि जैसे कोई परीक्षा का परिणाम आने के बाद बदला नहीं जा सकता इसी प्रकार से प्रारब्ध भी नहीं बदला जा सकता। हाँ, यदि अच्छे से ध्यानस्थ रहा जाये तो प्रारब्ध की पीड़ा से मुक्ति मिल जाती है, क्योंकि "परमपिता" हमारे वर्तमान को सुन्दर बना देते हैं। "

7) "अक्सर साधक शारीरिक बिमारियों को लेकर बहुत अधिक चिंतित हो जाते हैं आपस में चर्चा भी करते रहते हैं, कि अमुक सहजी को अमुक बीमारी हो गयी है या कोई गंभीर समस्या हो गयी है, जरूर उसका चक्र गड़बड़ है या गण- देवता नाराज हो गए हैं, पर यह कभी नहीं देखते कि वह कितने प्रेम से इतनी परेशानियों के वाबजूद भी सहज के कार्य को आगे बढ़ा रहा है नए पुराने लोगों को ध्यान में स्थापित कर रहा है। ये नहीं समझते कि दिक्कतें तो हो सकता है प्रारब्ध के कारण भी हो सकती है। मेरे हिसाब से ऐसे ध्यानी" की गहराई दूसरे सहजियों से ज्यादा है क्योंकि वह हर हाल में "श्री माँ" को समर्पित है।"

8)"एक चर्चा हमेशा सुनने को मिलती है, कि अमुक सहजी "श्री माँ" के पास 15-20 बार जा चुके है, और वह सज्जन भी बड़े गर्व से हर बार अपने "श्री माँ" के साथ के अनुभव ख़ुशी-ख़ुशी सभी को सुनाते है। सुन-सुन कर दूसरे लोग बड़े दुखी हो जाते हैं कि हमारे भाग इतने अच्छे नहीं हैं जो हम "श्री माता जी" के पास एक बार भी नहीं जा पाए। मेरा ऐसे सहजियों से कहना ये है कि "श्री माँ" तो हम सब के लिए एक " डाक्टर" की तरह हैं, यदि कोई बार-बार डाक्टर के पास जाये तो समझ लेना चाहिए कि जरूर उसे कोई गंभीर रोग है। या फिर आई सी यू पेशेंट है।" (कृपया कोई बुरा माने यह तथ्य की बात है)

9)"बड़े दुःख की बात है, अक्सर हमारे सेंटर कोरडीनेटर 10-15 लोगों की सामूहिकता को जो निरंतर ध्यान का अभ्यास करते हैं, को अवैध या इललीगल घोषित कर देतें हैं माइक पर निरंतर उदघोषनाए करते रहेंगे कहेंगे इस सेन्टर को बंद करदो यह गलत है। वे ये भूल जातें हैं कि ध्यान में लाने वाली ध्यान कराने वाली स्वम "श्री माता जी" हैं। जब ध्यान शुरू "माँ" के द्वारा हुआ है तो बंद कराने वाले ये लोग कौन होते हैं। बल्कि उन्हें यह सोचना चाहिए कि 4-5 सेन्टर से काम नहीं चलेगा हर लोकेलिटी में सामूहिकता होनी चाहिए."

10) " पूर्ण जागृत साधक एक प्रज्वलित "दीपक " की तरह होता है जिसे "श्री माँ" ने घनघोर अंधेरों में जलने के लिए तैयार किया है, उसका प्रकाश में जलने का कोई औचित्य नहीं है। वो बात और है कि "श्री माँ" के स्वागत में या "माँ " की पूजा में "दीप मालाएं"सजायीं जाए।"

11) "यदि मानवीय रिश्ते एक-दूसरे को पतन की ओर ले जा रहें हो तो ऐसे रिश्तों का कोई मोल नहीं हैरिश्तों का वास्तविक मतलब एक-दूसरे को हर प्रकार से उत्थान की ओर अग्रसर करना हैवर्ना इन्हें मजबूरन ढोने के स्थान पर समाप्त करना ही श्रेष्ठ हैक्योंकि जाग्रति से पूर्व ये रिश्ते प्रारब्ध के परिणाम स्वरुप हमें मिलतें हैं। "

12) " Truth is the first chapter of the book of Wisdom while faith is the root of all blessings."
Mitali--13.11.10

-------------नारायण