Thursday, July 27, 2017

"Impulses"--390--"साधक-कथा"--अनुभूति-15


"साधक-कथा"

1) एक दिन कुछ सहजीजन हमसे यूं बोले
मंद मंद मुस्काते हुए लगते हो तुम भोले,
ऐसा लगता है, हर क्षण रहते हो समाधि में
प्रतीत होता है तुम शिव तत्व पाए गए हो
सुरम्य पंचवटी में स्थान पा गए हो,
हफ्तों, हफ्तों काम धंदा छोड़कर यहां वहां जाते हो,
फिर भी कभी चिंता से घिरे नजर नही आते हो,
हम तो एक घंटे के लिए भी कारोबार से दूर नही हो पाते हैं
धंधे पानी की जुगत में रात दिन कुम्हलाये ही जाते हैं,
हर पल कृपा बरसती है तुम पर "श्री माँ" की
कार्य-शाला चलती है देख रेख में "श्री गणेश" की तुम्हारी,
सारे ग्राहक भी तुमसे संतुष्ट रहते है
सप्लायर भी तुम्हारे, तकादा नही करते है
बिन मांगे ही वो रकम प्राप्त करते हैं,
जो भी तुम्हारे पास आता है, जीवन भर तुम पर ऐतबार करता है,
आज तक एक भी तुम्हारा ग्राहक कम नही हुआ है,
और ही सप्लायर्स में इजाफा ही हुआ है,
कर्मचारी हो गए तुम्हारे बेहद पुराने
मेहनत कर हृदय से काम की स्थिति सुधारें,
सरकारी विभाग वाले भी तुमसे कहते कुछ नहीं हैं
आसपड़ोस वाले भी तुमसे प्रेम करते हैं,
कुछ सहजी भी तुमसे विशेष प्रेम रखते हैं
पर अक्सर तुम्हारे बारे में ही वो चर्चा करते हैं
चाहते हैं जानना सदा तुम्हारे जीवन के रहस्य को,


2) एक अजीब सी पहेली तुम बन गए हो
जन जन की जिज्ञासा एवम आलोचना का केंद्र बन गए हो,
जो पुकारता है तुम्हे हृदय से,
भागकर पहुंच जाते हो वहां परमचैतन्य से,
हरेक की दुख-तकलीफ में तुम खड़े नजर आते हो
फिर भी सदा निर्लिप्त ही रहते हो,
कभी कभी सेंटर में भी मिल जाते हो,
संस्था-धारियों को अपनी शक्ल दिखलाते हो,
अक्सर पूजा सैमिनार में ही नजर आते हो
मिलकर सभी से तुम, फिर एक तरफा हो जाते हो,


3) कोई कहता, है तुम लेफ्ट में रहते हो
कोई कहे, तुम राइट की चाल चलते हो,
कोई कहता, तुम तंत्र-मंत्र, शमशान साधना करते हो
कोई कहे, सदा "श्री माँ" में ही डूबे रहते हो,
कोई कहता, शैतानो भूतों को अपने आगन्या में रखते हो
कोई कहे, अनेको 'अलौकिक शक्तियों' के साथ तुम चलते हो,
कोई कहता, तुम खुद की फोटो पुजवाते हो
कोई कहेतुम "श्री माँ" के साथ सदा रहते हो
सदा "उनको" ही अपने से आगे रखते हो,
कोई कहता तुम स्वम् 'परमात्मा' बन अपनी ओर हाथ करवाते हो
कोई कहे, "श्री माँ" को पूर्ण समर्पित हुए जाते हो,
कोई कहता, अधिकतर महिला सहजियों से ही घिरे नजर आते हो
कोई कहे, पुरुष स्त्री में कभी भेदभाव नही करते हो,
कोई कहता, सहज विरोधी काम कर रहे हो,
कोई कहे, सहज का हरपल हृदय से कार्य कर रहे हो,
कोई कहता सहज से बाहर निकाल दिए गए हो
कोई कहे, "श्री माँ" के "श्री चरणों" में बस गए हो,
कोई कहता, तुम पर निगेटिविटी छा गई है
कोई कहे, तुम पर "श्री माँ" की कृपा बरस रही है,


4) कोई कहता, उल्टा सीधा ध्यान तुम करवाते हो
कोई कहे,नए पुराने सहजियों को ध्यान में अंतरिक्ष
आकाश की सैर तुम करवाते हो,
कोई कहता, कभी शरीर में ध्यान लगवाते हो, 
तो कभी शरीर से बाहर लिए जाते हो
कोई कहेहर बार संसार और देहाभास से मुक्त ही करवाते हो,
कोई कहता, अक्सर इस ब्रहम्माण्ड से भी परे ले जाते हो
कोई कहे, 'शून्य सरोवर' में आनंद की डुबकियां लगवाते हो,
कोई कहता,"पार ब्रह्म परमेश्वर" के हृदय में बिठवाते हो
तो कोई कहे "उनके" "श्री चरणों" का 'चरणामृत' पिलवाते हो,
कोई कहता, व्यर्थ की कल्पनाओ में सबको उलझा रहे हो
कोई कहे, ध्यान की गहनता में ले जा रहे हो,
कोई कहता, "श्री माँ" की खिलाफत कर रहे हो
कोई कहे, "श्री माँ" का प्रेम दुनिया में फैला रहे हो,


5) कोई कहता, ये बंधन लगाते तक नही हैं
कोई कहे, हर पल "श्री माँ" के प्रेम-बंधन में ही आनंदित रहते हैं,
कोई कहता, फ़ूट-सोकिंग, कैम्फरिंग में ये विश्वास रखते नही हैं
कोई कहे, सहस्र कंवल दल' में विश्राम ये करते हैं,
कोई कहता, क्या ये सहज में हैं या सहज से बाहर रहते हैं
कोई कहे, लक्षण तो सारे इनके सच्चे सहजी होने के ही लगते हैं,
कोई कहता, ध्यान में रहते हैं या ध्यान का नाटक करते हैं
कोई कहे, 'दिव्य ऊर्जा' का हरपल रसपान ये निरंतर करते हैं,
कोई कहता, हजारों कमियां हमें इनमें दिखती हैं
कोई कहे, एक बात इनकी सच्ची है
नकल किसी की नही करते ये बात अच्छी है,
ऐसा प्रतीत होता है "श्री माँ" के लेक्चर विरोधी कार्य ये करते हैं
पर लक्षण तो इनके हृदय में "श्री माँ" के बसने के ही लगते हैं,


6) अरे ये कैसा विरोधाभास रखते हो भईया
लगता है तुमको मिल गया है तुम्हारा सच्चा खिवईया,
कभी भी दुख-तकलीफ से मुरझाए नही मिलते हो
जब भी हम तुमसे मिलते हैं, कमल से खिलते हो,
क्या रहस्य है तुम्हारा तुम्हारे इस स्वरूप का
जरा हम पर भी तो खोलो ये राज तुम्हारी हंसी-खुशी का,
हरपल, हर घड़ी, बहुत से दुख हमें सताते है
बारम्बार दुखों से घिर कर हम "श्री माँ" से बहुत बतियाते है,
कई कई साल हो गए हमें फूट-सोकिंगशू बीटिंग करते हुए
कैम्फरिंग, कैंडलिंग हम सुबोह शाम करते हैं,
चिल्ला चिल्ला कर रोज ब्रह्म महुरत में, 
'अल्लाह हो अकबर' का राग अलापते हैं,
अक्सर, मटका-पानी, मिर्च-नींबू हम साथ ही रखते हैं
स्ट्रिंग-नाटिंग, पेपर बर्निंग रोज रोज हम करते हैं,
बिना नागा पूजा में जा जा कर हम तो अब थक गए हैं
बारम्बार सेंटर जाकर हम अब चुक गए हैं,
कंठस्थ हो गई है अब 'निर्मालांजलि' हमारे
'महा मंत्र' और 'अथर्वशीश' गा गा कर हम हारे,
हवन कर कर तो नाम "श्री माँ" के याद हो गए सारे,


7) 'परमचैतन्य' भी अब हमारे घर फोटो में दिखने लगे हैं
हवन कुंड में "श्री ओम" "श्री गणेश" दस्तक देने लगे हैं,
गोले बन बन कर गण-देवता हम पर छाने लगे हैं
हर पल हर घड़ी हम भजन गुनगुनाने लगे हैं
हमारे सहस्त्रार भी अब झनझनाने लगे हैं,
हर पल हमारे जिस्म में इक सिहरन सी रहती है
चैतन्य धारा नसों नाड़ियों में रमण करती रहती है
फिर भी ये मुए दुख हटते क्यों नहीं हैं,
"श्री माँ" तो ये कहती हैं, कि ध्यान से गौण हो जाती हैं इच्छाएं सारी
हम तो भईया इन पुनः जागी इच्छाओं से ही दब गए हैं,
हर समय मजे लेने की फिराक में रम गए हैं
जब भी मौका मिलता है भजन पे नाच लेते हैं
कमर हिला हिला कर घंटो खराब करते हैं,
और भईया भजनों का होता है सुंदर कम्पटीशन
स्टेज पर गाने की बढ़ गई है बहुत टेम्पटेशन,
जब भी अवसर मिले माइक पकड़ कर खड़ा होना चाहते हैं
अपने अनुभव, चमत्कार सपने बड़े उत्साह गर्व से सुनाना चाहते हैं,
चमत्कृत कर देना चाहते हैं हम सबको अपने ध्यान-अनुभव बताकर, तालियों प्रशंसा की हसरत रखते हैं दिल में दबाकर,
हर वक्त समाज में विशेष होना चाहते हैं
किन्तु इन सब की चाहत में भईया हम अवशेष रह गए हैं,
हर बार कुछ कुछ पाने की चाहत में हम घंटो ध्यान करते हैं
सहज-समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए हम खूब काम करते हैं,
हर पल अपनी समस्त दबी इच्छाओं को पूरा करवाना चाहते हैं
इस संसार के हम समस्त सुख भोगना चाहते हैं,


8) इसकी-उसकी तरफ देखकर गलतिया दूसरे की बताते हैं
बड़ी ही हेय दृष्टि से हम उन्हें निहारते हैं
फिर उनके चक्र पकड़ पकड़ कर उन्हें धिक्कारते हैं,
जब जाता है कोई बेहद तकलीफ में
घर जाना बंद कर देते हैं हम उस बदनसीब के,
कहते हैं उस पर निगेटिविटी चढ़ गई है
अब तो ये दुष्ट बेहद बढ़ गई है,
तुम उसके करीब जाना, तुम पर भी ये चढ़ जायेगी
यदि परहेज नही करोगे तो ये तुमको भी बहुत सताएगी,
दिन में छत्तीस बार बंधन हम लगाते है
फिर भी सदा हम अपने को दुख से ही घिरा पाते हैं,
लगता है हमने दुख के साथ रचा ली है शादी
अर्धांगिनी बनकर ये हमारे पीछे ही पड़ गया है
क्यूं हमारी खुशहाली के कवाब की हड्डी बन गया है,


9) हमतो बड़ी श्रद्धा से सहजयोग में आये थे
शुरू शुरू में "माँ आदि" के लेक्चर्स हमें बहुत भाए थे,
सोचते थे ध्यान करते ही बन जाएंगे हम देवी देवता
दुनिया हमारे पांव छुएगी, जन्नत हमारे कदम चूमेगी,
जिसको भी हाथ लगा देंगे "साईंनाथ" की तरह
दुख उसके दूर होंगे हवा की तरह,
खुद को पुजवा कर हम 'सदगुरु' बन जाएंगे
अपने सहयोगियों के साथ दिन-रात मौज से बिताएंगे
और अकड़ कर चलेंगे धर्म-प्रचारक कहलायेंगे,
उंगलियों के इशारे पर नाचेंगे सब देवी देवता
भूत राक्षस हमें देखते ही भाग जाएंगे,
ध्यान में आते ही मुक्त हो जाएंगे
दुनिया की सारी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ जाएंगे,
मुक्त आत्मा बन कर हम यहां वहां उड़ें फिरेंगे
अब धरती पर हमारे पांव नही पड़ेंगे।
समाज में बढ़ जाएगी हमारी प्रतिष्ठा बहुत,
नालायक थे पहले अब रुतबा पा जाएंगे,
कभी मीडिया में जाकर अपनी पहचान बनाएंगे
सेवा करवाएंगे परिजनों से अपनी, रात दिन देखा करते हम यही सपने,


10) पर जब ध्यान में आकर जानी इसकी असलियत
तब कोफ्त हो गई अपनी तबियत,
छटपटाये से हम अब दुनिया में घूमते हैं
किसी से कुछ कह पाते हैं, बिलबिलाए से फिरते हैं,
लगता है नमाज की फिराक में रोजे गले पड़ गए है
जाने किस किस प्रकार की उलझन में हम फंस गए हैं,
बहुत दिन बाद मिले तुम सहजी भईया
जरा कुछ रोशनी डालो, डोलती है हमारी नैय्या,
कैसे मिला तुम्हे तुम्हारा खेवईया
दिखते हमें हो हर घड़ी खाते हुए मजे की सेवइयां,


11) सुनकर दुखड़ा उन सहजी जन का
हृदय हमारा भर आया जानकर उनका तजुर्बा,
बड़े ही प्रेम से हमने उनको दिया कुछ दिलासा
ताकि उनमे जागे जीने की नई आसा,
पहले हम थोड़ा गहनता से मुस्काये
बताने से पहले थोड़ा सकुचाये,
किसका उदाहरण देकर हम इन्हें कुछ बतलायें,
ताकि सहजयोग पर इनमें थोड़ा विश्वास बढ़ जाये
दुख इनका तनिक कुछ कम हो जाये,
विश्वास नही रखते हम दुख किसी का बढ़ाने में
सहते हैं हम सदा गम अपने साथ केवल "ईश्वर" के,


12) फिर बात हमें इक "श्री माँ" की याद आई'एक हो तुम सारे, 
जो सहस्त्रार से जने हो, "मेरी" ही प्रीति से पल बढ़ रहे हो',
'तो फिर काहे को इन्हें बताने में संकोच कर रहे हो
सुना दो इन्हें अपनी सारी जीवन गाथा',
'सुनकर ये सुधबुध खो जाएंगे
हौसला तुमसे पाकर फिर ध्यान में जुट जाएंगे',
'फिर शुरू कर देंगे ये कुण्डलीनियाँ उठाना
इन सबसे है "मुझे" यही कार्य है कराना',
'बहुत बड़े कार्य के लिए "मैं" धरती पर आई हूँ
सौगात "मैं" अपने साथ अनेको शक्तियों की लाई हूँ',
'क्या "मेरी" ये मेहनत निष्फल हो जाएगी
क्या "मेरी" ये इच्छा दम तोड़ जाएगी',
'ये सारी शक्तियां फिर खो देंगी ताकत
मुश्किल हो जाएगी ये पृथ्वी बचानी',
'तुम्हारे "पिता" बड़े गुस्से में खड़े हैं
रौद्र रूप में तांडव करने चले हैं',
'बड़ी अनुविनय से रोक रखा है "मैंने" "उनको", 
क्षमा नहीं करना चाहते हैं "वो" अब किसी को',
'वक्त परिवर्तन का अब गया है
विध्वन्स सृष्टि का अब निकट गया है',


13) 'सुना तो दूं "मैं" इन सब को "अपना" दुखड़ा
नहीं देखना चाहती उदास इन सबका मुखड़ा',
"मेरे" बच्चे हो तुम, तुम ही सुना दो
गाथा अपने जीवन की तुम ही इन्हें बता दो',
'सत्य पर खड़े हो तुम, सत्य इन्हें बात दो
शूरवीर साहसी हो तुम निर्भय इन्हें बना दो',
' जाने क्या क्या खोने का डर अपने साथ रखते हैं
बढ़ते नही आगे ठिठक ठिठक कर चलते हैं',
'खोकर सबकुछ तुमने "मुझको" पाया है
हर पल हर घड़ी "मुझे" हृदय में बिठाया है',
"मुझको" ही तुमने अपना साया बनाया है,'
हर सांस में "मेरा" स्मरण किया है
अनंत दुखों का तुमने हृदय से सहर्ष वरण किया है',
"मेरे" अनंत लोकों का तुमने ध्यान में भ्रमण किया है,
सभी को हृदय से तुमने सच्चा प्रेम किया है', 
कभी किसी से कुछ नही मांगा, केवल दिया है',


14) पाकर इशारा हृदय में "श्री माँ" से, 
राज उगलने को तैयार हुए हम "माँ" की कृपा से,
दिल थाम के जरा सुनना हमारी कहानी
उघाड़ी जा रही है हमारी ही जुबानी,
बचपन से ही हमने दुखों को धारण किया है
पीड़ाओं की अनेको गलियों में हमने भ्रमण किया है,
दर्द के मैदानों में हम खूब खेले हैं
लोगों की ऊंची-नीची बातों के नश्तर हमने बचपन से ही झेले हैं
विषमताओं विपरीतताओं की हर राह में सदा, खड़े हम अकेले हैं,
स्वेच्छा से ही हमने अनेको लोगों के लिए दुखों को ग्रहण किया है
लेकर तकलीफों को अन्यों की
उनकी परेशानियों का निवारण किया है,
अपनो ने भी कुछ कम विष हमें दिया है
हमने भी प्याला जहर का भरपूर पिया है,
फिर भी रात-दिन दुआ करके उनके लिए
सच्चे हृदय से उन्हें क्षमा किया है,
वक्त के थपेड़े सहकार हम खड़े हुए हैं
लोगो की विभिन्न आलोचनाओं के साथ हम बड़े हुए हैं,
अरे अब तो भईया हम हो गए दुखो से इम्यून
अब तो "श्री चरनन" में आकर हम हो गए ट्यून,
दुखों को बुला बुला कर पास हमने रखा खुद
जाड़ा, गर्मी, बरसात सहकर हम बन गए 'सीजंड वुड',


15) तुम भी भईया इस प्यारे दुख को अब हृदय से लगा लो,
ये दुख कोई और नही "श्री माँ" का बच्चा है
जो इसका सम्मान करें वही साधक सच्चा है
वर्ना वो सुख के लालच में पड़कर सदा खाता गच्चा है,
जब तुम हृदय से दुख आवरण में पनाह पाओगे
तभी ही तुम दनदनाती निगेटिविटी से निजात पाओगे,
जो दुख को सहर्ष अपनाते हैं उस पर निगेटिविटी रहम करती है
क्योंकि ये दुख को अपने बच्चे की तरह बहुत प्यार करती है
भला कोई माँ अपने बच्चे को कष्ट देती है कभी,
दुखों को अपनाकर सारे बंधनो से मुक्ति पा जाओगे
जब इसकी अधिकता तुम्हारे जीवन में बढ़ जाएगी
तब तुम्हे मुक्ति की चाह से भी मुक्ति मिल जाएगी,


16) इसीलिए तो भईया हम बंधन नही लगाते हैं
फिर भी हरपल हर घड़ी "श्री माँ" से बंधे ही नजर आते हैं,
"श्री माता जी" कहती हैं मेरे सामने बंधन व्यर्थ है
अरे दुख के रूप में ही तो हम "उन्हें" सदा अपने साथ पाते हैं,
फुट सोकिंग, कैंडलिंग, कैम्फरिंग हम नही कर पाते हैं
क्योंकि सदा "उनको" अपने सम्पूर्ण यंत्र में दौड़ता हम पाते हैं,
ऐसे में मटका, स्ट्रिंग नाटिंग, पेपर बर्निंग
मिर्च-नीबू ट्रीटमेंट भला क्या असर करेगा,
"श्री माँ" यदि सहस्त्रार पर रहें तो बड़े से बड़ा भूत
राक्षस, शैतान भी निकट आने से बहुत डरेगा,
शू बीटिंग, अल्लाह हो अकबर की जरूरत नही रह जायेगी
जब हमारी माता कुण्डलिनी सहस्त्रार पर ही डेरा डाल पड़ जाएंगी,


17) हम यह नही कहते कि कभी आप यह सभी मत करिए,
सहस्त्रार पर जब "श्री माँ" की चहल कदमी कहीं नजर आये
तब ही जाकर इन तकनीकों को आप सभी अपनाएं,
मदद लेकर पंच तत्वों की अपने चक्र खूब चलाएं
तब ही भईया शैतानों को खूब जूते लगाएं,
और तब ही उठकर ब्रह्म महुरत में अल्लाह हो अकबर गायें,
बस यही कहना है सबसे हमें
दवा खाओ डॉक्टर की केवल वक्त जरूरत में,
नाहक क्यों तुम बेशकीमती समय यूं ही गवांते हो
इन तकनीकों में तुम क्यों गोंद से चिपक जाते हो,
ये केवल साधन हैं साध्य नही हैं
सहजयोग केवल द्वारा है, "श्री माँ" नही हैं,
योग-सहज के माध्यम से तुम प्रवेश पाते हो
दुखों को धारण जब सहर्ष तुम कर पाते हो,
तब ही केवल " श्री चरणों" में स्थान तुम पा पाते हो
और तब ही "श्री माँ" के अंग-प्रत्यंग बनकर, 
"उनके" कार्यों में हाथ बंटाते हो,
सुनकर गहरे राज की बातें खुशी से चल दिये सभी सहजी जन बतियाते,
हम भी अब से दुखों, पीड़ाओं तकलीफों से नही भागेंगे,
धारण करेंगे जब हम इन्हें खुशी से, जागेंगे भाग हमारे तभी से।"

"इति श्री"

अनुभूति-15(30-12-06)

--------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"