Thursday, February 24, 2011

विराटाभिव्यक्ति एवम हृदयांजलि -----24.02.11 & 27.02.11

"विराटाभिव्यक्ति"


सजल नेत्रों भरे हृदय से सारे विश्व के कोने-कोने में स्थापित अपने सहज साथियों से इस कठिन समय को बांटते हुए पूर्ण सजगता, विश्वास समर्पण के साथ 'परम प्रिय श्री माँ' को अपने भीतर में महसूस करते हुए अंत:करण में स्वत: ही उठने वाले भावों को यह 'साधक' प्रगट करना चाह रहा है:------- "साथियों 'श्री माँ' कहीं भी नहीं गयी हैं, पूर्ण रूप से अपने वास्तविक रूप में हम सभी के साथ ही हैं, देखो अपने-अपने सहस्त्रारों को, कल शाम लग-भग 4 बजे से कितनी तीव्रता के साथ हलचल खिंचाव दे रहे है, देखो अपने-अपने हृदयों को, खूब जोर-जोर से चल रहे है, महसूस करो अपनी-अपनी नसों नाड़ियों को जिनमे 'श्री माँ' परम बन कर बह रहीं हैं, पहचानो अपनी शिराओं धमनियों की भाषा को जो कम्पन्न दे कर कुछ 'माँ' का संदेसा देना चाहती है, समझो अपने-अपने रोम-छिद्रों के इशारों को जो 'श्री माँ' के भीतर में स्थापित होने का पता दे रहे हैं।"
ऐसा
लग रहा है मानो परमात्मा के द्वारा बनाये गए इस शरीर रुपी मंदिर में 'हृदेश्वरी' का आगमन हो गया है, इस मंदिर में स्थापित समस्त देव-गण जागृत होकर 'उनका' स्वागत करने में लगे हैं, अंतस में एक 'दिव्य धारा' विचरण करती प्रतीत हो रही हैजैसे इस अनमोल मंदिर का रोम-रोम जागृत होता प्रतीत हो रहा है
हम सभी अक्सर बाते करते रहते थे कि 'माँ' कब आयेंगी, कब तक हमारे पास रहेंगी, कब वापस जायेंगी, इन सभी बातों पर 'श्री माँ'ने विराम लगा दिया है, अब 'वे' हम सब के हृदयों में सदा के लिए स्थापित हो गयीं है, आने जाने की समस्या का 'माँ' ने समाधान कर दिया है
अपने 'साकार स्वरुप' के समस्त अणुओं को विभक्त कर पुरे ब्रहम्मांड में बिखेर दिया है और पुन: 'विराट प्रकाश पुंज' में परिवर्तित हो गयीं हैं, हम सभी को कुछ दिनों तक अपने-अपने सहस्त्रोरों के माध्यम से उन 'विलक्षण' प्रकाश कणों को आत्मसात कर अपने हृदयों में स्थापित करते जाना है और 'उनके' निराकार स्वरुप को अपने मध्य -हृदय में सदा के लिए प्रतिष्ठित करते जाना हैऔर साथ ही साथ विश्व के समस्त सह्ज साधकों को अपने चित्त के माध्यम से उनके हृदयों सहस्त्रोरों को जोड़कर अपने भीतर ऊर्जा(वायब्रेशन ) रूप में आई 'श्री माँ' को उन सब के हृदयों में प्रवाहित करना है ताकि सारे विश्व के सह्ज साधक एक भाव हो सकें
एवम 'श्री माँ' के द्वारा प्रारंभ किये गए दिव्य कार्य को पूर्ण रूप से सफल बनाना है तभी हम सबकी ओर से 'श्री माँ' 'सूक्ष्म रूप' में हम सभी से प्रसन्न रह सकतीं हैं हम सबके मानवीय जीवन को सफल बनाने में हमारी मदद कर सकतीं हैं
अब से हम सबको अपने दूसरों के चक्रों में पकड़ या नाड़ियों में बाधाओं को देखने की जगह कण-कण में व्याप्त 'आदि माँ' को इस भाव में महसूस करना है, कि "हे 'आदि शक्ति माँ' क्या आप मेरे विशुद्धि.....मूलाधार......अग्न्या ....नाभि....स्वाधिष्ठान......आदि चक्रों या नाड़ियों में उपस्थित हैं", और ये भाव रखकर सहस्त्रार से उनकी उपस्थिति महसूस करें यानि चित तो चक्रों या नाडी पर रखें सहस्त्रार से 'माँ' को अनुभव करेंइसी प्रकार से किसी भी स्थान की वायब्रेशन देखने के स्थान पर 'श्री माँ' को चित्त सहस्त्रार की मदद से अनुभव करें ऐसा करने से वह चक्र, नाड़ियाँ स्थान अपने आप स्वच्छ हो जायेंगे और पकड़ या गरम वायब्रेशन भी नहीं आयेंगीक्योंकि सहस्त्रार ही केवल एक मात्र ऐसा यंत्र है जो कि 'आदि शक्ति' का पता लगा सकता हैइससे सदा सहजियों के बीच प्रेम भाव बना रहेगा भेद-भाव भी उत्पन्न नहीं होगा और सहजी तेजी से उत्थान को प्राप्त होंगे
'श्री माँ' सदा कहतीं हैं कि तुम सब मेरे विराट शरीर में विद्यमान हो और अब 'श्री माँ' हम सभी के शरीरों में समां गईं हैं और हमारे भीतर ही रहकर हमारा मार्ग दर्शन कर रहीं हैं पहले 'श्री माँ' एक नजर आतीं थीं पर अब हम सभी के हृदयों में समां कर अनेक हो गयीं हैं ('Shree Maa' has converted 'Her' Atoms of 'Her'physical body into light and has become A Mass of particles of light, has become completely Omnipresent. So we can absorb those particles of 'Her' divine physical form through our Sahastrara and can store them in our Central Heart for feeling 'Her' into our subtle system.)




"हृदयांजलि"

"हे 'माँ अदि शक्ति' आपके 'चरण कमलों' में, विलय हो चुके हम,

करते हैं वादा आपसे; ,नित्य ध्यान में, तीव्रता से अग्रसर होंगे हम,

जुट जायेंगे जी -जान से सहज-प्रसार में, पूरे करेंगे आपके सभी स्वप्न,

देंगे सहारा हर सत्य-साधक को, बनकर स्वम का 'सदगुरू' हम,

बनकर 'मशाल' सद्ज्ञान की, दूर करेंगे सर्वयापी 'घनघोर 'तम'

महका देंगे सम्पूर्ण जगत को , बनकर 'सुगन्धित उपवन,

मिटा देंगे समस्त भेद-भाव को, होकर आपसे एक-रूप हम,

बहा देंगे पूरे विश्व में 'निर्मल प्रेम को, बन कर प्रेममई 'बयार हम,

कर कर समर्पण अंत:करण में, सदा इच्छा से, आपकी, चलेंगे हम,

पूर्ण आभास कर, आपका, अपने अस्तित्वों में, हृदय से जाग्रति देंगे हम,

बैठाकर सहस्त्रार पर सहस्त्रों सहजियों को, इच्छा आपकी , पूरी करेंगे हम,

सुविकसित कर 'सुवासित पुष्पों'(सहजियों) को, हर माह अर्पण करेंगे हम,

बनाकर हार इन्ही 'सुन्दरतम कुसुमो' का, 'श्री कंठ' कों सुशोभित करेंगे हम,

जलाकर हर दिन सहस्त्रार दीपकों को, 'श्री शक्ति पूजा' निरंतर करेंगे हम




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"जय श्री माता जी"

Sunday, February 20, 2011

A Deep Prayer(प्रार्थना) for the physical health of 'Shree Maa'

"गहन प्रार्थना"


सम्पूर्ण चेतना सहज सामूहिकता का अंश होने के नाते मेरा, पूर्ण विश्व में उपस्थित अपने समस्त सहज साथियों समस्त सच्चे साधकों से विनम्र निवेदन है कि सभी साधक अपने चित्त को अपने- अपने मध्य हृदय में रख कर समस्त गण-देवताओं परमपिता परमेशवर से हृदय से प्रार्थना करें कि "हम सबकी 'माँ' 'श्री माता जी' के 'साकार स्वरुप' को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें ताकि सारा संसार 'उनके' द्वारा प्रदत्त 'सद ज्ञान' का लाभ युगों-युगों तक उठाता रहे।"

ये वही 'माँ' हैं 'जिन्होंने' हम सभी बच्चों के कितने सारे विकारों को पिछले चालीस वर्षों से साफ़ करतीं जा रहीं हैं और 'स्वम' शारीरिक तकलीफ उठाती जा रहीं है जैसे कि एक संसारी माँ जब एक बच्चे को जनम देती है तो उसकी सारी गंदगी बड़े प्रेम से साफ़ करती है और उसको सदा स्वम ही नहलाती-धुलाती रहती हैं जब तक कि वो बच्चा स्वम नहाने-धोने लायक नहीं हो जाताऔर थोडा बड़ा होने पर वह स्वम नहाने लगता है और अपनी माँ को कष्ट नहीं देता तो क्या हम सभी सहजी बच्चे संसारी बच्चो से भी गए गुजरे हैं, कि पिछले चालीस वर्षों से केवल 'श्री माँ' के द्वारा ही स्वच्छ किये जा रहे हैअभी तक भी अपनी सफाई का जिम्मा हमने अज्ञानता में अपनी 'परम प्रिय माँ' पर ही डाला हुआ है क्या हम कभी भी आत्म-निर्भर नहीं होना चाहते ? और 'हमारी श्री माँ' का शरीर केवल हमारे ही कारण बीमार होता है, क्योंकि 'वो' कहतीं हैं कि तुम सभी मेरे भीतर समाये हुए हो मेरे विराट शरीर के अंग प्रत्यंग होफिर भी हम सब 'श्री माँ' के चित्र के सामने बैठ कर सदा अपने-अपने विकार और गंदगी को ही 'माँ' को देते रहते हैंक्या हमारे दिल में ये कभी नहीं आयेगा कि आत्म -निर्भर बन कर 'उनके पवित्र शरीर' को और कष्ट देना बंद कर दें
ये वही 'प्रेम मई' 'श्री माँ' हैं 'जिन्होंने' असंख्य संसारी 'जननियों' के माध्यम से संसार में लाये गए एवम उन्ही जननियों के लालच उपेक्षा से पीड़ित बच्चों को "यशोदा' बन कर अपना 'वात्सल्य' प्रदान कर उनके विहल हृदयों को राहत पहुंचाई है और 'वास्तविक माँ' होने के एहसास को करा उन्हें संतुष्टी प्रदान की है। यदि सबके हृदयों में 'श्री माँ' के लिए वास्तविक प्रेम बहता है तो अब हमें कुछ ठोस कार्य करने होंगे केवल 'बंधन' लगाने से काम नहीं चलेगाजिससे 'श्री माँ' के शरीर को अवश्य राहत पहुंचेगी और वो पुन: प्रसन्नचित्त स्वस्थ नजर आयेंगी। 'श्री माँ' के जनम दिवस में आज एक माह बाकी है और हम सभी चाहतें हैं कि वो उस 'शुभ दिन' बहुत प्रफुल्लित नजर आयेंतो इसके लिए मेरी 'चेतना' कुछ सुझाव देना चाहती है यदि पसंद आयें तो अपनाइएगा :--------
1)" श्री माँ' के चित्र के सामने बैठ कर 'श्री माँ' से वादा करें कि "हे 'माँ आदि शक्ति' हमें सद्ज्ञान शक्ति दीजिये ताकि हम स्वम आत्म-निर्भर बन सकें और आज के बाद अपने विकार बाधाएँ आपके साकार स्वरुप को नहीं दे पायें और अपने चक्रों नाड़ियों की क्लियरिंग, आपके 'निराकार' स्वरुप जो हम सबके सहस्त्रारों पर उपस्थित है, चित्त के माध्यम से करने की योग्यता हांसिल कर सकें।"
2)"आत्म-निर्भर बनने के लिए सामूहिकता में या व्यक्ति गत रूप से अपने-अपने चित्त को सहस्त्रार पर रख कर यहाँ पर होने वाली हलचलों को आत्मसात करें उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को अपने-अपने मध्य हृदय में ले जाएँ दोनों स्थानों पर चित्त को एक साथ रख कर ध्यानस्थ रहेकुछ दिन ऐसा अभ्यास करने पर आपको सदा दोनों स्थानों पर वाइब्रेशन महसूस होते रहेंगे
3)"जिन लोगों को भी सहस्त्रार पर 'माँ कुण्डलिनी' की अनुभूति होती है, वे सभी ध्यानस्थ अवस्था में हर ध्यान के चरण में लग-भग एक मिनट से पांच मिनट तक अपने सहस्त्रार मध्य हृदय की ऊर्जा को धारा के रूप में चित्त के माध्यम से 'श्री चरणन' पर अर्पित करेंगे यानि नन्हे-मुन्ने 'श्री गणेश' बनकर 'श्री माँ' के 'श्री चरण' धोयेंगेऔर इसको और ज्यादा असरदार बनाने के लिए यदि चाहें तो रात्रि में 10 बजे का समय रख लें ताकि सारा विश्व एक ही समय पर 'श्री माँ' के श्री चरणों' को चित्त से माध्यम से स्नान करा सकेऐसा करने से यदि परमपिता चाहेंगे तो 'श्री माँ ' का शरीर तीव्रता से ठीक होना शुरू हो जाएगासमय को अपनी-अपनी सुविधा से सुनिश्चित भी कर सकतें हैं। लेकिन यदि समय एक ही रखा जायेगा तो ये बहुत ही प्रभावी होगा। ये कार्य अब हमें सदा 'श्री माँ' के साकार रूप में उपस्थित रहने तक तो हर हाल में करना ही होगा।
यह छोटा सा बच्चा आपको विशवास दिलाता है कि ऐसा करने से आपको कोई परेशानी नहीं होगी बल्कि आप सबकी गहनता शक्तियों में वृद्धी ही होगीक्योंकि 'हमारी श्री माँ' तो हमें हर हाल में देती ही हैइस बच्चे ने संमझ आने के उपरान्त कभी भी 'श्री माँ' को अपनी परेशानियाँ, नकारात्मक्तायें, बाधाएँ पीडाएं नहीं दी हैं, केवल और केवल हर हाल में 'श्री माँ ' को प्रसन्न देखने
की ही इच्छा रखी है बल्कि सहज से जुड़ते ही 'श्री माँ' के 'श्री चरणों' में तकलीफ देख कर 'श्री माँ' से ये अवश्य कहा कि "श्री माता जी,ये निगेटिविटी आपके 'निर्मल शरीर को इतना कष्ट देती है थोड़ी बहुत निगेटिविटी मुझसे भी 'शेयर'(बांटे) करें 'माँ' मैं भी तो आपका बच्चा हूँ, आपके 'अमूल्य पवित्र साकार स्वरुप' को मुझसे कष्टों में नहीं देखा जाता। कृपया मुझे भी कुछ निगेटिविटी प्रदान करें।"
आप सभी से अनुरोध है कि यदि ये पसंद न आये तो बुरा न मानियेगा, पसंद आ जाये तो जरूर अपनाइएगा इसी में हम सभी का कल्याण छुपा है।
(Here I earnestly request to all my Sahaj Companion of this planet "Earth" and all the "Subtle Being" who are existed in invisible form, just pray to 'Almighty' and to all the Deities n Sadgurus to make our Beloved Mother, Shree Mata ji Shree Nirmala Devi, healthy and happy.

Those who feel the sensation of 'Mother Kundalini' at their sahastrara and the sensation of 'Her Love' in their Heart, kindly supply pure energy from your Central Heart and from your Sahastrar to the "Lotus Feet of Shree Maa" with the help of your pious attention and wash "Her Shree Charan" with this flow just like 'shree Ganesha' during each and every sitting of meditation either collectively or individually. It would be the best if all of you fix the time of sitting, say about 10 'o' clock in the night. If we fix the time and do the above said work collectively the effect will be very amazing. If all of you do so 'Her Physical Health' will be alright very soon and all of you will grow more. Please maintain this process forever if you would like. Just try this and find the result. Thank You very much.)





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"Jai Shree Mata ji"