Tuesday, February 15, 2011

"S O S"-----Contemplation---चिंतन------16---------15.02.11

"चिंतन"



"लग-भग पूरे भारत के सहज-सेंटर्स में एक समस्या हमेशा बनी रहती है, कि कोई भी सहजी यदि कहीं भी आत्मसाक्षात्कार दे देता है तो उसको अक्सर सेंटर-कोर्डिनेटर के द्वारा कुछ कुछ नकारात्मक सुनने को मिलता है वे सदा यही कहते रहतें है कि जाग्रति देने के लिए अनुमति क्यों नहीं ली। जबकि 'श्री माता जी' ने अपने हर लेक्चर में कहा है कि 'मेरे से वादा करें कि जिससे भी आप मिलेंगे उसे आप आत्मसाक्षात्कार देंगे, कम से कम १०० लोगों को एक वर्ष में जाग्रति दीजिये।

वो बेचारा सहजी किसकी बात माने, 'श्री माता जी' की या सहज संस्था के पदाधिकारियों की

सारे सहज संस्था के नियम सहज योग को विकसित करने के लिए ही होते हैं सहज योग को नष्ट करने के लिए नहीं , सहज संस्था सहज को सारे विश्व में फैलाने के लिए बनाई गई थी या "श्री माता जी" की मेहनत को विफल करने के लिए। बहुत ही अजीब बहुत दुखद बात है, कि कुछ कोर्डिनेटर इतनी छोटी सी बात क्यों नहीं समझतेक्यों संस्था के नियम एक अच्छे जागृत साधक पर लादते रहतएक जागृत साधक अपनी जागृत आत्मा से ही संचालित होता हैउनको तो बल्की खुश होना चाहिए कि यह 'श्री माँ' का बच्चा कितने प्रेम मेहनत से सहज के कार्य को बढ़ा रहा हैउसको तो और उत्साहित करने की जरूरत है

जबकि 'सहज योग नेशनल ट्रस्ट' द्वारा लगभग एक वर्ष पूर्व पूरे भारत के सेंटर्स को एक पत्र लिखा जा चुका है कि "कोई भी सहजी कहीं पर भी जाकर जाग्रति दे सकता है ध्यान करा सकता है, उसे किसी से भी कोई परमिशन लेने की जरूरत नहीं है, केवल कार्य-क्रम की खबर देना ही काफी है ताकि उस क्षेत्र के कोर्डिनेटर को पता लग जाये और 'सहज समाचार' पत्रिका के माध्यम से सारे भारत के सहजियों को सहज से सम्बंधित कार्यों का पता लगता रहे और सभी सहजी उत्साहित होकर एक दूसरे से प्रेरणा पाकर खूब लोगों को जाग्रति दें। 

इसके अतिरिक्त खबर देने का कोई और मकसद नहीं है।" लगता है कुछ कोर्डीनेटर इन बातों 'श्री माँ' की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहते है, और अपने हिसाब से ही किसी को कुछ भी कह- कह कर परेशान कर व दुखी कर संतुष्ट होना चाहते है और अपना ही राज्य चलाना चाहते है, नहीं समझ पाते, कि अब तो केवल 'माँ आदि शक्ति' का ही राज्य चलता है

मेरे कुछ प्रश्न आप सभी सहजियों से हैं:-----


a
)'क्या 'माँ आदि' केवल सहज योग संस्था तक ही सीमित है ?'

b)'क्या 'माँ' उनके हृदयों में निवास नहीं करतीं जो पूरे विश्व से बिना किसी भेद भाव के प्रेम करतें हैं ?'


c)'क्या हम सब के सहस्त्रारों, हृदय,हाथों व समस्त रोम-छिद्रों से बहने वाला 'चैतन्य', संस्था चलाने वाले पदाधिकारियों द्वारा संचालित होता है ?'


d)'क्या कुण्डलिनी संस्था के अधिकारीयों के द्वारा बनाये गए नियमों से उठती है ?'


e)'क्या आत्मसाक्षात्कार किसी भी नियम की सीमा व परिधि में बंध कर दिया जा सकता है ?'


f)'क्या 'श्री माँ' के द्वारा जागृत देव-गण संस्था के पदाधिकारियों के आदेश से कार्य करते है ?'


g)'क्या किसी का 'गुरु तत्व' संस्था के कोर्डिनेटर या संस्था के नियमों द्वारा जागृत किया जा सकता है ?'


h)'क्या 'श्री माँ' के द्वारा जागृत 'आत्मा' को तथा-कथित नियमों में बाँधा जा सकता है ?'


i)'क्या हृदय से बहने वाले 'प्रेम' को संस्था के अधिकारीयों के आदेशों व इच्छा से रोका जा सकता है ?'


j)'क्या नियमों के नाम पर सच्चे साधकों को व्यक्तिगत या सामूहिक स्तर पर अपमानित व हतोहत्साहित किया जाना सहज- गत है ?'


k)'क्या सहज योग चलाने वाली 'श्री माता जी' हैं या सहज संस्था चलाने वाले कोर्डिनेटर या अधिकारी ?'


l)'यदि कोई अपनी इच्छा से सहज संस्था के लिए कार्य करना चाहता है व किसी भी पद पर आसीन हो जाता है तो क्यों उसका प्रेम, भक्ति व श्रद्धा समाप्त हो जाते हैं, वो 'साधक से शासक' क्यों बन जाता है, वह एक सरल सहज योगी क्यों नहीं रहता ?'


m)'क्या 'श्री माँ' ने कभी भी किसी भी कोर्डिनेटर या संस्था के पदाधिकारी के द्वारा, किसी भी सहजी को सहज का कार्य करने से, पूजा में जाने से रोकने व किसी भी स्थान पर होने वाली ध्यान की सामूहिकता को बंद कराने का अधिकार दिया है ?'


n)'क्या एक सहज साधक बाड़े(तथा-कथित नियमो) में रहने वाले भेड़-बकरी की तरह होता या अपनी ही आत्मा के प्रकाश से प्रकाशित स्वतंत्र विचरण करने वाले 'सिंह' की तरह होता है ?'


आप सभी जागृत चेतनाओं से विनम्र आग्रह है कि इन सभी तथ्यों पर शांति के साथ ध्यानस्थ होकर चिंतन कीजियेगा ताकि सहज कार्यों के विकास में आ रहीं समस्त बाधाओं का निराकरण किया जा सके व 'श्री माँ' का स्वप्न पूर्ण रूप से साकार हो सके। ये हम सभी का सच्चा दाइत्व है , सहज योग वास्तव में 'दिव्य' सहयोग ही है।


"साथी हाथ बढ़ाना................, एक अकेला थक जायेगा मिलकर बोझ उठाना..................., साथी हाथ बढ़ाना............, साथी हाथ बढ़ाना, साथी रे............."


आत्मसाक्षातकार देना एक सत्य-साधक के लिए आक्सीजन लेने के समान होता है, अब क्या सांस भी किसी से पूछ-पूछ कर लेनी पड़ेगी। 

आत्मसाक्षात्कार देना एक सहजी का सबसे बड़ा उत्तरदाइत्व है और सबसे बड़ी उसके खुद लिए आवश्यकता भी हैक्योंकि जब उसकी मृत्यु होगी तो उस समय केवल चैतन्य की पूंजी ही उसके पास होगी, उसके साथ तो संस्था जाएगी, उसके नियम जायेंगे ही वह कोर्डिनेटर पदाधिकारी ही उसके साथ-साथ मृत्यु को प्राप्त होंगे, उसको तो अकेले ही जाना होगा। इसी चैतन्य रुपी पूँजी को केवल आत्मसाक्षात्कार देकर ही पाया व बढाया जा सकता है।

इसीलिए यदि कोई भी सहज साधक को जाग्रति देने के कार्य में बाधा डाल रहा है तो वह अच्छी तरह समझ ले कि वह बहुत बड़ा पाप कर रहा है और वह 'आदि शक्ति' की खिलाफत कर रहा हैसमस्त गणों, रुद्रों,शक्तियों देवी-देवताओं के कोप का उसे भाजन बनना पड़ेगा और 'मोक्ष' तो बहुत दूर की बात हो गई, भयानक नरकों का जीते जी भागी बनना पड़ेगा, क्योंकि यह मुक्ति वास्तव में हमारे सूक्ष्म शरीर की कारागार में कैद 33 करोड़ देवी-देवताओं व युगों-युगों से बंधित 'माँ कुण्डलिनी की ही मुक्ती है

इसीलिए मेरी हृदय से उन सभी सहज साथियों से प्रार्थना है "चाहे आप सब सहज संस्था में किसी भी पद पर आरूढ़ हों या 'आम सहजी' हों कृपया 'श्री माँ' के धरती पर अवतरण को सार्थक बनाने में तन-मन-धन से पूर्ण समर्पित भाव से सहयोग करेंयदि कुछ नहीं भी कर सकते तो जो सच्चे हृदय से यह अनुपम कार्य कर रहें हैं, उनके लिए नित नई-नई बाधाएँ उत्पन्न करें इससे प्रेम भाव में कमी आती है और सहज का कार्य अवरुद्ध होता है।

सभी लोग अच्छी तरह समझ ले कि एक सच्चा सहज साधक केवल "श्री आदि शक्ति माँ" को ही समर्पित होता है कि सहज संस्था या सहज योग को। उसको रोकना किसी की भी क्षमता से बाहर हैक्योंकि वह स्वम 'माँ आदि शक्ति' के द्वारा ही पोषित है। सहस्त्रार, हृदय व हाथों से बहने वाला चैतन्य इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। "

--------------------------------------------Narayan


"जय श्री माता जी"


























1 comment:

  1. Mind blowing statement, I wish now onwards people stop hurting innocent Sahaji's with there attitude.

    Jai Shri mataji

    Neha Gandhi

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