Thursday, February 10, 2011

"Impulses"-----Contemplation--------चिंतन---------13-----------10.02.11

"Impulses"-----"चिंतन"



1)"सभी साधक कभी- कभी 'मोक्ष' के बारे में सोचते रहते हैं,जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ परेशानियाँ और उससे उत्पन्न होने वाले दुखों के कारण मुक्ति की चाह पैदा कर देती है, सोचते हैं कि एक एक दिन 'श्री माँ' हमें आवागमन से मुक्त कर देंगीपर कैसे, यह अक्सर समझ नहीं आता, क्या होगा ? जब मुक्ति का आभास होगा, उस वक्त हमारी मनस्थिति कैसी होगी ? हम कैसा महसूस करेंगे ? तकनीकी रूप से क्या घटना घटित होगी ? हमारी आत्मा कैसे परम में विलीन हो जाएगी ? यही सब विचार मन में उठते रहते हैंमेरे विचार से मुक्ति हमारी 'कुण्डलिनी माँ' हमारे भीतर स्थित समस्त देवी-देवताओं की ही होती है जिन्हें स्वम "श्री माँ" ने हमें घड़ने के उपरांत हमारे भीतर बैठाया है, ये सभी 'दिव्य चेतनाएँ ' हमारे भीतर कैद हैं जो हमारी ओर ही देखते रहते हैं कि कब हम अपनी 'माँ कुण्डलिनी' से सच्चे हृदय से उठने के लिए कहें और 'माँ कुण्डलिनी' स्वम उठकर "माँ अदि शक्ति " से सहस्त्रार पर शक्तियों को प्राप्त करे और समस्त सोये हुए देवी-देवताओं को जगायेतभी तो 'माँ कुण्डलिनी' समस्त देव-गण हमारी मदद करते हैं ताकि हमारा चित्त परमात्मा के साथ एकाकार हो जाये और वे सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकें"

2)"
हम सभी सहजी अपना सारा कचरा विकार रोज "श्री माँ" को हर 'ध्यान' के समय देते जाते है, हमेशा 'श्री माँ' से कहते है"श्री माता जी कृपया मेरे समस्त बाधित चक्रों को साफ़ कर दीजिये, मेरी समस्त निगेटिविटी को ले लीजिये, मेरी समस्त समस्याओं को ले लीजियेबड़े दुःख की बात है कि हम हर समय उनसे कुछ कुछ मांगते ही रहतें हैक्या कभी हम सोच पाएंगे कि हमारा भी 'श्री माता जी' को कभी कुछ अच्छा देने का कर्त्तव्य है, क्या कभी भी हम कह पाएंगे कि"श्री माता जी आपके इस बच्चे ने आपके बताये रास्ते पर चलकर, आप ही की देख-रेख में, आप ही की शक्तियों के माध्यम से, आप ही की प्रेरणा वश एक सुंदर सा सुगन्धित फूल(सहजी) विकसित किया है, 'माँ' कृपया हृदय से स्वीकार कीजिये।" क्या हम कभी भी ये सच्चे हृदय से कहने की शक्ती रखतें हैं कि "श्री माता जी आप हमारी समस्त बाधाओं को हर लेती है हमारे कारण आपके शरीर को काफी कष्ट होता है,कृपया हमें भी हमारी क्षमता के मुताबिक कुछ निगेटिविटी शेअर करने का अवसर प्रदान कीजिये, ये हमारा सौभाग्य होगा, तभी लगेगा कि हम आपके सच्चे बच्चे है।" यदि सभी सहजी थोडा-थोडा 'श्री माँ' की तकलीफों को बांटे तो हमारी 'माँ' पूर्णतया स्वस्थ रहेंगी, अपने सक्षम बच्चों को देख कर बहुत खुश होंगी, और ऐसे में देव-गण भी हमें खूब अशीर्वादित करेंगे। अजमा कर देखिएगा

3)" अधिकतर सहजी निगेटिविटी की खूब चर्चा करते रहतें हैं, इससे डरते भी बहुत हैं और बुराई भी करते हैं, नए लोगों से मिलने से भी डरतें हैं, सोचते हैं कि कहीं हमारे अन्दर निगेटिविटी घुस जाये, मेरे विचार से ऊर्जा एक ही है, जब यह शक्ती हमारे मन के भीतर छुपी हुई बुराई के संपर्क में आती है तो यह नकारात्मक हो जाती है और जब यह हमारे मन के अन्दर की अच्छाई से जुडती है तो सकारात्मक हो जाती हैजैसे यदि वायु जब दुर्गंधित स्थान से गुजरती है तो बदबूदार हो जाती है और जब यही वायु सुगन्धित स्थान से चलती है तो ये सुगन्धित हो जाती हैइसीलिए किसी पर आरोप लगाने से अच्छा है कि अपने मन में झाँक कर देंखे कि इसमें क्या भरा हुआ है और यदि गंदगी दिखे तो सहस्त्रार से पवित्र शक्ती को लेकर मध्य हृदय पर लायें और हृदय में महसूस करने के बाद अपने बाएं आग्न्या चक्र को चित्त के माध्यम से सप्लाई करें, ऐसा करने से मन का मैल धीरे-धीरे साफ़ हो जायेगा नकारात्मकता कहीं भी नजर नहीं आएगी।"

4)" अक्सर सहजी चक्र साफ़ करने के लिए रात-दिन एक कर देते है, फिर भी चक्र साफ़ नहीं हो पातेकही कहीं समस्या बनी ही रहती हैजैसे कि हमारे कपडे बिना डिटर्जेंट के साफ़ नहीं हो पाते चाहे उन्हें कितना ही रगड़ दें, बल्कि ज्यादा रगड़ने से ख़राब अवश्य हो जाते हैं इसी प्रकार से बिना चैतन्य(साबुन) के भला चक्र कैसे साफ़ हो सकतें हैतो सबसे पहले सहस्त्रार से 'लिक्विड सोप' लेकर मध्य हृदय रूपी मशीन में डालें और जो भी चक्र पकड़ रहा हो तो उस पर चित्त रखकर मध्य हृदय में जैसे ही चैतन्य महसूस करना प्रारंभ करेंगे वैसे ही चक्र अपने आप साफ़ होने लगेगा और आप ध्यान के आनंद में डूब जायेंगे।"

5)"ध्यान लगने का मुख्य कारण 'मन' के द्वारा चित्त को अपनी ओर खींच लेना है, जिस चीज की भी हमारे जीवन में प्राथमिकता होती है वह हमारे मन में आवश्यकता या इच्छा बनकर निवास करती है और अपनी तीव्रता के कारण हमारे चित्त को अपनी ओर आकर्षित करती रहती हैएक दूसरी स्थिति भी ध्यान में प्रगट होती है और वो है ध्यान के दौरान विचारों का तीव्र गति से आना, इस छण वायब्रेशन भी अच्छे रहे होते है क्या कारण है ? वायब्रेशन और विचार साथ- साथ कैसे चल रहे होते है ? क्योंकि ध्यान की अच्छी अवस्था का मतलब तीव्र वायब्रेशन का आना, ऐसी अवस्था में हमारे मन के कोष खाली किये जा रहे है और उन समस्त चीजों को विचारों के रूप में 'माँ' के द्वारा बाहर निकाला जा रहा है जैसे कि वैक्यूम क्लीनर कारपेट के नीचे छुपी हुई धूल को अपनी ओर खींच लेता है ऐसे ही ऊर्जा हमारे मन की 'डस्ट' को विचारों के रूप में खींच कर हमारे मन को साफ़ करती है।"


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"जय श्री माता जी"

1 comment:

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    Jai Shree Mataji

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