Wednesday, May 26, 2021

"Impulses"--547-- 'जुमले'

  "जुमले"


"पिछले एक वर्ष से हम सभी लोग ये 'जुमले' लगातार सुनते रहें हैं,

"दो गज की दूरी,मास्क है जरूरी"

"जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं"

क्या आप में से कभी किसी ने गम्भीरता से इन जुमलों पर चिंतन किया है ?

कि इस जुमलों का वास्तव में मतलब क्या है ?

ऊपरी तौर से इसका मतलब बहुत ही सरल मालूम देता है,

'कि प्रत्येक व्यक्ति से 6 फीट की दूरी पर रहो और मुख नासिका को मास्क से ढक कर रखो।'

'और जब तक इसकी दवाई बन जाये तब तक पहले वाले जुमले का सजग होकर पालन करो।'

किन्तु हम आप सभी को इस जुमले के दूसरे पहलू से रूबरू कराने जा रहे हैं जरा गौर फरमाइयेगा।

इसके अन्य पक्ष की उन्नमुख होने से पूर्व थोड़ा सा इस जुमले को प्रचलित करने वालों की वास्तविक गतिविधियों पर भी जरा नजर डालेंगे।

क्या इस वक्तव्य के माध्यम से भारत के नागरिकों से मन की बात करने वाले 'महान अस्तित्व' क्या स्वयं इसका पालन करते हैं ?

जरा इन सभी महान विभूतियों की चुनाव रैलियों का हाल तो देख लीजिए, क्या उन रैलियों में किसी भी प्रकार से उपरोक्त जुमले का पालन किया गया ?

किन्तु भारत के नागरिकों को अपनी पुलिस से पिटवा पिटवा कर करोड़ों रुपये के चालान जरूर वसूले जा रहे हैं।

*शायद ये लोग 'भगवान' के अवतार हैं जिन पर किसी 'विषाणु' का कोई असर नहीं होता और ही इन पर कोई भी नियम कानून ही लागू होते।*

*या फिर यह तथाकथित 'महामारी' केवल एक ढोंग है जो एक 'अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र' के तहत मीडिया,अखबार,प्रशासन इन 'जुमलेश्वरों' के द्वारा फैलाया जा रहा है।*

*यदि यह वास्तविक महामारी होती तो सड़कें लाशों से पटी होतीं और ये सत्तालोलुप,धूर्त,जहरीले,लोभी,महा झूठे कायर नेतागण अपने अपने घरों से बाहर झांकने तक की हिम्मत कर पाते।*

यह सब देखकर बहुत हंसी आती है कि इन्होंने अपनी स्वयं की मूर्खताओं से अपने द्वारा रचे गए षड्यंत्र का स्वयं ही पर्दाफाश कर दिया।

और यह साबित कर दिया कि यह तथाकथित महामारी एक साजिश ढोंग के सिवा कुछ भी नहीं है।

जैसे कि "श्री महादेव" से प्राप्त वरदान के कारण 'भस्मासुर' स्वयं अपने हाथ के द्वारा ही मारा गया।

एक विवेकशील अतिसाधारण मानव भी आसानी से समझ सकता है कि यह महामारी पूर्णतया झूठी है।

वह बात और है कि मीडिया प्रशासन के जरिये जनता के बीच भय उत्पन्न करने के लिए इसकी जबरदस्त मार्केटिंग की गई है।

जिसके कारण मानसिक दासता से प्रभावित बहुत से लोग इन सभी माध्यमों के कारण काफी डर गए हैं और डर के मारे बिना अपने विवेक का इस्तेमाल किये इन दुष्टों का अनजाने में सहयोग ही कर रहे हैं।

अब जरा चलते हैं उपरोक्त कथन से जुड़े समस्त तथ्यों की चिंतन पूर्ण विवेचना की ओर:-

'दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी'

वास्तव में यह जुमला हम सभी के हित में दिखाई पड़ता है किंतु वास्तव में यह जुमला हम सभी के लिए बिल्कुल विपरीत कार्य करता है।

तो प्रारम्भ करते है प्रथम वक्तव्य से, यानि 'दो गज की दूरी';

क्या आप सभी जानते हैं/क्या आप सभी को याद है कि हमारे मध्य हृदय के बीचों बीच कौनसी "देवी" उपस्थित हैं ?

यदि नहीं तो हम आप सभी को बताते हैं/याद दिलाते है, कि हमारे मध्य हृदय की मालकिन "श्री जगदम्बा माँ" हैं जिनका कार्य समस्त प्रकार के राक्षसों शैतानों से हमारी रक्षा करना है जो सूक्ष्म रूप से हमारे मन पर अपना नियंत्रण बनाये रखते हैं।

क्या आप जानते हैं कि "श्री जगदम्बा" की 'शक्ति' हमारे मध्य हृदय में सक्रिय होकर हमारे शरीर को 'विषाणुओं, परजीवियों,जीवाणुओं कीटाणुओं से बचाने के लिए 'रक्षा प्रहरियों' की सेना का निर्माण करती है जिसे हम 'रोग-प्रतिरोधक-शक्ति'(Immunity) के नाम से जानते हैं।

जब भी दो मानव प्रेम से गले मिलते हैं तो दोनों मानवों के मध्य हृदय में रहने वाली "माँ जगदम्बा" प्रसन्न होती हैं जिसके कारण हमारे मध्य हृदय की शक्ति और भी ज्यादा तीव्रता से कार्य करने लगती है 'प्रतिरोधक' शक्ति का निर्माण भी तेज हो जाता है और मानव को एक दूसरे से भावनात्मक सांत्वना भी मिलती है।

'क्या आपने गौर नहीं किया है कि यदि कोई बच्चा कितनी भी गम्भीर घातक बीमारी से ग्रसित क्यों हो जाय, उसकी माँ उसे अपने गले लगाना नहीं छोड़ती, बल्कि अपनी मां का प्रेम वात्सल्य पाकर बच्चा जल्दी ठीक होने लगता है।

वास्तविक प्रेम वात्सल्य के आगे दुनिया का कोई भी विषाणु, जीवाणु, परजीवी कीटाणु टिक नहीं सकता यह बात हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में प्रमाणित है।

प्रेम वात्सल्य पुरुष स्त्री, दोनों में ही पाया जाता है, और जब कोई मानव अन्य मानव को अत्यंत प्रेम वात्सल्य से गले लगता है तो 'मातृ शक्ति' सक्रिय होकर एक दूसरे को शक्ति प्रदान करती है।

यहां तक कि एक प्रेममयी वात्सल्य मई मानव का 'परिमल'(Aura) भी इतना शक्ति शाली होता है कि उसके बिना स्पर्श किये भी उसके नजदीक बैठने खड़े होने वाले मानव को किसी भी प्रकार के विषाणु, जीवाणु,परजीवी कीटाणु के प्रभाव का असर आसानी से होगा।

तो जरा विचारिये कि जिस प्रक्रिया से मानव को राहत मिल सकती है उससे ही 'दो गज की दूरी' भय रूपी षड्यंत्र के द्वारा विमुख कर दिया जाय।

इस 'दो गज की दूरी' वाले प्रोग्राम से काफी पहले से हमारे देश में 'आपसी घृणा बढ़ाओ' कार्यक्रम बड़े जोर शोर से व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी यूट्यूब के द्वारा चल ही रहा है।

यानि हमारे भारतवर्ष में पिछले कुछ वर्षों से कुछ कुतिस्त, निम्न, गद्दार, सत्तालोलुप लोभी राजनीतिक नेताओं के द्वारा धार्मिक,जातीय वर्गीय आधार पर राष्ट्रीय शोशल मीडिया के द्वारा हमारे देश के नागरिकों के बीच आपसी वैमनस्य घृणा फैलाने के हजारों तरीके अपनाए जा रहे हैं।

अब जरा 'मास्क है जरूरी' की समीक्षा भी कर लेते हैं कि क्या मास्क इस विषाणु से वास्तव में सुरक्षित कर सकता है ?

क्या आप में से किसी ने भी 'मास्क' की उपयोगिता इसकी सीमाओं के बारे में कुछ अध्यन किया है, यदि नहीं किया तो आज ही गूगल पर प्रश्न डाल कर पूछिये की क्या दुनिया का कोई भी मास्क इस तथाकथित 'विषाणु' को पूणतया रोक सकता है।

वास्तव में अध्यन से पता चलता है कि दुनिया का कोई भी मास्क 250 नैनो मीटर के साइज से ऊपर के कण को ही रोक सकता है।

जबकि इस 'विषाणु' का साइज 50 से 140 नैनो मीटर तक पाया गया है जो किसी भी मास्क में प्रवेश कर सकता है।

तो अब जरा विचारिये कि मास्क से भला क्या लाभ होने वाला है ?

हां यह धूल मिट्टी/कुछ जीवाणुओं/परजीवियों के कुछ कणों को अवश्य रोक सकता है जिनका साइज 250 नैनो मीटर से ज्यादा ही होता है।

अब जरा व्यवहारिक रूप से चिंतन कीजिये कि, मानो आपने प्रतिदिन 4 घण्टे के लिए मास्क पहना और पहले 10 मिनट में कुछ जीवाणु उस मास्क में चिपक गए।

तो अगले 3 घंटा 50 मिनट तक हम उन जीवाणुओं के साथ ही सांस ले रहे होंगे जिसके कारण हमें बैक्टीरियल इंफेक्शन निश्चित रूप से हो सकता है।

हमारे देश की राजधानी हाई कोर्ट के जज ने तो एक याचिका के एवज में कमाल का जजमेंट दे दिया,

कि *यदि कोई व्यक्ति अकेले कार में सफर कर रहा है तो उसे भी मास्क लगाना अनिवार्य है, क्योंकि वह भी 'विषाणु' के संक्रमण को बढ़ा सकता है।*

इस जजमेंट को पढ़कर हम अनेकों प्रश्नों से आच्छादित चिंतन करने को बाध्य हो गए,

'कि क्या परिवार के सभी सदस्य भी अब घर में सदा मास्क लगा कर रहेंगे ?

और विवाहित नव विवाहित जोड़ों का क्या होगा ? इनके द्वारा तो बहुत ही तीव्रता से घातक रूप से संक्रमण निश्चित रूप से फैल ही जायेगा।

तो क्या आने वाले समय में इस आधार पर विवाह करने पर भी पाबंदी होने वाली है ?

वास्तव में मास्क लगाने से अत्यंत हानि होती है क्योंकि आपके फेफड़ों में पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन जा ही नहीं पाती जिससे फेफड़े कमजोर होने लगते हैं और धीरे धीरे आप बीमार पड़ जाते हैं।

हम सभी जानते हैं कि हमारी नसिका वायु में से 21% आक्सीजन ही हमारे शरीर को चलाने के लिए लेती है।

जब हम दिन में 4-6 घंटे तक मास्क लगाए रखते हैं तो हमारी नसिका कार्बन डाई आक्साइड को ग्रहण करना प्रारम्भ कर देती है जो मास्क में मौजूद होती है जिसके कारण हमारे शरीर में आक्सीजन घटने लगती है हमारा शरीर कमजोर पड़ने लगता है।

सरल शब्दों में हम कहें तो यह हमें और भी ज्यादा बीमार करने का षड्यंत्र ही है ताकि हमारी गिनती भी 'विषाणु ग्रस्त' लोगों में होने लगे और षडयंत्रकारियो के षड्यंत्र और भी फलने फूलने लगे।

एक कार्य और कीजिये हमारे देश के स्वास्थ विभाग की साइट पर जाकर मास्क के नियम के बारे में भी पढ़ लीजिये जिसमें लिखा है कि, 'किसी भी स्वस्थ व्यक्ति को मास्क लगाने की आवश्यकता नहीं है।'

किन्तु हैरानी की बात है कि अपनी वेबसाइट पर यह लिखवाने के वाबजूद भी हमारे देश की लगभग सभी राज्य सरकारें पुलिस के जरिये मास्क लगाने पर अनाप शनाप चालान वसूलने में संलग्न हैं।

हांलाकि कई देश भी नागरिकों के द्वारा मास्क पहनने पर जुर्माना वसूल रहे हैं क्योंकि यह दुनिया के सबसे बड़े अमीरों के द्वारा रचा गया एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है।

यानि दुनिया के सभी लोगों को पहले बीमार करो फिर 'संक्रमितों' की गिनती बढ़वाकर संक्रमण के भय को आसमान तक बुलंद कर दो।

फिर विश्व के अधिकतर देशों में विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा जबरन लाकडाउन लगवाकर बड़े व्यापारियों के द्वारा छोटे व्यापारियों के कारोबारों को हड़पवाओ।

और कुछ देशों में तो जबरन लाकडाउन लगवा कर सभी के कारोबार चौपट करवा दो/लोगों को पूरी तरह बेरोजगार करवा दो।

और जब वे बैंको से लिये गए लोन की किस्तें चुकाने लायक नहीं रहेंगे तो बैंको का NPA बढ़ने लगेगा जिसके कारण बैंक डूबने लगेंगे और फिर उन्हें बन्द करवा कर आम जनता का धन लूट लिया जाएगा।

इस प्रकार से वैश्विक स्तर पर लोग गरीब हो जाएंगे और उनके पास बड़े लोगों सरकारों की गुलामी करने के अतिरिक्त कोई चारा रह जायेगा।

इस चिंतन के उपरांत अब जरा विवेचना करेंगे दूसरे जुमले की,

'जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं'

यानि इस जुमले के द्वारा आम लोगों के मन मस्तिष्क में यह बात बैठाई गई कि पूरे विश्व में जो भी अन्य चिकित्सा पद्यतियाँ हैं अपने को ठीक रखने के लिए उनका प्रयोग करके केवल और केवल इस तथाकथित 'विषाणु' के इलाज की प्रतीक्षा की जाय जो केवल और केवल सरकार ही उपलब्ध कराएगी।

और वास्तव में पिछले वर्ष जब यह 'विषाणु' मीडिया के द्वारा जबरदस्त तरीके से फैलाया गया तो पहले दो तीन महीनों तक अन्य सभी चिकित्सा पद्यतियाँ पर हमारे देश में जबरन रोक लगा दी गईं।

ताकि कोई भी अन्य चिकित्सा पद्यतियों के चिकित्सक इसे ठीक कर सकें और आम जनता केवल और केवल सरकारी तंत्र के आधीन हो जाय।

अब तो चमत्कारिक रूप से कुछ ही माह में दवाई भी ला दी गयी जिसको सही प्रकार से तैयार करने उसकी गुणवत्ता चैक करने में 10-15 वर्षो को समय लगता है।

हालांकि "श्री माता जी" अपने कई लेक्चर्स में कई वर्षों पूर्व बता चुकी हैं कि 'विषाणुओं' की कभी कोई दवाई बनाई ही नहीं जा सकती क्योंकि यह उत्क्रांति की प्रक्रिया से बाहर किये गए समस्त प्राणियों वनस्पतियों के 'मृत अंश' हैं।

जो हमारे द्वारा अतिभूतकाल वादी होने के कारण हमारे बायीं आगन्या( दाहिने दिमाग) के भाग 'सामूहिक अवचेतन' से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और कुछ दिन तक पीड़ा देने के बाद स्वयं ही चले जाते हैं, इनका बाह्य रूप से कोई इलाज किया ही नहीं जा सकता।

इनको केवल ध्यान की अवस्था में 'इड़ा नाड़ी' को मोमबत्ती अथवा दीपक के प्रकाश से प्रकाशित कर भगाया/निष्क्रिय किया जा सकता है।

दुर्भाग्य से इसी षड्यंत्र के अगले चरण के चलते आनन-फानन में करोड़ों की संख्या में यह त्वरित दवाई दी जा चुकी है जिसका जानवरो/लोगों पर ठीक प्रकार से तीसरा टेस्ट तक नहीं हो पाया है।

जरा कल्पना कीजिये कि करोङो लोगों के शरीरों पर यह एक्सपेरिमेंटल दवाई जबरन उड़ेल दी गयी, कुछ सालों बाद जब इसके उन शरीरों पर घातक रिएक्शन आने प्रारम्भ होंगे तो इसका कौन जिम्मेदार होगा।

ये जुमले बाज तो अपनी जिम्मेदारी से तुरंत पल्ला झाड़ कर एक तरफ हो जाएंगे जिन्होंने हर स्तर पर हमारे देश को अपनी साजिशों मूर्खताओं के चलते इस षड्यंत्र से पहले ही डुबा दिया है।

फंसेंगे कौन जो इनकी चालों के जाल में फंस चुके होंगे या इनकी बातों के भ्रम जाल में उलझ कर पूरी तरह अपना विवेक गंवा चुके होंगे।

हमें तो अत्यंत हैरानी होती है अनेको लोगों की जड़ बुद्धि को देख कर कि बिल्कुल भी जागरूकता नाम की चीज परिलक्षित नहीं हो रही है।

जिस दवाई से ठीक होने इस 'विषाणु' से बचे रहने की गारंटी इसको बनाने वाली कम्पनियां ही नही ले रहीं तो भला 'जुमलेश्वर महाराज' की बातों का यकीन ये लोग किस आधार पर कर रहे हैं, मूर्खता की भी हद है।

इस दवाई की कमियों के बारे में कुछ बाते इनकी कम्पनियों ने स्वयं ही बता दी हैं:

1.इसकी दोनी खुराक लेने के बाद भी 'विषाणु' का असर हो सकता है, अनेको डॉक्टरों पर इसको लेने के बाद हो भी रहा है।

2.इसको लेने के बाद भी लेने वालों के जरिये यह 'विषाणु' अन्य लोगों में फैल सकता है।

3.इसको नियमानुसार ग्रहण करने के बाद भी मास्क लगाना ही पड़ेगा अन्य एतिहात पूर्ब की भांति अपनाने पड़ेंगे।

4.यह दवाई इस 'विषाणु' का इलाज नहीं है, यह दवाई कुछ समय के लिए आपकी रोगप्रतिरोधक क्षमता बड़ा सकती है।

5.यह दवाई आपके किन किन महत्वपूर्ण अंगों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगी यह अभी तक मालूम नहीं है।

हालांकि कई लोगों पर इस दवाई के घातक रिएक्शन हो चुके हैं और कई लोग अभी तक काल कवलित हो चुके हैं जिसको छुपाया जा रहा है।

सरकारों का दुष्चरित्र तो देखिए कि जो लोग इस 'विषाणु' के अतिरिक्त अन्य बीमारियों से ग्रसित होकर हस्पताल जा रहे हैं उन्हें जबरन 'विषाणु ग्रस्त' के वर्ग में डालकर संख्या बढ़ाई जा रही है।

यहां तक कि अन्य बीमारियों के कारण मृत होने वालों, एक्सीडेंट में मरने वालों, आत्महत्या तक करने वालों के नाम इस 'विषाणु' से मृत लोगों की लिस्ट में जबरन डाले जा रहे हैं।

और जिन लोगों ने इस तथाकथित दवाई की दोनों डोज ले लीं और भयंकर रिऐक्शन होने के कारण उनका कोई मुख्य अंग खराब होने के कारण उनकी मृत्यु हुई।

तो ऐसे मरने वालों की अन्य बीमारियों पर दोषारोपण करके इस दवाई के घातक प्रभाव को झूठ से ढका जा रहा है।

यानि दोनों तरफ से आम मानवों के साथ उनके स्वास्थ्य के साथ खूब खिलवाड़ किया जा रहा है इसके लिए यदि कोई ईमानदार डॉक्टर सत्य को बताना चाहे तो उसका लाइसेंस रद्द करने का उसको डर लग जाता है।

इसके अतिरिक्त यदि कोई जैव-वैज्ञानिक या विद्वान अपनी रिसर्च के द्वारा इस षड्यंत्र के विरोध में कुछ तथ्य प्रस्तुत करें तो उनकी वीडियोज लेखों को डिलीट करवा दिया जाता है यहां तक कि यूट्यूब चैनल तक डिलीट करवा दिया जाता है।

यानि किसी भी प्रकार से सत्य आम लोगों तक पहुंच पाए इसका भरसक प्रयास किया जा रहा है और ये केन प्रकारेण इस 'विषाणु' के विरोध की हर सत्य बात को खारिज करने की चेष्टा की जा रही है।

अब इस प्रवाह का भी पता नहीं यह कितने लोगों तक पहुंच पायेगा अथवा डिलीट कर दिया जाएगा "श्री माँ" ही जाने, हमारा कार्य कर्तव्य तो अपने विवेक से जो समझ आये वह सभी के साथ शेयर करना ही है।

हम कोई विद्वान विशेष पढ़े लिखे तो हैं नहीं किन्तु सीधी सरल बात समझ आती है और वही आप सभी से शेयर करते हैं।कुछ बातों पर विवेकशीलता के साथ चिंतन अवध्य कीजियेगा।

'क्या हम बिना किसी रोग के कभी भी कोई दवाई खाते हैं ?

क्या हम किसी डॉक्टर के पास जाकर कहते हैं कि, 'डॉक्टर साहब' मुझे शुगर की बीमारी नहीं है किंतु फिर भी मुझे शुगर की दवाई दे दीजिए ?

क्या हम किसी डॉक्टर के पास 'एन्टी रेबीज' इंजेक्शन का पूरा कोर्स ले जा कर कहते हैं, डॉक्टर साहब मुझे कुत्ते के काटने के इंजेक्शन कुत्ते के काटने से पहले ही लगवाने है ?

डॉक्टर साहब मेरी एंजियोग्राफी मेरी आर्टरीज के ब्लाक होने से पहले ही कर दीजिये ?

मेरे हार्ट अटैक आने से पहले ही मेरी बाईपास सर्जरी कर दीजिए ?

क्या हम बुखार आने से पहले ही कभी बुखार की कोई दवाई खाते हैं ?

किसी भी रोग के होने से पूर्व क्या हम कोई दवाई पहले ही खाते है ?

यदि हम बिना किसी रोग के कोई भी दवाई खाएंगे तो निश्चित रूप से हम अपनी किडनी अथवा अन्य अंगों को खराब कर लेंगे ?

ये तो छोड़िए, बचपन में टी बी का इंजेक्शन लेने के बाद भी कई लोगों को टी बी हो गई यह प्रमाणित है।

हमारे देश में टी बी से हर साल 5-6 लाख लोग मर जाते हैं और इसका संक्रमण 20-25 फ़ीट से भी हो सकता है पर इसे कोई महामारी का दर्जा प्राप्त नहीं और ही इसकी कमेंट्री आंकड़े क्रिकेट की तरह मीडिया चैनल्स पर फ्लैश होते हैं।

सच्चाई यह है यह महामारी है ही नहीं बल्कि साल में लगभग तीन बार ऋतुओं के बदलने वाले साधारण सर्दी, जुखाम बुखार का नाम बदल दिया गया है।

और इसका एक अनुपयुक्त टेस्ट तैयार कर इसके माध्यम से 'विषाणु पॉजिटिव' साबित कर दिया जाता है।

जबकि इस टेस्ट का अविष्कार करने वाले वैज्ञानिक ने स्वयं इस टेस्ट के लिए डिक्लेयर कर रखा है कि यह टेस्ट डायग्नोसिस के लिए नहीं बनाया गया है यह केवल रिसर्च वर्क के लिए है।

किन्तु लोगों की अज्ञानता सरकारों की कुटिलतापूर्ण दुष्टता तो देखिए कि जबरदस्ती आम लोगों को इस गलत टेस्ट के जरिये 'विषाणु ग्रसित' दिखाया जा रहा है।

कमाल की बात यह है कि इस टेस्ट के जरिये बिना किसी बीमारी बीमारी के लक्षणों के आम लोगों को जबरन झूठी बीमारी के जाल में फंसा कर गलत सलत हानिकारक दवाइयों के द्वारा इलाज के लिए मजबूर किया जा रहा है।

जिसके कारण वास्तव में लोग बीमार हो रहे हैं और कुछ लोग तो मर भी जाते हैं जिन्हें 'विषाणु ग्रस्त मृत्यु' की श्रेणी में डाल कर और भी जनता के बीच भय उत्पन्न किया जा रहा है।

विदेश में यदि किसी को एन्टी बायटिक दवाई आसानी से नहीं दी जाती, यहां तक इसकी परमिशन लेने के लिए डॉक्टर को काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

यहां तक कि "श्री माता जी" ने कई वर्ष पहले ही एन्टी बायोटिक दवाई लेने के लिए मना कर दिया था जिनके रिएक्शन्स पूर्व प्रमाणित हैं तो जरा कल्पना कीजिये कि जिसकी शरीर पर होने वाले रिएक्शन्स का सही प्रकार से पता अगले कई वर्षों में चलेगा तो ऐसी डोज से से शरीर पर क्या नहीं हो सकता।

*एक साधारण लॉजिक सबको समझना चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति टेस्ट में पॉजिटिव आता है और वह पूर्णतया स्वस्थ है तो उसके शरीर ने इस तथाकथित 'विषाणु' पर काबू पा लिया है उसे किसी भी प्रकार के इलाज बचाव की आवश्यकता ही नहीं है।*

बल्कि उसके खून के एंटीबॉडीज को लेकर अन्य 'विषाणु ग्रसित' लोगों का इलाज करना चाहिए जिससे सभी के शरीरों में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज उपलब्ध हो सकें।

किन्तु सरकारे ऐसे शक्तिशाली लोगों को जानबूझ कर अनेको तरीकों से बीमार करने में लगी हुई हैं इन्ही कारणों से तो यह महामारी वैश्विक स्तर का षड्यंत्र साबित हो रहा है।

हर मानव का यह संवैधानिक अधिकार स्वतन्त्रता है कि वह अपने शरीर के लिए उपयुक्त चिकित्सा पद्धति का चुनाव कर अपने को स्वस्थ रख सकता है/इलाज करा सकता है/स्वयं का इलाज कर सकता है।

इस धरा पर किसी भी सरकार या सिस्टम या चिकित्सा पद्यति को उसकी ऐच्छिक स्वतंत्रता पर अपना अधिकार जमाने का अधिकार नहीं है।

एक और तथ्य की बात आप सभी के सामने रखना चाहते हैं और वह है कि,

ज्यादातर दवाइयों के प्रयोग मानव पर इस्तेमाल करने से पहले अनेको प्रकार के जानवरों पर होते हैं जिनके शरीर मनुष्य से ज्यादा संवेदन शील होते है।

यानी कि जो भी बीमारी मनुष्य को होगी उस बीमारी का प्रभाव अक्सर जानवरों पर भी जाता है।

तो इस 'विषाणु' का प्रभाव अभी तक किसी भी जानवर पर क्यों नहीं आया जबकि यह 'विषाणु' तो इन षड्यंत्रकारियों के अनुसार हवा से, पदार्थ से, कपड़ों से स्थानों तक से लगातार फैल रहा है ?

इन सरकारों के द्वारा इस तथाकथित 'विषाणु' की रोकथाम के लिए किए जाने वाले कार्य तो अत्यंत हास्यपद हैं।

रात का कर्फ्यू, सड़कों पर दो गज की दूरी किन्तु बसों में सट सट के बैठना,

बसें चालूं,प्लेन चालू तो ट्रेन बन्द,

दुकानों में दूरी पर चुनावों में नजदीकी,

दुकानवालों, वाहन चलाने वालों पर सख्ती कर चालान के साथ मारपीट तक,

किन्तु महान नेताओं,उनके कार्यकर्ताओं रैलीरत जनता का कोई चालान और कोई पाबंदी,

स्कूल बंद,कालेज बन्द, बैंकिट हाल बन्द/संख्या सीमा,जिम बन्द, होटल बन्द/सीमा,मॉल बन्द/सीमा किन्तु कुम्भ मंदिर चालू,

कोई एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना चाहे तो 48 घंटे पहले का निगेटिव टेस्ट सर्टिफिकेट जरूरी,

यदि किसी व्यापारी का टूर का काम है या कोई टैक्सी वाला है या ट्रांसपोर्टर है तो उसे सप्ताह में तीन बार तो टेस्ट कराने पड़ेंगे, क्या यह सम्भव है,

अब दूसरी लहर की बात पर चिंतन करते हैं,इस टेस्ट की एक जानकारी साझा कर रहे हैं, पिछले साल वाली पहली लहर में इस यह टेस्ट 20 'लैब साइकिल' के जरिये सम्पन्न हुआ।

और अब दूसरी लहर में इस टेस्ट की 'लैब साइकिल' अनावश्यक रूप से पॉजिटिव रिपोर्ट लाने के चक्कर में 35 कर दीं गईं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस टेस्ट की चपेट में फंस कर पॉजिटिव आएं।

यहां तक कि जिन लोगों का टेस्ट पहले 20 लैब साइकिल के द्वारा निगेटिव चुका है अब वे भी दूसरी लहर में पॉजिटिव आने से बच पाएं।

और शायद आने वाले समय में 2024 तक तीसरी, चौथी पांचवी लहर के रूप में इस टेस्ट की लैब साइकिल क्रमशः 50, 65 80 कर दिए जाएं।

जिससे पूरे भारत के लोग इस टेस्ट की चपेट में सकें तब तक सभी लोग हर स्तर पर सत्तासीन सरकार के पूर्णतया गुलाम हो जाएं।

और मानव की स्वतंत्रता उसका अस्तित्व एक बैल से ज्यादा रह जाये जो इन सबसे अमीर व्यापारियों सरकारों की कमाई का माध्यम बन कर इन सभी की गुलामी करता रहे, एक जानवर की तरह से जन्म ले और लावारिस जानवर की तरह ही मर जाए।

क्या आपको याद है मानवता के खिलाफ कैसा नंगा तांडव सरकारी स्वास्थ्य विभागों/पुलिस/प्रशासन के द्वारा किया गया था।

कैसे अन्य बीमारियों से ग्रसित हजारों लोगों की उपेक्षा कर जबरन इस 'विषाणु' ने नाम पर मरने को मजबूर कर दिया गया था,

कैसे इस बीमारी से ग्रसित लोगों के नाम पर जवान अधेड़ लोगों के मानव अंग निकाल कर बेचे गए थे,

कैसे करोङो मजदूरों को भूखा मार कर हजारों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर कर दिया गया था,

कितनी बेदर्दी के साथ बड़े बड़े हस्पतालों में बीमार लोगों से उनके घरवालों को मिलने तक नहीं दिया गया और उनसे लाखों रुपये बिना किसी इलाज के हड़पे गए।

यह सब स्मरण करके अभी भी हमारी आंखे नम हो रहीं है और हृदय पीड़ा से चीत्कार कर रहा है।

मानवता के खिलाफ इस सामूहिक अन्याय को अनुभव कर हृदय में क्रोध की ज्वालायें धधकने लगती हैं और 'चेतना' में "श्री माँ" से पुकार उठने लगती है,

'हे "जगत जननी", हे "परमेश्वरी", हे "महाकाली", हे "चंड मुंड संहारिणी", हे "भगवती", हे "भवानी", हे "माँ दुर्गे", हे "श्री कल्कि", हे "श्री माँ", हम बच्चों के चित्त चेतना में अपनी समस्त संहारक शक्तियां भर दीजिये।

ताकि हमारे चित्त चेतना के एक इशारे मात्र से ये 'नरपिशाच' जल कर भस्म हो जाएं जिनके कुकर्मों के कारण समस्त मानव जाति त्राहि त्राहि कर रही है।

या फिर यदि,"आपको" इस कार्य को स्वयं करने के लिए किसी 'बलि' की आवश्यकता है तो आपका यह बालक अपने शरीर अस्तित्व की आहुति देने के लिए सहर्ष तैयार है, बस आप इन सभी दुष्टों का संहार कर अपनी सृष्टि की सर्वोत्तम रचना को बचा लीजिये।

यह सब पैशाचिकता देखकर अब इस संसार में दिल नहीं लगता "माँ", कुछ तो "आपको" अब करना ही पड़ेगा।

"आपने" हमें इस धरा पर मानव के रूप में जन्म दिया भले ही "आपकी" अनुकंपा, प्रेम वात्सल्य से हम आज 'प्रकाशित आत्मा' के रूप में उपस्थित हैं।

फिर भी मानव के आवरण में होने के नाते हमारा अन्य सभी निर्दोष अच्छे मानवों के कल्याण सुरक्षा के प्रति स्वाभिक रूप से कर्तव्य बनता है।इसीलिए यह चेतना "आपसे" करबद्ध निवेदन कर रही है।

यदि ये लोभी नराधम जबरन मानव के साथ यही करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब एक बार फिर से इस धरा पर खूनी क्रांति जन्म लेगी और इन मानव आवरण में छिपे हुए नरपिशाचों का क्रांतिवीरों के द्वारा संहार कर इस धरा को इनके चंगुल से मुक्त किया जाएगा।

यही आप में से कुछ लोग सेना,पुलिस,प्रशासन किसी किसी रूप में सत्ता से जुड़े हों तो आप सभी से विनम्र निवेदन है कि कुछ देर के लिए अपनी आत्मा से जुड़कर इन उपरोक्त बातों पर चिंतन अवश्य करें।

विवेक का प्रयोग करते हुए विचारें कि ऐसी हालत में अपनी वर्तमान भविष्य की पीढ़ी के लिए इस धरा पर कुछ शेष है या इन मानसिक रूप से विक्षिप्त सत्तासीनों की गुलामी में अपनी अगली पीढ़ी को तैयार करना आप सभी को मंजूर होगा।

यदि नहीं, तो फिर कमर कस लीजिये इन नरकसुरों को जड़ से उखडने हमारी इस वसुंधरा पर अमन, शांति, प्रेम, सौहार्द भाई चारा स्थापित करने के लिए।

और इसके विपरीत यदि आपको इस प्रकार की सत्ता में सुख मानसिक तुष्टि मिल रही है तो फिर हम जैसी चेतनाओं को मिटाना प्रारम्भ कर दें क्योंकि हम जैसे अस्तित्व इन शैतानो को इनका राज सदा कायम नहीं रहने देंगे।

अपने सुनिश्चित समय पर अपने शरीरों के बन्धन से मुक्त होने बाद तो हम और भी ज्यादा शक्ति शाली हो जाएंगे और इन राक्षसों के मंसूबों को हर हाल में तहस नहस कर देंगे।

वैसे इस अवस्था में भी "श्री माँ आदि शक्ति" ने अपने गणों देवी देवताओं की सेना को हम सभी के साथ रख छोड़ा है।

हमारा अहित करने का एक बार अहित करने का मात्र सोच भर लीजिये, हम तो बाहरी रूप से कुछ नहीं करेंगे किन्तु देव-शक्तियां आप सभी को इस सत्य का आभास अवश्य करा देंगी।

अब समय गया है अदृश्य शकितयों के माध्यम से असत्य,अधर्म, अमानवीयता के खिलाफ अपने मध्य हृदय, सद्विवेक,चित्त,चेतना जागृति के माध्यम से निरंतर संघर्ष करने का।

सचेत करना चाहते हैं हम उन समस्त लोगों को,जो लोग अधर्मियों,आताताइयों,पापीयों,नराधमों, नरपिशाचों इन नरासुरों का अज्ञानतावश साथ दे रहे हैं,अनेको प्रकार के नरक जीते जी मृत्यु के उपरांत भोगने होंगे।

"श्री महादेव" ने अपनी "अर्धांगिनी" यानि "माँ आदि शक्ति" की इच्छा से इस सृष्टि के निर्माण में सहयोग किया है और "वे" किसी भी हालत में अपनी 'सर्वोत्तम कृति' यानि निर्दोष,अच्छे भोले भाले मानवों के साथ अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

जो भी मानवता, प्रकृति "परमात्मा" विरोधी कार्य करेगा,उसको इस कदर सजा मिलेगी कि रूह भी कांप जाय, हम "श्री माँ" के द्वारा प्रदत्त कर्तव्य से बंध कर आप सभी को आगाह कर रहे हैं,आगे आप ही जानिए।

"या देवी सर्वभूतेषु 'शक्ति' रूपेण संस्थिता,

नमस्तस्ये, नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नमः"

"या देवी सर्वभूतेषु 'शांति' रूपेण संस्थिता,

नमस्तस्ये, नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नमः"

"या देवी सर्वभूतेषु 'आनंद' रूपेण संस्थिता,

नमस्तस्ये, नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नमः"


--------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


10-04-2021