Tuesday, April 24, 2018

"Impulses"--441--"People Around Us"


"People Around Us"

 “We usually get the people whom "God" wants to keep around us as per our own Karmic Dues of our Previous Life Cycles.

If they are Against us,

Create so many problems for us,

Have jealousy with us,

Always want to let us down,

Always want to humiliate us.

As per my awareness these types of people are very good teachers for us.

Who is teaching us how we can live and survive in the worst and most adverse situations.

On the contrary if they are very Good people,

They love us from their Heart,

They take care for us,

They never wants tear in our eyes,

They always see us peaceful, happy and prosperous,

They always try to do their best to give a humble shoulder to our every problems.

Then they are there to Encourage us to Encounter as well as Fight against all kinds of Odds.”

--------------------------------------------Narayan
.

"Jai Shree Mata Ji"

Friday, April 20, 2018

"Impulses"--440--"अच्छे दिन-??????????"(April 8 at 2018)

"अच्छे दिन-??????????"                                    
1.इमरजेंसी रूपी पूर्णतया विफल नोटबन्दी के बाद से हमारे देश में अत्याधिक बेरोजगारी बढ़ी। साथ ही नए व बेकार नोटों की छपाई के एवज में देश का हजारो करोड़ रुपया व्यर्थ गया।

2.विदेशी बैंकों में जमा कालेधन धन को देश में वापस लाकर 15-15 लाख रुपये गरीबों के बैंक अकाउंट में जमा कराने वाले वायदे को चुनावी जुमला करार दे दिया गया।

साथ ही अपने ही देश के समस्त उद्यमियो, व्यापारियों, व्यवसाइयों को वर्तमान सरकार के द्वारा चोर डिक्लेयर कर दिया गया जिनसे प्राप्त होने वाले टैक्स पर समूचा राजतंत्र व उनका मंत्रिमंडल मौज कर रहा हैं। जबकि बड़े बड़े नेताओं के बैंक खातों व सम्पत्ति की कोई जांच होने का कोई नियम नहीं बनाया गया।

3. नोट बंदी के दौरान 250000/- तक बैंक में कैश जमा कराने की छूट के वादे से मुकर कर इसे बाद में 200000/-कर दिया और इस रकम से ऊपर जमा कराने की सूचना इनकम टैक्स रिटर्न में आवश्यक कर दी। ताकि घूसखोर इनकम टैक्स अधिकारी जांच के नाम पर आम जनता का रहा सहा खून भी चूस सकें।

पहले जांच में 'सही रिटर्न' को सही साबित कराने के लिए थोड़ा बहुत सुविधा शुल्क लगता था किन्तु अब उसकी कीमत विभाग द्वारा सख्ती के नाम पर चार गुना कर दी गई है।

4.वैसे तो नोटबन्दी के दौरान डिजिटलाइजेशन का खूब ढिंढोरा पीटा गया और आम आदमी से एक एक पैसे का हिसाब देने के सख्त नियम बना दिये गए।

वहीं दूसरी ओर उत्तरप्रदेश के विधान सभा चुनाव व गुजरात के निकाय चुनावों में होने वाली चुनावी रैलियों के भारी भरकम खर्चों (कैश)का हिसाब जनता के सामने नहीं लाया गया।

5.GST के अनाप शनाप टैक्स व त्रुटिपूर्ण GST पोर्टल ने सूक्ष्म व लघु उद्दोगों की कमर ही तोड़ कर रख दी है।

6.काम की कमी के वाबजूद कच्चे माल व डीजल की बढ़ती हुई कीमतों ने अनेको उद्यमों को बंदी के कगार पर ला कर खडा कर दिया है और अनेको छोटे छोटे उद्योग बन्द भी हो चुके हैं।

7.राम मंदिर का तुरंत हल निकाल कर उसे बनवाने व जम्मू कश्मीर में सत्ता सम्हालते ही धारा 370 हटाने के वादे भी बेचारे सत्तालोलुपता में दफन हो चुके हैं।

8.उन चुनावी वादो को पूरा करने की बातें भुलाने के लिए और भी नए नए अव्यवहारिक मुद्दे देश की जनता का ध्यान बटाने के लिए उठा दिए गए।

9.अभी चंद रोज पहले तथाकथित इस ईमानदार सरकार द्वारा विदेशों से मिलने वाले चंदे के बारे कभी भी जांच न हो सकने के एक तरफा विधेयक को लोकसभा में बिना किसी चर्चा के गुपचुप तरीके से पास कराकर हमारे देश के संविधान की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कुठारा घात किया गया है ।

देश के सच्चे हित चिंतकों को शंका है कि भगोड़े 'चहेतों' के द्वारा बैंक घोटालों में हड़पे गए जनता के हजारों करोड़ रुपयों में से बड़ी बड़ी रकमो को NRI वर्ग से पार्टी फंड के नाम पर चुपचाप ले कर ऐसे अपराधियों को बड़ी चालाकी से बचा लिया जाएगा अथवा उनके खिलाफ थोड़ी बहुत कार्यवाही जनता को दिखा कर सन्तुष्ट कर दिया जाएगा।

यदि आम आदमी को अपना घर बनवाना हो तो जितना उसे लोन मिलना है उससे कई गुना कीमत की जमीन के कागजात बैंक में गिरवी रख कर व दो प्रतिष्ठित लोगों की गारंटी लेने के बाद ही बैंक लोन देता है।

तो हजारों करोड़ के लोन बिना किसी चीज के गिरवी रखे ऐसे फ्राडइयों  को बैंक किनके कहने पर दे देता हैं ? ये बात विचारणीय है।

10. इस विधेयक के पास होने के तीन चार दिन बाद ही वर्तमान सरकार ने दागी व आपराधिक रिकार्ड के नेताओं को पदच्युत करने के सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी किये गए दिशानिर्देशों के खिलाफ जाकर सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल न देने के लिए दवाब भी बनाया था।

11.और अभी ताजा ताजा हमारे देश से सबसे ज्यादा अहितकारी SC/ST Act के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 20 मार्च 2018 को दिए गए फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर फैंसला वापस लेने के लिए दंगे वाले दिन दवाब बनाया गया।ताकि दलित सनगंठनो के वोट आगामी चुनावों में मिल सकें।

इसका मतलब तो ये हुआ जिस वर्ग की जो भी नाजायज/जायज मांग होगी वो सड़कों पर उतर कर आम जनता को मारेगा, लूटपाट करेगा, आगजनी करेगा और सरकारें वोट लेने के लिए उनको और बढ़ावा देंगी। आश्चर्य की बात ये है कि ये दंगे उन राज्यों में ही हुए जिनमें केंद्र सरकार की पार्टी का ही राज है।

जिस प्रकार से धरना प्रदर्शन की आड़ में किराए के गुंडों के द्वारा हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़, लूटपाट, मारपीट, हत्या व महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ है यंहा तक कि एक साल की छोटी सी बच्ची को भी डंडा मार कर मार दिया गया।

साथ ही "श्री हनुमान जी" की फोटो पर थुकवा कर जूते मार कर लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़का कर दंगे करवाने के लिए उकसाया गया।

इन घटनाओं से साफ जाहिर होता है कि 2019 के चुनाव जीतने के लिए राजनैतिक पार्टियां कितना भी गिर सकती हैं।सारे समाज को घृणा के माध्यम से छिन्न भिन्न कर राज करने के स्वप्न देख रही हैं।

प्रत्यक्ष में तो इन घटनाओं को गुंडों और मवालियों के द्वारा दलितों का रंग रूप देकर कर करवाया गया ताकि सारा का सारा दोष संगठित दलित वर्गों पर मढ़ा जा सके जिससे साधारण लोग दलितों से घृणा करें और दलितों को समाज के अन्य वर्गों का सहयोग न मिल पाए।

और अब ये सब नीच कार्य कराने वाले लोग एक दूसरे पर शक पैदा करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।और सभी राजनैतिक पार्टियां दलित वर्ग की हितैषी बन गई हैं।

ये नागरिक मान ही नहीं सकता कि दलित लोग सनातनी धर्म के देवी देवताओं का अपमान कर सकते हैं। सम्पूर्ण दलित वर्ग प्राचीनतम सनातन धर्म से ही ताल्लुक रखते है, यहां तक कि इस्लाम धर्म भी सनातन धर्म से ही उदय हुआ है।

क्योंकि मक्का में "श्री शिव" के अन्य रूप "श्री मक्केश्वर" एक विशाल शिवलिंग के रूप में उपस्थित हैं बाद में इस शिवलिंग के चारो ओर दीवारे बना कर उसे ढक दिया गया।

और अब हज पर जाने वाले लोग इस पवित्र शिवलिंग के सात चक्कर लगा कर अपने गुनाहों से तौबा करते हैं। भारतीय समाज व इसकी संस्कृति व सभ्यता को नष्ट कर हमारे देश के समाजिक रूप से कई टुकड़े करके इस देश पर तानाशाही पूर्ण राज करने का स्वप्न देखा जा रहा है।

12. पिछले 4 सालों से हमारा देश घटिया राजनीति से प्रेरित अनेको प्रकार के जातिगत, धार्मिक, आर्थिक त्रासदियों से जल रहा है।

जिधर भी नजर दौड़ाओ देश के कोने कोने में जहां तहां दंगे ही दंगे हो रहे हैं।जिनके कारण हमारे देश के लोगों के बीच आपस में धृणा व वैमनस्य फैलता ही जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर के हालात बेकाबू हुए जा रहे हैं, जितने सैनिक सुरक्षाबलों, पुलिस व सेना के इन चार सालों में शहीद हुए हैं उतने तो पिछले 10-15 सालों में भी नहीं मारे गए।

अब तो प्रतिदिन तीन चार सैनिकों, सुरक्षा कर्मियों व पुलिस के जवानों के शहीद होने की सूचनाएं आती ही रहती हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे कोई मनहूस साये ने हमारे देश के सौहार्द पूर्ण व शांत वातावरण को निगल लिया है।चारों ओर एक हड़कंप मचा हुआ है हर कोई हर रूप में असुरक्षित महसूस कर रहा है।

उत्तरप्रदेश के चुनाव के समय तो ये बड़े जोर शोर से मीडिया के जरिये प्रचलित कराया गया व सनातनी धर्म के लोगों में डर बैठाया गया कि वोट हमको दे दो वरना मुसलमान सारे हिंदुओं को मार कर राज करेंगे।

देश के हित चिंतक व शुभचिंतक नागरिकों, जरा थोड़ी देर विवेकशीलता से चिंतन करके बताएं कि पिछले 70 सालों में इस देश पर शासन करने वाली सरकारों के कार्यकाल में क्या वास्तव में मुसलमानों ने इस राष्ट्र के अधिकतर सनातन धर्म के अनुयायियों को मार डाला या जबरन मुसलमान बना दिया ?

न जाने सनातन धर्म के अनुयायियों को कब और किसने 'हिन्दू' बना दिया।

हिन्दू तो समस्त भारत के नागरिक हैं क्योंकि हमारा देश अन्य देशों के द्वारा प्राचीन काल से ही हिंदुकुश की पहाड़ियों के नाम पर हिन्दप्रदेश के नाम से जाना गया जो बाद में मुगल बादशाहों के द्वारा हिंदुस्तान के नाम से प्रचलित हुआ।जिस हिन्दुतान के भाग बांग्लादेश, बर्मा, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान आदि हुआ करते थे।

इस नाम का सम्बंद किसी भी धर्म से नहीं है बल्कि ये तो इसका भौगोलिक नाम है।इस आधार पर तो इस देश में रहने वाले हर धर्म के सभी लोग हिन्दू हुआ करते थे।

तो इसका मतलब ये हुआ कि क्या हिन्दू ही हिंदुओं को मारेंगे, क्योंकि यहां रहने वाले मुसलमान भी हिन्दू ही कहलायेंगे।तो फिर कौनसे मुसलमान हिंदुओं को मार डालेंगे।

इस बात का एक सीधा सा मतलब ये है जो मुसलमान इस प्राचीन हिंदुस्तान का हिस्सा नहीं थे, यानी अफगानिस्तान से आये थे केवल वही अपने को सच्चा व श्रेष्ठ मुसलमान मानते हैं केवल वही हिंदुओं यानि इस मुल्क में रहने वाले समस्त लोगो लूटने व मारकर राज करने का ख्वाब देखते थे।

इसका मतलब ये भी हुआ कि वो लोग कभी भी इस देश में रहने वाले मुसलमानों को भी नहीं बख्शेंगे।तो ये बात सभी को ठीक प्रकार से समझनी होगी तभी इस देश में सुकून आएगा।

जैसे 800 साल पहले चंगेज खान, मोहम्मद गजनी आदि ने इस देश पर आक्रमण किया व लूट पाट की और इस देश के नागरिकों को हिंसा के जोर पर जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने को मजबूर किया।

ये कार्य औरंजेब के कार्यकाल तक लगातार चलता रहा।इससे ये साबित होता है कि भारतवर्ष में जो मुस्लिम हैं वो सभी सनातन धर्म के अपनाने वाले ही थे जो जबरन मुस्लिम बना दिये गए थे।

क्योंकि सनातम धर्म से पहले कोई धर्म था ही नहीं और बाद में अलग अलग समय पर ऊंचे दर्जे की चेतनाओं के द्वारा काल व क्षेत्र के अनुसार 'ईश्वर' को प्राप्त करने के लिए अनेको मार्गो को जोड़ा गया।

किन्ही लोभी व सत्ता के भूखे लोगों के द्वारा हमारे भारतवर्ष में जातपांत, धर्म, बिरादरी, ऊँचनीच, छुआछूत की बीमारी फैलाकर इस देश की एकता व सम्प्रभुता को छिन्न भिन्न कर दिया गया और हमारा देश टुकड़े, टुकड़े होकर बिखरता ही गया।

और ये सिलसिला आज भी उन्ही सत्तालोलुपों व लालची लोगों के द्वारा अपनाया जा रहा है और देश की जनता के साथ बहुत ही भयानक खिलवाड़ किया जा रहा है।

न जाने किस दूषित व संकीर्ण मानसिकता के लोभी व धूर्त लोगों ने सनातन धर्म को मानने वाले लोगों को तथाकथित 'हिन्दू' बना छोड़ दिया और हिन्दू-मुसलमानों के बीच झगड़ा पैदा करा दिया। चुनाव के समय देश के नागरिकों के बीच इस प्रकार की अनर्गल बातें करके नादान लोगों को दिग्भ्रमित किया जाता रहता है।

अब हिन्दू-मुसलमान के साथ साथ दलितों-सवर्णों, लिंगायतों-ब्राह्मणों, अमीरों-गरीबों, गुर्जर-जाटों, न जाने कितने नामों, धर्मो जातियों के आधार पर सैंकड़ो मुद्दे वोट पाने के लिए राजनैतिक दलों के द्वारा जनता के बीच उछाले जाते रहते और जनता के बीच फुट डालने के लिए आपस में लड़वाया जाता रहता है।

जिनसे आम जनता के बीच डर का माहौल पैदा किया जा सके और फिर 2019 में हिंदुओं का भला, मुसलमानों के साथ न्याय व दलितों पर अत्याचार रोकने के नाम पर फिर वोट बटोर कर फिर से राज किया जा सके।

यूं तो दंगे कराकर वोटों का लाभ लेने का प्रचलन बहुत पुराना है किंतु बात ये है कि 'तथाकथित ईमानदारी, देशभक्ति' व सामूहिक विकास का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार से इन सब दूषित बातों की अपेक्षा नहीं की गई थी।

पुरानी सरकारों को रातदिन कोसना और कहना कि 70 साल में देश का विकास नहीं हुआ है।क्या पिछले 4 सालों में कोई भी उल्लेखनीय विकास हो पाया है।

अरे हमतो भूल ही गए विकास का एजेंडा तो 2024 के लिए ही सुनिश्चित किया गया है। अभी तो देश व देश के लोगों की हर प्रकार से बर्बादी के एजेंडे पर रातदिन काम चल रहा है:

पहला एजेंडा:- देश के आम लोगों के पैसे विभिन्न प्रकार के अनाप शनाप टैक्स व नियमों के आधार पर लूट कर उन्हें पूरी तरह से आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया जाएं।

दूसरा एजेंडा:-देश के लोगों के बीच धर्म व जाती के नाम पर हिंसा व झगड़ों के द्वारा इस कदर आपसी घृणा व वैमनस्य इतना बढ़ा दिया जाय कि लोग आपस में बात करने से भी कतराने लगे।

ताकि हर रूप में इस देश की जनता इतनी कमजोर व निराश हो जाये कि किसी भी प्रकार की आशा की किरण लोगों के दिलों में शेष न रह जाये।ऐसे में राज करना अत्यंत सुगम हो जाता है।

तीसरा एजेंडा:-छोटे छोटे सूक्ष्म, कॉटेज व लघु उद्योगों को पूरी तरह मिटा दिया जाए जो वास्तव में केवल और केवल अपने रिस्क पर देश को आत्मनिर्भर बनाये रखने में रातदिन अपनी भूमिका ईमानदारी से अदा कर रहे हैं।

कुछ स्वार्थी राजनयिक चाहते हैं कि केवल 'अपने चहेते' बहुत बड़े बड़े व्यापारी ही विभिन्न प्रकार के बहुत बड़े उद्योग चला सकें। और 'पार्टी फंड', रूपी गहरे कुओं को रातदिन भरते रहें और इन कुओं से सरकार के समस्त नेता पानी भरते रहें।

और बेचारे किस्मत के मारे, सरकारी लूट से पीड़ित छोटे छोटे व्यपारी व उनकी संताने या तो सरकार की गुलामी करें या इन बहुत बड़े 'धनकुबेरों' के घर भरने में रात दिन एक करदें।

यदि ये भी काम करने योग्य न हों तो फिर अपना व अपने परिवार का पेट भरने के लिए पकोड़े का ठेला या पंचर लगाने का खोखा ही लगा पाएं।

चौथा एजेंडा:-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों व तथाकथित निम्न जाति के लोगों के स्वाभिमान को नष्ट करने के लिए विभिन्न प्रकार के आरक्षणों को बढ़ावा देते हए मुफ्तखोरी की आदत डाली जाय ताकि वो लोग निकम्मे बनकर सरकार को जिताने के लिए वोट बैंक के रूप में सदा बनें रहे और कभी भी वास्तविक रूप से तरक्की न कर पाएं।

ताकि अपने मुल्क की ऐसी निकृष्टतम स्थिति में पूरे देश पर तानाशाही करना और भी आसान हो जाए।

हमारे देश में सब से कम प्रतिशत हमारे सिख नागरिकों का है फिर भी आज तक हमने किसी सिख को मुफ्त में कोई चीज लेते नहीं देखा और न ही कभी भीख मांगते देखा है। इन्होंने कभी भी अपने लिए किसी भी प्रकार के कोटे व आरक्षण की मांग भी नहीं की।

यदि स्वाभिमान, प्रेम, श्रद्धा, देशप्रेम व सेवा भाव में जीना सीखना हो तो हमारे अपने सिख समुदाय के लोगों से सीखना चाहिए।

विश्व के सभी गुरुद्वारों में हर धर्म के लोगों के लिए बिना किसी भेदभाव व ऊँचनीच के आश्रय व भोजन उपलब्ध है। कुछ दिनों से सिख मत के युवा सीरिया में बम्बार्डमैन्ट में घायल लोगों के भोजन व इलाज के लिए सक्रिय है।

अभी भी नोटबन्दी के दौरान व कुछ ही दिन पूर्व होने वाली आरक्षण से सम्बंधित हिंसा के कारण जगह जगह फंसे हुए लोगों के भोजन पानी का प्रबंध करते दिखाई दिए।

जबकि वास्तव में जहां तक मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, सन 1990 से 2014 तक हमारे देश में हजारों किस्म के नए नए उद्योग लगातार लगते चले गए और हमारे देश में 1990 के बाद से बड़ी तेजी से रोजगार के साथ साथ आम आदमियों के साथ साथ व आर्थिक रूप से निम्न तबकों भी में सम्पन्नता बढ़ती गई।

लेकिन अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा है कि पिछले 2 वर्षों से हम वास्तविक रूप में कंगाली ओर ही अग्रसर होने लग रहे हैं।पिछले 29 साल से जीवन चलाने के लिए सीधे सच्चे ईमानदारी पूर्ण कार्य करते हुए कमरतोड़ मेहनत करने के बाद निरंतर बढ़ती हुई आयु के इस दौर में जबकि इतनी काम करने की क्षमता शेष नहीं रह गई है।

वर्तमान सरकार के अविवेकशील व अदूरदर्शी निर्णयो के कारण हमारे देश में उद्योंगो के लिए काम निकलना बेहद कम हो गया है।

जिससे इस देश की सामूहिक आर्थिक स्थिति पूर्णतया खराब होने के परिणाम स्वरूप अपनी व अपने परिवार की आजीविका चलाना अत्यंत कठिन प्रतीत हो रहा है।

2014 से पहले "वो" कहते थे कि पूर्व सरकारों ने अनेको घोटाले किये सबको जेल में भेज दिया जाएगा।और देश को तीव्र विकास के मार्ग पर ले जाया जाएगा। किन्तु हम तो इंतजार ही करते रह गए पिछले 4 सालों से कि कब वो घोटालों के राज फाश होंगे।

इस कारण से सारे देश के लोगों ने 'उनके' द्वारा किये गए वादों और दिखाए गए तथाकथित अच्छे दिनों के स्वप्नों के कारण 'उनको' वोट देकर जिताया था क्या इन्ही दुःखद दिनों के लिए।

कांगेस मुक्त भारत के नारे को प्रचलित कर वोट हांसिल किये गए और अब कांग्रेसियों को जेल में डालना तो दूर बल्कि उन 'उनके' अनुसार इन तथाकथित 'बेईमानो' व भ्रष्टाचारियों से राजनीति के नाम पर सांठ-गाठ करके अपने में ही मिलाया जा रहा है।

हाँ एक दो चुनिदा 'महारथियों' को जेल तो भेजा गया जिन्होंने 'इनके' साथ मेल करने से मना कर दिया। क्या पिछली तथाकथित बेईमान सरकार के कारिंदे अपने में मिलाने से ईमानदार हो जाएंगे ?

अथवा 'प्रधान सेवक जी' के नेतृत्व में चलने वाली पार्टी अप्रत्यक्ष रूप में 'कांग्रेस नम्बर 2' के नाम से पहचान बनाएगी ?
क्या तथाकथित 'ईमानदार' सरकार की ये गतिविधियां अनेको शंकाओं को जन्म नहीं दे रही हैं ?

क्या उन 'तथाकथित चोरों' से अपने में शामिल करके उनको जिम्मेदारी के पदों पर बैठाकर ईमानदारी का पालन कराते हुए देश सेवा ली जा सकती है ?  यदि 'वे'' अत्याधिक ईमानदार हैं और आम जनता को भी ईमानदारी का पालन करने के लिए कहते हैं।

तो पिछले कई सालों से बदनाम' भ्रष्टाचारियों को अपने ईमानदार परिवार में किस उद्देश्य से आपके एक 'विधायक तोड़ो' 'स्पेशलिस्ट' के द्वारा 'उनकी' ही की इच्छा से जोड़ा जा रहा है व लगातार आपकी पार्टी में मिलाया जा रहा है ?

'उनके' द्वारा आरोपित वो बरसो पुराने तथाकथित 'चोर' व भ्रष्टाचारी क्या 'उनसे' मिलते ही सोने के हो गए ? अथवा सन्त बन गए ? मानो 'वो' तो 'पारस' हो गए, जिसे भी गले लगाएंगे या हाथ छुआ देंगे वो सोने का बन जायेगा ?

क्षमा कीजियेगा, कहने को तो 'वे'' अत्यंत 'गरीबी' से आये हैं जिनका पूरा विवरण व इतिहास बिकाऊ मीडिया के द्वारा बड़े ही मर्मस्पर्शी रूप में दिखया गया है कि पेट भरने के लिए अत्यंत छोटे छोटे कार्य करने पड़े।

अरे साहब हमने भी शिद्दत के साथ आर्थिक गरीबी जन्म से ही जी है। 48-48 घंटे व 72-72 घंटे वाली अथक शारीरिक श्रम की सैकड़ो शिफटें बिना सोए की हैं।

खून-पसीना निकालने वाली बरसों तक मेहनत की है। किन्तु कभी भी किसी से किसी भी प्रकार की अपेक्षा अथवा याचना नहीं की और न ही कभी अपनी गरीबी का किसी के सामने रोना ही रोया है।

किंतु आजतक भी हम हमारे द्वारा अपनाई गई ईमानदारी व मेहनत के बल पर राजसिक ठाठ बाट का आनंद नहीं ले पाए।
बल्कि 29 साल श्रम करने के बाद भी हमारा भविष्य आर्थिक रूप से संकट में ही नजर आता है।

किंतु इतने बड़े गरीबों के 'हमदर्द' होने के बाद भी 'उनके' सारे शौक तो अत्यंत ठाठ-बाट वाले हैं जिनमें सादगी व त्याग तो दम तोड़ते ही दिखाई देते हैं।और उनका ड्रेस सेंस तो बड़ी बड़ी सेलिब्रेटिज को भी मात देता है।

क्या भारत सरकार 'उनको' इतनी तनख्वाह देती है कि इतने महंगे महंगे वस्त्रों में उनका व्यक्तित्व सुशोभित हो सके। यहां तक कि उनका सनग्लास भी डेढ़ दो लाख से कम का नहीं होगा।

अरे ऐसा बैभवशाली जीवन तो हमारी दलितों की सच्ची हितैषी व हमदर्द 'दीदी' भी नहीं जी पाईं जिन्होंने अपने जीते जी ही अपनी अनेको मूर्तियां बनवा कर अमरत्व को पा लिया।

ऊपर से नीचे तक उनके वस्त्रों व आभूषणों का आंकलन किया जाय तो उनकी कीमत लाखों में बैठती है। पर 'इनके' व्यक्तित्व, रहन सहन का खर्चा को देख कर तो अरब के शेख भी पानी पानी हो जाएं।

अमेरिकन राष्ट्रपति भी हींन भावना से ग्रसित होकर बगलें झांकने लगें।साहब क्या कहने हैं 'उनकी' अदा व चाल ढाल के।
हमें अभी अभी याद आया तो वो 'दीदी' भी तो 'उनके' मुताबिक भ्रष्टाचार में लिप्त पाई गईं है।उनके' अनुसार उन्होंने भी तो अपने प्रदेश को जी भर के लूटा है।

किन्तु 'ये सच्चे सेवक' तो ईमानदारी,गरीबी और देशभक्ति की जीवंत मिसाल हैं तो फिर 'इनकी' ये रईसी किस प्रकार से प्रगट हो रही है।

अच्छा अच्छा, समझ आया 'इनके' सम्बन्ध तो 'इनके' 'चहेते', देश के बहुत बड़े बड़े कुछ व्यापारियों से बहुत अच्छे है, जरूर ये सारी शानोशौकत उनसे गिफ्ट के रूप में मिलती रहती ही होगी।

क्योंकि बहुत बड़े बड़े कामो के ठेके तो केवल और केवल 'इनके' नजदीकियों को ही मिलते हैं चाहे वो उन कार्यों को करने का अनुभव व योग्यता न भी रखते हों।

क्योंकि देश के बहुत बड़े बड़े उद्यमियों को भी वो कार्य न मिल पाए जिन कार्यों के वो एक्सपर्ट थे। किन्तु 'इनकी' दरिया दिली के कारण बिना किसी तजुर्बे के किन्ही बहुत बड़े व्यापारी भी तर गए।धन्य हैं 'इनकी' ईमानदारी व देश के प्रति निष्ठा व प्रेम।

यदि किसी के सादगी पूर्ण रहन-सहन की बात की जाय तो पूर्व प्रधान मंत्री 'लाल बहादुर शास्त्री जी' और निवर्तमान राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम का कोई सानी नहीं है।

और सबसे बड़े उदाहरण तो सादगी व त्याग से 'महात्मा गांधी' ही हैं जिन्होंने अपने देश के हालात देश की गरीब जनता को सांत्वना देने व उनका हौंसला बढ़ाने के लिए जाड़ा, गर्मी बरसात व शीत ऋतु में अपना तन तक नहीं ढका, भूखे भी रहे, देश की गुलामी को दूर करने के लिए हजारों तकलीफे भी सहीं।

हाँ याद आया, 'इन्होंने' भी बहुत भावुक होकर बताया था कि देश सेवा के लिए 'इन्होंने' अपना घर बार,अपनी माता, अपनी पत्नी, अपने भाई-बहनों को छोड़ दिया था।

वाकई में गांधी जी 'इनसे' बड़े त्यागी नहीं थे क्योंकि उन्होंने अपने किसी भी परिजन को नहीं त्यागा था, बल्कि बाद में तो उनकी धर्मपत्नी "बा" भी स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गईं थीं। गांधी जी ने तो अपने देश के लोगों के लिए' जो कुछ भी उनके पास था कुर्बान कर दिया था।

और 'इन्होंने' देश के तथाकथित विकास के नाम पर केवल और केवल अपनी अनुचित व अनियंत्रित मेहत्वाकांशाओं को पूर्ण करने के लिए हर भारतीय से चाहे व गरीब हो या अमीर हर स्तर पर विभिन्न नियमो व कानूनों के नाम पर जिबह होने वाले बकरों की तरह बलात-कुर्बानी कराई जा रही हैं।

'इनकी' भाषा शैली व अंदाजे बया तो ऐसा है कि सुनने वाले हमारे देशवासी सोच सोच कर पानी पानी हो कर शर्म से धरती में ही गढ़ जाए कि हमारे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन शख्सियत को तो उस सर्वोच्च पद की गरिमा का खयाल तक नहीं है।

शायद अल्प आयु में देश सेवा के जज्बे के कारण जल्दी परिवार व पारिवारिक माहौल छोड़ देने की वजह से 'उनके' भीतर सुसंस्कार पड़ ही नहीं पाए जो इंसान को निखारते है।

कहते हैं सबसे प्रथम गुरु इंसान के माता पिता ही होते हैं जिनकी छत्र छाया में बालक सुसंकृत होता है व प्रेम, करुणा व सही कर्म का पाठ सीखता है।

मतलब सर्वोच्च पद पर आसीन होकर नोटबंदी के 5-6 दिन बाद 'ये' देश के श्रमिक वर्ग को खुले आम बेईमान बनने की प्रेरणा दे रहे है।

20-20 साल पुराने कामगारों से उनके मालिको के द्वारा उनके बैंकों में जमा कराए गए पैसों को हड़पने की सीख दे रहें हैं, क्या इस उच्चतम पद पर आसीन व्यक्ति को ये व्यवहार व वक्तव्य शोभा देते हैं ?

यकायक 'उनके' द्वारा लिए गए अविवेकशील व बचकाना नोटबन्दी के निर्णय के कारण हमारे देश के हर वर्ग, जाती व धर्म की करोड़ों माताओं, बहनों, भाइयो, बूढ़े, युवाओं यहां तक कि कुछ किन्नरों ने भी इनको आत्मा से कोसा है व जी भर भर कर गालियां दी हैं।

शायद 'ये साहेब' दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति होंगे जिसको इतनी गालियां व बद्दुआएं एक साथ मिली होंगी। किन्तु फिर भी 'इनको' लगता है कि 'ये' ही देश का सबसे अच्छा विकास कर रहे हैं व सबका भला कर रहे हैं।

ये नागरिक सत्य कहने के लिए किसी का न तो मोहताज है और न ही किसी से भयभीत ही है। हो सकता है इस नागरिक की इन सच्ची बातों के लिए कुछ लोग नाराज हो जाएं या झगड़ा शुरू कर दें।

या स्वम् इस 'राजतंत्र' के पिट्ठू कुछ हानि पहुंचाने का प्रयास करें क्योंकि पिछले 4 सालों से या तो मीडिया खरीद लिया गया है या फिर मीडिया को धमका दिया गया है।

यदि शांत भाव से अपने देश के हित व सर्वांगीण विकास के लिए गम्भीर चिंतन करें तो पाएंगे कि वास्तव में हमारे मुल्क के संतुलित विकास लिए बहु दल सरकार ही उचित है।

इतिहास गवाह है कि जिस किसी दल को भी एक छत्र राज करने का अवसर मिला उस दल ने हमारे देश के लोगों का अमन चैन चीन कर उन्हें केवल और केवल उत्पीड़ित ही किया है।

यदि हम सभी देश के नागरिक इस देश में सुकून से रहना चाहते हैं तो हम सभी नागरिकों को चाहिए कि चुनावों के अवसर पर अपने घर के सदस्यों के द्वारा सभी दलों को वोट दिलवाएं और मिलीजुली सरकार बनाने में मदद करें। ताकि कोई भी दल हमारे जीवन व स्वतंत्रता पर अपना अधिकार जमा कर हमें पीड़ित न कर सके।

ये चेतना "परमात्मा" के द्वारा बनाये इस सम्पूर्ण विश्व व अपने देश के सभी अच्छे, भोले भाले व सीधे साधे लोगों से अत्यंत प्रेम व स्नेह रखती है। अतः सम्पूर्ण विश्व में शांति, अमन-चैन बनाये रखने के लिए "प्रभु" से प्रतिदिन प्रार्थना भी करती है।

साथ ही इस जगत की सामूहिक शांति, सौहार्द व खुशहाली के लिए इस शरीर के मृत होने के बाद भी ये चेतना सदा सक्रिय रहेगी और मानवता, प्रकृति, व "परमात्मा" की खिलाफत करने वालों से निरंतर संघर्षरत रहेगी।

आज ये चेतना "परमपिता" की अनुकंम्पा से अपने स्तर पर सम्पूर्ण विश्व के लिए यही सहयोग करने के लिए कटिबद्ध है।
और यदि "परमेश्वरी" इस चेतना से कुछ और भी कराना चाहें तो ये "उनकी" मर्जी है।

ये नागरिक किसी भी विशेष राजनैतिक पार्टी, धर्म, जातिवाद, पंथ, साम्प्रदाय, समुदाय व विचारधारा की अनुयायी व पक्षधर नहीं है।

बल्कि ये तो केवल और केवल सत्य व मानवता का ही अनुसरण करता है और आपसी सौहार्द व प्रेम में ही विश्वास करता है।
इस चेतना के इन उद्भावों का एक मात्र कारण अपने देश के लोगो की दुर्दशा व पीड़ा ही है एवम ये चिंतन किसी भी प्रकार की राजनैतिक प्रतिद्वंदता व विद्वेष से प्रेरित नहीं है।

न ही ये चेतना किसी भी व्यक्ति विशेष से किसी भी कारण से घृणा, ईर्ष्या व शत्रुता ही रखती है। किन्तु ये चेतना उन बुराइयों व शैतानियत की कट्टर शत्रु है जिसने मानवों के सर चढ़कर इस विश्व के व देश के वातावरण को दूषित कर दिया है।

इस चेतना का उद्देध्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है बल्कि केवल और केवल अपनी समझ व अपनी अंतर्चेतना के मुताबिक सत्य को आप सभी के समक्ष रखना ही है।

क्या पता मानवता की रक्षा के लिए इस चेतना के द्वारा सच्चे हृदय द्वारा "प्रभु" से की गई करुण पुकार से "परमात्मा" 'इनका' व इन जैसे अनेको लोगों का हृदय सकारात्मक रूप में परिवर्तित कर दें और हमारे सम्पूर्ण देश के नागरिकों के साथ साथ इनको भी पीड़ित होने से बचा लें।

अन्यथा "माता प्रकृति" व 'ईश्वरीय' शक्तियों के द्वारा दी जाने वाली भयानक सजा के लिए ऐसे नकारात्मक लोगों को तैयार हो जाना चाहिए।

अब सजा का कार्य प्रारंभ हो चुका है, 'इनके मुख्य' खजांची', विदेश मंत्री, पूर्व दोनो किडनियां साथ छोड़ ही चुकी हैं।साथ ही 'इनकी' गलत नीतियों में सहयोग देने वाले पूर्व रक्षा मंत्री तो मृत्यु शय्या पर काफी अर्से से झूल ही रहे हैं।

उन्होंने अपनी मृत्यु को दिन प्रतिदिन नजदीक आने का अनुभव करने के उपरांत एक मार्मिक चिंतन सभी सत्ता की 'बेहोशी' में डूबे लोगों को आगाह करने के लिए प्रेषित किया है।

अब देखना ये कि अगला नम्बर किसका आने वाला है।सोच लीजिए ये आखरी अवसर है "परमात्मा" व 'माता प्रकृति' की ओर से।

एक देश का अच्छा नागरिक होने के नाते हमने ये राज की बात ',इनसे' व अन्य आप सभी के समक्ष रख दी है हमारी किसी से भी कोई किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत शत्रुता व घृणा की नहीं है।

हम जैसे सरल व साधारण मानव तो सभी के शुभचिंतक व हित चिंतक है व 'इनसे' भी इसी मानवता के नाते हृदय से प्रेमभाव रखते हैं।

अन्त में एक बात पुनः दोहराना चाहेंगे कि ये बात 'इनको' याद रखनी चाहिए कि इस देश के सभी वर्गों, धर्मो, सम्प्रदाय के लोगों ने इस देश में एक अच्छे परिवर्तन की चाह में ही 'इनको' चुनावों में जितवाया था।

किन्तु 'इनकी' अति महत्वाकांशी नीतियों व तानाशाही के चलते इस देश लोगों के वर्तमान व भविष्य के जीवन पर बड़ा भारी संकट आ गया है।

अधिकतर लोग आर्थिक रूप से अत्यंत दुर्बल व शंकित हो गए है जो अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है। और साथ ही यह भी बताना चाहेंगे कि 'इनकी' अवांछित राजनैतिक गतिविधियों ने 'इनकी' पार्टी की प्रतिष्ठा व साख को भी भारी क्षति पहुंचाई है।

जिसका खमियाजा हर कोई वर्तमान में भी भुगत रहा है और भविष्य में भी भुगतेगा। हकीकत यह है कि अच्छे दिन तो अब क्या आएंगे अब तो आम लोगों को अपने परिवार के साथ सड़क पर निकले हुए भी भय लगता है।

कि कहीं कोई गंदी राजनीति से प्रेरित जलूस व प्रदर्शन हिंसक होकर लूटपाट, तोड़ फोड़, आगजनी करते हुए महिलाओं के साथ अभद्रता व रेप जैसा घृणित कुकर्म न करदे।

ये चेतना पूर्ण हृदय से प्रार्थना करती है कि "ईश्वर" 'इन' सभी को सद बुद्धि, शांति, उचितमार्ग दर्शन व सुविवेक प्रदान करें ताकि अज्ञानता से वशीभूत होकर 'ये' व 'इनके' साथी अपना व अन्यों का अहित करके अनेको प्रकार के नरकों के भागी न बनें।"----Narayan 🙏😔


'जय जवान, 

              जय किसान, 

                                 जय उद्यमी महान'

                                                                    "जय हिंद"

Monday, April 16, 2018

"Impulses"--439--"सहजियों की विभिन्न रोग-पीड़ाएँ एवं उनके सरल व सुगम निवारण"

"सहजियों की विभिन्न रोग-पीड़ाएँ एवं उनके सरल सुगम निवारण"


एक परेशानी लगभग 99 % सहजियों के साथ बनी ही रहती है और वो है समय समय पर होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों से संघर्ष करते हुए आंतरिक रूप से निरंतर हतोत्साहित होते रहना।

क्योंकि अधिकतर सहज में आने वाले सहजी, सहज में आने पूर्व पुराने सहजियों से ये सुन चुके होते हैं कि सहज में आने पर सभी प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती हैं और हम सभी अच्छे स्वास्थ्य का निरंतर लाभ उठाते हैं। और सहज से जुड़ने के उपरांत "श्री माँ" के लेक्चर्स को सुन सुन कर पूर्ण आश्वस्त भी हो जाते हैं कि उनको जरूर स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

किन्तु जब स्वयं बीमार हो जाते हैं तो नए लोगों से सहज की बात करने अपने नजदीकी लोगों से मिलने से कतराने लगते हैं क्योंकि वो लोग कहेंगे, 'कि ये कैसा रास्ता अपनाया है जिस पर चलकर आप लोग बीमार ही रहते हो।'

और ये होता भी यही है कि हमारे नजदीकी हमारे सहज-मार्ग की हंसी उड़ाते हैं और कहते भी हैं कि, 'हम क्यों अपनाए इसे, आप लोग तो हमसे भी ज्यादा बीमार रहते हो, आप तो कहते थे कि इसमें आकर हर बीमारी ठीक हो जाती है।'

अतः हम सभी को ये सब सुनकर सोच कर बेहद बुरा भी लगता है और हमारा मन दुखी भी हो जाता है। ये बात तो अक्षुण सत्य है कि जो "श्री माँ" ने अपने वक्तव्यों में बोला है वो 'ब्रह्म वाक्य' है। और ये भी सत्य है कि कुछ सहजी सहज में आने से पूर्व बहुत ही गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे वो ठीक भी हुए हैं।

तो फिर प्रश्न ये उठता है कि आखिर ज्यादातर सहजी सहज में आने के बाद भी विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित क्यों हो जाते हैं या रहते है ?
प्रतिदिन लंबे समय तक ध्यान हर प्रकार का सहज-इलाज/अन्य इलाज कराने के बाद भी वो अपनी गड़ना के मुताबिक आसानी से क्यों कर ठीक नहीं हो पाते ?

मेरी निम्न समझ चेतना के अनुसार इन समस्त प्रश्नों के हल जानने के लिए हमें सर्वप्रथम विभिन्न प्रकार के रोगों को वर्गीकृत करना होगा।  इनके मूल कारणों को गहनता से समझना होगा तभी हम हर प्रकार के रोग के प्रति उचित दृष्टिकोण रखकर उन बीमारियों के प्रति पूर्ण समाधान रखते हुए उन्हें दूर करने के लिए सही प्रयास कर पाएंगे।

यदि कुछ देर चिंतन विश्लेषण करें तो हम इन रोगों के मूल कारणों को निम्न वर्गों में बांट सकते हैं:-

1) खान-पान से सम्बंधित कारण(Food Abuse):-

इस वर्ग के अंदर वो रोग आते हैं जो हमारी अज्ञानता चटोरे पन की आदतों के कारण उत्पन्न होते हैं। यानि किस खाद्य पदार्थ के साथ कौनसा खाद्य पदार्थ खाएं, क्या खाएं, क्या खाएं, किस चीज को कितना खाएं, कौनसा मसाला किस चीज के साथ उपयुक्त है, अनजाने में मिलावटी खाना खा लेना आदि आदि।

गलत सलत खान-पान के परिणाम स्वरूप पेट खराब हो जाना, आंतों, लिवर, यकृत, तिल्ली का ठीक प्रकार से कार्य करना, गैस का निरंतर बनना, कब्ज हो जाना, लूज मोशन लग जाना, उल्टियों का होना आदि।

उल्टा सीधा खाना हमारी पाचन क्रिया को अवरुद्ध कर हमारे और भी अंगों महत्वपूर्ण अंगों को हानि पहुंचता है जिससे और भी रोग लग जाते हैं। इस प्रकार की समस्या को ठीक करने के लिए सर्वप्रथम किसी अच्छे डॉक्टर या वैद्य से कोई भी दवाई लेकर अपना इलाज कराएं उनकी सलाह के मुताबिक आहार लेने की आदत डाली जाए।

अब यदि इन समस्यायों को सहजी सहज ट्रीटमेंट से ठीक करना चाहेगा तो ये निश्चित रूप से ठीक नहीं हो पाएंगी।हां कुछ अल्प काल के थोड़ा बहुत आराम मिल सकेगा किन्तु रोग ठीक नहीं होगा। रोग को ठीक करने के लिए हमें इसकी जड़ यानि शुद्ध, संतुलित उचित आहार लेना होगा।

2) बेवक्त भोजन ग्रहण करने के रोग(Food-Time Abuse):-

आजकल हममे से ज्यादातर लोगों की जीवन शैली अत्यंत अस्त व्यस्त है जिसके कारण हमारे सम्पूर्ण शरीर के अंगों को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक द्रव्यों का निर्माण कर उनको उनकी आवश्यकतानुसार स्त्रावित करने वाला 'मस्तिष्क' ही शरीर को बीमार करने का कारण बन जाता है।

वास्तव में हमारे शरीर के समस्त अंगों को साइकिल सूर्योदय सूर्यास्त के ऊपर आधारित होती है जिसके ऊपर हमारा मस्तिष्क हमारे विभिन्न अंगों का पोषण करता है।

24 घंटो में हमारे शरीर के समस्त मुख्य अंगों का कार्य काल बंटा होता है, यदि हम इस सुनिश्चित कार्यकाल के विपरीत इन मुख्य अंगों को कार्य करने के मजबूर करेंगे तो हमें रोगी होने से कोई नहीं बचा सकता।

अब जैसे सबसे उत्तम हमारे प्रथम भोजन का काल सुबह के 7 बजे से 10 बजे तक रहता है जिसमें हमें भरपूर भोजन करना है। उसके बाद दोपहर 1बजे से लेकर 2-2.30 बजे तक हल्का भोजन लेना है और अंतिम भोजन सांय 5-6 बजे के बीच करना है।

एवम सोने से 2 घंटे पूर्व यदि आवश्यकता महसूस हो तो हल्का गर्म दूध ले लेना है। अब यदि हम इस भोजन काल को गड़बड़ा दें तो पुनः हमारी पाचन क्रिया प्रभावित होगी।

अब यदि हम रात्रि हो सोएं नहीं अथवा दिन में खूब सोएं तो हमारा मस्तिष्क बिगड़ने लगेगा। क्योंकि हमें सूर्योदय से थोड़ा पूर्व जागना चाहिए अंधेरा हो जाने पर ज्यादा से ज्यादा रात्रि में 10.30-11 बजे तक सोने की व्यवस्था करनी चाहिए।

यदि हम अपने भोजन निद्राकाल को ठीक प्रकार से व्यवस्थित नहीं करेंगे और इसके विपरीत जाएंगे तो हम इन कारणों से भी बीमार रहने लगेंगे।
अव्यवस्थित जीवन जीने के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों को भी हम सहज इलाज से ठीक नहीं कर सकते। अपने भोजन सोने जागने के काल को व्यवस्थित करने से हम ठीक होने लगेंगे।इसमे भी सहज ट्रीटमेंट स्थाई रूप से कार गार नहीं हो पायेंगे।

3) शारीरिक श्रम करने के कारण होने वाले रोग(Immobility Abuse):-

हमें "परम पिता" ने अपने दैनिक कार्य करने के साथ साथ हाथ और पांव आवश्यक श्रम करने के लिए दिए हैं।  यदि हम अत्याधिक विलासिता पूर्ण आराम पसंद जीवन यापन करने लगते हैं तब भी हमारा शरीर निष्क्रिय होने लगता है और विभिन्न प्रकार के रोग हमे घेर लेते हैं।

आलस्य के कारण जन्म लेने वाले रोगों को दूर करने के लिए प्रतिदिन किये जाने वाले शारीरिक श्रम की अच्छी आदत से हम इन रोगों को भगा सकते है।

इसके लिए हमें प्रतिदिन कम से कम 5 Km सुबह/शाम को टहलना चाहिए और कम से कम 30 मिनट तक हल्का शारीरिक व्यायाम भी करना चाहिए। निष्क्रियता के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों में भी सहज इलाज स्थाई प्रभाव नहीं डाल सकता।

4)प्रदूषित वातावरण में रहने के कारण होने वाले रोग(Pollution Abuse):-

प्रदूषित वातावरण में निरंतर रहने से विभिन्न प्रकार की हानिकारक गैसों के रूप में उपस्थित अनेको प्रकार के विष हमारी श्वासों के माध्यम से हमारे भीतर जाकर हमारे फेफड़ों, किडनी, लिवर, सांस की नली इत्यादि को बेहद नुकसान पहुंचाते हैं।

इसके लिए यदि सम्भव हो तो हमें उस प्रदूषित वातावरण से हर हाल में दूर जाना होगा तभी ही हम पूर्ण रूप से स्वस्थ रह पाएंगे। यदि नहीं जा सकते तो हम ऐसे खाद्य पदार्थो को अपने भोजन में शामिल करेंगे जो इसके नकारात्मक असर को नष्ट कर सके।

जैसे कि गुड़, सूजी, फल, सलाद, ड्राई फ्रूट्स, अलसी, भीगा-चना, स्प्राउट, इत्यादि। इस केस में भी सहज ट्रीटमेन्ट परमानेंट लाभ नहीं दे सकते।

5) गलत तरीके से उठना, लेटना, बैठना सोना(Posture Abuse):-

यदि हम चलते, बैठते लेटते हुए अपने मेरुदंड गर्दन को गलत दशा में रखने के आदि हैं तो भी हम निरंतर शरीर के विभिन्न स्थानों पर होने वाले दर्दों के निरंतर शिकार बने रहेंगे।

आजकल सभी प्रकार के सरकारी व्यावसायिक कार्य स्थलों पर सभी कार्य ऑनलाइन होने लगे हैं जिसके कारण उन स्थानों पर कार्य करने वाले लोगों की कमर, गर्दन, पेट आंखों में कई प्रकार की बीमारियां होने लगी हैं।

और तो और जब से टच स्क्रीन स्मार्ट मोबाइल फोन सभी लोगों के द्वारा अत्याधिक इस्तेमाल किये जा रहें हैं तभी से विशेषतौर से आंखे, स्मृति, गर्दन कमर दर्द की शिकायतें आम हो गईं हैं।

इन सभी परेशानियों से बचने के लिए हर 30 मिनट के अंतराल पर अपनी आंखों गर्दन को 1-2 मिनट के लिए आराम देने के साथ साथ थोड़ी थोड़ी देर में गर्दन आंखों की पुतलियों को धीरे धीरे दाएं-बायें, ऊपर-नीचे घुमाते रहना चाहिए तभी हमें इन समस्यायों से निजात मिलेगी।

6) मच्छर वायरस के संक्रमण से फैलने वाले रोग(Contagious Diseases Abuse):-

हमारे देश में 4 मुख्य ऋतुएं होती हैं, और जब जब भी ये ऋतुएं बदलती हैं तब तब हमारे शरीर' में वात-पित्त-कफ का अनुपात बिगड़ने के कारण हमारे शरीर की तापमान-संतुलन-व्यवस्था(Thermostats)' भी गड़बड़ा जाती हैं।

जिसकी वजह से हमारे शरीर की रोग निरोधक तंत्र प्रणाली भी अक्सर खराब हो जाती है और परिवर्तन काल में उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के मच्छरों के काटने वायरस के संक्रमण के कारण अक्सर हम बीमार हो जाते हैं।

इनसे संघर्ष करने के लिए यदि हम पूर्ण जागरूकता के साथ इन विशेष काल में प्रतिदिन तुलसी, दालचीनी, लहसुन, अदरक, प्याज, हरि मिर्च हल्दी का उचित मात्रा में सब्जियों में डालने के अतिरिक्त अलग से सेवन करते रहेंगे तो हम इन संक्रामक रोगों से बचे रहेंगे।

7)ऋतुचर्या के विपरीत आचरण भोजन करने के कारण उत्पन्न होने वाले रोग(Anti Season Abuse):-

हममे से बहुत से लोग अज्ञानता एवं फैशन के कारण ऋतुओं के बदलाव के अनुरूप वस्त्र धारण नहीं करते और ही ऋतुओं पर आधारित खान पान ही अपनाते हैं।

उदाहरण के लिए अभी शीत ऋतु का प्रारंभ हो रहा है और हममे से बहुत से लोग अभी भी गर्मियों के अनुसार ही वस्त्र पहन रहें हैं जिसके परिणाम स्वरूप तापमान के असंतुलन के कारण वायरल होने का अंदेशा काफी बढ़ जाता है।

यहां तक कि कड़ाके की सर्दी में अधिकतर महिलाएं शादी-ब्याह किन्ही कार्यक्रमो में ग्रीष्मकालीन परिधानों में ही नजर आती है।
तो निश्चित रूप से ठंड लगेगी और बुखार, जुखाम, खांसी, साइनस इत्यादि भी अवश्य लगेंगे।

केवल इतना ही नहीं इस सर्द मौसम में आइसक्रीम भी अच्छे से खाई जाती है जिसके कारण अनेको रोग लगते हैं। और अक्सर तपती हुई दुपहरिया में हममे से बहुत से लोग बिना सर पर कपड़ा/टोपी रखे तेज धूप में निकलते हैं जिस कारण लू लगनी भी निश्चित हो है।

साथ ही गर्मी को दूर करने के लिए अत्यंत ठंडा पानी या पेय पदार्थ भी पीते रहते हैं जिसके कारण हमारे पेट की दशा अत्यंत खराब हो जाती है।
इन लापरवाहियों के कारण हम यदि बीमार हो जाएं तो सहज क्रियाओं से भला कहाँ तक ठीक रह सकते हैं। और "श्री चैतन्य" भी हमारी कब तक मदद करते रहेंगे।

8)नकारात्मक विचारों के प्रभाव से जनित रोग(Negative Thought Abuse):-

वास्तव में मानव को जो जीवन को क्षति पहुंचाने वाली गंभीर बीमारियां लगती हैं उनकी एकमात्र वजह दूषित मानसिकता है। यानि, किसी अन्य मानव के प्रति घृणा, अहंकार, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, भेदभाव, ऊँचनीच, तिरस्कार, छल, षड्यंत्र आदि का भाव रखना।

इस मानसिक प्रदूषण के कारण उसकी सोचें जाने अनजाने में 'प्रकृति', "परमात्मा" 'मानवता' की खिलाफत करने लगती हैं जिसकी वजह से हमारे हृदय में उपस्थित 'इष्ट' कुपित होने लगते हैं।

और उनकी नाराजगी के कारण हमारा मस्तिष्क प्रतिकूल प्रतिक्रिया करते हुए विषैले पदार्थ हमारे शरीर में स्त्रावित करने लगता है। यह विष-सम द्रव्य हमारी सोचों से सम्बंधित चक्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इनकी गति को अवरुद्ध कर देता है जिससे चक्र खराब होने लगते हैं और खराब चक्र हमारे शरीर के उक्त अंगों को ठीक से पोषित नहीं कर पाते जिसके परिणाम स्वरूप अंग रोगी होने लगते हैं।

वास्तव में सहजयोग के द्वारा इन मानसिक विकृतियों का समाधान आसानी हो सकता है। जब हम ध्यानस्थ होते हैं तो हमारी कुण्डलिनी सहस्त्रार पर रहकर "माँ आदि शक्ति" की ऊर्जा को ग्रहण करना प्रारंभ कर देती है जिसके परिणाम स्वरूप हम विचार रहित हो जाते हैं।

और हमारा मस्तिष्क अनुकूल द्रव्य हमारे यंत्र में प्रवाहित करना प्रारंभ कर देता है जो हमारे चक्रो को सुचारू रूप से पुनः चला देता है और चक्र अंगों का पोषण चालू कर देते हैं और बीमारी घटनी प्रारम्भ हो जाती है।

किन्तु इनके स्थाई इलाज के लिए हमें गहन ध्यानस्थ अवस्था मे गंभीर 'आत्म चिंतन' के माध्यम से अपनी नकारात्मक आदतों सोच को परिवर्तित करना होगा तभी हम इन रोगों से मुक्त हो सकते हैं।

9) बद दुआओं श्रापों के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले रोग( Curse Abuse):-

ये मानवीय चेतना की सबसे निकृष्ट स्थिति होती है जब कोई मानव अपनी शक्ति अहंकार में अंधा होकर किसी अन्य मानव को इतनी पीड़ा पहुंचाए की उसके अंतरात्मा से तकलीफ पहुंचाने वाले के लिए बदुआ अथवा श्राप निकलने लगे।

जब इस प्रकार के किसी के हृदय से श्राप निकलते हैं तो ये श्राप तकलीफ देने वाले व्यक्ति के 11 रुद्रों को अत्यंत कुपित कर देते हैं  क्योंकि ऐसा दुष्ट व्यक्ति किसी को पीड़ित करके "परमपिता"की खिलाफत करने लग जाता है जिसके परिणाम स्वरूप ये 11 रुद्र उस व्यक्ति से खफा हो जाते हैं।

और उस व्यक्ति की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए गंभीरतम रोगों को उत्पन्न कर देते हैं जिनका ठीक हो पाना काफी कठिन होता है।ये एक प्रकार के रुद्रों के द्वारा दी गई सजा है।

और यदि वह व्यक्ति फिर भी अपनी निकृष्ट सोचों गतिविधियों को बंद नहीं करता तो ये 'रुद्र' उसको उन बीमारियों के माध्यम से अत्यंत पीड़ा भोगने को मजबूर कर देते हैं।

और जब वह मानव काफी लंबे समय तक पीड़ा को झेलते हुए अंत में सह नहीं पा रहा होता तो वह सच्चे पछतावे की अग्नि में जलते हुए अपने द्वारा सताए गए उस व्यक्ति से "ईश्वर" से अपने द्वारा किये समस्त नकारात्मक कर्मो के लिए हृदय से क्षमा मांग लेता है।

तो उस व्यक्ति "परमात्मा" के द्वारा क्षमा प्रदान करने के उपरांत यही रुद्र उसको मृत्यु प्रदान कर उसको उसके कष्टकारी नरक से उसे मुक्त कर देते हैं।

और इसके विपरीत वो क्षमा मांगकर अपनी अज्ञानता अहंकार वश उस स्थिति में भी अपने मन में अनेको विकारों को बनाये रखता है और बहुत से लोगों को अनेको षडयंत्रो धूर्त्ताओं के द्वारा तकलीफे देता चला जाता है तो रुद्र पंचतत्व पीड़ित लोगों को बचाने के लिए यकायक उसके मानवीय जीवन को समाप्त कर देते हैं।

जिसके कारण उसके नकारात्मक कर्मों का हिसाब शेष रह जाता है जो उसके अगले जन्म में अनेकों बीमारियों के रूप में पुनः प्रगट होता है।
इन सब तकलीफों के काल को कम करने के लिए आगे आने वाली पीड़ाओं से बचने के लिए "श्री चरणों" में निशर्त समर्पण के साथ अनेको नए लोगों को भी आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से "श्री चरणों" में बैठने योग्य बनाना बेहद जरूरी है।

ताकि उन लोगों के हृदय से प्रवाहित होने वाली दुआओं उनके यंत्र में उपस्थित कुण्डलिनी अन्य देवी देवताओं के आशीर्वाद से पूर्व में मिली बद-दुआओं श्रापों का असर नगण्य होने लगे।अन्यथा ये नरक उसके प्रत्येक जीवन में उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे।

10) अनुवांशिक रोग(Hereditary Abuse):-

ये बहुतायत में देखा गया है कि कई बार बहुत सी वंशानुगत बीमारियों के कीटाणु हमारे जन्म के साथ ही हमारी 'अस्थि मज्जा' के जरिये हमारे शरीर में धमकते हैं किन्तु प्रारंभिक काल में इनका पता नहीं चल पाता।

किन्तु कुछ सुनिश्चित समय के बाद ये हमारे भीतर प्रदर्शित होने लगते हैं।जैसे कैंसर, शुगर, हाई/लो बी पी, मिर्गी, आंखों का कमजोर होना, सफेद दागों का होना, हृदय शूल आदि आदि।

ये सभी उपरोक्त रोग अपने समय पर हमारे शरीर में प्रगट होते है और अपना असर भी हम पर जरूर दिखाते हैं। लगभग इन सभी अनुवांशिक रोगों को गहन ध्यान अवस्था में प्राप्त होने वाली 'दिव्य ऊर्जा' के द्वारा समाप्त किया जा सकता है।

जब हम 'विचार रहित' अवस्था में आनंद उठा रहे होते हैं वो वास्तव में हम "परम माता-पिता" की गोद में 'नन्हे गणेश' सम बैठे होते हैं।
तो इस अनुपम दशा में हमारे 'वास्तविक माता-पिता' हमारी प्रत्येक प्रकार की पीड़ाओं को हर रहे होते हैं अतः हमें अपना ज्यादा से ज्यादा समय ध्यानस्थ रहने नए-पुराने लोगों को ध्यान में स्थित करने में मदद करने में ही लगाना चाहिए।

11) सहज का कार्य करने के कारण उत्पन्न होने वाले रोग(Sahaj-Non-Work Abuse):-

ये देखा गया है कि जब किसी व्यक्ति को "श्री माँ" सहज प्रदान करती हैं तो वह सहज-कार्यों में बड़ा ऊर्जावान गतिमान बना रहता है। किन्तु जैसे जैसे उसकी परेशानियां हल होती जाती हैं अथवा वह सहज संस्था में किसी पद पर आसीन हो जाता है या सहज समाज में पहचान बना लेता है।
तो वह मानव शनै शनै अकर्मण्यता की ओर कदम बढ़ाने लगता है और एक दिन सहज कार्य में पूर्ण रूप से निष्क्रिय हो जाता है।

जिसके परिणाम स्वरूप ध्यान में प्राप्त 'पवित्र ऊर्जा' को वो बांट नहीं पाता तो वही ऊर्जा उसके शरीर में विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं को विभिन्न स्थानों पर जन्म देने लगती है।

जैसे कि असमय अथवा अनुपयुक्त भोजन करने से पेट में गैस बनने लगती है और अनेको प्रकार की पीड़ाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे उबरने का सबसे अच्छा उपाय है कि किसी भी तरीके से अपने यंत्र में प्रवेश करते रहने वाली ध्यान-ऊर्जा को लगातार नए पुराने लोगों के यंत्र में प्रवाहित करते रहें।

12) अन्य लोगों के यंत्र की पीड़ाओं का अपने यंत्र के द्वारा निराकरण होने से प्रतीत होने वाले रोग(Disease- Release Abuse):-

इस प्रकार की पीड़ा हमें तब महसूस होती है जब "श्री माँ" अन्य लोगों के यंत्र की बाधाओं को कम करने या समाप्त करने के लिए हमारे यंत्र का सदुपयोग कर रही होती हैं।

ये उस दशा में होता है जब कोई साधक/साधिका अपनी 'साधना-ऊर्जा' के जरिये अपने यंत्र को संतुलित रखने योग्य नहीं होता। तब "श्री माँ" हमारे यंत्र के माध्यम से उसकी पीड़ाओं को अल्प काल के लिए हमारे यंत्र में ट्रांसफर करके उसको आराम पहुंचाती हैं ताकि वह अपने को संतुलित कर ध्यान-अभ्यास में उतरने योग्य हो सके।

किन्तु इस प्रकार से हमारे यंत्र में प्रक्षेपित की हुई समस्याओं से हमें कोई उलझन नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये दिक्कते बहुत ही कम समय के लिए महसूस देती हैं और जल्दी ही दूर हो जाती हैं।

इनके लिए ज्यादा चिंतित होने की बिल्कुल भी आवश्यकता ही नही है। वास्तव में ये स्थितियां तो हमारे लिये वरदान जैसी ही हैं। क्योंकि अन्य लोगों को राहत देने के लिए हम स्वम् "श्री माँ" के द्वारा चुने गए हैं।ये हमारे लिए गौरव की बात है।

फिर भी यदि किसी 'पीड़ा-ट्रांसफर' से हम अत्यदिक पीड़ित या विचलित हो रहें हैं तो हमें अपने मध्य हृदय सहस्त्रार को चेतना के द्वारा एक कर अपने उस तकलीफ वाले स्थान पर अपने चित्त को कुछ देर के लिए टिका कर अपने मध्य हृदय से 'ऊर्जा' प्रवाहित करनी चाहिए।इससे उस स्थान विशेष पर आराम आना प्रारम्भ हो जाता है।

यदि हमने पूर्ण एकाग्रता धैर्य के साथ अभी तक ये 'अभिव्यक्ति' ठीक प्रकार से पढ़ी समझी है तो हम पाएंगे कि 1 से लेकर 7 तक के वर्गीकृत रोगों के लिए हमें सहज तकनीकों की कोई आवश्यकता ही नहीं है। यूं तो इस 'लेख' में उपरोक्त प्रकार की शारीरिक पीड़ाओं के अनेको निवारण मौजूद हैं और कारगर भी हैं।

किन्तु मेरी चेतना का अपने समस्त सहज साथियों से यह कहना है कि हमको अपनी चेतना को इस स्तर तक उन्नत करना चाहिए जहां पर हमारे स्थूल शरीर की चिंता हमारी चेतना में नगण्य हो जाय। यानि हम देह में रहते हुए भी देहाभास से मुक्त रह पाएं, हमारा स्थूल शरीर हमारे आत्मिक आध्यात्मिक उत्थान में कभी भी बाधा बन पाएं।"

-----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

(13-11-17)