Monday, April 16, 2018

"Impulses"--439--"सहजियों की विभिन्न रोग-पीड़ाएँ एवं उनके सरल व सुगम निवारण"

"सहजियों की विभिन्न रोग-पीड़ाएँ एवं उनके सरल सुगम निवारण"


एक परेशानी लगभग 99 % सहजियों के साथ बनी ही रहती है और वो है समय समय पर होने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों से संघर्ष करते हुए आंतरिक रूप से निरंतर हतोत्साहित होते रहना।

क्योंकि अधिकतर सहज में आने वाले सहजी, सहज में आने पूर्व पुराने सहजियों से ये सुन चुके होते हैं कि सहज में आने पर सभी प्रकार की बीमारियां ठीक हो जाती हैं और हम सभी अच्छे स्वास्थ्य का निरंतर लाभ उठाते हैं। और सहज से जुड़ने के उपरांत "श्री माँ" के लेक्चर्स को सुन सुन कर पूर्ण आश्वस्त भी हो जाते हैं कि उनको जरूर स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

किन्तु जब स्वयं बीमार हो जाते हैं तो नए लोगों से सहज की बात करने अपने नजदीकी लोगों से मिलने से कतराने लगते हैं क्योंकि वो लोग कहेंगे, 'कि ये कैसा रास्ता अपनाया है जिस पर चलकर आप लोग बीमार ही रहते हो।'

और ये होता भी यही है कि हमारे नजदीकी हमारे सहज-मार्ग की हंसी उड़ाते हैं और कहते भी हैं कि, 'हम क्यों अपनाए इसे, आप लोग तो हमसे भी ज्यादा बीमार रहते हो, आप तो कहते थे कि इसमें आकर हर बीमारी ठीक हो जाती है।'

अतः हम सभी को ये सब सुनकर सोच कर बेहद बुरा भी लगता है और हमारा मन दुखी भी हो जाता है। ये बात तो अक्षुण सत्य है कि जो "श्री माँ" ने अपने वक्तव्यों में बोला है वो 'ब्रह्म वाक्य' है। और ये भी सत्य है कि कुछ सहजी सहज में आने से पूर्व बहुत ही गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे वो ठीक भी हुए हैं।

तो फिर प्रश्न ये उठता है कि आखिर ज्यादातर सहजी सहज में आने के बाद भी विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित क्यों हो जाते हैं या रहते है ?
प्रतिदिन लंबे समय तक ध्यान हर प्रकार का सहज-इलाज/अन्य इलाज कराने के बाद भी वो अपनी गड़ना के मुताबिक आसानी से क्यों कर ठीक नहीं हो पाते ?

मेरी निम्न समझ चेतना के अनुसार इन समस्त प्रश्नों के हल जानने के लिए हमें सर्वप्रथम विभिन्न प्रकार के रोगों को वर्गीकृत करना होगा।  इनके मूल कारणों को गहनता से समझना होगा तभी हम हर प्रकार के रोग के प्रति उचित दृष्टिकोण रखकर उन बीमारियों के प्रति पूर्ण समाधान रखते हुए उन्हें दूर करने के लिए सही प्रयास कर पाएंगे।

यदि कुछ देर चिंतन विश्लेषण करें तो हम इन रोगों के मूल कारणों को निम्न वर्गों में बांट सकते हैं:-

1) खान-पान से सम्बंधित कारण(Food Abuse):-

इस वर्ग के अंदर वो रोग आते हैं जो हमारी अज्ञानता चटोरे पन की आदतों के कारण उत्पन्न होते हैं। यानि किस खाद्य पदार्थ के साथ कौनसा खाद्य पदार्थ खाएं, क्या खाएं, क्या खाएं, किस चीज को कितना खाएं, कौनसा मसाला किस चीज के साथ उपयुक्त है, अनजाने में मिलावटी खाना खा लेना आदि आदि।

गलत सलत खान-पान के परिणाम स्वरूप पेट खराब हो जाना, आंतों, लिवर, यकृत, तिल्ली का ठीक प्रकार से कार्य करना, गैस का निरंतर बनना, कब्ज हो जाना, लूज मोशन लग जाना, उल्टियों का होना आदि।

उल्टा सीधा खाना हमारी पाचन क्रिया को अवरुद्ध कर हमारे और भी अंगों महत्वपूर्ण अंगों को हानि पहुंचता है जिससे और भी रोग लग जाते हैं। इस प्रकार की समस्या को ठीक करने के लिए सर्वप्रथम किसी अच्छे डॉक्टर या वैद्य से कोई भी दवाई लेकर अपना इलाज कराएं उनकी सलाह के मुताबिक आहार लेने की आदत डाली जाए।

अब यदि इन समस्यायों को सहजी सहज ट्रीटमेंट से ठीक करना चाहेगा तो ये निश्चित रूप से ठीक नहीं हो पाएंगी।हां कुछ अल्प काल के थोड़ा बहुत आराम मिल सकेगा किन्तु रोग ठीक नहीं होगा। रोग को ठीक करने के लिए हमें इसकी जड़ यानि शुद्ध, संतुलित उचित आहार लेना होगा।

2) बेवक्त भोजन ग्रहण करने के रोग(Food-Time Abuse):-

आजकल हममे से ज्यादातर लोगों की जीवन शैली अत्यंत अस्त व्यस्त है जिसके कारण हमारे सम्पूर्ण शरीर के अंगों को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक द्रव्यों का निर्माण कर उनको उनकी आवश्यकतानुसार स्त्रावित करने वाला 'मस्तिष्क' ही शरीर को बीमार करने का कारण बन जाता है।

वास्तव में हमारे शरीर के समस्त अंगों को साइकिल सूर्योदय सूर्यास्त के ऊपर आधारित होती है जिसके ऊपर हमारा मस्तिष्क हमारे विभिन्न अंगों का पोषण करता है।

24 घंटो में हमारे शरीर के समस्त मुख्य अंगों का कार्य काल बंटा होता है, यदि हम इस सुनिश्चित कार्यकाल के विपरीत इन मुख्य अंगों को कार्य करने के मजबूर करेंगे तो हमें रोगी होने से कोई नहीं बचा सकता।

अब जैसे सबसे उत्तम हमारे प्रथम भोजन का काल सुबह के 7 बजे से 10 बजे तक रहता है जिसमें हमें भरपूर भोजन करना है। उसके बाद दोपहर 1बजे से लेकर 2-2.30 बजे तक हल्का भोजन लेना है और अंतिम भोजन सांय 5-6 बजे के बीच करना है।

एवम सोने से 2 घंटे पूर्व यदि आवश्यकता महसूस हो तो हल्का गर्म दूध ले लेना है। अब यदि हम इस भोजन काल को गड़बड़ा दें तो पुनः हमारी पाचन क्रिया प्रभावित होगी।

अब यदि हम रात्रि हो सोएं नहीं अथवा दिन में खूब सोएं तो हमारा मस्तिष्क बिगड़ने लगेगा। क्योंकि हमें सूर्योदय से थोड़ा पूर्व जागना चाहिए अंधेरा हो जाने पर ज्यादा से ज्यादा रात्रि में 10.30-11 बजे तक सोने की व्यवस्था करनी चाहिए।

यदि हम अपने भोजन निद्राकाल को ठीक प्रकार से व्यवस्थित नहीं करेंगे और इसके विपरीत जाएंगे तो हम इन कारणों से भी बीमार रहने लगेंगे।
अव्यवस्थित जीवन जीने के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों को भी हम सहज इलाज से ठीक नहीं कर सकते। अपने भोजन सोने जागने के काल को व्यवस्थित करने से हम ठीक होने लगेंगे।इसमे भी सहज ट्रीटमेंट स्थाई रूप से कार गार नहीं हो पायेंगे।

3) शारीरिक श्रम करने के कारण होने वाले रोग(Immobility Abuse):-

हमें "परम पिता" ने अपने दैनिक कार्य करने के साथ साथ हाथ और पांव आवश्यक श्रम करने के लिए दिए हैं।  यदि हम अत्याधिक विलासिता पूर्ण आराम पसंद जीवन यापन करने लगते हैं तब भी हमारा शरीर निष्क्रिय होने लगता है और विभिन्न प्रकार के रोग हमे घेर लेते हैं।

आलस्य के कारण जन्म लेने वाले रोगों को दूर करने के लिए प्रतिदिन किये जाने वाले शारीरिक श्रम की अच्छी आदत से हम इन रोगों को भगा सकते है।

इसके लिए हमें प्रतिदिन कम से कम 5 Km सुबह/शाम को टहलना चाहिए और कम से कम 30 मिनट तक हल्का शारीरिक व्यायाम भी करना चाहिए। निष्क्रियता के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों में भी सहज इलाज स्थाई प्रभाव नहीं डाल सकता।

4)प्रदूषित वातावरण में रहने के कारण होने वाले रोग(Pollution Abuse):-

प्रदूषित वातावरण में निरंतर रहने से विभिन्न प्रकार की हानिकारक गैसों के रूप में उपस्थित अनेको प्रकार के विष हमारी श्वासों के माध्यम से हमारे भीतर जाकर हमारे फेफड़ों, किडनी, लिवर, सांस की नली इत्यादि को बेहद नुकसान पहुंचाते हैं।

इसके लिए यदि सम्भव हो तो हमें उस प्रदूषित वातावरण से हर हाल में दूर जाना होगा तभी ही हम पूर्ण रूप से स्वस्थ रह पाएंगे। यदि नहीं जा सकते तो हम ऐसे खाद्य पदार्थो को अपने भोजन में शामिल करेंगे जो इसके नकारात्मक असर को नष्ट कर सके।

जैसे कि गुड़, सूजी, फल, सलाद, ड्राई फ्रूट्स, अलसी, भीगा-चना, स्प्राउट, इत्यादि। इस केस में भी सहज ट्रीटमेन्ट परमानेंट लाभ नहीं दे सकते।

5) गलत तरीके से उठना, लेटना, बैठना सोना(Posture Abuse):-

यदि हम चलते, बैठते लेटते हुए अपने मेरुदंड गर्दन को गलत दशा में रखने के आदि हैं तो भी हम निरंतर शरीर के विभिन्न स्थानों पर होने वाले दर्दों के निरंतर शिकार बने रहेंगे।

आजकल सभी प्रकार के सरकारी व्यावसायिक कार्य स्थलों पर सभी कार्य ऑनलाइन होने लगे हैं जिसके कारण उन स्थानों पर कार्य करने वाले लोगों की कमर, गर्दन, पेट आंखों में कई प्रकार की बीमारियां होने लगी हैं।

और तो और जब से टच स्क्रीन स्मार्ट मोबाइल फोन सभी लोगों के द्वारा अत्याधिक इस्तेमाल किये जा रहें हैं तभी से विशेषतौर से आंखे, स्मृति, गर्दन कमर दर्द की शिकायतें आम हो गईं हैं।

इन सभी परेशानियों से बचने के लिए हर 30 मिनट के अंतराल पर अपनी आंखों गर्दन को 1-2 मिनट के लिए आराम देने के साथ साथ थोड़ी थोड़ी देर में गर्दन आंखों की पुतलियों को धीरे धीरे दाएं-बायें, ऊपर-नीचे घुमाते रहना चाहिए तभी हमें इन समस्यायों से निजात मिलेगी।

6) मच्छर वायरस के संक्रमण से फैलने वाले रोग(Contagious Diseases Abuse):-

हमारे देश में 4 मुख्य ऋतुएं होती हैं, और जब जब भी ये ऋतुएं बदलती हैं तब तब हमारे शरीर' में वात-पित्त-कफ का अनुपात बिगड़ने के कारण हमारे शरीर की तापमान-संतुलन-व्यवस्था(Thermostats)' भी गड़बड़ा जाती हैं।

जिसकी वजह से हमारे शरीर की रोग निरोधक तंत्र प्रणाली भी अक्सर खराब हो जाती है और परिवर्तन काल में उत्पन्न होने वाले विभिन्न प्रकार के मच्छरों के काटने वायरस के संक्रमण के कारण अक्सर हम बीमार हो जाते हैं।

इनसे संघर्ष करने के लिए यदि हम पूर्ण जागरूकता के साथ इन विशेष काल में प्रतिदिन तुलसी, दालचीनी, लहसुन, अदरक, प्याज, हरि मिर्च हल्दी का उचित मात्रा में सब्जियों में डालने के अतिरिक्त अलग से सेवन करते रहेंगे तो हम इन संक्रामक रोगों से बचे रहेंगे।

7)ऋतुचर्या के विपरीत आचरण भोजन करने के कारण उत्पन्न होने वाले रोग(Anti Season Abuse):-

हममे से बहुत से लोग अज्ञानता एवं फैशन के कारण ऋतुओं के बदलाव के अनुरूप वस्त्र धारण नहीं करते और ही ऋतुओं पर आधारित खान पान ही अपनाते हैं।

उदाहरण के लिए अभी शीत ऋतु का प्रारंभ हो रहा है और हममे से बहुत से लोग अभी भी गर्मियों के अनुसार ही वस्त्र पहन रहें हैं जिसके परिणाम स्वरूप तापमान के असंतुलन के कारण वायरल होने का अंदेशा काफी बढ़ जाता है।

यहां तक कि कड़ाके की सर्दी में अधिकतर महिलाएं शादी-ब्याह किन्ही कार्यक्रमो में ग्रीष्मकालीन परिधानों में ही नजर आती है।
तो निश्चित रूप से ठंड लगेगी और बुखार, जुखाम, खांसी, साइनस इत्यादि भी अवश्य लगेंगे।

केवल इतना ही नहीं इस सर्द मौसम में आइसक्रीम भी अच्छे से खाई जाती है जिसके कारण अनेको रोग लगते हैं। और अक्सर तपती हुई दुपहरिया में हममे से बहुत से लोग बिना सर पर कपड़ा/टोपी रखे तेज धूप में निकलते हैं जिस कारण लू लगनी भी निश्चित हो है।

साथ ही गर्मी को दूर करने के लिए अत्यंत ठंडा पानी या पेय पदार्थ भी पीते रहते हैं जिसके कारण हमारे पेट की दशा अत्यंत खराब हो जाती है।
इन लापरवाहियों के कारण हम यदि बीमार हो जाएं तो सहज क्रियाओं से भला कहाँ तक ठीक रह सकते हैं। और "श्री चैतन्य" भी हमारी कब तक मदद करते रहेंगे।

8)नकारात्मक विचारों के प्रभाव से जनित रोग(Negative Thought Abuse):-

वास्तव में मानव को जो जीवन को क्षति पहुंचाने वाली गंभीर बीमारियां लगती हैं उनकी एकमात्र वजह दूषित मानसिकता है। यानि, किसी अन्य मानव के प्रति घृणा, अहंकार, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, भेदभाव, ऊँचनीच, तिरस्कार, छल, षड्यंत्र आदि का भाव रखना।

इस मानसिक प्रदूषण के कारण उसकी सोचें जाने अनजाने में 'प्रकृति', "परमात्मा" 'मानवता' की खिलाफत करने लगती हैं जिसकी वजह से हमारे हृदय में उपस्थित 'इष्ट' कुपित होने लगते हैं।

और उनकी नाराजगी के कारण हमारा मस्तिष्क प्रतिकूल प्रतिक्रिया करते हुए विषैले पदार्थ हमारे शरीर में स्त्रावित करने लगता है। यह विष-सम द्रव्य हमारी सोचों से सम्बंधित चक्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इनकी गति को अवरुद्ध कर देता है जिससे चक्र खराब होने लगते हैं और खराब चक्र हमारे शरीर के उक्त अंगों को ठीक से पोषित नहीं कर पाते जिसके परिणाम स्वरूप अंग रोगी होने लगते हैं।

वास्तव में सहजयोग के द्वारा इन मानसिक विकृतियों का समाधान आसानी हो सकता है। जब हम ध्यानस्थ होते हैं तो हमारी कुण्डलिनी सहस्त्रार पर रहकर "माँ आदि शक्ति" की ऊर्जा को ग्रहण करना प्रारंभ कर देती है जिसके परिणाम स्वरूप हम विचार रहित हो जाते हैं।

और हमारा मस्तिष्क अनुकूल द्रव्य हमारे यंत्र में प्रवाहित करना प्रारंभ कर देता है जो हमारे चक्रो को सुचारू रूप से पुनः चला देता है और चक्र अंगों का पोषण चालू कर देते हैं और बीमारी घटनी प्रारम्भ हो जाती है।

किन्तु इनके स्थाई इलाज के लिए हमें गहन ध्यानस्थ अवस्था मे गंभीर 'आत्म चिंतन' के माध्यम से अपनी नकारात्मक आदतों सोच को परिवर्तित करना होगा तभी हम इन रोगों से मुक्त हो सकते हैं।

9) बद दुआओं श्रापों के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले रोग( Curse Abuse):-

ये मानवीय चेतना की सबसे निकृष्ट स्थिति होती है जब कोई मानव अपनी शक्ति अहंकार में अंधा होकर किसी अन्य मानव को इतनी पीड़ा पहुंचाए की उसके अंतरात्मा से तकलीफ पहुंचाने वाले के लिए बदुआ अथवा श्राप निकलने लगे।

जब इस प्रकार के किसी के हृदय से श्राप निकलते हैं तो ये श्राप तकलीफ देने वाले व्यक्ति के 11 रुद्रों को अत्यंत कुपित कर देते हैं  क्योंकि ऐसा दुष्ट व्यक्ति किसी को पीड़ित करके "परमपिता"की खिलाफत करने लग जाता है जिसके परिणाम स्वरूप ये 11 रुद्र उस व्यक्ति से खफा हो जाते हैं।

और उस व्यक्ति की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए गंभीरतम रोगों को उत्पन्न कर देते हैं जिनका ठीक हो पाना काफी कठिन होता है।ये एक प्रकार के रुद्रों के द्वारा दी गई सजा है।

और यदि वह व्यक्ति फिर भी अपनी निकृष्ट सोचों गतिविधियों को बंद नहीं करता तो ये 'रुद्र' उसको उन बीमारियों के माध्यम से अत्यंत पीड़ा भोगने को मजबूर कर देते हैं।

और जब वह मानव काफी लंबे समय तक पीड़ा को झेलते हुए अंत में सह नहीं पा रहा होता तो वह सच्चे पछतावे की अग्नि में जलते हुए अपने द्वारा सताए गए उस व्यक्ति से "ईश्वर" से अपने द्वारा किये समस्त नकारात्मक कर्मो के लिए हृदय से क्षमा मांग लेता है।

तो उस व्यक्ति "परमात्मा" के द्वारा क्षमा प्रदान करने के उपरांत यही रुद्र उसको मृत्यु प्रदान कर उसको उसके कष्टकारी नरक से उसे मुक्त कर देते हैं।

और इसके विपरीत वो क्षमा मांगकर अपनी अज्ञानता अहंकार वश उस स्थिति में भी अपने मन में अनेको विकारों को बनाये रखता है और बहुत से लोगों को अनेको षडयंत्रो धूर्त्ताओं के द्वारा तकलीफे देता चला जाता है तो रुद्र पंचतत्व पीड़ित लोगों को बचाने के लिए यकायक उसके मानवीय जीवन को समाप्त कर देते हैं।

जिसके कारण उसके नकारात्मक कर्मों का हिसाब शेष रह जाता है जो उसके अगले जन्म में अनेकों बीमारियों के रूप में पुनः प्रगट होता है।
इन सब तकलीफों के काल को कम करने के लिए आगे आने वाली पीड़ाओं से बचने के लिए "श्री चरणों" में निशर्त समर्पण के साथ अनेको नए लोगों को भी आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से "श्री चरणों" में बैठने योग्य बनाना बेहद जरूरी है।

ताकि उन लोगों के हृदय से प्रवाहित होने वाली दुआओं उनके यंत्र में उपस्थित कुण्डलिनी अन्य देवी देवताओं के आशीर्वाद से पूर्व में मिली बद-दुआओं श्रापों का असर नगण्य होने लगे।अन्यथा ये नरक उसके प्रत्येक जीवन में उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे।

10) अनुवांशिक रोग(Hereditary Abuse):-

ये बहुतायत में देखा गया है कि कई बार बहुत सी वंशानुगत बीमारियों के कीटाणु हमारे जन्म के साथ ही हमारी 'अस्थि मज्जा' के जरिये हमारे शरीर में धमकते हैं किन्तु प्रारंभिक काल में इनका पता नहीं चल पाता।

किन्तु कुछ सुनिश्चित समय के बाद ये हमारे भीतर प्रदर्शित होने लगते हैं।जैसे कैंसर, शुगर, हाई/लो बी पी, मिर्गी, आंखों का कमजोर होना, सफेद दागों का होना, हृदय शूल आदि आदि।

ये सभी उपरोक्त रोग अपने समय पर हमारे शरीर में प्रगट होते है और अपना असर भी हम पर जरूर दिखाते हैं। लगभग इन सभी अनुवांशिक रोगों को गहन ध्यान अवस्था में प्राप्त होने वाली 'दिव्य ऊर्जा' के द्वारा समाप्त किया जा सकता है।

जब हम 'विचार रहित' अवस्था में आनंद उठा रहे होते हैं वो वास्तव में हम "परम माता-पिता" की गोद में 'नन्हे गणेश' सम बैठे होते हैं।
तो इस अनुपम दशा में हमारे 'वास्तविक माता-पिता' हमारी प्रत्येक प्रकार की पीड़ाओं को हर रहे होते हैं अतः हमें अपना ज्यादा से ज्यादा समय ध्यानस्थ रहने नए-पुराने लोगों को ध्यान में स्थित करने में मदद करने में ही लगाना चाहिए।

11) सहज का कार्य करने के कारण उत्पन्न होने वाले रोग(Sahaj-Non-Work Abuse):-

ये देखा गया है कि जब किसी व्यक्ति को "श्री माँ" सहज प्रदान करती हैं तो वह सहज-कार्यों में बड़ा ऊर्जावान गतिमान बना रहता है। किन्तु जैसे जैसे उसकी परेशानियां हल होती जाती हैं अथवा वह सहज संस्था में किसी पद पर आसीन हो जाता है या सहज समाज में पहचान बना लेता है।
तो वह मानव शनै शनै अकर्मण्यता की ओर कदम बढ़ाने लगता है और एक दिन सहज कार्य में पूर्ण रूप से निष्क्रिय हो जाता है।

जिसके परिणाम स्वरूप ध्यान में प्राप्त 'पवित्र ऊर्जा' को वो बांट नहीं पाता तो वही ऊर्जा उसके शरीर में विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं को विभिन्न स्थानों पर जन्म देने लगती है।

जैसे कि असमय अथवा अनुपयुक्त भोजन करने से पेट में गैस बनने लगती है और अनेको प्रकार की पीड़ाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इससे उबरने का सबसे अच्छा उपाय है कि किसी भी तरीके से अपने यंत्र में प्रवेश करते रहने वाली ध्यान-ऊर्जा को लगातार नए पुराने लोगों के यंत्र में प्रवाहित करते रहें।

12) अन्य लोगों के यंत्र की पीड़ाओं का अपने यंत्र के द्वारा निराकरण होने से प्रतीत होने वाले रोग(Disease- Release Abuse):-

इस प्रकार की पीड़ा हमें तब महसूस होती है जब "श्री माँ" अन्य लोगों के यंत्र की बाधाओं को कम करने या समाप्त करने के लिए हमारे यंत्र का सदुपयोग कर रही होती हैं।

ये उस दशा में होता है जब कोई साधक/साधिका अपनी 'साधना-ऊर्जा' के जरिये अपने यंत्र को संतुलित रखने योग्य नहीं होता। तब "श्री माँ" हमारे यंत्र के माध्यम से उसकी पीड़ाओं को अल्प काल के लिए हमारे यंत्र में ट्रांसफर करके उसको आराम पहुंचाती हैं ताकि वह अपने को संतुलित कर ध्यान-अभ्यास में उतरने योग्य हो सके।

किन्तु इस प्रकार से हमारे यंत्र में प्रक्षेपित की हुई समस्याओं से हमें कोई उलझन नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये दिक्कते बहुत ही कम समय के लिए महसूस देती हैं और जल्दी ही दूर हो जाती हैं।

इनके लिए ज्यादा चिंतित होने की बिल्कुल भी आवश्यकता ही नही है। वास्तव में ये स्थितियां तो हमारे लिये वरदान जैसी ही हैं। क्योंकि अन्य लोगों को राहत देने के लिए हम स्वम् "श्री माँ" के द्वारा चुने गए हैं।ये हमारे लिए गौरव की बात है।

फिर भी यदि किसी 'पीड़ा-ट्रांसफर' से हम अत्यदिक पीड़ित या विचलित हो रहें हैं तो हमें अपने मध्य हृदय सहस्त्रार को चेतना के द्वारा एक कर अपने उस तकलीफ वाले स्थान पर अपने चित्त को कुछ देर के लिए टिका कर अपने मध्य हृदय से 'ऊर्जा' प्रवाहित करनी चाहिए।इससे उस स्थान विशेष पर आराम आना प्रारम्भ हो जाता है।

यदि हमने पूर्ण एकाग्रता धैर्य के साथ अभी तक ये 'अभिव्यक्ति' ठीक प्रकार से पढ़ी समझी है तो हम पाएंगे कि 1 से लेकर 7 तक के वर्गीकृत रोगों के लिए हमें सहज तकनीकों की कोई आवश्यकता ही नहीं है। यूं तो इस 'लेख' में उपरोक्त प्रकार की शारीरिक पीड़ाओं के अनेको निवारण मौजूद हैं और कारगर भी हैं।

किन्तु मेरी चेतना का अपने समस्त सहज साथियों से यह कहना है कि हमको अपनी चेतना को इस स्तर तक उन्नत करना चाहिए जहां पर हमारे स्थूल शरीर की चिंता हमारी चेतना में नगण्य हो जाय। यानि हम देह में रहते हुए भी देहाभास से मुक्त रह पाएं, हमारा स्थूल शरीर हमारे आत्मिक आध्यात्मिक उत्थान में कभी भी बाधा बन पाएं।"

-----------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

(13-11-17)

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