Thursday, June 28, 2018

"Impulses"--451--"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'-(भाग-6)


"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'
(भाग-6)


C) तृतीय स्थान-मेरु दण्ड-देवी-देवताओं से आत्मिक घनिष्ठ सम्बन्धो की स्थिति का प्रगटीकरण।

जब ऊर्जा संकेत हमारी रीढ़ की हड्डी पर स्थित चक्रो पर डायरेक्ट आने लगते हैं तो हमें समझना चाहिए कि हमारे यंत्र में स्थित देवी-देवताओं के साथ हमारी मूक बातचीत होने के साथ साथ 'उनसे' हमारा तादात्म्य बन चुका है।

इसी कारण से वे सभी हमारी सोचों चित्त की प्रतिक्रिया स्वरूप हमें अपना मत, नाराजगी, क्रोध, तठस्थता, प्रसन्नता के रूप में विभिन्न प्रकार की ऊर्जा संकेतो के जरिये प्रगट कर रहे हैं।

C) तृतीय स्थान के सकारात्मक ऊर्जा संकेत:

जब हमें हमारे शरीर में स्थिति सूक्ष्म यंत्र पर स्थित किसी भी नाड़ी में ऊपर से लेकर नीचे तक शीतलता की अनुभूति हो। तो हमें समझना चाहिए कि हमारे चित्त में जो भी है उसी पर उक्त नाड़ी की देवी-देवता गण अपनी प्रसन्नता को व्यक्त कर रहे हैं।

i) किसी भी चक्र में ठंडक का महसूस होना:-

जब भी हमें अपने किसी भी चक्र के स्थान पर ठंडक महसूस होने लगे तो हमें समझना चाहिए कि हमारे चित्त में जो भी है वो उस चक्र के देवी देवता को प्रसन्न कर रह है।

उदाहरण के लिए यदि हम किसी भी व्यक्ति की विश्वसनीयता के बारे में विचार कर रहे हैं। और ऐसे में हमारे मध्य हृदय में शीलता का अनुभव हो तो हमें जानना होगा कि वो व्यक्ति विश्वास योग्य है, यानि हॄदय की देवी उससे प्रसन्न हैं।

ii) किसी भी चक्र में ठंडे स्पंदन का होना:-

जब भी हमारा चित्त किसी विचार/भाव/ व्यक्ति/स्वम्/स्थान पर हो और हमारे चित्त की प्रतिक्रिया स्वरूप हमारे किसी चक्र में ठंडा ठंडा स्पंदन होने लगे। तो हमें समझ जाना चाहिए कि उक्त चक्र से सम्बंधित देवी देवता अपनी शक्तियों का सकारात्मक उपयोग कर रहे हैं।

उदाहरण के लिए यदि हम किसी स्थान के विषय में सोच रहे हैं तो इस सुखद स्पंदन के द्वारा बताया जा रहा है कि उक्त स्थान पर उस उस स्पंदित होते चक्र के देवी-देवता की ऊर्जा कार्य कर रही है/उपलब्ध है।

iii) किसी भी चक्र में सुखद खिंचाव अथवा दवाब का अनुभव होना:-

ये स्थिति किसी भी चक्र में तभी उत्पन्न होती है जब हमारे चित्त में मौजूद किसी भी व्यक्ति/स्वम्/वस्तु/स्थान पर जागृत उक्त चक्र के देवी-देवता की शक्ति को हमारा चक्र ग्रहण कर रहा होता है।

तो उस समय वो चक्र उस शक्ति को शोषित करते हुए तीव्र गति से चलना प्रारम्भ कर देता है जिसके कारण एक प्रकार का निर्वात(Vacuum) उत्पन्न होता है जो खिंचावट/सुखद दवाब के रूप में प्रगट होता है।

किन्तु अनुभव विहीनता अज्ञानता के कारण 95℅ सहज अनुयायी इस अनुभूति को बाधा समझते हैं और तुरंत घबराने लगते है कि कहीं कोई नकारात्मकता अथवा हृदय से सम्बंधित रोग तो नहीं हो गया है जिसके कारण हृदय में दवाब बन रहा है।

iv) किसी भी चक्र में आनंदाई कम्पन्न का होना:-

ये बहुत ही सुंदर स्थिति है जो किसी भी चक्र में उपरोक्त अवस्था (iii) के बाद ही प्रगट होती है। जो इस बात का प्रतीक है कि तीव्र गति से चलता हुआ चक्र चित्त में स्थिति किसी भी व्यक्ति/स्वम्/स्थान/ स्थिति/वस्तु को उक्त चक्र के देवी-देवता की ऊर्जा प्रवाहित कर रहा है।

साथ ही इस घटना क्रम में उक्त चक्र पर उपस्थित ग्रह भी अत्यंत प्रसन्न होकर अपनी कक्षा में घूम रहे हैं। यानि इस अनुभव से किसी भी स्थान/व्यक्ति/स्वम्/वस्तु/स्थिति की सकारात्मक ग्रह-दशा भी पता चलती है।

उदाहरण के लिए यदि हमारे चित्त में कोई साधक है और तब हमारे चक्र में उपरोक्त घटना क्रम बने तो हमें समझना चाहिए कि उक्त साधक के सूक्ष्म यंत्र की बहुत अच्छी अवस्था है।

यानि उसका सम्बन्ध उस चक्र के देवी-देवता से अत्यंत प्रगाढ़ है साथ ही उसे उस चक्र से सम्बंधित ग्रह से आशीर्वाद भी मिल रहा है।"

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"Jai Shree Mata Ji"

Wednesday, June 13, 2018

"Impulses"--450--"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग -5)


"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग -5)
(03-01-18)


द्वीतीय स्थान के नकारात्मक संकेत:

"जब हमारी हाथ की हथेली में गर्माहट महसूस होने लगे तो समझना होगा कि उक्त हाथ की नाड़ी से सम्बंधित देवी-देवताओं गणों के गुणों का ह्रास होना प्रारम्भ हो गया है।

i)हाथ की उंगली के पोरवें में हल्की सी पकड़(Grip) जैसे महसूस होना:

ये लक्षण हमें बताते हैं कि उक्त चक्र से सम्बंधित गुणो के विपरीत हमारे/अन्य के मन पर किसी बात का अस्थाई प्रभाव रहा है।यानि हम किसी असत्य/नकारात्मक विचार/व्यक्ति से अनजाने में प्रभावित हो कर व्यवहार कर रहे हैं।

ii) हाथ की ऊँगली के पोरवे पर गर्माहट का होना:-

जब भी हमें ऐसा आभास हो तो हमें समझ जाना चाहिए कि हमारा चित्त जहां भी है, हम उक्त चक्र से सम्बंधित जिस चीज के विषय मे भी सोच रहें हैं, वो असत्य है।

साथ ही हमारी सोच का नकारात्मक असर हमारी उस उंगली से सम्बंधित अंगों पर भी पड़ रहा हैं। इससे एक और भी बात प्रगट होती है कि हम स्वम्/अन्य व्यक्ति उक्त उंगली से सम्बंधित चक्र के गुणों के विपरीत जाने-अनजाने में जा रहे हैं।

iii) हाथ की उंगली के पोरवों पर जलन का होना:-

हाथों की उंगलियों के पोरवों में महसूस होने वाली जलन उक्त चक्र के गुण के विपरीत हमारे/अन्य के स्वभाव को प्रगट करती है।

यानि हम स्वम्/अन्य कोई उक्त चक्र के गुण के विरोध में सोचने या कार्य करने के आदि हैं। साथ ही ये भी समझना होगा कि उक्त चक्र से सम्बंधित मुख्य अंग अब खराब होने जा रहे हैं।

iv) हाथों की उंगली के पोरवों में सुई जैसे चुभन का होना:-

ये स्थिति प्रगट करती है कि हममें/अन्य में उस चक्र से सम्बंधित दोष विकार उत्पन्न हो चुके हैं।

उदाहरण के लिए यदि हमारी/अन्य व्यक्ति की बायीं विशुधी की उंगली में तीव्र चुभन हो तो इसका मतलब स्पष्ट है कि हम झूठ बोलने, दोष भाव से ग्रसित रहने के आदि हैं।

साथ ही इससे ये भी स्पष्ठ होता है कि हमारे गले के बायें हिस्से में कोई रोग भी उत्पन्न हो चुका है।"

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"Jai Shree Mata Ji"


Monday, June 11, 2018

"Impulses"--449--"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-4)

"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-4)
 (30-12-17)

B ) द्वीतीय स्थान-हथेली उंगलियों के पोरवे:-चक्रों की विशेषताओं(गुण-दोष) शरीर के अंगों की स्थिति का प्रगटीकरण।

जब हम 'ईश्वर' की और थोड़ा बहुत झुकना प्रारम्भ कर देते हैं और "उन" पर कुछ विश्वास करना प्रारम्भ कर देते हैं तो ये ऊर्जा संकेत हमें हमारे हाथों के तालु भाग पर हाथों की उंगलियों के पोरवे पर मिलने लगते हैं।

जो कुण्डलिनी की शक्ति के द्वारा हमारे चक्रों के गुण-दोषों की स्थिति इनसे जुड़े मुख्य शारीरिक अंगों की स्थिति के बारे में भी बताते हैं।

ऐसी स्थिति में हमें समझना चाहिए कि 'विराट की शक्तियां' हमारा मार्ग दर्शन करने लग गईं हैं जो हमारी कुण्डलिनी के माध्यम से हमें शारीरिक, मानसिक आध्यात्मिक स्तर पर उन्नत होने में हमारी मदद करने लग गई हैं।

वास्तव में हमारे सूक्ष्म यंत्र की देखभाल का उत्तरदायित्व हमारी 'कुण्डलिनी माँ' पर होता है जो हमारे दिमाग की मदद से शरीर के अंगों की भी उचित देखभाल करती हैं।

द्वीतीय स्थान के सकारात्मक संकेत:-

जब भी कभी हमारे किसी भी हाथ की पूरी हथेली में शीतलता का अनुभव हो तब हमें जानना चाहिए कि उक्त हाथ से सम्बंधित नाड़ी के देवी देवता अपने गुणों से हमें परिपूर्ण रखे हुए हैं।

i) जब उंगली के पोरावों पर शीततालता का अनुभव होती है तब उंगली के पोरवे से सम्बंधित चक्र को दिव्य ऊर्जा स्पर्श करती है तो चक्र की स्थिति इस ऊर्जा के स्पर्श से स्पष्ट होती है।

इससे पता चलता है हमारे भीतर/अन्य व्यक्ति के उक्त चक्र से सम्बंधित गुण विद्यमान है और ही इस चक्र से जुड़े किसी अंग में ही कोई तकलीफ है।

ii) ऊँगली के पोरवे पर शीतल स्पंदन का होना:-

इसका मतलब है कि जब 'दिव्य ऊर्जा' ने इसको स्पर्श किया और इसका चक्र चलने लगा जिसकी प्रतिक्रिया हमारी उंगली के पोरवे पर शीतल स्पंदन के रूप में होती है।

साथ ही इससे ये भी पता चल रहा है कि हम/अन्य इस चक्र से सम्बंधित गुण का उपयोग कर रहे हैं एवम चक्र से जुड़े अंग भी सुचारू रूप से कार्य कर रहे हैं।

iii)ऊँगली के पोरवे से शीतल ऊर्जा का प्रवाहित होना:-

जब चक्र "परम" का प्रेम पाकर अपनी सुनिश्चित गति से चलने लगता है तो ये भी अपनी ऊर्जा को उत्पन्न करता है। जो हमारे चक्र से प्रवाहित होकर उस व्यक्ति/हमारे स्वयं के उसी चक्र को पोषित कर रही होती है जिस पर जाने अनजाने में हमारा चित्त होता है।

इससे ये भी सुनिश्चित होता है कि उक्त चक्र से जुड़े हमारे/अन्य के गुणो का पोषण हो रहा है और हमारे उक्त चक्र के अंग इससे जुड़े अन्य अंगों को ठीक प्रकार से पोषित भी कर रहे हैं।"


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