Monday, June 11, 2018

"Impulses"--449--"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-4)

"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'(भाग-4)
 (30-12-17)

B ) द्वीतीय स्थान-हथेली उंगलियों के पोरवे:-चक्रों की विशेषताओं(गुण-दोष) शरीर के अंगों की स्थिति का प्रगटीकरण।

जब हम 'ईश्वर' की और थोड़ा बहुत झुकना प्रारम्भ कर देते हैं और "उन" पर कुछ विश्वास करना प्रारम्भ कर देते हैं तो ये ऊर्जा संकेत हमें हमारे हाथों के तालु भाग पर हाथों की उंगलियों के पोरवे पर मिलने लगते हैं।

जो कुण्डलिनी की शक्ति के द्वारा हमारे चक्रों के गुण-दोषों की स्थिति इनसे जुड़े मुख्य शारीरिक अंगों की स्थिति के बारे में भी बताते हैं।

ऐसी स्थिति में हमें समझना चाहिए कि 'विराट की शक्तियां' हमारा मार्ग दर्शन करने लग गईं हैं जो हमारी कुण्डलिनी के माध्यम से हमें शारीरिक, मानसिक आध्यात्मिक स्तर पर उन्नत होने में हमारी मदद करने लग गई हैं।

वास्तव में हमारे सूक्ष्म यंत्र की देखभाल का उत्तरदायित्व हमारी 'कुण्डलिनी माँ' पर होता है जो हमारे दिमाग की मदद से शरीर के अंगों की भी उचित देखभाल करती हैं।

द्वीतीय स्थान के सकारात्मक संकेत:-

जब भी कभी हमारे किसी भी हाथ की पूरी हथेली में शीतलता का अनुभव हो तब हमें जानना चाहिए कि उक्त हाथ से सम्बंधित नाड़ी के देवी देवता अपने गुणों से हमें परिपूर्ण रखे हुए हैं।

i) जब उंगली के पोरावों पर शीततालता का अनुभव होती है तब उंगली के पोरवे से सम्बंधित चक्र को दिव्य ऊर्जा स्पर्श करती है तो चक्र की स्थिति इस ऊर्जा के स्पर्श से स्पष्ट होती है।

इससे पता चलता है हमारे भीतर/अन्य व्यक्ति के उक्त चक्र से सम्बंधित गुण विद्यमान है और ही इस चक्र से जुड़े किसी अंग में ही कोई तकलीफ है।

ii) ऊँगली के पोरवे पर शीतल स्पंदन का होना:-

इसका मतलब है कि जब 'दिव्य ऊर्जा' ने इसको स्पर्श किया और इसका चक्र चलने लगा जिसकी प्रतिक्रिया हमारी उंगली के पोरवे पर शीतल स्पंदन के रूप में होती है।

साथ ही इससे ये भी पता चल रहा है कि हम/अन्य इस चक्र से सम्बंधित गुण का उपयोग कर रहे हैं एवम चक्र से जुड़े अंग भी सुचारू रूप से कार्य कर रहे हैं।

iii)ऊँगली के पोरवे से शीतल ऊर्जा का प्रवाहित होना:-

जब चक्र "परम" का प्रेम पाकर अपनी सुनिश्चित गति से चलने लगता है तो ये भी अपनी ऊर्जा को उत्पन्न करता है। जो हमारे चक्र से प्रवाहित होकर उस व्यक्ति/हमारे स्वयं के उसी चक्र को पोषित कर रही होती है जिस पर जाने अनजाने में हमारा चित्त होता है।

इससे ये भी सुनिश्चित होता है कि उक्त चक्र से जुड़े हमारे/अन्य के गुणो का पोषण हो रहा है और हमारे उक्त चक्र के अंग इससे जुड़े अन्य अंगों को ठीक प्रकार से पोषित भी कर रहे हैं।"


-----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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