Saturday, April 25, 2020

"Impulses"--526--विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी" (भाग-5)


"विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी"
(भाग-5)


b) ऋणात्मक मनोवृति वाले सहजी:-

15.पूर्व संस्कारों की जड़ताओं से बाधित सहजी (Conditioned):-

इस वर्ग में ज्यादातर वह सहजी आते हैं जिनके ऊपर "श्री माता जी" से जुड़ने से पूर्व के पूजा-पाठ, अनुष्ठान की पूर्व पद्यतियों क्रियाओं प्रक्रियाओं का प्रभाव "श्री चरणों" से जुड़ने के बाद भी बना रहता है।

जो, अक्सर ऐसे सहजियों की गतिविधियों में सहज से सम्बंधित कर्मकांडों के प्रति तीव्र रुझान,

"श्री माता जी" के अल्टार को ना ना प्रकार से सुरुचि पूर्ण ढंग से सजाने,

विभिन्न पूजाओं में "उनको" चँवर ढुलाने,

कलश स्थापना की लम्बी विधिवत तरीके से की गई प्रक्रियाओं,

जैन धर्म की 'इंद्राणियों' की तरह अनेको सहजी महिलाओं के द्वारा सर पर कलश रख कर चलने आदि के रूप में मुखर होती रहती हैं।

16.सहज-संस्था पदाधिकारियों का साया बनकर आगे पीछे घूमने वाले सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले सहजियों की सदा यही कोशिश रहती है कि वे सहज संस्था के पदाधिकारियों की सेवा में ही रात दिन सदा लगे रहें।

जैसे ही इन सहजियों को पता चलता है कि सहज संस्था का कोई पदाधिकारी सेंटर रहा है तो तुरंत ऐसे सहजी अपने समस्त सहज कार्य छोड़-छाड़ कर बस उनके पीछे हो लेते हैं।

और जब तक वे पदाधिकारी उस स्थान पर रहते हैं, उक्त सहजी उनके आस पास ही लगातार बने रहते हैं और समय समय पर उनकी तारीफ भी करते रहते हैं।

वह बात अलग है कि आप बुजुर्ग होने के नाते ध्यान में गहनता के नाते उनका बड़े प्रेम आदर से उनको सम्मान दिया जाय।

17.राजनीतिक नेताओं राजनीतिक पार्टियों के पक्ष विपक्ष के सहजी:-

वास्तव में यह एक बेहद गम्भीर बाधा है जो अनेको सहजियों को अपने शिकंजे में ले चुकी है। जिससे बाधित होकर सहजी आपस में बुरी तरह से लड़ बैठते हैं एक दूसरे को निम्न से निम्न शब्दों का इस्तेमाल करते हुए सम्बोधित करते हैं।

कुछ सहजी तो इन राजनीतिक नेताओं के इस कदर भक्त गुलाम हो जाते हैं कि उन्हें अपने नेताओं के मानवता, 'प्रकृति', "परमात्मा" विरोधी कार्य भी सही लगते हैं।

और ऐसे अंध-भक्त किस्म के सहजी एक प्रकार से उनकी बातों, विचारधाराओं, व्यक्तित्व की पूरी तरह गुलामी करते हुए इन लोभी, स्वार्थी धूर्त नेताओं के लिए लड़ने मरने तक तो तैयार हो जाते हैं।

ऐसे सहजियों को यह समझ ही नहीं आता कि ये दुष्ट नेता हमारे देश देश वासियों के लिए अनेको किस्म के षड्यंत्र अपना कर हमारे देश को बुरी तरह बर्बाद करते ही जा रहे हैं।

कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे सहजी अपने अस्तित्व को "श्री माता जी" को समर्पण करने के स्थान पर इन नेताओं के प्रति ही समर्पित किये जा रहे हैं।

और ऐसा करके वे अपने को अत्यंत गौरान्वित महसूस करते हैं, कई बार तो पूर्णतया विवेक हीन होकर इन नेताओं के चेहरे के मुखोटे तक लगा कर घूमते हैं।

ये ऐसे सहजी होते हैं जिनके ह्रदय चक्र पूरी तरह बंद होता है और सहस्त्रार भी यदाकदा "श्री माँ" के स्वरूप अथवा "श्री चरणों" का ध्यान करने पर ही कुछ क्षणों के लिए खुलता है।

जब किसी सहजी का ह्रदय चक्र खुला होता है तो वह "श्री माता जी" के सिवा किसी का भी अनुसरण नहीं कर सकता और ही किसी और को इस हद तक समर्पित हो सकता है।

क्योंकि ह्रदय चक्र खुलने से मानव की आत्मा जागृत हो जाती है जिसके प्रकाश से मानव सत्य-असत्य में आसानी से भेद कर सकता है।

क्योंकि मानव की आत्मा प्रकाशित होने पर उसके भीतर सुप्त समस्त शक्तियां अद्यतिमिक ज्ञान केंद्र भी खुलने लगते हैं जिससे उसके भीतर सही गलत की समझ पैदा होती है।

18.बाह्य-धर्म, ऊंच-नीच जात-पात के प्रति कट्टर सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले सहजी "श्री चरणों" में आने के बाद भी बाह्य धर्मों, जात-बिरादरी, छूत-अछूत, ऊंच-नीच आदि के प्रति अत्यधिक भेद भाव करते रहते हैं।

यह देख कर बेहद शर्म महसूस होती है कि ऐसे सहजी अभी भी हिंदु-मुस्लिम, सिख-ईसाई करते रहते हैं और हमारे भारतीय समाज मे नफरत फैलाने वालों के साथ खड़े ही नजर नहीं आते।

वरन, अपने अपने स्तर अपनी अपनी क्षमता के आधार पर स्वयम भी सभी लोगों के बीच नफरत फैलाने का कार्य भी करते हैं। फेस बुक, ट्विटर, व्हाट्स एप्प आदि पर ऐसे सहजियों को खूब घृणा फैलाते अक्सर देखा जा सकता है।

जबकि "श्री माँ" ने तो सदा हम सभी को यही शिक्षा दी है कि,

हिंदु-मुस्लिम, सिख-ईसाई तो बस मात्र नाम हैं, हम सभी एक ही "परमात्मा" की संतान हैं।

इस प्रकार से "श्री माँ" विरोधी होकर भी भला किस प्रकार से अपने को सहजी कहलाते हैं, अपनी समझ से बाहर है।

19.फैशन आइकॉन फैशन मॉडल किस्म के सहजी:

इस वर्ग का वर्णन करने से पहले हम अपनी महिला सहज साथियों से पहले ही पूर्ण ह्रदय से क्षमा मांग रहे हैं।

क्योंकि हमारा उद्देश्य किसी भी महिला सहजी की भावनाओं को चोट पहुंचाना होकर कुछ तथ्य की बातों को आप सभी के समक्ष रखना है।

इस वर्ग में विशेष तौर से महिला सहजी आती हैं जिनके सहज का कार्य करते समय हाव भाव, व्यक्तित्व, परिधान आंतरिक इच्छा का प्रगटीकरण बड़ा ही मजेदार सुरुचिपूर्ण होता है।

कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे कोई सहजी होकर किसी T V Serial/Film की कोई अभिनेत्री हों जिनको ऐक्टिंग करने के अतिरिक्त डिजाइनर्स ड्रेसेस का प्रदर्शन प्रचार करने के लिए भी बोला गया है।

इस प्रकार के सहजी बड़ी ही चतुराई से ध्यान के कार्यो के साथ साथ अपने मन में स्थित अच्छे से सजने संवरने के लिए सभी से तारीफ प्राप्त करने की सुप्त इच्छाओं को भी साथ साथ पूरा करते चलते हैं।

इस प्रकार के सहजी जब भी कहीं पर सहज का कार्य करने के लिए जाते हैं तो उनकी साज-सज्जा, केशविन्यास, परिधान, चितवन, मुख-मुद्राओं बॉडी लैंग्वेज को देख कर ऐसा प्रतीत होता है मानो वह किसी विवाह अथवा सामाजिक जलसे में शामिल होने के लिए जा रहे हों।

ऐसे सहजियों के भीतर अपने व्यक्तित्व बाह्य कलात्मकता के लिए सभी से प्रशंसा प्राप्त करने की अदम्भय इच्छा विद्यमान होती है जो किन्ही सामाजिक परिस्थितियों हालातों के कारण बाहर नहीं पाती।

जब ऐसे सहजियों से "श्री माँ" जागृति का कार्य लेना प्रारम्भ करती हैं,

अथवा किसी सहज की सामूहिकता के अवसर पर उनके किसी गुण यानि, गायन, नृत्य सभी के सामने प्रगट करने का अवसर मिलता है तो उनकी सभी दिल खोल कर प्रसंसा करते हैं।

और जब यह सहजी अपने उन कार्यों के चित्र शोशल मीडिया पर डालते हैं तो उनको भरपूर 'लाइक' प्राप्त होते हैं।

तो अनेको 'लाइक' देख कर ऐसे सहजी अत्यंत प्रसन्न होते हैं धीरे धीरे उनके भीतर और भी प्रशंसा लाइक प्राप्त करने की इच्छा बलवती होने लगती है।

अब ऐसे सहजी धीरे धीरे अपने परिधानों, पहनावे, स्टाइल, लुक में बदलाव लाना प्रारम्भ कर देते हैं।

और अनजाने में अपनी सादगी, सौम्यता, शालीनता भोले पन को कृत्रिमता की चका चौंध उथले पन से नष्ट करना प्रारम्भ कर देते हैं।

उनके बदलते हुए हुए स्वरूप के कारण उन्हें और भी अधिक लाइक मिलना प्रारम्भ हो जाते हैं और साथ ही उनकी कृत्रिमता दिखावे की प्रवृति में और भी बढ़ोत्तरी होती चली जाती है।

और फिर हालात यह हो जाती है कि ऐसे सहजी अत्यंत उत्साहित होकर विभिन्न मुद्राओं भाव भंगिमाओं में अपनी 25-30 फोटोज का पूरा का पूरा एल्बम डालना प्रारम्भ कर देते हैं जिन पर और लाइक मिलते हैं।

और इसके बाद तो हाल यह हो जाता है कि चाहे सामाजिक कार्यक्रम, विवाह समारोह हो, बर्थडे पार्टी हो, कोई त्योहार हो अथवा किट्टी पार्टी हो।

उनके फोटो तो हर हाल में डलने ही डलने हैं और फिर अगली फोटोज की पोस्ट तक हर मिनट में लाइक्स की संख्या कमेंट्स भी चेक करने ही करने हैं।

बदकिस्मती से ऐसे सहजी 'सेल्फी मैनिया' के बुरी तरह शिकार हो कर पूर्णतया असंतुलित हो जाते हैं।

यह बीमारी ऐसी ही है जैसे कोई हर समय शीशे के सामने खड़ा होकर विभिन्न हाव भाव मुद्राएं बना बना कर अपने पर ही मोहित होता रहे।

"श्री माता जी" ने अपने एक वक्तव्य में, *शीशे के सामने अत्यधिक समय बिताने को एक प्रकार की 'भूत बाधा'ही बताया है।*

जो भी तरह तरह की मुद्रा हम शीशे के सामने बनाते हैं शीशा उन मुद्राओं को सेव नहीं कर सकता किन्तु सेल्फी वाला कैमरा उन्हें सेव करके संसार को दिखा सकता है।

ऐसी स्थिति में उनका चित्त ध्यान में कम अपने परिधानों, मेकअप, जूलरी, डिजाइन, लुक, प्रेजेंटेशन, शेड्स, मैचिंग, स्टाईल, कलर आदि में ही ज्यादा रहने लगता है।

ऐसे सहजियों का चित्त इतना उथला हल्का हो जाता है कि जरा जरा सी बात से ये बिखरने लगते हैं। ध्यान की एकाग्रता तो मानो कहीं खो जाती है और इनको ध्यान में गहन होने से भी डर लगने लगता है।

ऐसे सहजी रटे रटाये सुनिश्चित एकरस तरीके से केवल आत्म साक्षात्कार ही दे पाते हैं, ध्यान की गहराई उनसे कोसों दूर छूट जाती है।

किन्तु ऐसे सहजी पूजा हवन आदि की प्रक्रियाएं बड़ी ही भव्यता के साथ करते हैं जो देखने में सभी को बड़ा प्रभावित करती हैं।

और फिर पूजा के बाद "श्री माता जी" के अल्टार के साथ एक लंबा सा फोटो सेशन चलता है जिसमें कम से कम 30-40 फोटो खींच कर शोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिए जाते हैं।

साथ ही ऐसे सहजी अपने खोखले पन को ढकने के लिए बारंबार "श्री माता जी" के अनेको स्थानों पर जाते रहते हैं और वहां पर भी बाकायदा "श्री माता जी" के स्थान के साथ फोटो-शूट कर कर के शोशल मीडिया पर और लाइक्स का लुत्फ उठाते रहते हैं।

इस तथ्य पर जरा गम्भीरता के साथ गहन ध्यान अवस्था में चिंतन करके देखा जाय,

1.कि, क्या "श्री माता जी" के स्थानों पर तीर्थों की तरह जाने से क्या गहनता प्राप्त हो सकती है ?

2.क्या बिना अपने अंतःकरण के उतरे अपनी चेतना को विकसित किया जा सकता है ?

3.जो लोग सदा "श्री माता जी" के सामने/साथ रहा करते थे क्या वह सभी "उनके" सामने रहने/साथ रहने से गहन हो पाए ?

4.यदि "श्री माता जी" अभी की अभी हमारे सामने आकर बैठ जाएं/अथवा हमें "अपने" साकार स्वरूप में दर्शन दे तो क्या हम गहन हो जाएंगे ?

5.हमारे अनेको सहजियों ने "श्री माता जी" की साक्षात पूजा सानिग्ध्यय का अनेको बार लाभ उठाया है तो क्या वह सभी आज गहन हैं ?

यदि नहीं तो फिर अन्य संसारियों के अनेको तीर्थों पर जाने की तरह "श्री माता जी" के स्थानों पर बारंबार जाने से क्या होने वाला है?

इससे और कुछ नहीं होता हमारी गिनती में इजाफा होता है और दबे पांव हमारे भीतर में छुपा हुआ अहंकार का आकार दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ता जाता है।

और हम अन्य सभी सहजियों को बड़ी हेय दृष्टि से देखने लगते हैं और एक प्रकार से हम उन नए सहजियों को भी ध्यान में गहनता प्राप्त करने के स्थान पर ऐसा ही करने के लिए प्रेरित कर रहे होते हैं।

और वे नए लोग अन्य नए लोगों को भी ऐसा ही करने की प्रेरणा देते हैं और देखते ही देखते सहज योग में भीड़ तो बहुत हो जाती है किंतु ध्यान का अच्छा स्तर कहीं नजर नहीं आता।

वास्तव में ऐसे सहजी खाली कनस्तर की तरह हो जाते हैं जो बाहर से दिखते तो हैं किंतु उनके भीतर कुछ भी नहीं होता जिससे अन्य लोगों को लाभ हो।

ऐसे सहजियों की भी फिल्मी सेलेब्रिटीज की तरह फैन फॉलोइंग बन जाती है और उन्हीं के स्तर के कुछ नए सहजी उनके द्वारा कराए गए आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया के माध्यम से सहज परिवार में जुड़ने प्रारम्भ हो जाते हैं।

क्योंकि उन नए लोगों के लिए तो मॉडल आप ही हैं , वे तो आपकी फैशन परस्ती उथले पन के कायल हैं और आपकी तारीफ करते करते सहज से जुड़े हैं तो ऐसे लोगों की सामूहिकता से भला किसका लाभ होने वाला है।

क्या इस प्रकार से तैयार हुए नए सहजियों से "श्री माँ" का स्वप्न पूरा हो पायेगा जो सहज को इतना हल्का ले रहे हैं और "श्री माता जी" को मात्र अपनी आधी-अधूरी इच्छाओं को पूरा करने का साधन मात्र मान रहे हैं।

हम क्या कहें, एक बार तो फेस बुक पर एक महिला सहजी ने स्विम सूट बिकनी में अपने फोटो सेशंस के फोटो डाल रखे थे जो शायद मॉडलिंग फैशन की दुनिया से तालुक रखती हैं।

किन्तु उनको यह अवश्य सोचना चाहिए था कि यह सहज योग का अत्यंत गरिमा मई प्लेटफार्म हैं जहां पर "श्री माँ" हमारे माध्यम से सहज को आगे बढ़ा रही हैं इसकी गरिमा का तो कुछ अवश्य ख्याल रखना चाहिए।

ठीक है आपके लिए धन कमाने साधन जुटाने का साधन क्या है हमें इससे कोई लेना देना नहीं है किंतु यह एक सामूहिक सहज का शोशल प्लेटफार्म है।

जिसमें हर वर्ग स्तर के सहजी मौजूद हैं साथ ही कुछ नए लोग भी हमें इस शोशल मीडिया के जरिये देख रहे हैं हमारे माध्यम से सहज का अनुसरण कर रहे हैं।

तो कम से कम हमको सहज की गहनता आनंद को प्रस्तुत करना है कि उथले पन फैशन परस्ती का प्रदर्शन करना है।

यदि आप अपने सांसारिक व्यक्तिगत जीवन की उपलब्धियों योग्यताओं को आपके सांसारिक जीवन से जुड़े अपने मित्रों रिश्तेदारों में शेयर करना चाहते हैं।

तो अपनी एक और फेस बुक प्रोफ़ाइल/फेस बूक पेज बना लें जहां पर जम कर अपनी आकृति/परिधान/मेकअप/स्टाईल/मुद्राएं/अदाएं/चितवन/फैशन का प्रदर्शन करें तो शायद किसी भी सहजी को कोई आपत्ति नहीं होगी।

वास्तव में होता यह है कि ऐसे सहजियों के भीतर अपनी पहचान बनाने प्रदर्शनकारी स्वभाव बहुत तीव्र होता है और उनके कोई खास मित्र रिश्तेदार आदि की संख्या अधिक नहीं होती।

और ही ऐसे सहजी समाज में पहले किसी भी कारण से जाने ही जाते है तो उनके लिए सहज योग के माध्यम से अपनी यह अन्तः क्षुधा शांत करने का बहुत ही आसान रास्ता होता है।

सहज के कार्यों के कारण अनेको सहजी ऐसे सहजियों के बारे में अच्छे से जान ही जाते हैं और सहज के कार्यों को तो लगभग सभी सहजी 'लाइक' करते ही हैं।

तो ऐसे आंतरिक इच्छा पिपासा वाले सहजियों को अपनी इच्छा पूरी करने अपनी TRP बढ़ाने का सुनहरी अवसर मिल जाता है।

इच्छा तो पूरी हो जाती है किंतु वास्तविक गहन सहजी धीरे धीरे ऐसे सहजियों की नुमाइश की प्रवृति के कारण दूर होने लगते हैं, और उनका चित्त ऐसे सहजियों से हटने लगता है।

जिनके कारण उनके यंत्र में ऊर्जा की कमी होने लगती हैं और एक दिन ऐसा आता है वायब्रेशन का उनके यंत्र में आभाव हो जाता है और वे बस नाम दिखावे के ही सहजी रह जाते हैं।

क्योंकि हम सब "श्री माता जी" के द्वारा एक दूसरे के आत्मिक प्रेम से ही पोषित होते हैं और प्रेम का घनत्व बारंबारता का आधार गहनता, सत्यता मौलिकता ही है।

यदि कुछ हमारी सहज यात्रा के साथी हमारे इन उद्गारों से आहत हों तो हम पुनः क्षमा मांगते हैं।

किंतु हम आप सभी से एक बार अवश्य निवेदन करेंगे कि आप ध्यानास्थ अवस्था में इन तथ्यों पर अवश्य चिंतन ध्यान करके जरूर देखें उत्तर आपके भीतर से ही मिल जाएगा।

हमारी एक सहज साथी एक बार कह रहीं थीं कि जब "श्री माता जी" मुझसे ह्रदय में प्रेरणा देकर कुछ लिखवाती हैं तो मुश्किल से 20-25 लोग ही लाइक करते हैं और उस पर कमेंट भी दो चार ही मिलते हैं।

और जब मैं अपना फोटो शेयर कर देती हूँ तो 200-300 लाइक पहले ही कुछ घंटों में मिल जाते हैं और उस फोटो पर कमेंट करने वालों की लाइन लग जाती है।

तब हमने उनसे कहा था कि अधिकतर सहजियों की दृष्टि ही उथली है। उनका स्तर तुम्हारे द्वारा लिखी गई गहनता की बातों को समझने योग्य ही नहीं है।

लेकिन कुछ सहजी आज भी मौजूद हैं जिन्हें वह गहनता समझ आती है और उस गहनता का वो भरपूर लुत्फ उठाते हैं।

अफसोस कि बात यह है कि आज भी सहजी चेहरा ही देखते हैं तुम्हारे भीतर क्या है इससे उन्हें कोई मतलब ही नहीं है।

और एक बात सत्य है कि सहज में गिनती के लोग ही गहन होते हैं जो वास्तव में सच्चे खोजी होते हैं और यही सहजी "श्री माँ" को चाहिए।

भीड़ पर "श्री माता जी" ने अपने एक वक्तव्य में कहा था:

बेकार के 100 लोगों से अच्छा है कि कायदे के 10 लोग ही हों तो काफी है।

हर भीड़ वास्तव में सामूहिकता नहीं होती है, सामूहिक होने के लिए मध्य ह्रदय सहस्त्रार का खुला होना आवश्यक हैताकि एक दूसरे की चेतना को एक दूसरे के सहस्त्रार मध्य ह्रदय में अनुभव किया जा सके।

भीड़ तो अक्सर मदारी भी एकत्रित कर लेते हैं, सच्चों के पास तो कुछ ही कायदे के लोग ठहरते हैं।

---------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"