Sunday, April 5, 2020

"Impulses"--523--"विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी" (भाग-4)


 "विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी"
(भाग-4)


b) ऋणात्मक मनोवृति वाले सहजी:-

10.ईर्ष्यालु सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले अधिकतर सहजी सहज का खूब कार्य करने वाले किसी अच्छे ह्रदय के सहजी से आत्मीयता प्रेम दिखाते हुए मित्रता बनाये रखते हैं।

किंतु उसके गुणों उसके कार्यों के चलते भीतर ही भीतर उससे लगातार ईर्ष्या भी करते रहते हैं। क्योंकि जिस सहजी से वे तूलना कर रहे होते हैं वह सहजी आम सहजियों के बीच खासा लोकप्रिय होता हैं।

और उसके सहज कार्यों उसकी लोकप्रियता के कारण ही ईर्ष्यालु सहजी उस सहजी के साथ लगातार बने रहते हैं। अपने मन में सदा यह हसरत रखते हैं कि इस सहजी की तरह अन्य सहजियों के बीच वे भी लोकप्रिय हों।

और सभी सहजी उनकी बातों उनके कार्यों की भी सराहना प्रशंसा करें और वे बड़े गर्व से सभी के बीच मुस्कुरा मुस्कुरा कर मूक भाषा में उन्हें प्रतिउत्तर दें।

इस भावना से वशीभूत होकर जाने अनजाने में वे उस सहजी के अनुभव, ज्ञान,तौर तरीके, हाव भाव व्यवहार की नकल तक करना प्रारम्भ कर देते हैं।

लेकिन ऐसे सहजियों को जब भी मौका मिलता है उस सहजी की कमियां निकाल निकाल कर अन्य सहजियों की नजरों में उसे गिराने अपने को श्रेष्ठ साबित करने से भी नहीं चूकते।

ऐसा करने में उनके मन को बड़ा ही सुकून शांति महसूस होती हैं क्योंकि इस प्रकार की बातों से उनका अहम संतुष्ट होता है।

11.पीठ पीछे निंदा करने वाले सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले सहजी अधिकतर चापलूस दुहरे व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं। जो सबके सामने तो भले अच्छे बने रहते हैं, किंतु किसी भी अच्छे सहजी की पीठ पीछे जम कर बुराई करते हैं।

ऐसे सहजियों की विशेषता होती है कि जब भी वो किसी से मिलेंगे तो मुस्कुराकर बड़ी गर्म जोशी के साथ 'जय श्री माता जी' बोलेंगे। और उनके मुड़ते ही साथ में बैठे/खड़े हुए सहजी से उनकी बुराई चालू कर देंगे मानो वे बहुत बड़े ज्ञानी-ध्यानी हों।

इस प्रकार के निंदा करने वाले सहजी सहज संस्थाधिकारियों के इर्द गिर्द मंडराते रहते हैं। और उनके खबर नवीस जासूस की तरह से कार्य करते हुए उनकी नजरों में चढ़ने का निरंतर प्रयास करते रहते हैं।

कई बार तो ऐसा होता है कि इनके सामने यदि किसी अच्छे सच्चे सहजी ने किसी अन्य सहजी को अपने कुछ सार्थक अनुभवों के आधार पर किसी सहजी की किसी परेशानी/ प्रश्न का हल बता दिया।

और वह सहजी बता कर किसी अन्य सहजी से बात करने के लिए थोड़ा आगे बढ़ गया। तो इस प्रकार के सहजी तुरंत लपक कर उस प्रश्न पूछने वाले सहजी के पास जाएंगे और उस अच्छे सहजी की बुराई करना प्रारम्भ कर देंगे।

अधिकतर बुराई करते हुए कहेंगे कि जो कुछ भी इन्होंने बताया है वह गलत है क्योंकि यह "श्री माता जी" ने नहीं बताया है।

यदि आप इनके बताए पर अमल करोगे तो निगेटिविटी आप पर जायेगी साथ ही यह भी कहेंगे कि ये एन्टी सहज हैं, सबके गुरु बने फिरते हैं, सब गलत सलत बताते हैं, इनके चक्कर में पड़ना।

12.झूठी बाते फैलाने वाले सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले ज्यादातर सहजी अधिकतर अत्यंत महत्वकांशी होते हैं और वे येन केन प्रकारेण सहज संस्थाधिकारियों के बीच अपना महत्व बनाये रखने के लिए लगातर प्रयासरत रहते हैं।

इनकी अन्दरूनी इच्छा सदा सहज लीडरशिप के माध्यम से अन्य सहजियों पर अपना प्रभाव बनाये रखने रौब चलाने के लिए अपनी पोजिशन बनाये रखने में लगातार बनी रहती है।

ऐसे सहजी अंदर ही अंदर चाहते हैं कि वे या तो सहज संस्था में किसी प्रभाव शाली पोस्ट पर आसीन हो जाएं। अथवा इन पदों पर पहले से आसीन लोगों से घनिष्ठ हो जाएं ताकि सहज नेतृत्व का मजा भी लूटते रहें।

ऐसी मनोवृति वाले सहजी, किसी अच्छे सहजी के कार्यों, ध्यान, ज्ञान अनुभवों के कारण अन्य बहुत से सहजियों के द्वारा पसंद किये जाने पर किन्हीं मानसिक नकारात्मक भावनाओं के चलते अत्यंत पीड़ित होते हैं।

और अपने इस मानसिक विकार के चलते अन्य सहजियों के बीच उस सहजी के कार्यों ध्यान के बढ़ते प्रभाव के चलते।

अपनी आधी अधूरी जानकारी उथली समझ के आधार पर उसके बारे में झूठी बातें अन्य सहजियों के बीच प्रचारित करना प्रारम्भ कर देते हैं।

ताकि अन्य सहजियों को मानसिक रूप से भ्रमित कर उस अच्छे सहजी की प्रतिष्ठा को धूमिल किया जा सके। ऐसे विकृत सहजी सदा अपने ही जैसी मन अवस्था वाले सहजियों को खोजते रहते हैं।

और धीरे धीरे ऐसे विक्षिप्त मानसिकता वाले सहजियों का समूह तैयार करके सहज के संस्थागत शीर्ष नेतृत्व को अपने प्रभाव में लेकर अपने हिसाब से सभी को चलवाने का असफल प्रयास करते रहते हैं।

13.प्रशंसा प्रिय सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले सहजी अपने सांसारिक जीवन में किन्ही कारणों से भीतर ही भीतर अत्यंत दमित दब्बू किस्म के रहे होते हैं जिसके कारण उनके भीतर हीन भावना का प्रभाव काफी रहा होता है।

जब ऐसे सहजियों को "श्री माँ" की कृपा से कोई ऐसा सहज माध्यम मिलता है जिसके जरिये वे अपने खोए हुए आत्मसम्मान, आंतरिक शक्ति, आत्मविश्वास को पुनः अनुभव कर पाते हैं।

तो ऐसे सहजी उत्साहित होकर जोर शोर से सहज का कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं। और इन कार्यों के कारण अन्य सहजियों से उन्हें काफी सराहना प्रशंसा प्राप्त होने लगती है।

धीरे धीरे उन्हें लोगो से प्रशंसा सुनने की लत लग जाती है और वे सहज से सम्बंधित अपना हर कार्य, हर बात, हर गतिविधि, अपनी तारीफ सुनने की आकांशा से करना प्रारम्भ कर देते हैं।

14.आत्म-मुग्ध सहजी:-

इस वर्ग में आने वाले ज्यादातर वही सहजी होते हैं जिनके सहज के कार्यों की अन्य सहजियों ने काफी तारीफ की होती है और वे सहजियों के बीच अच्छे खासे लोकप्रिय हो जाते हैं।

ऐसे सहजियों के कान सदा अपनी प्रशंसा सुनने के लिए लालायित रहते हैं। अतः अपनी इस क्षुधा को शांत करने के लिए वो ना ना प्रकार के सामाजिक कार्यों में भी लगने लगते हैं।

और अपने उन कार्यों को जोर शोर के साथ समय समय पर प्रदर्शित भी करते रहते हैं ताकि उनकी लोकप्रियता निरंतर बनी रहे।

प्रसिद्धि पाने की ख्वाइश के चलते अब उनके मन के भीतर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की अभिलाषा उमड़ने-घुमड़ने लगती है।

जिसके चलते वे 'सेल्फ ऑब्सेशन' नाम के गम्भीर मनोरोग से ग्रसित हो जाते हैं जिसकी गिरफ्त में आकर वे विभिन्न प्रकार के अजीबो गरीब फैशन परीधानो स्टाईल को अपनाने लगते हैं।

जो कई बार उनके शरीर की आकृति व्यक्तित्व के हिसाब से बहुत ही हास्यपद सहज गरिमा के विपरीत लगते हैं।

एक समय आता है जब वे अपने आप को ही सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम समझने लगते हैं और अपने हर कार्य को बड़ी भव्यता अलंकरण के साथ सबके सामने पेश करते हैं।

दैनिक जीवन में आने वाले छोटे मोटे त्योहारों राष्ट्र्रीय पर्वों पर उनका प्रदर्शन, भव्यता दिखावे की वृत्ति देखते ही बनती हैं। इतना सब कुछ करके भी ऐसे सहजी भीतर से अत्यंत खोखले दुखी ही रहते हैं।

क्योंकि वे अपने अन्तःकरण में जानते हैं कि वे ध्यान में स्वयं उन्नत होने के लिए वास्तव में कुछ कर ही नहीं रहे हैं। किन्तु उनकी अपनी दिखावे की आदत के वशीभूत होकर वो भीतर ही भीतर हताश होते रहते हैं।

ऐसे सहजी गहन ध्यान में उतर कर अपना स्वयं का सामना तक करने की स्थिति में नहीं होते।

क्योंकि सहज के नाम पर विभिन्न प्रकार के बाह्य उपक्रमों में ही अपना कीमती समय निरंतर व्यर्थ करते जाते हैं और आंतरिक रूप में दोष भाव से ग्रसित ही रहते हैं।

जिसके कारण कई बार वे अत्यंत चिढ़-चिड़े हो जाते हैं और उनका व्यवहार कई बार अत्यंत कटु लड़ने वाला हो जाता है।

यहां तक कि यदि कोई किसी बात पर उनकी बात से सहमत हो तो वे कई बार अत्यंत बिगड़ भी जाते हैं और सहमत होने वाले को अत्यंत भला बुरा भी बोल देते हैं।

ऐसे सहजियों की स्थिति भीतर ही भीतर इतनी बुरी हो जाती है कि वे हर समय आशंकित रहने लगते हैं कि कोई उनकी बुराई तो नहीं कर रहा।
भीतर ही भीतर उनको यही भरम होने लगता है कि सभी लोग उनकी तरक्की लोकप्रियता से जलते हैं।

जबकि वास्तव में ऐसे सहजी अपने प्रति अत्यधिक शंकालु स्वभाव हो जाने के कारण कई प्रकार के मतिभ्रमों का शिकार होकर अत्यंत मूर्खता पूर्ण हरकते तक कर डालते हैं और वे सभी हरकतें उन्हें उच्च कोटि की लगती हैं।

अपने को सबके सामने ज्ञानी उच्च अवस्था का दिखाने की होड़ में ऐसे सहजी अन्य सहजियों के वास्तविक अनुभवों "श्री माता जी" के किन्ही लेक्चर्स के कुछ अंशों को कंठस्थ कर लेते हैं।

और लगभग हर आत्मसाक्षात्कार ध्यान की सामूहिकता में जैसे का तैसा थोड़ा बहुत रद्दो बदल करके पेश कर देते हैं ताकि सुनने वाले को लगे कि बहुत ऊंची बाते बताई जा रहीं हैं।

ऐसे सहजी, जो भी अन्य लोगों को बताते हैं वास्तव में उन अधिकतर बातों का उन्हें स्वयं कभी भी अनुभव ही नहीं हुआ होता। और कई बार तो ऊंचे दर्जे का सहजी दिखने की चाहत में अपना फितूरी दिमाग लगा लगा कर ऐसी ऐसी बाते बोल जाते हैं।

जिनका कोई सिर पैर ही नहीं होता,और ही वे बाते आध्यात्मिक व्यवहारिक रूप से सही ही होती हैं।

●"ईर्ष्या की प्रवृति मानव को पतन की उस खाई में धकेल देती है, जहां से मानव आजीवन कभी भी बाहर नहीं पाता।

साथ ही ईर्ष्या मानव की समस्त अन्दरूनी शक्तिओं का ह्रास करके उसको भीतर ही भीतर इतना कमजोर बना देती है। कि उसका स्वयं का आत्म विश्वास, क्षमता, विवेक उसके गुण नष्ट हो जाते हैं,

और ऐसा मनुष्य दीमक लगी चौखट की तरह एक दिन भरभरा कर गिर जाता है।"●

-----------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji" 





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