Tuesday, February 27, 2018

"Impulses"--433--"Agnya at Service"

"Agnya at Service"


“Our Left Agnya works like the Container of Every knowledge which we have acknowledged earlier by our awareness or our know-how while our Right Agnya behaves like the Analyzer and teller of Contained Knowledge.

Whatever comes before us our consciousness takes our attention to Right Agnya first and then our Right Agnya starts tallying the new information with contained data as Computer does.

If the data matches then the file gets open and we get old information which manifests in the form of our acceptance. And when new data doesn’t matches with old one which manifests in the form of rejection or non-acceptance.

Then this Right Agnya gives us new options on the basis of analysis of previous know-how. And when we don’t like all those options then we become confused and bewildered and feel tensed.

Then we still keep on thinking and thinking, our all the nerves get tensed and there starts some pain which may converts into ‘Migraine’ later.

Pain shows the involvement of our attention into Anti-Nature and Anti-God Notions or Thoughts. Our whole physical body is made by “Her" "Herself" so this body is quite Awakened.

Each and every Cell tells us what is right and what is wrong by showing it’s annoyance in the form of pain and reactions if we little understand the language of our Biological Unit.

For an ordinary Human Life, our both the Agnya Chakras (hemispheres) balance our Emotions by giving information and several options to reduce the anxiety and fear of gaining and losing anything during the process of fulfilling different types of our Needs and Requirements.


And when we connect with "Almighty" and we feel ‘His” love at our Sahastrara and into our Central heart only then we could get latest knowledge of our Present from our Central heart which cannot be denied by our both the Agnya Chakras and we will be blessed with Self-Knowledge.”

--------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

Wednesday, February 21, 2018

"Impulses"--432--"सहजमोहाचरण"

"सहजमोहाचरण"

"ये बहुदा देखने में आता है कि ज्यादातर सहजी अपने पारिवारिक अथवा नजदीकी सदस्यों को अपने मोह अपनी सुविधा के चलते सहज में लाने का बाहरी रूप से भरसक प्रयास करते हैं। ताकि वो सदस्य उनके सहज के कार्यों पर कोई प्रश्न करें एवम बाहर आने जाने पर टोकाटाकी रुकावट डालें।

और यदि वो नहीं जुड़ पाते तो उनकी उपेक्षा करने लगते है, उनको भलाबुरा कहने लगते हैं और कभी कभी तो उनका तिरस्कार तक करने लगते है।
ऐसा करने से अक्सर उन पारिवारिक सदस्यों के आगन्या में उपस्थित नकारात्मक अस्तित्व जागृत हो जाते हैं। जो उन्ही सहजियों को भारी कष्ट पहुंचाते हैं और उनके आत्मिक उत्थान को बाधित करते रहते है।

यदि परिवार नजदीकी सदस्यों को "श्री चरणों" का वास्तविक लाभ देना चाहते हैं तो सर्वप्रथम गहन ध्यान अवस्था की हर 'बैठक' में पूर्ण रूप से निर्लिप्त होकर उनके सहस्त्रार मध्य हृदय पर निरंतर चित्त की सहायता से ऊर्जा प्रवाहित करते रहें। 

जब तक वो स्वम् अपनी इच्छा से नित्य ध्यान में बैठने प्रारम्भ कर दें, और "श्री माँ" के प्रति अनुग्रह प्रगट करना प्रारम्भ कर दें।चित्त के द्वारा ऐसा करने से "माँ" की शक्तियों के स्पर्श से उनकी कुण्डलिनी माता उनकी आत्मा में हलचल प्रारम्भ हो जाती है।  

जो उनकी जड़ताओं पूर्व संस्कारों को काटना प्रारम्भ कर देती है। जब उनकी जड़ताओं पूर्व संस्कारों का प्रभाव उनके भीतर काफी कम हो जाता है तब जाकर उनके हृदय में सहज ध्यान से जुड़ने की प्रेरणा उत्पन्न होने लगती है और वे "श्री चरणों" की ओर आकर्षित होने लगते हैं।

किन्तु इस अवस्था में भी अतिउत्साहित होकर उन्हें सहज के विषय में स्वम् नहीं बताना चाहिए जब तक कि उनके भीतर जिज्ञासा परिलक्षित हो, और वे स्वम् कुछ जानने के लिए आपसे निवेदन करें। ऐसी स्थिति आने तक केवल और केवल अपने हृदय में मूक संवाद चित्त के द्वारा पूर्ण धैर्य के साथ ऊर्जा प्रवाहित करने पर ही केंद्रित रहना चाहिए।

यदि कुछ महीनों के बाद भी उनका रुझान "श्री माँ" की तरफ हो पाये तो उनके ऊपर किये जाने वाले कार्य को छोड़ देना चाहिए और अपने उन प्रियजनों को "श्री चरणों" के हवाले कर के स्वम् के प्रयासों से मुक्त हो जाना चाहिए।

यदि अब "माँ" चाहेंगी तो वो सहज से जुड़ जाएंगे अन्यथा आपके साथ खुशी खुशी एक साधारण मानवीय जीवन व्यतीत करेंगे और आपका सम्मान भी करेंगे।

वास्तव में श्री माँ" के "श्री चरणों" में वही आता है जो इसका पात्र होता है।जिसकी पात्रता का निर्धारण पूर्व जीवन में हो चुका होता है। अतः अपने भीतर उन लोगों के सहज में पाने के दुख से कभी भी पीड़ित नहीं होना चाहिए और ही अपने को या किसी अन्य को कोई दोष ही देना चाहिए।"

------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

Saturday, February 10, 2018

"Impulses"--431--"मूलाधार चक्र के संशय व निवारण"

"मूलाधार चक्र के संशय निवारण"


"अक्सर बहुत से सहजी मूलाधार चक्र की पकड़ को लेकर अत्यधिक शंकित चिंतित रहते हैं इसकी सबसे ज्यादा चर्चा करते हैं।

क्योंकि "श्री माता जी" के मुताबिक ये चक्र हमारे सूक्ष्म यंत्र की आधार शिला माना जाता है। और शंकाओं के चलते वो अपने सामान्य नैसर्गिक मानवीय जीवन से भी विमुख होने लगते हैं।

यहां तक कि विपरीत जेंडर के सहजियों के साथ उठने-बैठने, बातचीत करने, उनमे आपसी मित्रता के होने, एक दूसरे के साथ ध्यान में बैठने, एक दूसरे को पसंद करने, एक दूसरे के गुणों की प्रशंसा करने आदि को भी मूलाधार चक्र की खराबी से ही जोड़ देते हैं।

जिसके कारण सर्वप्रथम तो अत्यंत नजदीकी रिश्ते गड़बड़ाने लगते हैं और बाद में अनेको प्रकार की मनो-दैहिक समस्याओं में वो घिरते ही चले जाते हैं।अज्ञानतावश वो "श्री माता जी" के लेक्चर्स को गहनता से समझ नहीं पाते और ही उन लेक्चर्स की ऊर्जा को ही ग्रहण करते हैं।

केवल "उनकी" वाणी को सुनते हैं और अपनी सीमित बुद्धि सोच से उनका आंकलन करके स्वम् कुछ धारणाएं बना लेते हैं और उन धारणाओं में अपने को स्वेच्छा से जकड़ लेते हैं। 

धीरे धीरे अज्ञानतावश वो अपने आपको इतनी गम्भीर कंडीशनिंग में बांध लेते हैं कि इस संसार में उनका दम घुटने लगता है, और मानसिक विकृति उन्हें बुरी तरह घेर लेती है।

वास्तव में विकृति में फंसने के बाद उनकी चेतना जड़ हो जाती है जो उनके मानसिक संतुलन को पूर्णतया बिगाड़ देती है जिसके कारण उनकी नाड़ियां भी असंतुलित हो जाती हैं। 

ऐसी विकट स्थिति में उलझने पर अब जाकर उनका मूलाधार चक्र पकड़ा जाता है जो अन्य चक्रों पर भी भी बुरा प्रभाव डालता है क्योंकि 'गणपति' तो बाकी के 6 चक्रों में भी उपस्थित होते हैं।

'गणेश' तत्व खराब होने पर बाकी के कोई भी चक्र ठीक से कार्य नहीं कर सकते क्योंकि "श्री गणेश" की अनुमति के बिना बाकी के चक्रो के देवता भी हमें आशीर्वादित नहीं कर पाते हैं। इस कारण अधिकतर सहजि इसी चक्र को स्वच्छ करने में ही सबसे ज्यादा समय व्यतीत करते हैं।

यदि अपने मध्य हृदय सहस्त्रार से जुड़कर गहन ध्यान अवस्था में चिंतन करें तो पाएंगे कि इस चक्र के गुणों के विपरीत जीवन यापन करने के परिणाम स्वरूप ये चक्र गड़बड़ हो जाता है।

यानि "श्री माता जी" के अनुसार इस चक्र की चार मुख्य विशेषताएं हैं जिनको थोड़ा विस्तृत रूप से हम समझने का प्रयास करेंगे।प्रथम है:

1.अबोधिता:--मतलब ईर्ष्या, घृणा, प्रतिस्पर्धा, भेदभाव, ऊँचनीच, हिंसा (बाह्य आंतरिक), षड्यंत्र, छल, झूठ, फरेब, आडंबर, दिखावा, धोखा, अपमान आदि से दूर रहना।

2.पावित्र्य:--से आशय, निर्वाजय प्रेम बनाये रखना, अहंकार रहितता, अनावश्यक क्रोध शून्यता, हींन भावना नगण्यता, स्वम् को अन्यों से निकृष्ट समझना, प्रभुत्व जामाने की प्रवृति का अभाव होना, श्रेष्ठता सिद्ध करने का स्वभाव का होना

आत्ममुग्धता होना, आत्मप्रशंसा की इच्छा होना, अन्य लोगों की प्रशंसा पाने के लिए लालायित होना, दूसरों की कमियां निकालने की प्रवृति का होना, पीठ पीछे किसी की निंदा करने की आदत का होना, आदि।

3.विवेकशीलता:--में निर्वाजय प्रेम को प्रसारित करने के लिए नई नई युक्तियों को खोजना, ध्यान में और भी ज्यादा गहनता पाने के लिए प्रयासरत रहनानिकृष्टता के भाव के शिकार व्यक्ति में आत्मविश्वास जगाने का कार्य करना

किसी भी मानव को विशेषतौर पर सहजी को उसके स्वम् के पावों पर खड़ा करने में मदद करनास्वम् की नित-नवीन खोजों के जरिये सहज को आगे बढ़ाने में मदद करनाध्यान की गहराइयों में स्वम् उतरकर अन्यों को भी उतारने में मदद करना आदि शामिल है।

4.बुद्धिमत्ता:-समस्त 'मानव विरोधी', 'प्रकृति विरोधी', 'तत्व विरोधी', 'सद-ज्ञान विरोधी' "परमात्मा" विरोधी स्वार्थ सिद्धि के लिए तांत्रिक क्रियाओं, प्रक्रियाओं कृत्यों से पूर्ण जागरूक रहते हुए सदा स्वम् दूरी बनाए रखना अन्यों को भी ऐसा करने से बचाना। 

हर पल हर घड़ी "श्री माँ" के प्रति पूर्ण श्रद्धा, भक्ति, विश्वास समर्पण का भाव रखना साथ ही "उनके" समस्त बच्चो के प्रति प्रेम-भाव सद भाव बनाये रखनास्वम को कुछ कुछ सीखने के लिए तत्पर रखना सीखकर अन्यों को भी हर पल बांटने के लिए तैयार रहना।

यदि हम इन उपरोक्त सरल बातों को अपने जीवन में हम उतार लेते हैं तो निश्चित रूप से हमारा मूलाधार चक्र कभी भी बाधित नही होगा और ही हमारे अन्य चक्र ही पकड़ेंगे। वास्तव में हमारे शरीर में सभी कुछ पवित्र पूजनीय है क्योंकि हमें स्वम् "माँ आदि शक्ति" ने निर्मित किया है।

अतः हमारी रचना से सम्बंधित कोई भी प्रकृति प्रधान आवश्यकता अपवित्र अप्राकृतिक नहीं है जो हमारे मूलाधार चक्र को खराब विकृत कर सके। 

हाँ वो बात और है कि कुछ आवांछित अव्यवहारिक मानसिक इच्छाएं हमारे चक्रों को जरूर खराब कर सकतीं हैं क्योंकि इस प्रकार की निकृष्ट इच्छाओं से हमारे दोनो आगन्या पर बुरा असर पड़ता है।

क्योंकि हमारा मस्तिष्क असत्य को यदि हमारे मन के दवाब में ग्रहण कर लेता है तो इससे जहरीले पदार्थ का स्राव होने लगता है जिसके कारण सर्वप्रथम हमारा सूक्ष्म यंत्र बाधित होता है, 

और फिर हमारे जैविक शरीर को नुकसान होना प्रारम्भ हो जाता है।इसीलिए हमें अपने जीवन को आवश्यकता प्रधान बनाना चाहिए कि इच्छा प्रधान।

यानि यदि किसी भी तरीके से बिना किसी को हानि पहुंचाए,छल किये, या झूठ बोले हमारी कोई भी जरूरत पूर्ण होती है तो ठीक है। अन्यथा उस आवश्यकता का व्रत रख कर पूर्ण समाधान आत्मसम्मान के साथ जीवन यापन करना ही श्रेष्ठ है।"

-------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

Monday, February 5, 2018

"Impulses"--430--"Expression of Truth"

"Expression of Truth"

“Our Left Agnya works like the Container of Every knowledge which we have acknowledged earlier by our awareness.

While our Right Agnya behaves like the Analyzer and Teller of Contained Knowledge. Whatever comes before us our consciousness takes our attention to Right Agnya first.

And then our Right Agnya starts tallying the new information with contained data as Computer does. 

If the data matches then the file gets open and we get old information which manifests in the form of our acceptance. 

And when new data doesn’t match with old one which manifests in the form of rejection or non-acceptance.

Then this Right Agnya gives us new options on the basis of analysis of previous knowledge. And when we don’t like all those options then we become confused and bewildered and feel tensed.  

When we still keep on thinking and thinking then our all the nerves get tight and tensed and there starts some pain which may converts into ‘Migraine’ later. 

So our 'Pain' shows the involvement of our attention into Anti-Nature and Anti-God Notions.

Actually our whole Biological Unit is made by “Her" "Herself" that's why this body is quite awakened. Each and every cell tells us what is right and what is wrong by showing it’s annoyance in the form of pain and reactions.

If we little understand the language of our physical being. For an ordinary Human Life, our both the Agnya Chakras (hemispheres) balance our Emotions by giving information’s and several options.

To reduce the anxiety and fear of losing anything during fulfilling the different types of our needs and requirements. And when we connect with "Almighty" then we feel "His” love at our Sahastrara and in Central heart.

Only then we could get latest knowledge of Today's Truth from our Central heart which cannot be denied by our both the Agnya Chakras. Thus, we will be blessed with Self-Knowledge.”

-----------------------------Narayan
"Jai Shree Mata ji"