Wednesday, February 21, 2018

"Impulses"--432--"सहजमोहाचरण"

"सहजमोहाचरण"

"ये बहुदा देखने में आता है कि ज्यादातर सहजी अपने पारिवारिक अथवा नजदीकी सदस्यों को अपने मोह अपनी सुविधा के चलते सहज में लाने का बाहरी रूप से भरसक प्रयास करते हैं। ताकि वो सदस्य उनके सहज के कार्यों पर कोई प्रश्न करें एवम बाहर आने जाने पर टोकाटाकी रुकावट डालें।

और यदि वो नहीं जुड़ पाते तो उनकी उपेक्षा करने लगते है, उनको भलाबुरा कहने लगते हैं और कभी कभी तो उनका तिरस्कार तक करने लगते है।
ऐसा करने से अक्सर उन पारिवारिक सदस्यों के आगन्या में उपस्थित नकारात्मक अस्तित्व जागृत हो जाते हैं। जो उन्ही सहजियों को भारी कष्ट पहुंचाते हैं और उनके आत्मिक उत्थान को बाधित करते रहते है।

यदि परिवार नजदीकी सदस्यों को "श्री चरणों" का वास्तविक लाभ देना चाहते हैं तो सर्वप्रथम गहन ध्यान अवस्था की हर 'बैठक' में पूर्ण रूप से निर्लिप्त होकर उनके सहस्त्रार मध्य हृदय पर निरंतर चित्त की सहायता से ऊर्जा प्रवाहित करते रहें। 

जब तक वो स्वम् अपनी इच्छा से नित्य ध्यान में बैठने प्रारम्भ कर दें, और "श्री माँ" के प्रति अनुग्रह प्रगट करना प्रारम्भ कर दें।चित्त के द्वारा ऐसा करने से "माँ" की शक्तियों के स्पर्श से उनकी कुण्डलिनी माता उनकी आत्मा में हलचल प्रारम्भ हो जाती है।  

जो उनकी जड़ताओं पूर्व संस्कारों को काटना प्रारम्भ कर देती है। जब उनकी जड़ताओं पूर्व संस्कारों का प्रभाव उनके भीतर काफी कम हो जाता है तब जाकर उनके हृदय में सहज ध्यान से जुड़ने की प्रेरणा उत्पन्न होने लगती है और वे "श्री चरणों" की ओर आकर्षित होने लगते हैं।

किन्तु इस अवस्था में भी अतिउत्साहित होकर उन्हें सहज के विषय में स्वम् नहीं बताना चाहिए जब तक कि उनके भीतर जिज्ञासा परिलक्षित हो, और वे स्वम् कुछ जानने के लिए आपसे निवेदन करें। ऐसी स्थिति आने तक केवल और केवल अपने हृदय में मूक संवाद चित्त के द्वारा पूर्ण धैर्य के साथ ऊर्जा प्रवाहित करने पर ही केंद्रित रहना चाहिए।

यदि कुछ महीनों के बाद भी उनका रुझान "श्री माँ" की तरफ हो पाये तो उनके ऊपर किये जाने वाले कार्य को छोड़ देना चाहिए और अपने उन प्रियजनों को "श्री चरणों" के हवाले कर के स्वम् के प्रयासों से मुक्त हो जाना चाहिए।

यदि अब "माँ" चाहेंगी तो वो सहज से जुड़ जाएंगे अन्यथा आपके साथ खुशी खुशी एक साधारण मानवीय जीवन व्यतीत करेंगे और आपका सम्मान भी करेंगे।

वास्तव में श्री माँ" के "श्री चरणों" में वही आता है जो इसका पात्र होता है।जिसकी पात्रता का निर्धारण पूर्व जीवन में हो चुका होता है। अतः अपने भीतर उन लोगों के सहज में पाने के दुख से कभी भी पीड़ित नहीं होना चाहिए और ही अपने को या किसी अन्य को कोई दोष ही देना चाहिए।"

------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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