Friday, April 29, 2011

चिंतन---31--माँ आदि की मौन अभिव्यक्ति"----3

"बांया आगन्या चक्र"


ii) लेफ्ट आग्न्या में जलन या गर्मी का होना:- ये हालात यही बताना चाहते हैं कि ऐसे साधक की अत्याधिक भूत काल में विचरण करने की प्रवृति हैजिसके कारण इडा नाडी मैं अत्याधिक शीत बढने से दिमाग की नसें जकड सकतीं हैं और जकड़ने के कारण मिर्गी, शीजोफ्रेनिया या हैल्लुसिनेशन(मति-भ्रम) भी हो सकता हैइसके अतिरिक्त जब ये शीत और भी बढ जाती है तो दिमाग में क्लौट(थक्का) बनने के चांस हो जाते हैं और जिसके कारण कभी-कभी शरीर के बांये हिस्से का फालिज(paralysis) भी हो सकता हैऐसी स्थिति वाला साधक जब भी ध्यान में बैठेगा तो उसका शरीर आगे-पीछे की ओर हिल सकता है, उसकी आँखे फड़क रही होती हैं और कभी-कभी उसके दोनों हाथ भी हिल रहे होते हैंवो वास्तव में अपने ही विचारों की श्रंखला में ही विचरण कर रहा होता है जैसे की सी डी या एल पी रिकॉर्ड की सुई एक ही स्थान पर अटक जाती हैये भी लक्षण भूत-बाधित जैसे ही प्रगट होते हैं पर ऐसी दशा में वो मानव भूत काल के विचारों में घिरा होता है लेकिन भूत बाधित नहीं होता

उसकी भी एक पहचान है कि जब भी वो बात करेगा हमेशा वही पुरानी बात ही करेगा जो हमेशा करता है। सदा दुखी ही दिखाई देगा, उसके हाव-भाव से सुस्ती झलकेगी, सदा दूसरों की सहानुभूति लेने के लिए प्रयास करेगादेर-देर से सोकर उठेगा जाने कितने प्रकार के सपनों की चर्चा करेगाऐसे व्यक्तियों को सदा सपने ही आते रहते हैं और वो भी सदा अपने सुना-सुना कर ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता रहता हैहर मौसम के बदलाव में उसे कुछ कुछ जरूर हो जाएगा, कभी गला खराब होगा तो कभी बुखार चढ़ जाएगायानि हर मौसम के बदलाव के समय वो जरूर बीमार पड़ेगासदा ठण्ड के असर से परेशान रहेगाभोजन की मात्रा नॉर्मल से कम होगी, कभी-कभी तो बिना खाए भी काम चला लेता हैअक्सर लूज-मोशन की शिकायत रहती है

iii) लेफ्ट आग्न्या में दर्द का होना:-ऐसी स्थिति वाला साधक प्रति अहंकार से प्रभावित होता है, ऐसे लोगों में बदला लेने की प्रवृति अधिक पाई जाती है किन्तु ऐसे लोग थोड़े दब्बू किस्म के होते हैंयदि किसी ने उनके साथ कुछ गलत कर दिया है तो रात-दिन उसी के बारे में सोचेंगे और मन ही मन उसको जवाब देने या बदला लेने के बारे में ही सोचते रहेंगे और दिवा-स्वप्न भी देखते नजर आयेंगेलगातार एक ही विषय पर सोचते रहने के कारण ऐसे लोगों की इडा नाडी ज्यादा ठंडी हो जाती है और खून का दौरा भी थोडा कम होने लगता हैइसके कारण लो-ब्लड प्रेशर की शिकायत बन जाती हैजिसके कारण कभी-कभी तो चक्कर भी आते हैंशरीर में जल्दी-जल्दी इन्फेक्शन भी होने लगते हैंऐसे लोगों को यदि कोई मछर भी काटले तो उससे भी एलर्जी हो जाती है। लक्षण तो बहुत हैं पर ये कुछ कॉमन स्थितियां हैं जिन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।

अब कुछ बांयआग्न्या चक्र के अच्छे लक्षणों के बारे में भी बात करेंगे। जब इसमें 'माँ आदि' की शक्ति बहती है और ये अच्छी कंडीशन का होता है तो यह हलके-हलके स्पंदन के साथ ठंडी-ठंडी लहरियां उत्पन्न करता है। कभी-कभी तो इसमें हल्की-हल्की झंकार(humming) प्रगट होती है और साधक को बहुत मजा आ रहा होता है। इसके अलग-अलग स्टेज के कुछ अलग-अलग मतलब होते हैं जो निम्न प्रकार हैं:

i) जब भी किसी व्यक्ति को 'माँ आदि शक्ति' जाग्रति देतीं हैं और उसका चक्र ठीक होता है तो प्रथमानुभूति के समय उसको ठंडा-ठंडा महसूस होता है और वो अन्दर से खुश होता है और हृदय में एहसास कर रहा होता है कि उसकी अपनी वास्तविक 'माँ' उसे इतने लम्बे समय बाद मिली हैं, और इस भावना के फल-स्वरुप उसकी बंद आँखों में भी ख़ुशी के आंसू जाते हैं और वह कुछ देर तक अपने आंसू बहाता रहता है और अन्दर से अपने आप को हल्का महसूस करता हैयह देख कर कुछ सहजी अज्ञानता वश उसको लेफ्ट-साईडिड बता देते हैं जो कि बिलकुल गलत हैये उसका और 'आदि माँ' का उसके मनुष्य जन्म लेने के बाद का प्रथम मिलन होता हैइससे उसके मन को बहुत ही शांति मिलती है और उसे अन्दर से ख़ुशी का एहसास होता हैउसका 'श्री माँ' के ऊपर विश्वास बढ जाता है और वह बड़ी श्रद्धा से 'श्री माँ' से जुड़ जाता है


"जागृति का विलक्षण घटना क्रम"

ii) इसके दूसरे चरण में, साधक को अचानक से जाग्रति मिलती है जबकी वह जाग्रति लेने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं होता, ये तब होता है जब उसके प्रारब्ध के अनुसार उसको इस जन्म में जाग्रति मिलनी निश्चित होती है किन्तु उसका रुझान जाग्रति की तरफ नहीं होता और ऊर्जा के अधिक प्रवाह सघनता(density) के कारण उसको खुश किस्मती से आत्मसाक्षात्कार का प्रसाद मिल जाता है और ऐसी स्थिति में उसे अपने लेफ्ट आग्न्या चक्र में तीव्र झंकार या ऊर्जा का खिंचाव महसूस होगा और उसका चित्त शून्य में कुछ देर के लिए स्थित हो जाता है और वह अचानक ध्यान की समाधी में कुछ देर के लिए चला जाता है ऐसी स्थिति में कई बार बहुत ही रोचक विलक्षण घटना घटित होती है

ये आकस्मिक जागृति की स्थिति उसके चित्त को उसके अपने पूर्व जीवन में ले जाती है और उसको याद दिलाती है कि "अरे तू तो एक परमात्मा का भक्त है जो न जाने कितने जन्मो से उनकी साधना कर रहा था, तू तो एक उपासक है जो रात-दिन प्रभु की पूजा में लगा है "उसको ऐसा मालूम होता है कि जैसे वो साधना-रत होऐसी विलक्षण स्थिति में पूर्ण ध्यान की स्थिति में, बंद आँखों की स्थिति में वह अपने हाथ या पाँव उसी अंदाज में चलाता है जिस पोजीशन में वह अपने पूर्व जीवन में अपने इष्ट को प्रणाम इत्यादि करता था।" और जब वह वापस अपनी वर्तमान चेतना में आता है तो वह अपने को बड़े ही अजीब घटना क्रम में पता है वो अपने अन्दर दो अलग-अलग व्यक्तित्वों को महसूस कर रहा होता है। वो अपने को एडजस्ट नहीं कर पता। क्योंकी 'श्री माँ' ने उसको कुण्डलिनी जागरण के माध्यम से उसका भूला हुआ मकसद याद दिला दिया है। लेकिन वर्तमान में वो उसके बिलकुल अपोजिट जीवन जी रहा है।

जो उसको खुली आँखों से देख रहे होंगे उनको बड़ा ही घोर-आश्चर्य होगा कि ये आँख बंद करके क्या-क्या कर रहा हैऐसे ही हालातों को हमारे महान सहजी अज्ञानता में बिना किसी अनुभव तथ्य के लेफ्ट-साइड की बाधा कहते हैकेवल और केवल अपनी आँखों से देखने के आधार पर ही निर्णय ले लेते हैं कभी भी चित्त डालकर ये भी देखना गवारा करते कि देखे तो सही ऐसी स्थिति में उसका ऊर्जा-स्तर क्या कह रहा हैबस उसको भूत-बाधित कह कर बदनाम और कर देंगेऐसे सहजी तो 'श्री माता जी' के लेक्चर्स गहनता से पढते हैं और ही कुछ अनुभव करना चाहते हैं वे तो बस सतही स्तर पर बस बातें बनाते रहते हैं और ऐसे लोग केवल बाहर से ही सहज योग कर रहे होते हैं

ऐसी ही एक घटना 28.02.11 को 'श्री माँ' के समाधिस्थ होने के दौरान हुईजब 'श्री माता जी' की नातिन "सोनालिका" ने 'श्री माँ' के चरण-स्पर्श किये और वह उस क्षण अपनी 'नानी माँ' को उनके साथ बिताये लम्हों को बहुत याद कर रही थी और शायद उस घडी में उसने ये सोचा कि जिस 'माँ आदि' ने उसकी 'नानी' के रुप में पूरे विश्व को आत्मसाक्षात्कार दिया पर 'वह' उस 'माँ' से उनके शरीर रहते जागृति नहीं ले पाई उसी क्षण 'माँ आदि शक्ति' ने उसकी अंतर इच्छा को जान उसको आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया और उसको "सुषुप्ति" में ले जाकर उसको उसके पूर्व जन्म के द्रश्यों को दिखाकर उसको याद दिलाया कि वो वास्तव में एक साधिका है जो कि इस वर्तमान जीवन में ये तथ्य भूल चुकी है

अत: पूर्व जीवन की स्मृतियों के कारण उस शून्य स्थिति में सोनालिका ने पूर्व जीवन में की जाने वाली पूजा की मुद्राओं को पूर्ण शून्यता की स्थिति में आँखे बंद करके किया जो बहार से देखने में सभी सह्जियों को बहुत अजीब लगाजो भी सोनालिका ने किया वो प्राचीन काल के साधक उन पूजा की मुद्राओं का स्तेमाल करते थेमैं एक बात और बताना चाहता हूँ कि आजकल सोनालिका अक्सर खोई-खोई सी रहतीं होंगी क्योंकी वो अपने दो पृथक व्यक्तित्वों को एडजस्ट नहीं कर पा रहीं होंगीउनके अन्दर का पूर्व साधक अब जागृत हो गया है जिसे अपनी साधना पूरी करनी है और अपने वास्तविक मानवीय जीवन के उदेश्य को पूरा करना ही। अत: अब उनको अच्छे से ध्यान में रहना होगा तब ही उनका अपने वर्तमान के साथ सामजस्य स्थापित हो पायेगा

मुझे इस प्रकार के कुछ अन्य लोगों के अनुभव भी 'श्री माँ' ने कराये हैं इसी लिए मैं ये सब लिख पा रहा हूँ ताकि लोग गलत तथ्यों पर पहुँच जायेंएक ऐसी ही सहजी बहन की घटना मेरे सामने है, जब भी वो ध्यान में जातीं थीं उनको उनके पूर्व जीवन की स्मृतियाँ आती थीं और वे 'सिगरेट' निकाल कर पीनी प्रारंभ कर देतीं थीं और जब उनके पति सिगरेट पीने के लिए मना करते थे तो वे बहुत ही बिगडती थीं और उनको भला बुरा कहती थीं और जब किसी ने हमारा फोन नंबर दिया और 'श्री माँ' ने हमारे माध्यम से केवल चित्त के प्रयोग द्वारा उन्हें ध्यान कराया तो वे सामान्य होने लगीं जल्दी ही अपनी पुरानी यादों से मुक्त हो गईंहमारे पास अनेकों इस प्रकार के केस हैं जिनसे हमने बहुत कुछ सीखा है

यकीनन वो भूत-बाधित लोगों के केस नहीं हैंबल्कि पूर्व-स्मृतियों की ही घटनाएं हैयदि हम एलर्ट हैं और हमें ऊर्जा की भाषा समझ आती है तो हम सही तथ्यों पर पहुँच कर बहुत से सहजियों अन्य लोगों की मदद कर सकतें हैंवर्ना हमारा ज्ञान केवल चर्चा तक ही सीमित रह जाता है और 'श्री माँ' की हम सभी पर की जाने वाली मेहनत निर्थक हो जायेगीअत: मेरा अपने समस्त सहज साथियों से विनम्र अनुरोध है कि जो भी बोलें वह सत्य अनुभव के ऊपर आधारित तथ्यों के आधार पर ही बोलें वर्ना कई बार अनजाने में हम किसी किसी अच्छे भोले-भाले सहजी को हीन-भावना या ग़लतफ़हमी के चंगुल में फसा सकते हैं और उसको बहुत तकलीफ पहुंचा सकतें हैं हम सभी की 'माँ कुण्डलिनी' के पास हमारा अनेकों पूर्व जन्मो का डेटा (लेखा-जोखा) होता हैइसीलिए 'वो' हमारी ही भलाई के लिए इस प्रकार से भी हमें परमात्मा के करीब ले जा सकतीं हैतो ये भी 'श्री माँ' की मौन अभिव्यक्ति के कुछ घटना-क्रम हैं

"God communicates in 'Sushupti Avastha"

               ---H.H.Shree Mata Ji Shree Nirmala Devi



.......................................to be continued...........



........................Narayan


"Jai Shree Mata Ji"