Tuesday, April 12, 2011

अन्तरानुभूति -- -"मेरे प्रश्न"-----मिताली नारायण

"मेरे प्रश्न"

इक दिन जब मैं बैठा ध्यान में,
मन में आया एक विचार,
आज जवाब दे दो 'श्री माँ',
होता क्या है अहंकार,

'माँ' बोली मेरे बालक,
अहंकार कुछ भी तो नहीं,
होता है सब के मन में,
पर छुपा होता है कहीं,
जो केवल अपने से प्रेम करे,
उसे आता है घमंड,
उसे नहीं, जो दूसरों कों खुश कर,
हँसता है मंद- मंद,

फिर मैं बोला मेरी 'माँ',
एक और प्रश्न का दो जवाब,
निर्विचार होना चाहता हूँ मैं,
फिर भी आते कई सारे ख्वाब विचार,

'माँ' ने थामा मेरे हाथ और प्यार से बोलीं,
मेरे प्यारे, मेरे बच्चे,
नहीं है अब वक्त जब होना तुझे निर्विचार,
ढूंढो और एक हजार तरीके,
जिससे बढ़े 'सहज परिवार',

जब हुआ मैं संतुष्ट,
तब एक विचार और आया,
कैसे सोचूं १००० तरीके,
जब मन में कुछ आया,

'माँ' बोलीं, मेरे बुद्धू बच्चे,
ध्यान दिमाग से हो नहीं सकता,
चाहिए इसमें मन,
मुझसे जुड़े रहो हमेशा, सोचो बहुत कम,

कैसे जुड़े रहूँ तुमसे 'मेरी माँ',
इसका भी उपाय बता दो,
जो मुझे समझ जाये,
ऐसी आसान राह दिखा दो,

'माँ' ने कहा,
जैसे कि 'समुन्द्र', में मिल जाती है एक 'नदी',
वही 'नदी' बनकर तू आ, मिलजा, मुझमें अभी

--------------------मिताली नारायण (13 yrs)

"जय श्री माता जी"




No comments:

Post a Comment