Friday, April 29, 2011

चिंतन----30--"माँ आदि की मौन अभिव्यक्ति"---भाग- 2

"मौन ही परमात्मा की भाषा है"-भाग--2


3) अब हम चलतें हैं हमारी 'रीड की हड्डी' पर स्थिति 'सूक्ष्म ऊर्जा केन्द्रों' की अनुभूति की ओर:- हाथ और पावों की उँगलियाँ तो इन केन्द्रों के संकेतक मात्र है, और हाथों उँगलियों का इस्तेमाल तब ही तक किया जाता है जब तक इन केन्द्रों पर 'परमेश्वरी' की अभिव्यक्ति की संवेदना पूर्ण रुप में प्रगट नहीं होतीजैसे-जैसे हमारे ध्यान में गहनता एककारिता उत्पन्न होती जाती है वैसे ही वैसे इन सूक्ष्म केन्द्रों पर हमारे चित्त मन की स्थिति स्वत: ही प्रगट होने लगती हैइसके लिए हमें कुछ समय तक अच्छे से अभ्यास करना पड़ता है अपने चित्त को हाथो में लगाने की बजाय सहस्त्रार मध्य हृदय पर चित्त को स्थिर करना पड़ता है इसी का अभ्यास बनाना पड़ता है, तब ही जाकर हमारे ये केंद्र संवेदन शील होते जाते है और हम आसानी से 'माँ आदि' की भाषा को समझ पाते हैतो ये है हमारा Hands Free Mode.

आग्न्या चक्र:-तो प्रारंभ करते है हमारे छठे चक्र से क्योंकी सहस्त्रार चक्र पर 'आदि शक्ति' की अभिव्यक्ति को अपने पिछले चिंतन "चेतना का नवम आयाम" में व्यक्त कर दिया गया थाइस चक्र को 'श्री माँ ' के मुताबिक मुख्य रुप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता हैबांया आग्न्या(right hemisphere) जो अवचेतन मन
(भूत काल) को प्रगट करता है, दांया आग्न्या(left hemisphere) जो अति चेतन (भविष्य काल) को प्रगट करता है और मध्य आग्न्या(balance) पूर्ण चेतन (वर्तमान काल) को प्रगट करता है वास्तव में 'माँ आदि शक्ति' ने सत्य को तीन उपरोक्त खण्डों में विभक्त किया है जिससे 'अपनी' रचना को चलाने के लिए समय की उत्पत्ति होती है

जो भी स्थूल रुप (खुली आँखों से दिखने वाली दुनिया) से प्रगट होता है उसी पर समय(काल) प्रभावी हैऔर जो 'अद्रश्य' है वो काल की सीमा से परे हैइसीलिए जब हमारा चित्त ध्यान में स्थित हो जाता है तो हम स्वभाव से काला-तीत हो जाते हैं यानि समय प्रभावहीन हो जाता हैसमय की चिंता ही मानव को तनाव में लाती हैऔर मानव समय की गुलामी करता है और सदा दुखी रहता है

इन केन्द्रों पर भी कुछ लक्षण प्रगट होते हैं जो निम्न प्रकार के नकारात्मक हैं:---

i) बाए आग्न्या पर तीखी सुई जैसी चुभना:- जब इस प्रकार की चुभन(shooting pain) काफी लम्बे अरसे से प्रगट हो रही हो तो लगभग दो प्रकार के लक्षण प्रगट हो सकते हैपहले वाले केस में ऐसे साधक को ब्रेन-टियूमर या ब्रेन-स्ट्रोक जैसी कोई गंभीर बिमारी लगी हुई है और उसकी दशा काफी शोचनीय हैजिसे तुरंत उपचार की आवश्यकता है ऐसी दशा में उसको तुरंत आराम देने के लिए अन्य साधकों को सबसे पहले उसके मध्य हृदय सहस्त्रार में अपने चित्त की सहायता से या हाथो की मदद से दोनों स्थानों पर ऊर्जा देनी चाहिए और उसके बाद उसके बाए आग्न्या चक्र पर चित्त या हाथों की सहायता से चैतन्य प्रवाहित करना चाहिएउसकी इडा नाडी में भी यही कार्य करना चाहिए, इससे उस साधक को थोडा बहुत आराम अवश्य पड़ेगाऔर इसके बाद उपचार हेतु तुरंत किसी अच्छे डाक्टर को दिखाना चाहिएलम्बे समय तक उसके उन्ही तीनो स्थानों पर चैतन्य धारा को बहाने से भी यदि 'श्री माँ' ने चाहा तो उसे जरूर आराम जायेगा दूसरों की बिमारी पर कार्य करने वाले केवल वही साधक होने चाहिए जो कि स्वम अपने-अपने सहस्त्रार मध्य हृदय पर ऊर्जा (श्री माँ) को सदा महसूस करतें हो वर्ना यह कार्य ठीक प्रकार से नहीं बन पायेगा

दूसरे वाले केस में ऐसे साधक की तीखी चुभन थोड़े-थोड़े समय के लिए आती जाती रहती है और ये केस बनता है उसके बाँय आग्न्या चक्र में "भूत"(spirit possession) कायानि एक ही शरीर में दो जीवात्माओं के होने का यानि कि कोई -शरीरी चेतना ने उस मानव पर अपना प्रभुत्व जमा लिया है जिन पर ऐसी चेतनाए कब्ज़ा जमाती हैं वो लोग बेहद भावुक भोले भाले होते हैं और ऐसे लोगों को उनके जीवन में अन्य लोगों, खास तौर से उनके अपनों के ही द्वारा बहुत ही दबाया,सताया हुआ या फिर उनका खूब शोषण किया हुआ होता है और वे अपना सारा वक्त उन्ही यातनाओं की पुरानी यादों में ही व्यतीत करते हैअत्याधिक भूत काल में रहने के कारण वे ऐसी चेतनाओं को जिनके पास मानव देह नहीं है और जो मुक्ति की कामना करते हैं, को अपने भीतर आने का निमंत्रण दे देते हैं और 'भूत' उन के लेफ्ट-आग्न्या से प्रवेश कर जाता है और उन पर अपना अधिकार जमा कर अपने काबू में रखने का प्रयास करता हैअपनी अतृप्त इच्छाओं को भी उनके माध्यम से पूरी कराने का प्रयास करता है"भूत भी इतने समझ दार होते है कि वे भी किसी चालाक या लालची व्यक्ति को नहीं चुनते।"

ऐसे लोगों को ठीक करने के लिए बेहद प्रेम वात्सल्य की आवश्यकता होती हैक्योंकी वे अन्दर से पूरी तरह टूटे हुए होते हैं। 'भूत बाधित' लोगों के कुछ खास लक्षण प्रगट होते है जो निम्न प्रकार हैं:-

) ऐसा मानव सदा खोया-खोया सा प्रतीत होगा, कभी वह आपको पहचानेगा कभी नहीं पहचानेगा, वो ऐसा महसूस होगा कि मानो सुन्न हो गया होबार-बार उसकी आवाज में परिवर्तन होता रहेगाउसके (reflexes) प्रतिक्रियाएं बेहद हल्की(slow) होंगीयदि उससे ये कहा जाय कि दो और दो कितने होते हैं तो इसे बताने में भी वह समय लगाएगाउसकी आँखे बार-बार एक तक देखतीं प्रतीत होंगीयदि उससे हम अपनी तरफ देखने को कहेंगे उससे बात करना चाहेंगे तो वह कहीं दूसरी तरफ देखते हुए हमसे खोये-खोये ही बात करेगा

) उसका दूसरा लक्षण रहस्यमई बातों के रुप में होगावो जाने कहाँ-कहाँ की बात करेगा जो हम जानते भी होंगेकभी-कभी तो वो किसी भी मानव के मौत के रहस्य को बता देगा जबकि उसकी मौत का कारण किसी को भी पता होगायदि कई साल पहले कोई चीज आपकी खो गई है और वो व्यक्ति आपको नहीं जानता और ही उसे आपकी कोई भी वस्तु के खोने का पता ही है, पर 'भूत-बाधित' आसानी से उस वस्तु के बारे में बता देता हैक्योंकी वो एक -शरीरी चेतना है जिस पर कोई भी काल अपना असर नहीं डाल पातावो किसी भी काल में पहुँच सकता है

(Time travel) ध्यान की उच्च अवस्था में भी आप पर समय असर नहीं करताध्यान भी आपको (Time Traveler) 'समय यात्री' बना सकता हैध्यान की उच्चतम अवस्थाओं में आप सूक्ष्म जगत में प्रवेश कर जाते है जो कि एक प्रकार का सदा-सनातन सत्य ही होता है जो कभी नहीं बदलता।

स) ऐसे मानव का तीसरा लक्षण उसके द्वारा किये जाने वाले भोजन की अत्याधिक मात्रा होती हैवो गुम-सुम रहते हुए एक ही बार में चार-छैह लोगों का खाना आसानी से खा लेता है और खाता ही जाता है, जैसे कि एक शराबी, शराब के नशे में डूबने के उपरान्त खूब खाना खता जाता है। दोनों ही केसिज में उनका 'सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम' पूर्णत: प्रभावित होता है और उनका मस्तिष्क उन्हें कुछ भी नहीं बता पाता कि कितना खाना खाना है spirit Possession(भूत-बाधा) मानव की चेतना को ही प्रभावित करती है और उसको 'अति-अवचेतन' की स्थिति में ले जाती है और उसका 'वर्तमान काल ' से पलायन कराती है।


) उसका चौथा लक्षण अक्सर 'परम पूजनीय श्री माता जी श्री निर्मला देवी जी' के चित्र के सामने प्रगट होता है, भूत-बाधित व्यक्ति को 'श्री माँ' साक्षात 'माँ काली' के रुप में ही दिखाई देतीं हैंऔर वो कभी तो बहुत चिल्लाता है, कभी जोर-जोर से रोने लगता है, और कभी गुम-सुम हो जाता है, कभी-कभी तो दोनों हाथ जोड़कर अजीब-अजीब मुद्रा में उन्हें प्रणाम करता है, कभी-कभी 'श्री माँ' से आग्रह करता है कि 'वो' उसे मुक्त करदें, कभी झगडा करने लगता है, कभी जोर-जोर से कापने लगता है, कभी जोर-जोर से हिलने लगता है।

खास बात ये है कि 'श्री माता जी' उसे 'काली माता' के रुप में ही नजर आएँगी। यदि किसी के अन्दर भी उपरोक्त भूत-वाले लक्षण नजर आयें तो पहला कार्य अपने मध्य-हृदय व सहस्त्रार में 'श्री माता जी' के वात्सल्य और प्रेम(ऊर्जा) को महसूस करें क्योंकी वो जो भी भूत के रुप में चेतना है वो बेहद परेशान है और वो 'श्री माँ' के माध्यम से मुक्ति चाहती है। उस मानव के अन्दर के भूत को कभी भी गाली न दे और ना ही उस भूत-बाधित व्यक्ति को मारे-और पीटें इससे कोई लाभ नहीं होगा। बल्कि भूत-बाधित मानव के मध्य हृदय व सहस्त्रार पर चित्त को पूरी तरह टिकाते हुए 'श्री माँ' की शक्ति को अपने मध्य हृदय से अपने सहस्त्रार के माध्यम से उसके सहस्त्रार व उसके मध्य हृदय पर प्रवाहित करें और महसूस करें कि उसके दोनों केन्द्रों पर ऊर्जा महसूस होती है कि नहीं, यदि महसूस हो तो उसके पशचात उसके बाएं आग्न्या चक्र पर लगातार 'माँ' के प्रेम को प्रवाहित करें। ऐसा करने से उस मानव को बेहद आराम महसूस होगा और साथ ही उसके अन्दर के भूत को भी सुकून मिलेगा और एक न एक दिन वह आपको आशीर्वाद देता हुआ उसको छोड़कर चला जायगा। आपकी सच्ची करुणा से युक्त ऊर्जा के कारण उसे मुक्ति मिल जायगी। वैसे तो 'श्री माँ' ही मुक्त करतीं हैं पर 'श्री माँ' को उस भूत करने के लिए आपकी करुणा युक्त सद-इच्छा भी चाहिए। क्योंकी कि 'माँ आदि शक्ति' हैं जो पूर्णत: निर्लिप्त व निरिच्छित हैं।

अब ये प्रश्न उठता है कि सारी कि सारी निगेटिविटी और भूत की समस्याएं सहज योगियों को ज्यादा क्यों आती है ? क्यों सहज में आने से पहले इतनी दिक्कतें नहीं होतीं ? क्यों अक्सर सहज योगियों का सामान्य जीवन कई बार नकारात्मक रुप में -सामान्य हो जाता है ? उससे सम्बंधित ज्यादातर रिश्ते अक्सर क्यों बिगड़ जाते हैं ? और उस सहजी की भी रूचि उन तथा-कथित रिश्तों से क्यों समाप्त हो जाती है ? क्यों अक्सर अच्छे गहरे माने जाने वाले सहजी कभी-कभी बेहद लालची, अत्याधिक स्वार्थी, ईर्ष्यालु अहंकारी बन जाते हैं ? क्यों वो अक्सर संस्था के अधिकारी या कोर्डिनेटर बनकर सभी सहजियों पर शासन करना चाहते हैं, सब पर अपना ही आधा-अधुरा बिना अनुभव किया हुआ ज्ञानं थोपना चाहते है ? क्यों अक्सर सहजी किसी भी एक प्रकार की गति-विधियों(अत्याधिक भजन, डांस या कर्म-काण्ड) में पूरी तरह लिप्त हो जाते हैं ? क्यों वो अक्सर एक-दूसरे को नीचा दिखने के प्रयास में लिप्त हो जाते हैं ? और क्यों रात-दिन अपनी दमित इच्छाओं को पूरा करने के लिए रात-दिन एक कर देते हैं और अपने नजदीकी लोगों अन्य लोगों से खूब झूठ बोलते है ? ऐसे झूठ बोलने वाले साधक सदा एक ही बात सबसे बोलते नजर आते हैं "हम तो कभी भी झूठ नहीं बोलते"। क्यों अक्सर कुछ सहजी सदा कहते मिलते है कि हमें तो ध्यान में अमुक देवता ने दर्शन दिए, हमें तो 'माँ' ने ध्यान में ये कहा वो कहा, हमें तो 'माँ' ने कहा है कि तुमने मेरा ये काम करना है वो काम करना है आदि, आदि ?

इन सभी बातों का एक ही उत्तर है कि जब हम सबकी "माँ आदि शक्ति" हमारे 'बाएं आग्न्या चक्र'(गटर) के भीतर प्रवेश करके उसको स्वच्छ कर रहीं होती हैं तब ही उपरोक्त प्रकार के लक्षण सहजियों में अक्सर उत्पन्न होने लगतें हैं और वो सभी जाने-अनजाने में उपरोक्त स्थितियों की गिरफ्त में आ जाते हैं। और उन सभी का व्यवहार इन परिस्थितियों जैसा होता जाता है। यदि किसी के भी साथ उपरोक्त घटनाओं जैसी कोई भी स्थिति प्रगट हो रही हो तो चिंता न करें और ना ही हीन भावना का शिकार हों क्योंकी ये तो बस सफाई अभियान है जो 'श्री माँ' के द्वारा चलाया जा रहा है। इसको रोकने का प्रयास न करें। बल्कि अपने चित्त को मध्य-हृदय में डुबो कर उसे अपने-अपने बाँय आग्न्या चक्र पर रखे ऐसा करने से मध्य-हृदय में जागृत 'माँ का प्रेम' लेफ्ट-आग्न्या चक्र को चैत्न्यतित कर उसको शुद्ध कर देगा और उस साधक को धीरे-धीरे स्वच्छ कर देगा। 'श्री माँ' पर पूर्ण विश्वास रखें।

"हम सभी सहजी प्रारंभिक अवस्था में 'गंदे पानी की आधी भरी हुई बाल्टी' जैसे होते हैं, तो हम इस बाल्टी को उलटने में समर्थ होते हैं और ही इसको भरने में ही समर्थ होते हैंकेवल एक ही कार्य ये बाल्टी कर सकती है और वो है चुपचाप 24 घंटे धारा(सहस्त्रार पर 'माँ' को महसूस करते हुए 'उन्हें' मध्य हृदय तक ले जाना) के नीचे अपने को लगा कर धीरे- धीरे स्वच्छ हो सकती है।" केवल यही प्रथम अंतिम कार्य हमें ध्यान में सफल बनाता है। अभी की या आज की यात्रा यहीं पर समाप्त करते हैं...........................


...................Narayan

"Jai Shree Mata Ji"

.........................................to be continued


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