Tuesday, March 26, 2019

"Impulses"--484--"स्व-अनुभव ही वास्तविक ज्ञान"


"स्व-अनुभव ही वास्तविक ज्ञान"


"कुछ रोज पूर्व जम्मू में होने वाली राष्ट्रीय सहज ध्यान सामूहिकता के दो अच्छे सेशन ध्यान के रहे जो नीचे पोस्ट किए गए वीडियो में उपलब्ध हैं।

जिसमें पहला सेशन हमारे सहज योग नेशनल ट्रस्ट के ट्रस्टी आदरणीय दिनेश राय जी की धर्मपत्नी श्रीमति नीता राय जी के द्वारा गाइडिड मेडिटेशन करवाया गया।

एवम दूसरा सेशन सहज योग नेशनल ट्रस्ट के पूर्व कार्यकारिणी सचिव लेफ्ट.जनरल. श्री वी.के. कपूर जी के द्वारा मूलाधार चक्र पर ध्यान कराया गया।

कपूर अंकल व्यक्तिगत रूप में इतने वात्सल्यमयी प्रेम मई हैं कि उनसे बात करके बहुत अपना पन, प्रेम आनंद महसूस होता है।

इस चेतना ने आज तक उनके मुख से किसी भी आम सहजी अथवा सहज पदाधिकारी के लिए कभी भी अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करते नहीं सुना।और ही कभी किसी का अपमान ही करते देखा है।

इसके विपरीत इस चेतना को सहज योग संस्था के कुछ पदाधिकारियों, लीडरों कॉर्डिनेटर के द्वारा अन्य सहजियों पदाधिकारियों के लिए अत्यंत निम्न शब्दों का प्रयोग करते, सुनने देखने का व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त है।

इनमें से कुछ पदाधिकारी कोर्डिनेटर्स तो ऐसे हैं जो आम सहजियों को भेड़-बकरियों की तरह ट्रीट करते हैं, बड़ी शर्म महसूस होती है ये देखकर कि इन लोगों को जरा सा भी आभास नहीं है कि ये कहाँ खड़े हैं ? और क्या कर रहे हैं ?

ऐसे पदाधिकारी केवल और केवल शासन करने संस्था गत राजनीति करने में ही सदा लिप्त रहते हैं।

ऐसे लोग नहीं जानते कि "श्री माँ" ने सहज संस्था में किसी भी पद पर बैठा कर उनकी हृदयगत चेतन-सेवा के माध्यम से उनके स्वम् के सुधार स्वम् के उत्थान का एक अवसर प्रदान किया है कि अन्य सहजियों पर शासन करने के लिए चुना है।

यह सब देखकर महसूस करके इस चेतना के हृदय में चिंतन चलता रहता हैं कि आखिर 20-20 साल सहज में ",श्री माँ" के "श्री चरणों" में आकर भी ये लोग अभी तक भी अपने सहज से पूर्व के जीवनों में ही मौजूद हैं।

जरा सा भी सकारात्मक बदलाव इनकी चेतना में आया प्रतीत नहीं होता है।अत्यंत आश्चर्य होता है यह देखकर की कुछ लोग तो "श्री माँ" के साथ कई कई वर्षों तक कई कार्यक्रमों में जाते भी रहे हैं।

इस चेतना के देखते ही देखते जाने कितने ही ऐसे लोग जो अपने को अत्यंत महान समझते थे, जो ये समझते थे कि वही सहज योग को संचालित कर रहे हैं, चैतन्य धराओं से हट कर जाने कहाँ गुम हो चुके हैं।

कपूर अंकल की एक बात और बहुत अच्छी है कि वे जो भी ध्यान के विषय में कहते हैं उसके बारे में पहले उन्होंने "श्री माँ" के लेक्चर्स के आधार पर अच्छा होमवर्क किया होता है।

जो भी शब्द वो बोलते हैं उसमें किसी भी प्रकार का मैनिपुलेशन नहीं होता है, वो केवल और केवल "श्री माँ" की वाणी के अंश ही बोलते हैं जितना भी उन्होंने पढ़ा सुना होता है।

दूसरे ध्यान के दौर में उनके द्वारा सभी सहजियों से कुछ प्रश्न पूछे गए जिनके उत्तर केवल 'आम सहजियों' ने अपने अपने अनुभव के आधार पर दिए।  

जिनका मिलान कपूर अंकल के द्वारा "श्री माता जी" के वक्तव्यों के आधार पर करके बताया गया कि अभी उत्तर देने वाले सहजी कहाँ तक उन्नत हुए हैं।

किंतु एक बात बहुत अफसोस जनक रही कि इस दौर में शायद किसी भी स्टेट कॉर्डिनेटर, सिटी कर्डिनेटर किसी भी अन्य ट्रस्टी ने कोई भी उत्तर नहीं दिया।

शायद उनको ये लगता रहा कि अपनी समझ से यदि कोई उत्तर देंगें और वो यदि "श्री माता जी" के वक्तव्य से मेल नहीं खायेगा तो आम सहजियो के समक्ष निम्न महसूस करना पड़े।

ये प्रश्न-उत्तर काल बहुत आनंददायी रहा क्योंकि इसमें सभी 'आम सहजीयों' ने स्वम् को शामिल महसूस किया।

किंतु एक कमी खलती रही कि कपूर अंकल ने सबसे तो प्रश्न पूछे और उत्तर प्राप्त किये किंतु वे स्वम् प्रश्न-उत्तर में स्वम् के अनुभव के आधार पर शामिल नहीं हुए।

बड़ा ही अच्छा होता कि यदि कपूर अंकल के साथ साथ सभी सहज संस्था के पदाधिकारी भी शामिल होते।

ये बात इस चेतना ने कपूर अंकल से जरूर कहनी है कि आगे से वे सभी सहज संस्था के उपस्थित पदाधिकारियों कार्डिनेटर्स को भी इस प्रकार के प्रश्न-उत्तर सेशंस में अवश्य शामिल करें इससे उनके अनुभवों से अन्यों को भी लाभ होगा आनंद भी आएगा।

कपूर अंकल की यह विशेषता सदा रही है कि वह अक्सर आम सहजियों को एक दूसरे के साथ जुड़ने का मौका किसी किसी रूप में अवश्य देते हैं।

पिछले 18.5 वर्षों में इस चेतना ने पाया है कि सहज योग ट्रस्ट में केवल एक दो ही ट्रस्टी ऐसे रहे हैं जो आम लोगों को स्वम् के यंत्र के माध्यम से गाइडिड मैडिटेशन कराते रहे हैं।

वास्तव में सामूहिक रूप से उन्नत होने के लिए विभिन्न प्रकार के लंबे ध्यान सेशन की अत्यंत आवश्यकता है।

जिसमें सभी सहजी संस्था के पदाधिकारी, कार्डिनेटर्स शामिल हों और सभी अपने अपने व्यक्तिगत अनुभवों को सभी के साथ शेयर करें।

इससे सहज संस्था के पदाधिकारियों कोर्डिनेटर्स का स्तर भी उन्नत होगा और उनके अनुभवों से आम सहजियों का स्तर भी बढ़ेगा।

अभी तक यह चेतना सभी पदाधिकारियों कार्डिनेटर्स से उनके वक्तव्यों के द्वारा सदा यही सुनती आयी है कि:-

"श्री माँ" ने इस विषय में ये कहा है, "श्री माँ" ने उस विषय में वो बोला है, यानि केवल और केवल "श्री माता जी" की वाणी का ही जिक्र होता रहता है।

और तो और अधिकतर सहज पदाधिकारी कार्डिनेटर्स "श्री माता जी" की वाणी के द्वारा ही अन्य सहजियों को शिक्षा देते नजर आते हैं। और कभी कभी तो सहजियों को "श्री माता जी" के लेक्चर्स के आधार पर लताड़ते भी दिखाई सुनाई देते हैं।

यहां तक कि आम सहजी भी रात दिन "श्री माता जी" के लेक्चर्स के द्वारा एक दूसरे को व्हाट्सएप,फेसबुक यूट्यूब के माध्यम से शिक्षा देते नजर आते हैं।

यह देख कर ये चेतना चिंतन करने पर मजबूर हो जाती है कि क्या हम "श्री माता जी" की दिव्य वाणी के प्रयोग लिए अन्य सहजयोगियो को शिक्षा देने के लिए अधिकृत हैं ?

क्या सहज संस्था के पदाधिकारियों कार्डिनेटर्स को "श्री माता जी" की वाणी के द्वारा आम सहजियों की जागृति में हीन भावना उत्पन्न कर उनकी चेतना पर शासन करने का अधिकार प्राप्त है ?

क्या हमको अधिकार प्राप्त है कि हम बिना "माँ" की वाणी को अपने यंत्र में अनुभव किये अन्य लोगों को सीख दे सकते हैं ?

जिन "माँ" के लेक्चर्स के माध्यम से हम स्वम् को श्रेष्ठ अन्यों को निम्न साबित कर रहें हैं क्या वो लेक्चर्स का ज्ञान हमने अपनी चेतना में अर्जित स्वम् कर लिया है ?

क्या वो सभी बातें जो "श्री माँ" ने अपनी वाणी के माध्यम से हम तक पहुंचाई है क्या वो हमारे स्वम् के व्यक्तिगत अनुभव हैं ?

जरा सभी ध्यान अवस्था में पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा,भक्ति ईमानदारी के साथ इन प्रश्नों के उत्तर खोजें कि क्या हम "श्री माँ" की बताई समस्त बातों का अपने यंत्र में अनुभव कर चुके हैं?

यदि नहीं तो हम किस अधिकार के तहत हम "उनके" लेक्चर्स का इस्तेमाल दूसरों को सीख देने के लिए कर रहे हैं।

कहीं ऐसा तो नहीं "श्री माँ" ने अपने सभी लेक्चर्स हमारे अपने स्वम् के यंत्र में अनुभव करने के लिए दिए हैं।

ताकि "उनके" द्वारा बताई गई सभी बातों को हम अपने यंत्र में पहले स्वम् अनुभव करें और फिर अपने वो अनुभव अन्यों के साथ शेयर करें।

ताकि इस सहज-ध्यान-यात्रा के इस ' सहज-काफिले' में साथ चलने वालों की हौंसला अफजाई हो सके, एक दूसरे के अनुभवों से हम लाभान्वित हो सकें।

"श्री माँ" की वाणी के रूप में 'प्राप्त प्रकाश' की रोशनी में हमको अपने स्वम् के ध्यान अनुभव करने अत्यंत आवश्यक हैं।

क्योंकि जो भी "श्री माँ" ने बताया है वह सभी कुछ "उनके" 'अपने स्वम्' के  अनुभव हैं।

"यानि वह सभी अनुभव मानव देह में उपस्थित "आदि शक्ति" के अनुभव हैं जो हमारे अनुभवों से सर्वदा भिन्न ही रहेंगे।

क्योंकि हम मात्र मानव हैं वो "आदि शक्ति का अवतार" हैं और हम मानवों के अनुभव "उनकी" "सर्वोच्च चेतना" के अनुभवों से कभी भी मेल नहीं खा सकते।

इसीलिए शायद "श्री माता जी" ने ब्रह्मांड का सहस्त्रार खोलने के अपने अनुभव के अतिरिक्त अपने स्वयं के अन्य गहन ध्यान अनुभवों का ज्यादा वर्णन अपने लेक्चर्स में नहीं किया है।

शायद "वह" चाहती होंगी की हम सभी अपने अपने ध्यान अनुभव स्वम् प्राप्त करें आपस में बांटे।

किंतु गहन अज्ञानता के चलते हममें से अधिकतर सहजी अपने स्वम् के अनुभवों को शेयर करने के स्थान पर "श्री माता जी" के अनुभवों को बांटने में ही लगें हैं।

और "उनके" लेक्चर्स पर ही अपनी अपनी तुच्छ मानसिक समझ के आधार पर शास्त्रार्थ करने पर ही आमादा रहते हैं।

जिस सहजी को देखो ज्यादातर वह यही कहता नजर आता है "श्री माता जी" ये कहा है, "श्री माता जी" ने वो कहा है।

ऐसा प्रतीत होता है कि सहज संस्था के अधिकतर पदाधिकारियों ने "श्री माता जी" के लेक्चर्स की डिस्ट्रिब्यूशनशिप ले रखी है।

और स्टेट कोर्डिनेटर्स स्टेट डीलर,सिटी कॉर्डिनेटर् लोकल डीलर, कुछ ज्यादा पुराने सहजी फ्रेंचाइज डीलर अधिकतर सहजी सेल्स प्रमोशन में हैं।

यही सब चलता रहा तो 10-20 साल बाद हममें से अधिकतर सहजी रामायण, गीता,कुरान, बाइबिल 'ग्रंथ साहिब' में वर्णित ज्ञान को बांचने वाले वक्ताओं की तरह "श्री माता जी" के लेक्चर्स की व्याख्या विवेचना करते हुए प्रवचन दे रहे होंगे।

या हममें से कुछ विद्वान बन कर "श्री माता जी" के लेक्चर्स पर पी एच डी कर रहें होंगे।

हमारे प्रिय सहज साथियों ये तो खुलकर निर्भयता के साथ बताइए कि "श्री माँ" की वाणी के आधार पर चलकर आप सबने ध्यान में क्या क्या पाया, क्या क्या अनुभव किया ?"

कितना आनंद आएगा ये सब शेयर कर के कि "अंतर जगत" की यात्रा पर सबने क्या क्या प्राप्त किया ?

सबके सामूहिक अनुभवों को सुनने की आकांक्षा के चलते इस चेतना का हृदय वर्षा ऋतु में मद मस्त होकर नाचने वाले मयूर जैसा हो जाता है।

और यदि आम सहज योगियों की इस प्रकार की सहभागिता को सुनने, देखने आत्मसात करने का सुनहरा अवसर इस चेतना को प्राप्त हो जाये।
तो इस चेतना को अपना अस्तित्व वर्षा के जल से प्यास बुझाने वाले तृप्त पपीहे सम लगने लगता है।

"श्री माँ" के द्वारा इस चेतना को जब "श्री चरणों" में लाया गया था तब इस चेतना को "श्री माँ" ने "अपनी" आत्मकथा पढ़वाने का अवसर प्रदान किया।

जिसमें "श्री माँ" के बचपन का एक अध्याय था जिसको पढ़ने पर ज्ञात हुआ कि "श्री माता जी" अपने बाल्यकाल में एक बंदर एक तोते को अपने साथ रखती थीं।

ऐसा प्रतीत होता है कि उस बंदर उस तोते की जीवात्मा "श्री माँ" की कृपा से काफी उत्क्रान्तित उन्नत होकर अपनी जून त्यागकर हममें से अधिकतर सहजियों की चेतना में समा गई है।

जिसके कारण इन दोनों जीवों की आदतें स्वभाव हममें से ज्यादातर सहजियों की चेतना में परिलक्षित होता है।

जिसके कारण हममें से अधिकतर सहजी केवल और केवल एक दूसरे की नकल करते नजर आते हैं।

और जो "श्री माँ" ने बोला है वही का वही रट लेते हैं और वह रटी रटाई बातें अन्यों से बोलते रहते हैं।

यहां तक कि जो भी उदाहरण "श्री माता जी" ने अपने लेक्चर्स के माध्यम से पब्लिक प्रोग्राम/पूजा आदि में दिए हैं बिल्कुल वही का वही बिना किसी फेर बदल के हम अन्यों से भी बोल देते हैं।

बड़ा आश्चर्य होता है यह देखकर कि "श्री माता जी" हमें अपनी सन्तान के रूप में देखना चाहती हैं या फिर 'तोता' अथवा बंदर' के रूप में ?

कृपया जो भी यह लेख पढ़ रहे हैं उनसे इस चेतना विनम्र आग्रह है कि बिना बुरा माने आप सभी अपने अपने ध्यान में जाकर कुछ देर गम्भीरता के साथ चिंतन अवश्य करके देखें।

कि आखिर हम "श्री माता जी" की सन्तान कहलाना पसंद करेंगे या या फिर इन दोनों जीवों का प्रतिरूप।"
-----------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"