Friday, September 10, 2021

"Impulses"-552--"प्रेम के चार रूप"

 "प्रेम के चार रूप"


"वैसे 'प्रेम' तो एक ही होता है जो "परमात्मा" से इस चराचर जगत के लिए प्रवाहित होता रहता है जो हमारी आत्मा के माध्यम से हमें अक्सर प्राप्त होता रहता है।

किन्तु इसका वर्गीकरण हमारी चेतना के स्तर के अनुसार स्वतः ही हो जाता है।

प्रथम है, लेंन-देंन पर आधारित "भावनात्मक प्रेम" जो 'मोह-ग्रस्त-मानव' को अपने रिश्तों,अपने नजदीकियों,अपनी वस्तुओं,अपनी धन-संपदा आदि के लिए अनुभव होता है जो "मानव-मन" का प्रतिनिधित्व करता है।

द्वीतीय है,'अनुभूति-परक', "निस्वार्थ प्रेम" जो भोले भाले सरल मानव के हृदय से समस्त प्राणियों, प्रकृति सम्पूर्ण सृष्टि के लिए बहते हुए 'जीवात्मा' का प्रतिनिधित्व करता है।

तृतीय है, 'आनंदाई', "निर्मल प्रेम" जो "श्री भगवती माँ" का प्रतिनिधित्व करते हुए समस्त जागृत चेतनाओं के लिए बहता है जिसमें मातृत्व के गुण विद्यमान होते हैं।

और चतुर्थ है, 'निरानंद प्रदायक' "निर्वाजय" प्रेम, यह प्रेम "श्री महादेव" का प्रतिनिधित्व करता है और केवल और केवल निर्लिप्त चेतनाओं के लिए ही सक्रिय होता है।"

------------------------------------------Narayan

".Jai Shree Mata Ji"


03-11-2020