Thursday, July 28, 2022

"Impulses"--621-- "मृत्यु"-'एक नए जीवन का आरम्भ'

 "मृत्यु"-'एक नए जीवन का आरम्भ'


"पंच तत्व निर्मित शरीर की मृत्यु उस शरीर में घटित होने वाले 'जीवन की मृत्यु' नहीं बल्कि एक नए आयाम से परिपूर्ण जीवन का आरंभ है।

जिस आयाम को त्रिआयामीय अस्तित्व पर आश्रित आम मानव तो समझ सकते हैं और महसूस ही कर सकते हैं।

दिक्कत यह है कि इस सत्य का आभास आम चेतना के मनुष्यों को केवल और केवल प्राण निकलने की प्रक्रिया के दौरान ही हो पाता है किन्तु इस अनुभव को व्यक्त करने की स्थिति में वे रह नहीं पाते।

इस तथ्य का एहसास केवल गिने चुने गहन ध्यान अभ्यासी ही अपने शरीर में जीवित रहते हुए कर पाते हैं।

इसीलिए आम मनुष्य स्थूल शरीर के जीवन को ही एक मात्र जीवन समझ कर इसके खोने के भय से सदा भयभीत रहते हैं।"

-----------------------Narayan.

"Jai Shree Mata Ji"


02-06-2021

Saturday, July 23, 2022

"Impulses"--620-- "भावनाएं एवं संवेदनाएं "

 "भावनाएं एवं संवेदनाएं"


"भावनाएं मन जनित होती हैं जिनके कारण हमारी चेतना में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

जिसकी प्रतिक्रिया स्वरूप हमारा मन अवसाद अथवा रोष से आच्छादित हो सकता है जिसका प्रतिकूल प्रभाव हमारे निर्णयों व्यवहार पर सकता है।

जबकि संवेदनाये हृदय से ही उत्पन्न होती हैं जो हमें सत्य की ओर ले जाते हुए हमारी जागृति को और भी ज्यादा पुष्ट करती हैं।

जिसके परिणाम स्वरूप हमारा हृदय आनंदित प्रसन्न होकर हमारे भीतर आल्हाद उल्लास को उत्पन्न करता है।

जिसके फलस्वरूप हमारे हृदय से समस्त सुपात्रों के लिए भेद भाव रहित प्रेम वात्सल्य प्रवाहित होने लगता है।"

---------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


01-06-2021

Wednesday, July 20, 2022

"Impulses"--619--"दवाई या तबाही"

"दवाई या तबाही"

"जागो और जगाओ मानव जाति को बचाओ"(भाग-2)

"इस तथाकथित 'विषाणु' से बचने के लिए विश्व की कुछ कम्पनियों के द्वारा जो 'तरल दवाई' तैयार की गई है क्या वह वास्तव में मानव को बचाने में सक्षम है ?

क्या इसी 'दवाई' को ग्रहण करने के कारण ही विश्व के अनेको मानव असमय काल कवलित हो रहे हैं ?

क्योंकि हमारे देश सहित विश्व के अनेको भागों से अनेको लोगों के द्वारा इस दवाई के लेने के वाबजूद भी उनके शरीर पर 'विष्णुओं' का संक्रमण हो रहा है।

और इस संक्रमण को दूर करने लिए किए जाने वाले इलाज के दौरान अचानक से गंभीर रोगों से ग्रसित होकर लोग मृत्यु की गोद में समा चुके हैं।

जिसके कारण अधिकतर लोगों के मन में इस दवाई को ग्रहण करने के सम्बंध में अविश्वास शंकाएं जन्म ले चुकी हैं जिसके कारण बहुत से लोग इस दवाई के दूर रहने का मन बना चुके हैं।

हमारे ही देश के अनेको डॉक्टर जो इस दवाई को लेने की आवश्यकता पर बल दे रहे थे,वे स्वयम इसको ग्रहण करने के कुछ दिनों उपरांत काल के गाल में समा गए।

अभी आप सभी ने सुना/पढ़ा/देखा होगा कि हृदय रोग के बड़े विख्यात डा. के. के अग्रवाल इस 'दवाई' की दोनों खुराक ग्रहण करने के कुछ सप्ताह बाद इस विषाणु से संक्रमित हुए।और फिर आल इंडिया हॉस्पिटल दिल्ली में भर्ती होने के चंद रोज में ही इलाज कराते हुए अपनी जान गंवा बैठे।

ये वही डॉक्टर हैं जिन्होंने पिछले साल से लेकर अभी कुछ दिन पूर्व तक भी,इस विषाणु से बचने के लिए अपने सैंकड़ों वीडियोज के जरिये लोगों को जागृत करते रहे हैं।

हमारे स्वयम के कुछ रिश्तेदार कई परिचित भी इस दवाई को लेने के उपरांत संक्रमित हुए और हस्पताल में इलाज के दौरान अपने प्राण गंवा बैठे।

विश्व के अधिकतर देशों की सभी सरकारें,जो डब्लू एच के अधीन हैं, के द्वारा अपने समस्त नागरिकों के द्वारा इस दवाई को ग्रहण करने की लगातार अपील की जा रही है।

यहां तक कि हमारे देश के सरकारी,अर्द्ध सरकारी प्राइवेट संस्थाओं के द्वारा अपने समस्त कर्मचारियों के द्वारा यह दवाई लेने के लिए दवाब बनाया जा रहा है।और किसी कर्मचारी के द्वारा लेने की इच्छा जाहिर करने पर उसको, उसकी नौकरी से वंचित करने की भी धमकी दी जा रही है।

जबकि हमारे संविधान की धाराओं के अनुसार हमारे देश के किसी भी नागरिक को किसी भी प्रकार की दवाई लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

मानव अधिकार के तहत शायद यह नियम विश्व व्यापी है किंतु लगभग हर देश में इस दवाई के नाम पर समस्त नागरिकों की स्वत्रंत्रता का निरंतर हनन किया जा रहा है।

विश्व के कुछ विद्वानों,डाक्टरों विषाणु विशेषज्ञों ने इस दवाई के ग्रहण करने के कारण उत्पन्न होने वाली गम्भीर बीमारियों के कारण लोगो की असमय मृत्यु के बारे में विश्व के लोगों समस्त देशों की सरकारों को चेताया है।फिर भी किसी भी देश की सरकार उनकी कोई भी बात सुनने मानने को तैयार नहीं।

बल्कि हमारे देश के विश्व के जो भी शोधकर्ता,डाक्टर वैज्ञानिक इस दवाई की हानियों के बारे में अपने चैनल्स के माध्यम से विश्व के समस्त लोगों को आगाह कर रहे हैं,उनके वीडियोज ही डिलीट करवाये जा रहे हैं।

यह सब देखकर,ऐसा प्रतीत होता है कि यह दवाई भी वैश्विक स्तर पर मानवता के विरोध में चलने वाले किसी भयानक षड्यंत्र का हिस्सा ही है।

आखिर क्यों कर डब्लू एच के अधीन आने वाले समस्त राष्ट्रों में यह दवाई उनके नागरिकों पर जबरन लादी जा रही है जिसका अभी तक ठीक प्रकार से अनेको जानवरों पर ट्रायल भी पूर्ण नहीं हुआ है ?

लगता है इस बार एक घातक षड्यंत्र के तहत सम्पूर्ण विश्व में इस दवाई के ट्रायल के लिए जानवरो के स्थान पर मानवों को ला कर मानवों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

जबकि यह व्यवहारिक रूप में वैश्विक स्तर पर पहले इस प्रमाणित हो चुका है कि इस वर्ग के इन विष्णुओं का कभी भी तो कोई इलाज आज तक ही पाया है और ही इसके रोकथाम की कोई सुनिश्चित दवाई ही बन पाई है।

किन्तु फिर भी सम्पूर्ण मॉनव जाती को अनेको तरीकों से डरा धमका कर यह दवाई लेने के किये मजबूर किया जा रहा है।

अब जरा चलते हैं उन समस्त विभूतियों के समस्त ज्ञान शोध की ओर जिन्होंने पूर्व वर्तमान काल में इस वर्ग में आने वाले विष्णुओं की तथाकथित दवाई की हानियाँ बताई हुई हैं।

1.सर्वप्रथम हम सभी की प्रिय "श्री माँ" ने 25-30 वर्षो पूर्व ही बता दिया था,

*कि यह विषाणु उत्क्रांति प्रक्रिया से बाहर फैंकी गई वनस्पतियों जीवों की मृत आत्माओं के अंश हैं।

जो हमारे दाहिने मस्तिष्क के एक भाग सामूहिक अवचेतन में रहते हैं और बायीं नाड़ी से प्रभावित मानवों के शरीर में कभी कभी प्रवेश कर कुछ दिन रहने के बाद अपने आप चले जाते हैं।

जितने भी दिन यह उन मानवों के शरीर में रहते हैं उन्हें बीमार ही रखते हैं, इन विषाणुओं का मेडिकल साइंस के पास कोई इलाज नहीं हैं।

इसका केवल एक ही इलाज है और वह है, यदि इड़ा नाड़ी पर जलते हुए दीपक/मोमबत्ती का प्रकाश दिखाया जाए तो यह वापस सामूहिक अवचेतन में दौड़ जाते हैं।

यहां तक कि "श्री माता जी" ने तो एन्टी बायोटिक, एन्टी पेरासिटिकल दवाइयों को भी सहजियों के द्वारा लेने से मना किया है।

क्योंकि इन दवाइयों के जरिये मृत विष्णुओं/जीवाणुओं/परजीवियों को ही मानव के शरीर में डाला जाता है जिसके कारण सहजियों का शरीर ही बीमार नहीं होता वरन उनकी उत्क्रांति की प्रक्रिया में भी अच्छी खासी बाधा उत्पन्न होती है।

2.आप सभी को हमारे देश के उच्चकोटि के वैज्ञानिक महान देशभक्त स्व डा राजीव दीक्षित जी के बारे में मालूम ही होगा।जिन्होंने सदा अपने वक्तव्यों में हर प्रकार के वर्ग की किसी भी 'तरल दवाई' को मानव शरीर के लिए घातक बताया है।

उनका कहना है कि इस प्रकार की 'दवाई' से कोई भी रोग ठीक नहीं होता बल्कि इस दवाई से अनेको रोग उत्पन्न होते हैं।उनका कहना है कि हमारे शरीर में कुल 148 प्रकार के रोग ही होते हैं जिनकी दवाइयां ही इतनी ही होती हैं जो धरती के गर्भ से उत्पन्न होती हैं।

उन्होंने किसी भी प्रकार के विषाणु के इलाज के लिए हमारे देश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध धूप को ही सबसे बड़ी दवाई बताया है।उनके विचार इस प्रकार की दवाई के बारे में जानने के लिए यूट्यूब पर उनके वीडियो देख सकते हैं।

3.हमारे देश के एक और बहुत ही उच्चकोटि के शोधकर्ता विद्धवान इस वर्तमान काल में उपस्थित हैं जिनका नाम डॉ लियो रेबेलो है।

जो सन 75 के आस पास से लगातार विभिन्न प्रकार की चिक्तिसा पद्यतियों पर शोध करते हुए 1978 से प्राकृतिक चिकित्सा का अपना एक संस्थान महाराष्ट्रा में चला रहे हैं।

इनको, प्राकृतिक,आयुर्वेदिक,यूनानी, होम्योपैथिक आदि चिकित्सा पद्यतियों में महारत हांसिल है।

इसके अतिरिक्त यह मानव कल्याण के विभिन्न वैश्विक संगठनों से भी जुड़े हुए हैं,जिनके चलते विश्व के 65 देशों की यात्रा करते हुए मानव कल्याण में ऊपर 15000 से भी ज्यादा डब्लू एच सहित अत्यंत सम्मानीय संस्थानों में दे चुके हैं।

डा. रेबेलो बताते हैं कि इस विषाणु की तथाकथित दवाई में 'विषाणु' के अतिरिक्त 70 प्रकार के अन्य हानिकारक तत्वों को डाला गया है जिसमें 22 तत्व तो मानव शरीर के लिए अत्यंत घातक हैं।

जिसके कारण इस दवाई को लेने वाले लोगों को अनेको प्रकार के गम्भीर शारीरिक रोग लग सकते हैं।वे तो यहां तक कहते हैं कि इस दवाई को लेने वाले अधिकतर लोगों को 3 से 5 वर्ष के भीतर 'ब्लड कैंसर' तक हो सकता है।

यदि आप सभी इस दवाई के विषय में उनकी बातों को सुनना चाहते हैं तो यूट्यूब पर उनके वीडियोज को देख सकते हैं।

4.आप सभी डा विश्वरूप राय चौधरी के नाम से अच्छी प्रकार से परिचित होंगे इन्होंने भी इस दवाई की हानियों के विषय में बताया है।

ये वही डॉक्टर हैं जिन्होंने पिछली तथाकथित लहर में अपने 600 लोगों की टीम के सहयोग से मोबाइल पर ही हमारे देश के 50000 से भी ज्यादा विषाणु ग्रस्त लोगों का अपनी प्राकृतिक आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्यति के द्वारा बिना किसी अन्य दवाई के ठीक किया।

इस दूसरी लहर में भी अब तक 5000 से ज्यादा विषाणु संक्रमितों का सफलता पूर्वक इलाज कर चुके हैं।

और अब तो महाराष्ट्र के 1100 बैड के एक ओपन एयर हस्पताल की जिम्मेदारी इन्हें दी गयी है जिसमें इस विषाणु के संक्रमितों का इलाज अपनी प्राकृतिक चिकित्सा पद्यति के द्वारा बिना मास्क शोशल डिस्टनसिंग के कर रहे हैं।

बताया जा रहा है कि इस हस्पताल में अधिकतर मरीज तीन से लेकर पांच दिनों में आसानी के साथ इनकी देख रेख में तेजी के साथ ठीक हो रहे हैं।

ये दिसम्बर 2019 से ही लगातार कहते रहे हैं कि यह विषाणु कोई नया नहीं है जो बरसो से हमारे साथ है बस इसका नाम नया रख दिया गया है।

इन्होंने जुलाई 2020 में ही बता दिया था कि जो भी लोग प्रतिदिन 2-4 घंटे तक मास्क का प्रयोग करेंगे।

उनको हाइपोक्सिया हाइपर कैपनिया नाम के रोग अगले कुछ माह में हो जाएंगे जिसके कारण उनके शरीर में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ने के कारण आक्सीजन की कमी हो जाएगी जो इस दूसरी लहर में चारो ओर परिलाक्षित हो रही है।

यही नहीं, पिछले वर्ष ही अपने अध्ययन शोध के आधार पर शरीर में घटने वाली इस आक्सीजन को सही करने के लिए इसका सरल प्राकृतिक 'प्रोन वेंटिलेशन' का तरीका बताने वाले विश्व के ये ही एकमात्र डॉक्टर थे।

इनके अतिरिक्त भारत के कई नामी डॉक्टर भी इस दवाई की हानियों के बारे में अपने वीडियोज के माध्यम से निरंतर अवगत करा रहे हैं।इन सभी के वीडियोज भी डा विश्वरूप राय चौधरी की तरह लगातार डिलीट किये जा रहे हैं।

अभी दो तीन दिन पूर्व हमारे देश के 161 डॉक्टरों ने डा विश्वरूप राय चौधरी के नेतृत्व में हमारे देश के प्रधान मंत्री के नाम सामूहिक रूप से एक खुला पत्र लिखा है।

i)जिसमें कहा गया है कि वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह साबित नहीं होता कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु इस विषाणु के कारण हुई है।

ii)इस विषाणु के जांच का टेस्ट वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गलत है।

iii) आई सी एम आर ने पिछले वर्ष से अभी तक क्यूँ कर किसी भी हस्पताल में होने वाली लगभग हर मृत्यु को इस विषाणु से हुई मौतों की लिस्ट में शामिल करने का नियम बनाया है ?

5.अभी अभी 24 मई 2021 को फ्रांस के विश्व विख्यात वायरोलॉजिस्ट डा ल्यूक मांटेगनियर ने एक इंटरव्यू देकर सारे विश्व के वैज्ञानिकों को हिला दिया है।

उनके शोध अनुसंधान के अनुसार वैश्विक स्तर पर बड़ी संख्या में इस विषाणु के संक्रमण को रोकने के लिए 'तरल दवाई' देना बहुत बड़ी वैज्ञानिक स्तर की भूल है।

क्योंकि जब यह दवाई मानव शरीर में जा रही है तो यह विषाणु अपने नए नए रूपों में अपने को बदल रहा है।और पहले से भी ज्यादा शक्तिशाली होकर दवाई ग्रहण करने वाले मानव के भीतर से प्रसारित हो रहा है।

जिससे संक्रमण तीव्र हो रहा है जिसके कारण बहुत तेजी के साथ लोग इसकी चपेट में आकर अनेको प्रकार के आंतरिक रोगों से ग्रसित होकर मृत्य को प्राप्त हो रहे हैं।

इन्होंने कहा है कि इससे मनुष्य के शरीर में 'एन्टीबॉडी डिपेंडेंट एनहांसमेंट' की गम्भीर समस्या होनी शुरू हो जाएगी।

ये वही वैज्ञानिक हैं जिन्होंने पिछले साल ही यह साबित कर दिया था कि यह विषाणु एक षड्यंत्र के तहत अप्राकृतिक रूप से वुहान शहर की लैब में तैयार किया गया था।

6.इनके अतिरिक्त एक और ब्रिटेन के विद्वान हैं जिनका नाम डा. वर्मन कोलमैन है।उन्होंने 12 मॉर्च 2021 को अपने एक वीडियो के माध्यम से बताया है कि,

जब यह दवाई मानव के शरीर में उसके समस्त प्राकृतिक सुरक्षा कवचों को भेद कर प्रविष्ट करा दी जाती है।

तो उक्त मानव का शरीर कुछ ही माह में अनेको प्रकार के पहले से भी ज्यादा शक्तिशाली विष्णुओं को उत्पन्न करने वाली लेब्रोटरी में परिवर्तित हो जाता है।

जिसके कारण हर मानव देह की आंतरिक स्थितयों के कारण नए नए किस्म के विष्णुओं का प्रसार होना प्रारम्भ हो जाता है।इन नए किस्म के विष्णुओं के संक्रमण को रोक पाने में कुछ माह पूर्व ली गयी तथाकथित दवाई सक्षम नही होगी।

इसके कारण अनेको प्रकार के रोगों जैसे एलर्जी,हॄदय रोग, ब्रेन स्ट्रोक,स्नायु तंत्र से सम्बंधित परेशानियां,आंधता, लकवे जैसी गम्भीर समस्याएं होंगी और इनके कारण लोगो की अचानक से मृत्यु भी हो सकती है।

उनके इस कथन की सत्यता को हम आज के हालात से जोड़कर आसानी से देख सकते है।

क्योंकि यह लगातार साबित हो रहा है कि जिन लोगों ने कुछ माह पूर्व यह दवाई ली थी उनमें से काफी लोग संक्रमित होकर काल कवलित हो चुके हैं।

इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से हमारी सुरक्षा प्रणाली को बनाये रखने के लिए 'एन के सेल्स' सक्रिय होते हैं।

किन्तु जब कोई इस प्रकार की 'तरल दवाई' को ग्रहण कर लेता है तो उसके यह 'एन के सेल्स' या तो नष्ट हो जाते हैं या फिर निष्क्रिय हो जाते हैं।

इस कारण से नए विष्णुओं के प्रति हमारी प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता जागरूक नहीं हो पाती और हम उन नए विषाणु के रूप से बाधित हो जाते हैं।

उन्होंने समस्त यह दवाई लेने वाले लोगों को चेताया है कि वे दवाई लेने वाले लोगों के सम्पर्क में आएं क्योंकि वे लोग बड़े स्तर पर नए नए विष्णुओं के प्रसार का माध्यम बन गए हैं।

जरा कल्पना कीजिये की यदि इनकी बात सत्य है तो यह दवाई लेने वाले समस्त मानव कुछ ही माह में अन्य सभी दवाई लेने वाले लोगों को अपने शरीर से प्रसारित होने वाले विष्णुओं से संक्रमित कर रहे होंगे।

क्योंकि इनके द्वारा ली गई दवाई के कारण इनका प्राकृतिक रक्षा तंत्र बेकार हो चुका होगा और इनके द्वारा ली गई दवाई इन नए विष्णुओं के लिए अक्षम साबित होगी।

यानि, सरल शब्दों में यह कहें कि यह दवाई लेने वाले सभी लोग एक दूसरे के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होंगे।

इस विश्लेषण के अनुसार दवाई लेने वालों का सुरक्षा तंत्र हर बार सक्रिय होकर हर प्रकार के नए पुराने रूप के विष्णुओं से लड़ने में सक्षम होगा।

7.माइक एडम, हेल्थ रेंजर,पर्यावरण वैज्ञानिक,जर्नलिस्म में कई अवार्ड जीतने वाले और विज्ञान दवाइयों से सम्बंधित जानकारी पर कमेंट्री देने वाले,विख्यात विश्लेषक हैं जो 'नेचुरल/न्यूज़ डाट काम' के नाम से अपनी एक वेबसाइट चलाते हैं।

इन्होंने तो इस 'तरल दवाई' के साइड एफ्फेक्ट्स के बारे में अपनी वेबसाइट पर 24-05-2021 अपने 5 वीडियोज के द्वारा बहुत ही चिंता जनक जानकारी साझा की है।

इनके अनुसार यह 'दवाई' एक प्रकार से 'एक्सटर्मिनेशन वेपन' के रूप में काम कर रही है जिसके कारण होने वाले साइड इफ़ेक्ट के कारण होने वाली अनेको बीमारियों के कारण विश्व में लाखों लोग मारे जाएंगे।

इन्होंने बताया है कि विश्व के अनेको देशों में दस हजार से ज्यादा लोग इस 'तरल दवाई',जो कि एक 'इंजीनियर्ड बायो वेपन' है,की वजह से उत्पन्न हुई अनेको बीमारियों के कारण कालकवलित हो चुके हैं।

इन 6 मुख्य विद्वानों ने जो जानकारियां दी हैं उनके मुताबिक यह कहा जा सकता है कि यह 'तरल दवाई' मानवीय शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकती है।

हो सकता है यह सब पढ़कर आपमें से कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि इनके अतिरिक्त भारत समेत विश्व के अनेको वैज्ञानिक और डॉक्टर तो यह 'दवाई' लेने के पक्ष में हैं तो क्या वे सारे गलत हैं ?

तो इसका जवाब ढूंढने के लिए इन्ही 6 विद्वानों के फार्मास्युटिकल कम्पनीज के प्रति जो विचार हैं वे भी इनकी वीडियोज लेखों के जरिये जान लीजिए, तो आपके सभी प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा।

उपरोक्त प्रश्न के साथ एक अन्य प्रश्न भी आपकी चेतना में मुखर हो सकता है और वो है, कि आप में से अनेको लोग कहेंगे कि विश्व की कुछ ऊंची हस्तियों ने भी यह दवाई ग्रहण की है, जिनके दवाई को ग्रहण करते हुए हमने फोटो देखे हैं।

तो इस प्रश्न के जवाब में हम केवल इतना ही कहेंगे कि आपको कैसे पता कि जो इन ऊंची हस्तियों ने लिया है वह यही दवाई ही हो, हो सकता है प्लेसिबो हो।

प्लेसिबो यानि सेलाइन/डिसटिल वाटर हो, इस प्लेसिबो का इस्तेमाल अक्सर मनो चिकित्सकों के द्वारा मनो दैहिक समस्याओं से घिरे लोगों को ठीक करने के लिए किया जाता है।इसके बारे में भी इनमें से कुछ विद्वानों ने बताया है।

उन सभी बातों का हम इस लेख में जिक्र नहीं करेंगे कि, क्यों डब्लू एच के आधीन आने वाले देश की सरकारें और उन सरकारों के आधीन काम करने वाले सभी स्वास्थ्य संगठन उनके आधीन काम करने वाले समस्त डॉक्टर वैज्ञानिक इस दवाई को लेने के पक्ष में क्यों हैं।

ऐसा करने से हमारा यह लेख अत्यंत लम्बा हो जाएगा, और वैसे भी वह विषय बहुत गूढ़ कटु सत्य पर आधारित है जिससे हजम कर पाना अधिकतर लोगों के लिए अत्यंत कठिन है।

इस लेख में वर्णित समस्त तथ्यों विद्ववानों डाक्टरों की प्रामाणिकता जांचने के इच्छुक सभी लोगों से हमारा विनम्र निवेदन है कि यूट्यूब गूगल पर जाकर इनके लेख वीडियों देखें।

क्योंकि हमने भी पिछली लहर से इस दूसरी लहर तक इस विषाणु,इसके इलाज इस विषाणु की रोक थाम से सम्बंधित अनेको डाक्टरों विद्ववानों के लेख पढ़े वीडियोज देखे हैं।

अतः इस दवाई के विषय में आप भी यदि चाहें तो अध्यन कर सकते हैं और इस दवाई के ग्रहण करने या करने के विषय में स्वयम निर्णय ले सकते हैं।

जिन लोगों ने यह दवाई ग्रहण कर ली है और उनको लगता है कि हमने भारी गलती कर दी है तो चिंता की कोई बात नहीं है।

क्योंकि डा लियो रेबेलो जी ने इस 'तरल दवाई' के साइड इफ़ेक्ट से बचने के लिए होम्योपैथी की चार दवाइयां बता रखीं हैं।जिसकी जानकारी गूगल/यूट्यूब के जरिये उनकी प्रोफ़ाइल से ले सकते हैं।

इनके दुष्प्रभावों को नगण्य करने के लिए हम एक अत्यंत सरल तरीका बताने जा रहे है, उस तरीके के बारे में हम पहले भी अपने पिछले लेखों में बता चुके हैं।

वह तरीका है दिन में तीन बार 5-7 मिनट के लिए,

i)लम्बी सांस अंदर भरें,

ii) फिर 30-40 सेकंड्स/जितनी देर तक रोक सकते हैं रोकें,

iii)इसके बाद धीरे धीरे सांस छोड़ें।

इससे आपका हृदय चक्र अच्छे से खुलेगा और एन्टी बॉडीज बनाना प्रारम्भ कर देगा।

जिसके परिणाम स्वरूप इस दवाई के जरिये जितने भी हानिकारक पदार्थ आपके शरीर में इस दवाई के जरिये पहुंचाए गए हैं, उनके कारण आपकी प्रतिरोधक क्षमता का जो ह्रास होगा।

यह सासों को रोकने की प्रक्रिया उस कम हुई प्रतिरोधक क्षमता को पुनः ठीक कर देगी और आप इस हानिकारक दवाई के विष से बच सकेंगे, किन्तु यह प्रक्रिया आपको पूरे जीवन के लिए अपनानी होगी।

क्योंकि इस प्रकार की दवाई के बुरे असर बहुत लंबे समय तक बने रहते हैं और लगातार किसी किसी रूप में हानि पहुंचाते रहेंगे।तो स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए प्रतिदिन 15-20 मिनट निकालना कोई बड़ी बात नहीं है।

इसके अतिरिक्त यह भी देखा गया कि, इस 'तरल दवाई' के दुष्प्रभावों के अतिरिक्त इस विषाणु के इलाज के लिए हस्पतालों में जो महंगी महंगी दुनिया के लगभग सभी देशों में प्रतिबंधित दवाइयां दी गईं।

उनके कारण भी हजारों मरीजो के मुख्य अंगों में खराबी उत्पन्न हुई इन दवाइयों के साइड इफ़ेक्ट के कारण भी उनकी मृत्यु हुई है।

यानि उपरोक्त विवेचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस विषाणु की रोकथाम इलाज के लिए हस्पतालों में जो भी दवाइयां दी गईं उन्होंने ही मरीजों की जिंदगियों को लील कर तबाही ला दी।

*क्या तीसरी लहर इस 'तरल दवाई' के दुष्प्रभावों के कारण बीमार होने वाले लोगों के रूप में आने वाली है ?*

*विश्व विख्यात टेस्ला कम्पनी के मालिक एलन मस्क ने अपने ट्वीट के माध्यम से इस 'दवाई' को लेने से स्पष्ट मना कर दिया है।*

इसके अतिरिक्त डा संजय राय जी जो एम्स दिल्ली में 'प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर ऑफ वैक्सीन सेफ्टी एन्ड ऐफिकेसी ट्रायल' हैं।

*इन्होंने अपने शोध के जरिये बताया है कि जिन लोगो को एक बार इस विषाणु का संक्रमण हो चुका है उनको यह 'तरल दवाई' लेने की आवश्यकता नहीं है।

क्योंकिं हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से स्वतः ही एंटीबॉडीज बनाये रखता है जिसका प्रभाव 9 माह तक के लिए रहता है।

इसके अतिरिक्त एक और रिपोर्ट के अनुसार स्कूल ऑफ साइंस,वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के कुछ वैज्ञानिकों डाक्टरों ने रीढ़ की हड्डी में स्थित 'बोन मैरो' का अध्यन करने के पश्चात कहा है।

कि जो इम्युनिटी इस विषाणु के खिलाफ तैयार होती है उसके कुछ सेल 'बोनमेरो' में संचित हो जाते हैं जो आजीवन इस विषाणु के खिलाफ इम्युनिटी को हर बार तैयार करने में सक्षम हैं,यानि आप दुबारा इस विषाणु से संक्रमित नहीं हो पाएंगे।

"श्री माँ" के द्वारा हमारे हृदय में दी गयी प्रेरणा के आधार पर आप सभी को इस 'दवाई' के विषय में सचेत करना हमारा परम कर्तव्य था सो हमने इस लेख के जरिये पूरा कर दिया।

अपने स्वयं के हृदय में अपनी चेतना को रखते हुए अपने सहदत्रार से जुड़कर कुछ मिनट के लिए गहन ध्यान में उतरें और फिर अपनी 'आत्मा'/"श्री माँ" से इस दवाई के बारे में प्रश्न करें, आशा करते है कि आपको उपयुक्त उत्तर अवश्य मिलेगा।

अंत में हम सभी गहन ध्यान में कुछ देर के लिए उतरेंगे और कुछ देर तक अपने मध्य हॄदय सहस्त्रार में 'दिव्य ऊर्जा' की अनुभूति करेंगे।

इसके उपरांत "श्री महाकाली" "श्री कल्कि" से समस्त पैशाचिक,शैतानी राक्षसी शक्तियों इनके समस्त सहयोगियों के सर्वनाश विनाश की प्रार्थना करते हुए कुछ और देर के लिये हम ध्यानस्थ होंगे।

यह 'चेतना' आप सभी के चहुंमुखी कल्याण की "श्री माँ" से प्रार्थना करते हुए आप सभी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती है।"

--------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


29-05-2021