Wednesday, May 27, 2020

"Impulses"--528--"विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी" (भाग-6)


"विभिन्न प्रकार की चेतना स्तर के सहज अनुयायी"
(भाग-6)


b) ऋणात्मक मनोवृति वाले सहजी:-

20."श्री माताजी" की सेवा में रहे सहजी:

इस वर्ग में अधिकतर वह सहजी आते हैं जो साक्षात "श्री माता जी" के साथ प्रतिष्ठान आदि में "उनकी" सेवा में रहे होते हैं।

इनमें से कुछ सहजी समय समय पर व्यक्तिगत तौर पर या सामूहिकता के समक्ष "श्री माता जी" के सानिग्ध्यय की बातें सभी सहजियों को बताते रहते हैं।

विशेष तौर से "श्री माता जी" के साथ के दौरान घटित होने वाले अनेको प्रकार के चमत्कारों का दिल खोल कर वर्णन करते हैं। जिससे सुनने वाले श्रोता सहजी मंत्र मुग्ध हो जाते हैं और अक्सर अपने मन ही मन यह सोचने लगते हैं।

कि ये सहजी कितने भाग्यवान आशीर्वादित हैं जो इन्हें "श्री माता जी" के साक्षात स्वरूप के साथ रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। काश हमारा भी ऐसा सौभाग्य होता जो हमें "श्री माता जी" के साथ रहने का सुनहरी मौका मिल जाता।

जरूर हमारी किस्मत में कुछ खोट है जिसके कारण हम साक्षात "परमात्मा" के साथ नहों रह पाए और ही हमें उनके साकार रूप के दर्शन ही उपलब्ध हो पाए।

ऐसा सोच सोच कर कुछ सहजी भीतर ही भीतर उदास होने लगते हैं और हीन भावना से ग्रसित हो जाते हैं।

और इसके विपरीत "श्री माता जी" के साथ रहे सहजी सबके सामने अपने अंतर्मन में गौरान्वित महसूस करते हुए अपने को विशेष अनुभव करते हैं।

और इस प्रकार से विशेष होने के भावों के चलते वे ठीक प्रकार से ध्यान में उतरते नहीं हैं और ही सहज का ठीक प्रकार से कार्य ही करते हैं।

और ऐसे सहजी जाने अनजाने में, ऐसे ही भावों के स्थायित्व के चलते, दबे पांव चेतना को अपने कब्जे में लेने वाले अंहकार के चंगुल में फंस कर अधो गति को प्राप्त होते हैं।

हम यदि गहन ध्यान में उतर कर इन दोनों प्रकार की सोचों पर चिंतन करें तो हम पाएंगे कि वास्तविकता ठीक इन दोनों ही बातों के विपरीत हैं।

यदि सतही स्तर पर देखें तो "श्री माता जी" के बाह्य स्वरूप के सानिग्ध्यय में रहने वाला यह विचार ही अत्यंत आनदाई महसूस देता है।

वास्तव में इसमें कोई शक ही नहीं है कि जो सहजी "श्री माता जी" के साथ रहे हैं वह एक प्रकार से खुशनसीब ही हैं। क्योंकि "श्री माता जी" का साथ उनकी चेतना को विकसित करने उनकी पीड़ाओं को हरने वाला होता है।

वास्तव में हमारी चेतना सूक्ष्म समझ के अनुसार "उनके" द्वारा अपने साकार स्वरूप के साथ ऐसे सहजियों को रखा था।

जिनके यंत्र "उनके" बाह्य स्वरूप से दूर रहकर "उनकी" ऊर्जा शक्तियों को अपने यंत्र के माध्यम से ग्रहण करने योग्य नहीं थे।

या ये कहें कि उन सहजियों के सूक्ष्म आध्यत्मिक केंद्र कुंडलिनी इतनी निर्बल अवस्था में थे कि "श्री माता जी" को अपने बाह्य अस्तित्व के ऊर्जा क्षेत्र में उनको रखना पड़ा।

जैसे कि एक डॉक्टर गम्भीर अवस्था के मरीज को अपनी नजदीकी देखरेख में रखने के लिए ICU में रखता है। तो भला सोचिए कि यदि किसी के सूक्ष्म यंत्र की ऐसी दशा है तो भला इसमें गौरवान्वित होने की क्या बात है।

बल्कि ऐसे सहजियों को अपने ऊपर घमंड करने के स्थान पर अत्यंत विनम्रता दीनता अनुग्रह के साथ यह चिंतन करना चाहिए।

कि "श्री माता जी" ने उन पर कृपा करके ने उन्हें हजारों विपदाओं से बचा लिया वरना उनकी जीवात्मा को पता नहीं किस किस प्रकार के नरक देखने पड़ते।

21.सहज कार्यक्रमों के दौरान "श्री माता जी" के साथ में चलने मंच पर रहने वाले सहजी:-

इस वर्ग में अधिकतर वे सहजी आते हैं जिनको "श्री माता जी" ने संस्था सहज के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए सहज संस्था में विभिन्न पदों पर नियुक्त किया था कुछ जिम्मेदारियां प्रदान की थीं।

इनमें से अधिकतर सहजी अपने अपने सांसारिक जीवनों में या तो किसी किसी प्रभाव शाली पद पर आरूढ़ रहे थेया फिर अपने अपने व्यवसाय में एक अच्छा मुकाम हांसिल किये हुए थे।

जिनकी प्रशासनिक विशेषताओं गुणों का उपयोग सहज संस्था को चलाने पूरे विश्व में "श्री माता जी" के सहज कार्यक्रमों को नियोजित करने में किया जाता था।

इनमें से कुछ ऐसे सहजी भी रहे हैं जिनके हाथ पकड़ कर "श्री माता जी" मंच पर आया करती थीं और यह लोग अक्सर "श्री माता जी" के साथ ही उनकी गाड़ी के साथ चला करते थे।

"श्री माता जी" के साकार स्वरूप के साथ हर स्थान पर "श्री माता जी" के साथ रहने के कारण 'आम सहजी' भी ऐसे सहजियों को विशेष सम्मान दिया करते थे।

यहां तक कि ऐसे कुछ सहजियों को आम सहजी "श्री माता जी" के बाद सबसे प्रभावशाली मानते थे। यानि अगर ऐसे सहजी कुछ बोल भी दें तो उनका कहा, "श्री माता जी" का कहा ही माना जाता था।

ऐसी अवस्था के चलते धीरे धीरे इनमें से कुछ सहजी स्वयं अज्ञानतावश ऐसा समझने भी लग गए थे कि मानों वही "श्री माता जी" के सलाहकार हैं और वही सहज योग चला रहे हैं।

अपने इन घोर अज्ञानता से परिपूर्ण भावों के चलते ये सहजी लगभग सभी सहजियों के ऊपर रौब जमाने लगते थे।

जो अच्छे सहजी इनके अनुसार कार्य नहीं करते थे उनके बारे में इन महान सहजियों के द्वारा साप्ताहिक सेंटर्स में माइक पर उद्घोषणाएं कर कर के उन्हें सहज कार्य करने से रोका जाता था।

उनके बारे में गलत सलत प्रचारित करके अन्य सहजियों में भ्रम फैलाया जाता था ताकि उन अच्छे सहजियों को लोग गलत समझे और उनके सम्पर्क में आने से बचें।

इसी दुर्भावना के चलते उन अच्छे प्रेममयी सहजियों के द्वारा चलाये जाने वाले सेंटर्स को बंद करा दिया जाता था। तो किन्ही अच्छे सहजियों को पूजा सहज सामूहिकता आदि में शामिल होने से इनके द्वारा रोक दिया जाता था।

जो सहजी इन उच्च पदाधिकारियों की चापलूसी जी हुजूरी किया करते थे केवल उनको ही सहज कार्य करने की इजाजत दी जाती थी।

हालांकि कुछ समय बाद उस काल के इस प्रकार के सहजियों को "श्री माता जी" ने स्वयं उनके पदों से हटा दिया था।

किन्तु दुर्भाग्य से ऐसी समझ मानसिकता वाले उन सहजियों का यह सिलसिला आज भी किसी किसी रूप में सहज संस्था में किन्ही पदों पर आसीन कुछ सहजियों के द्वारा आज भी जारी है।

इसी मनो दशा के सहजी आज भी कुछ अच्छे गहन स्तर के सहजियों को कार्य करने से रोकने की भरपूर कोशिश करते रहते हैं।

क्योंकि पदों पर आसीन कुछ सहजियों को उन गहनता से परिपूर्ण सहजियों के सहज ध्यान के चेतन कार्यों से अत्यंत डर लगता है कि कहीं उनका महत्व सहज सेंटर्स में कम हो जाये।

और आम सहजी उन गहन सहजियों के अनुभवों से लाभान्वित होकर सहज सेंटर्स में भी गहन ध्यान कराने की मांग करने लगें।

यदि ऐसा हुआ तो पदों पर बैठे उन सहजियों के लिए अत्यंत मुश्किल हो जाती है। क्योंकि अपने सेंटर्स में रौब चलाने वाले अधिकतर सहजियों ने कभी गहनता में उतरने का प्रयास तक नहीं किया।

केवल और केवल आत्मसाक्षात्कार के कार्यक्रम या तो करवाये हैं और या स्वयं "श्री माता जी" के अल्टार के माध्यम से पुरानी पद्यति के ऊपर आधारित आत्मसाक्षात्कार ही दिया हैं।

अतः सामने बैठी हुई सामूहिकता से आने वाले 'ऊर्जा संकेतो' / अपनी आत्मा में प्रगट हुई प्रेरणा के अनुसार किस प्रकार से आत्मसाक्षात्कार दें।
अथवा सेंटर्स की सामूहिकता को किस प्रकार से ध्यान करवाएं, यह बात ऐसे सहजी समझ ही नहीं पाते।

इसीलिए ऐसे सहजी अपने सेंटर्स के लोगों को किन्ही अच्छे गहन सहजियों के जागृति ध्यान के कार्यक्रमों में रोड़ा अटकाने की पुरजोर कोशिश करते हैं।

और इन कोशिशों को सफल बनाने के लिए ये सहजी अपने सेंटर्स के सहजियों को उन गहन सहजियों के प्रोग्रम में शामिल होने के लिए अनेको प्रकार की पाबंदियां लगाते हैं।

अक्सर उनको डांटते हैं, उनको सबके सामने बेइज्जत करते हैं, उनको धमकाते हैं, उनकी हंसी उड़ाते हैं, उनकी पीड़ाओं को जगजाहिर कर मजाक उड़ाते हैं, उनके बारे में गलत सलत प्रचार करते हैं।

साथ ही उन सच्चे गहन सहजियों के बारे में व्हाट्स एप्प वाणी-निंदा के जरिये अनर्गल प्रचार भी करना प्रारम्भ कर देते हैं।

और यदि इन सबके वाबजूद भी उनके सेंटर्स के सहजी उन अच्छे सहजियों के कार्यक्रमों में शामिल भी होना चाहते हैं तो ये महानुभाव उनको अनेको प्रकार की प्रोटोकाल उल्लंघन, धन/स्वास्थ्य हानि आदि का भय दिखाते हैं।

और यदि फिर भी बस नहीं चलता तो ये पदस्थ सहजी उनको सेंटर्स में आने के लिए रोक भी लगाना प्रारम्भ कर देते हैं।

हद तो तब और भी हो जाती है जब द्वेष भावना से घिरे ये पदस्थ सहजी उन अच्छे सहजियों को सहज संस्था से बाहर निकालने के लिए अपनी जैसी प्रवृति वाले कार्डिनेटर्स का गुट बना लेते हैं।

और अपने साथ जोड़े गए अपने ही जैसी मानसिकता वाले सहजियों के द्वारा संस्था के उच्चाधिकारियों के समक्ष झूठी सच्ची बाते कहलवाते हैं।

ताकि संस्था के सर्वोच्च पदों पर आसीन पदाधिकारी उनकी बनावटी असत्य बातों को सुनकर उन अच्छे गहन सहजियों को संस्था से बाहर निकालने की घोषणा कर दें।

ऐसे निम्न चेतना वाले पदस्थ सहजी यह भी तनिक विचारने की जुर्रत नहीं करते कि किसी भी सहजी को "श्री माता जी" ही सहज योग के माध्यम से अपने "श्री चरणों" में लाती हैं।

और "अपना" यंत्र "वे" अपने तरीके से समस्त सहजियों की विभिन्न चेतनाओं के ध्यान गहनता की आवश्यकता स्तर के अनुकूल 'स्वयं' ही तैयार करती हैं।

तो भला कोई भी सहजी /सहज पदाधिकारी भला किस प्रकार किस हैसियत से किसी सहजी को सहज से बाहर निकालने की गुस्ताखी कर सकता है।

यदि वह ऐसा करेगा अथवा करने की सोचेगा भी तो वह सीधे सीधे "श्री माता जी" की इच्छा के खिलाफ कार्य करेगा और समस्त रुद्रों गण देवताओं की हिट लिस्ट में स्वयं ही जायेगा।

और यदि वास्तव में कोई सहजी "श्री माता जी" सहज की खिलाफत करेगा तो "श्री माँ" स्वयं ही उसे सहज से बाहर का रास्ता दिखा देंगी।

क्योंकि "श्री माँ" तो हर रूप में हम सभी के बीच सक्रिय हैं और आज भी "अपने" सभी कार्य "अपने" तरीके से अपने यंत्रों के माध्यम से 'स्वयं' अंजाम दे रही हैं।

तो भला किसी भी पदस्थ सहजी अथवा सहज संस्था के पदाधिकारी को किसी भी सहजी के विरुद्ध किसी भी प्रकार का षड्यंत्र रचने की हिम्मत कैसे हो सकती है ?

यदि फिर भी कोई संस्थाधिकारी अथवा पदस्थ सहजी ये निम्नतम कार्य करता है तो यह बात सुनिश्चित है कि वह या तो "श्री माता जी" को जानता ही नहीं कि "वे" कौन हैं ?

या उसका विश्वास "श्री माता जी" में अभी तक जम ही नहीं पाया है,

या वह ध्यान में अच्छे से अभी उतर ही नहीं पाया है जिससे वह "श्री माता जी" के प्रति पूर्ण रूप से विश्वस्त हो पाता "श्री माता जी" को अपने अंतःकरण में जान पाता।

सहज का इतिहास गवाह है कि जिस सहज पदाधिकारी अथवा लीडर/कॉर्डिनेटर ने किसी भी अच्छे सच्चे सहजी को तकलीफ दी है अथवा उत्पीड़ित किया है उसका सम्पूर्ण अस्तित्व ही पूर्णतया तिरोहित हो गया है।

दूसरी ओर जो सहजी इन नकारात्मकता से घिरे पदस्थ सहजियों के कहने में आकर उन अच्छे गहन सहजियों के कार्यक्रम को छोड़ देते हैं।

वे अपने आध्यात्मिक उत्थान को स्वयं ही बाधित ही नहीं करते वरन अपनी चेतना के विकास की प्रक्रिया को ही जड़ कर देते हैं।

क्योंकि "श्री माता जी" ने हम सभी साधक/साधिकाओं को विभिन्न प्रकार विभिन्न स्तर के यंत्रों के द्वारा उन्नत होने की व्यवस्था कर रखी है।

जैसे जैसे हम ध्यान में गहन उन्नत होते जाते हैं वैसे वैसे हमारी चेतना को विकसित करने के लिए "श्री माँ" अपने 'यंत्रों' में भी बदलाव लाती चली जाती हैं।

तो हमें हर प्रकार से आंतरिक स्तर पर पूर्ण जागरूक होना होगा और अनुभव करना होगा कि हमारे यंत्र को किस प्रकार के यंत्र से सहायता प्राप्त हो सकती है।

और इसके लिए हमें किसी की भी बातों को मानसिक आधार पर मानकर अपनी अनुभूति, अनुभव, आत्मा ऊर्जा संकेतों की कसौटी पर कसके जरूर देखना चाहिए। तभी हम किसी भी सहजी की वास्तविकता सत्य को समझ जान पाएंगे।

यदि हम किसी की सुनी सुनाई बातों को सच मान कर किसी अच्छे सहजी को गलत समझेंगे मानेंगे। तो हमारे समस्त चक्र पकड़ने लगेंगे और हम कभी भी ध्यान में अच्छे से विकसित नहीं हो पाएंगे।

हमें तो यह देखकर अत्यंत आश्चर्य बेहद अफसोस होता है कि सहज योग रूपी सत्य पर चलने वाले अधिकतर सहज राही केवल सुनी सुनाई बातों के आधार पर ही धारणा बना लेते हैं।

और उस अपनी बनाई धारणा को बिना कुछ सोचे समझे परखे उसे अपनी वाणी व्हाट्स एप्प के माध्यम से अन्य सहजियों के बीच आगे से आगे बढ़ाते जाते हैं और अपनी चेतना को स्वयं ही रुग्ण करते जाते हैं।

●'यदि हम सत्य को समझने आत्मसात करने के लिए मात्र अपनी इंद्रियों के द्वारा प्राप्त हुई सूचनाओं पर निर्भर करते हैं। तो यह बात निश्चित है कि हम कहीं कहीं धोखा खा रहे हैं भ्रमित हो रहे हैं।

क्योंकि हमारी इंद्रियां हमारे मन के वशीभूत होकर कार्य करती हैं। और हमारा मन पूर्व सूचनाओं पर ही सक्रिय रह कर केवल और केवल भूतकाल का ही प्रतिनिधित्व करता है।

तो भला वर्तमान में जो सत्य हमारे यंत्र में विभिन्न ऊर्जा संकेतो के रूप में घटित होता है तो हम सत्य को मन से कैसे जान समझ पाएंगे।'●


----------------------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"



***"यदि मुझे कुछ पकड़ना है, तो मैं हाथ का प्रयोग करूंगी और चलने के लिए पैर का। इसी प्रकार आपको ज्ञात होना चाहिए कि आपको पोषण के लिए कौनसा सहजयोगी सहायक हो सकता है?

तत्काल आपका मस्तिष्क शुद्ध हो जाएगा। मैंने कहा कि हम में करुणा होनी चाहिए, तो आपमें करुणा कहां है? दीवारों पर। सहजयोग व्यवहार में आना चाहिए, हर समय मेरे फोटो को लेकर बैठा रहना सहजयोग का अभिप्राय नहीं।

इसका अभिप्राय है कि आपको करुणा और प्रेममय आचरण करना है। दूसरों से प्रेम व्यवहार आप कैसे करते हैं।"***
----परमपूज्य श्रीमाताजी निर्मलादेवी
विराट पूजा, 10/04/199
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January 2 2020·