Wednesday, May 13, 2020

"Impulses"--527--"कोरोना"-'एक अभिश्राप या वरदान' (भाग-3)

"कोरोना"-'एक अभिश्राप या वरदान'
(भाग-3)

"अब हम चलते हैं इस वायरस के दूसरे तथ्य का अनुभव करने के लिए कि यह 'कोरोना वायरस' किस प्रकार से वरदान सिद्ध हो रहा है।इस वरदान को हम चार रूपो में अनुभव कर सकते हैं,

पहला है 'प्रकृति' के लिए, दूसरा है अन्य प्राणियों के लिए और तीसरा है मानव जाति के लिए और चौथा है हमारे देश भारत के लिए।

a) 'प्रकृति' के लिए वरदान:-

अब हम अपनी चेतना को अपने चारों तरफ अनेको रूपों में उपस्थित प्रकृति पर केंद्रित करेंगे तो पाएंगे कि एक बहुत बड़ा सुखद परिवर्तन आ रहा है।

इस समय मई माह प्रारम्भ हो चुका है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में हम अभी तक बिना AC चलाये आराम से सो पा रहे हैं।

यानि इस बार गर्मियों के प्रारम्भ होने के वाबजूद भी तापमान में काफी कमी आ गई है, जहां अभी तक तीखी लू चलने लगती थी वहां अभी तक खुश गवार मौसम चल रहा है।

आसमान की तरफ जब भी नजर जाती है तो प्रदूषण न होने के कारण आकाश एकदम नीला नजर आता है।

जिसके कारण तीन तीन सौ किलोमीटर दूर से हिमालय की विभिन्न की श्रृंखलायें कई स्थानों से दिखाई पड़ने लगी हैंजो ह्रदय को अत्यंत अभिभूत कर देती हैं।

आजकल विभिन्न नदियों व समुन्द्रों के वीडयो वायरल हो रहे हैं जिनमें पता लग रहा है कि बिना धन खर्च करे इनका पानी स्वच्छ होकर बिल्कुल पारदर्शी हो गया है।

आजकल बयार भी अत्यंत सुख दाई बह रही है जिससे हमारा मन प्रफुल्लित रहने लगा है।

अब 'धरती माता' के ह्रदय को निरंतर चाक करने वाले तथाकथित विकास के कार्य भी बंद हैं जिसके कारण अब 'वे' भी सुकून में हैं।

प्राप्त सूचनाओं के अनुसार वातावरण में प्रदूषण समाप्त हो जाने के कारणअब ओजोन की परत भी पूरी तरह से भर चुकी है।

जिसके कारण उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव की बर्फ का तीव्रता से पिघलने का सिलसिला निश्चित तौर पर कुछ कम अवश्य हो गया होगा।

b) अन्य प्राणियों के लिए वरदान:-

जब से वैश्विक लॉक डाउन हुआ है तब से भांति भांति के पक्षी व प्राणी काफी संख्या में दिखाई देने लगे हैं।

आजकल हम नोटिस कर रहे हैं कि हमारी कलोनी में भी कई प्रकार के पक्षियों का आवा गमन बढ़ गया है।

जिसके कारण प्रातः काल से रात्रि तक में विभिन्न प्रकार के परिंदों का कलरव निरंतर सुनाई देता रहता है।

आजकल कई वीडियो वायरल हो रहे हैं जिनमेंविभिन्न प्रकार के जानवरसड़कों पर घूमते दिखाई पड़ रहे हैं।

आज तक यह बेचारे प्राणी मानव के अनाधिकृत अतिक्रमण के कारण जंगलों तक में परेशान थे।

मानव के घरों में कैद होने के कारण अब ये भी अत्यधिक प्रसन्न व आनंदित प्रतीत हो रहे हैं।

कुछ वीडियो में देखा जा रहा है कि कई प्रकार के जलचर भी पूर्ण निर्भीकता के साथ नदी, समुन्द्रों व झीलों में किनारे पर किलोल करते देखे जा रहे हैं।

*हम तो समस्त देशों की सरकारों से यह अनुमोदन करेंगे कि हर साल सर्दी व गर्मी में 15-15 दिन का ऐच्छिक लॉक डाउन रखा जाय ताकि हमारी धरा को कुछ आराम मिल पाए।*

c) मानव के लिए वरदान:-

वास्तव में यह विलक्षण काल "परमात्मा" की सर्वश्रेष्ठ रचना यानि "उसके" ज्येष्ठ पुत्र मानव के लिए सर्वाधिक लाभकारी व महा वरदान साबित हो रहा है।

इस महा वरदान के लाभों के चिंतन के चलते हम मानव को दो वर्गों में विभक्त करने जा रहे हैं।

प्रथम वर्ग में आते हैं:-

i)सर्व साधारण मानव:-आज के युग के एक आम साधारण मानव का सारा जीवन केवल और केवल अपने आवशयकता की समस्त वस्तुएं व् साधन जुटाने में ही बीतता है।

और वह अपने को स्वयं की व् अन्य लोगों की निगाह में सफल भी तभी मानता है। यदि कोई ऐसा नहीं कर पाता तो उसे सारा संसार असफल मानता है और उसकी ओर बड़ी ही हे दृष्टि से देखता है।

उसकी सब हंसी उड़ाते हैं और अन्य लोगों की नजरों में ऐसे व्यक्तियों की कोई कद्र भी नहीं होती।

शुरू शुरू में वह यह सब कार्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता है और फिर अपने भविष्य के लिए संग्रह करता है।

और बाद में अन्य लोगों की देखा देखि उनसे प्रतिस्पर्धा, तूलना,यश, अहंकार,ईर्ष्या व् लोभ वश करता ही चला जाता है।

जब वह अकूत संपत्ति, धन व् पहचान को हांसिल कर लेता है तो उसके भीतर इन सबके बल पर अन्य लोगों को अपना गुलाम बनाने की इच्छा बलवती होने लगती है।

जिसके परिणाम स्वरूप वह बिना अच्छा व् बुरा विचारे रात दिन अपना सारा का सारा समय, धन, संपत्ति व् सत्ता को हांसिल करने व् उसके बनाये रखने में ही खपाता चला जाता है।

धीरे धीरे उसकी आंतरिक जागृति व् समझ पूरी तरह से लुप्त हो जाती है और वह केवल अपनी स्वयं की बनाई मृग मारीचिका का गुलाम मात्र बन के रह जाता है।

फिर तो वह यह सब पाने के लिए वह जघन्य से जघन्य पाप दर पाप भी करता चला जाता है।

ऐसे लोगों का कभी भी कोई भी प्रिय व् अपना नहीं होता, यदि कोई होता है तो वह केवल उसकी अंतहीन पिपासा का सहयोगी ही होता है।

जो उसकी नजरों में केवल गुलाम मात्र ही होता है। और एक दिन वह अपने सहयोगी को ही धोखा देता है।

जब इस प्रकार का समय (महामारी) आता है तो यह समय मानव के भीतर मृत्यु का भय उत्पन्न कराकर उसके पॉंवों में बेड़िया डाल कर उसे कैद करके उसकी स्वतंत्रता व् स्वच्छंदता उससे छीन लेता है।

तब जाकर इस प्रकार के मनुष्य भी काबू में आते हैं और कहीं न कहीं वे सोचने को मजबूर हो सकते हैं की हम आखिर कर क्या रहे हैं।

यह बात सत्य है कि उपरोक्त सभी बातें सभी मानवों पर लागू नहीं होती हैं किन्तु यह भी सत्य है।

कि अनेको मनुष्य उपरोक्त कथन में वर्णित अनेको तथ्यों में से किसी न किसी तथ्य के इर्द गिर्द अवश्य होते हैं।

यानि उपरोक्त वर्णनं एक प्रकार से मानव के कार्यों के विभिन्न चरण हैं, यह ठीक वैसे ही हैं जैसे किसी मकान की छत पर जाने के लिए अनेकों सीढ़ियां होती हैं।

यदि मानवीय सभ्यता के विकास का अध्यन करेंगे तो पाएंगे कि जब से मानव का जन्म हुआ है वह तब से आज तक केवल और केवल यही ही तो कर रहा है।

तो अब जरा चलते हैं इस वैश्विक लॉक डाउन के कारण आम मानव को किस प्रकार के लाभ प्राप्त होने लग रहे हैं।

a) स्वास्थ्य लाभ:-

सर्वप्रथम जो प्रथम दृष्टया लाभ है वह है बेहतर स्वास्थ्य का होना,जो प्रदूषण समाप्त होने के कारण दिन प्रतिदिन बेहतर होता जा रहा है।

जितने भी मरीज शुगर, बी पी,हार्ट, लंग्स, कॉमन कोल्ड,खांसी,नजला, जुकाम, माइग्रेन,अस्थमा आदि के थे वे आजकल काफी ठीक चल रहे रहे हैं।

क्योंकि आजकल सभी लोग घर पर ही रह रहे हैं और न तो कोई बाहर का खाना खा पा रहा है और न ही बाहर जा पा रहा है।

यहां तक कि मृत्यु दर में भी भारी गिरावट देखने को मिल रही है और श्मशान घाट व कब्रिस्तान में काफी कम शव पहुंच रहे हैं।

b) भावनात्मक सम्बन्धों में सुधार:-

विश्व स्तर पर लॉक डाउन होने के कारण अधिकतर परिवारों के सदस्य साथ साथ ही रह रहे हैं।

जिसके कारण अच्छे से एक दूसरे को समझने का अवसर मिल रहा है और आपसी वैमनस्य में काफी कमी आ रही है।

और जो लोग अपने अपने परिवारों से दूर रह रहे हैं वो मोबाइल व लैपटॉप के जरिये अपने परिवार के सदस्यों से बात करते हुए पहले से भी ज्यादा एक दूसरे के नजदीक महसूस कर रहे हैं।

इसके अतिरिक्त यदि किन्ही सदस्यों के बीच पहले नाराजगी व मनमुटाव भी रहता था अब उसमें काफी कमी आती जा रही है। इसका विशेष लाभ हमारे देश की विवाहित घर सम्हालने वाली महिलाओं को हुआ है।

जो अक्सर अपने पतियों से सदा नकारात्मक उल्हाने ही सुनती रहती थीं जो अपनी माताओं के कहने पर अपनी पत्नी को अक्सर ताने मारते हुए कहा करते थे।

*कि वे घर में रहकर करती ही क्या हो।*

अब उन पतियों को भी अच्छे से पता लग गया होगा कि उनकी पत्नियां घर चलाने के लिए कितनी मेहनत करती हैं।

और साथ ही उन कामचोर पत्नियों की भी कलई खुल गई है जो संयुक्त परिवार में रहकर सदा अपने पति के कान भर भर कर उसको परिवार के सदस्यों के खिलाफ भड़काती रहती थीं।

*कि तुम्हारी माँ और बहन बिन बात के मुझको बदनाम करती रहती हैं जबकी मैं तो सारे घर के काम करती हूँ।*

c) सामाजिक सौहार्द व समानता में बढ़ोत्तरी:-

इस लॉक डाउन के कारण कोई भी कहीं भी नहीं जा पा रहा है जिसके कारण सभी पड़ोसी आपस में एक दूसरे के साथ अच्छा व्यवहार कर रहे हैं।

जिनके पास अक्सर किसी से बात करने व दुआ सलाम करने के लिए वक्त ही नहीं होता था।

यहां तक कि आर्थिक रूप से अत्यधिक असमान स्थिति वाले लोग भी कई कालोनियों में अब साथ साथ सुबह शाम टहलते हुए नजर आ रहे हैं।

जिनके मनों में अपने धन व सम्पत्ति को लेकर कई रूपों में अभिमान रहा करता था।

क्योंकि आज हर परिवार केवल और केवल भोजन पर ही निर्भर कर रहा है जिससे असमानता का भाव काफी हद तक कम हो गया है।

इसका दूरगामी परिणाम यह होगा कि आने वाले समय में लोग सामाजिक कार्यक्रमों में ज्यादा दिखावा करने से भी बचेंगे।

d) क्षणभंगुर जीवन की सत्यता का आभास:-

आम हालत में अधिकतर लोगों के पास अपने स्वयं के लिए समय ही नहीं होता है। किंतु इस विकट काल में बहुत से लोगों के मन के भीतर कुछ न कुछ सकारात्मक चितन अवश्य चल रहा होगा।

जिसके कारण सांसारिक चीजो व संसाधनों के प्रति अत्याधिक झुकाव में अवश्य कमी आ रही होगी।

क्योंकि जितने भी साधन व आवश्यकता से अधिक धन उन्होंने घोड़े की तरह भाग भाग कर एकत्रित किये वे सब आज बेमानी हो गए हैं।

क्योंकि वे आज सभी ऐसे ही खड़े हो गए हैं और उनकी आज कोई विशेष आवश्यकता भी प्रतीत नहीं हो रही है।

और बहुत से धनाड्य आंतरिक रूप से काफी हद तक परिवर्तित होकर गरीब व मजबूर लोगों की भोजन व धन से सहायता करने लग गए हैं।

e) ईश्वर के प्रति आस्था में वृद्धि:-

वैश्विक व भारतीय मीडिया व इन देशों की सरकारों के द्वारा 'कोरोना' नाम के प्राचीन वायरस को एक अत्यंत डरावने व भयानक रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

और यदि किसी के शरीर में इस वायरस का संक्रमण मिल जाता है तो इस मरीज के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है।

*उसको ऐसा प्रतीत होने लगता है मानो वह संक्रमण का मरीज नहीं एक भयानक आतंकवादी हो।*

जिसकी वजह से अधिकतर लोग बेहद डर गए हैं और डर के कारण उनको अपनी व अपने परिवार के सदस्यों की असमय मृत्यु का भय सताने लग गया है।

जिसके चलते वे लोग लगातार किसी न किसी रूप में "ईश्वर" का निरंतर स्मरण कर रहे हैं और "उनके" करीब होने की कोशिश में लगे हैं।

*हांलाकि यह वायरस तो सदा से मानव के इर्द गिर्द प्राचीन काल से ही चला आ रहा है।*

जिसका प्रभाव हम पर अक्सर ऋतु परिवर्तन के समय होता रहता है और स्वतः ही ठीक भी होता रहता है हमें पता तक नहीं चलता।

किन्तु अबकी बार विशेष तौर से विशेष उद्देश्यों के चलते इसके बारे में पूरी दुनिया में इस वायरस के बारे में अत्याधिक बढ़ा चढ़ा कर बताया गया है।

और इसके भय को विशेष तौर से बनाये गए वीडियोज के जरिये लगातार फैलाया गया है।

*वास्तव में इतनी समस्या इस वायरस से नहीं बल्कि इस वायरस के प्रति जो सरकारों का दृष्टिकोण है उससे बहुत ज्यादा हो रही है।

क्योंकि इस वायरस को तो हमारे शरीर का रक्षातंत्र बिना किसी दवाई के स्वतः ही निष्क्रिय कर देता है।

*वास्तव में, "श्री माता जी" के अनुसार किसी भी वायरस की कभी कोई भी दवाई किसी भी वायरस पर असर नहीं कर सकती।*
इसके लिए केवल हमें अपने शरीर के रक्षा तंत्र को उचित खान पान के द्वारा ठीक रखना है।

यदि हमारी सरकार चाहती तो हमारे देश के उच्च स्तर के डॉक्टर्स, आयुर्वेदाचार्यों, होम्योपथिक डॉक्टर्स व प्राकृतिक चिकित्सकों की एक मीटिंग करके।

आम जनता के लिए एक अधिकारिक एडवाइजरी जारी करवाती, कि क्या खाएं और क्या करें जिससे हमारे शरीर की रक्षातंत्र प्रणाली ठीक रहे।

इसके साथ ही हमारे देश के सभी प्रकार के डॉक्टर्स को कोरोना के मरीजों का स्वतंत्रता पूर्वक इलाज करने की बिना किसी सरकारी अड़चन के अनुमति प्रदान करती।

साथ ही इसके मरीजों को अपनी पसंद की चिकित्सा पद्यति चुनने की आजादी भी होनी चाहिए थी जो सभी प्रकार के मरीजों का मौलिक अधिकार है।

तो शायद एक भी मरीज की मौत न हो पाती और संक्रमित भी आसानी से ठीक होते चले जाते और हमारे देश में कोरोना का इतना खौफ भी उत्पन्न ही नहीं हो पाता।

अब जो भी उद्देश्य इसको इस भयावय तरीके प्रसारित कर इसको एक खौफनाक बीमारी के रूप में स्थापित करने के पीछे रहे हैं "श्री माँ" की कृपा से तो जल्दी ही सबके सामने आ जायेंगे।

f) गला काट प्रतिस्पर्धा में कमी:-

इस काल से पूर्व जो मानव विकास व भौतिक उत्थान के नाम पर एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में अंधा धुंध भाग रहा था।

और भागते भागते अपने ही नजदीकियों के साथ गलाकाट प्रतिस्पर्धा रखते हुए एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए पागल हुआ जा रहा था।

वह भी इस 'स्वर्णिम काल' में सोचने को मजवूर हो गया कि आखिर तू ये सब कर ही क्यों रहा है,इससे क्या हांसिल हो जाएगा।

क्योंकि सारी की सारी योजनाएं सब धरी की धरी रह गईं, कोई कुछ भी नहीं कर पाया, सारे टारगेट स्वाह हो गए।

लोभी से लोभी व दुष्ट से दुष्ट को यह समझ गया कि ऐसे ही एक दिन तेरी 'जीवात्मा' भी ठीक ऐसे ही अचानक तेरी देह छोड़ कर निकल जायेगी और तू कुछ भी नहीं कर पायेगा।

g) जीवन के कटु सत्य से परिचय:-

आम मानव को इस 'दुर्लभ काल' में यह अच्छे से समझ आ गया कि मानव जीवन को जीवित रखने के लिए केवल और केवल भोजन की ही आवश्यकता है।

तो फिर काहे को अन्य अनावश्यक वस्तुओं के संग्रह के लिए दूसरों की देखा देखी निर्थक ही चिंतित हुआ जा रहा है।

h) जनसंख्या नियंत्रित करने की सीख:-

इस कोरोना के नाम पर जिस तरह से हमारे भारत में लागू किया गया है इसके कारण जो भुखमरी व बेरोजगारी फैलनी प्रारम्भ हो गई है।

इससे हमारे देश के निम्न आय वर्ग के लोगों को यह बात समझ में आ रही होगी कि यदि कम संताने होतीं तो निश्चित रूप से इतनी ज्यादा परेशानी नहीं होती।

g) समरूपता का उदय:-

कोरोना का अत्याधिक भय सारे में मीडिया व अखबारों के जरिये इस कदर फैलावा कर मास्क लगाने को सरकारी नियम बनवा दिया गया।

जिस कारण जो भी घर से बाहर निकलेगा उसको मास्क लगाना ही पड़ेगा।इस वजह से सबके चेहरे एक से ही दिखाई देने लगे हैं।

अब किसी भी किस्म का चेहरे के लिए किसी भी प्रकार के फैशन व मेकअप की आवश्यकता ही नगण्य हो गई है।

h) रिटायरमेन्ट की एक झलक:-

कोरोना के कारण जो हमारे देश में लौकडाउन हुआ है इस कारण से सभी कार्य करने वालों को घर में रहने के लिए मजबूर होना पड़ रह है। 

और जिसके वजह से सभी लोगों को एक प्रकार से रिटायरमेंट वाले जीवन की एक झलक इस काल में आभासित होने लग रही है।

i) मितव्ययता का महत्व:-

इस लौकडाउन के कारण अधिकतर सभी प्रकार के काम धंधे बंद हो चुके हैं, 

प्राइवेट नौकरी देने वाली कम्पनियां भी कर्मचारियों की तनख्वाह में 30 से 50% की कटौती कर रही हैं,

यहां तक कि सरकार भी अपने कर्मचारियों की कुछ तनख्वाह जबरन काट कर नए पी एम फंड में जमा कर रही है,

शादी-विवाह व किसी की मृत्यु पर दाह संस्कार की दशा में सरकार की तरफ से केवल 20 लोगों के शामिल होने की ही अनुमति है,

होटल, रेस्तरा, रिजॉर्ट, माल भी बंद चल रहे हैं, जिसके कारण लोगों की दिखावे की फिजूल खर्ची स्वतः ही कम हो गई है, बच्चों को भी ऐसे में अच्छी सीख मिल रही है।"

-------------------------------------Narayan


"Jai Shree Mata Ji"

.........................................To be continued

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