Wednesday, October 18, 2023

"Impulses"--657--"धर्म"

"धर्म"

"आज के समय में धर्म के नाम पर मानवता,'प्रकृति' "भगवान" विरोधी जितने घटनाक्रम हो रहें हैं उतने किसी भी काल में नहीं हुए।

इन सभी घटनाओं को देखकर लगता है कि आज के अधिकतर मानव पूर्णतया अधार्मिक हो चुके हैं। 

जितने भी 'बाह्य-धर्म' हमें आज नजर आते हैं वे कुछ और नहीं काल की आवश्यकता के अनुसार हमारे 'ज्ञानियों' के द्वारा सुझाये गए विभिन्न मार्ग थे।

जिनका उद्देश्य मानव के हृदय के भीतर रहने वाले "ईश्वर" से जुड़ने में उसकी सहायता करने के साथ साथ मानव को अच्छाई की तरफ ले जाते हुए मानव धर्म में स्थापित करने में मदद करना ही था।

वास्तव में मानव का धर्म है,मानवता की रक्षा करते हुए समस्त मानवों को बिना किसी भेद-भाव,ऊँच-नीच,जात-पांत,अमीरी-गरीबी,स्वर्ण-दलित का विचार करते हुए समान रूप से सम्मान देना आपसी सौहार्द सामंजस्यता को बनाये रखना।

जीवात्मा का धर्म है 'आत्मा' के साथ जुड़कर इस सम्पूर्ण 'रचना' में "परमेश्वरी" के प्रेम का संचार करना।

आत्मा का धर्म है "परमपिता" के साथ मानव-चेतना को जोड़ कर मानवीय चेतना की उत्क्रांति के लिए मानव हृदय के माध्यम से मानव को दिशा निर्देश प्रदान करना।

'जागृत-मानव' का धर्म है सत्य की राह पर चलते हुए असत्य की भत्र्सना बहिष्कार करने के साथ साथ सुयोग्य मानवों को जागृति की राह पर चलने की प्रेरणा प्रदान करना।

'योगी' का धर्म है "परमेश्वर" के साथ निरंतर जुड़े रहना "उनसे" जुड़ने की सच्ची इच्छा रखने वालों को 'जुड़ने' में मदद करना।

'प्रकाशित-मानव' का धर्म है "परमात्मा" का 'माध्यम' बन कर सारे संसार में "उनके" प्रकाश को फैलाना।"


-------------------------Narayan

"Jai Shree Mata Ji"


24-01-2022