Saturday, September 29, 2018

"Impulses"--462--"नवजागृत-कुण्डलिनी-पोषण"


"नवजागृत-कुण्डलिनी-पोषण"

"अक्सर हममें से अनेको सहजी नए लोगों को पब्लिक कार्यक्रमों के द्वारा 'आत्मसाक्षात्कार' देने के लिए जाते रहते हैं। आत्मसाक्षातकार के प्रोग्राम के बाद उन सभी आये हुए नए लोगों को अगले एक दो दिनों तक उस स्थान के सेंटर में फॉलोअप के लिए आने के लिए भी बताया जाता है।

किन्तु ये देखा गया है कि जागृति पाए हुए उन नए लोगों में से बहुत ही कम लोग फॉलोअप के लिए सेंटर आते हैं। या कहीं किसी स्कूल में कुण्डलिनी जागरण का कार्यक्रम किया जाता है तो ज्यादा से ज्यादा एक दो बार ही उन स्कूलों में फॉलोअप कराया जाता है।

यानि कि यदि किसी नए इंसान की कुण्डलिनी "श्री माँ" के द्वारा जगा दी गई है तो उसके बाद उस जागृत हुई कुण्डलिनी को आखिर किस तरह से पोषित किया जाय ?

नई नई जागी हुई कुण्डलिनी एक नवजात शिशु की तरह होती है जिसे जन्म लेते ही 'दिव्य ऊर्जा' रूपी भोजन की आवश्यकता होती है।

अतः प्रश्न ये उठता है कि जो नए लोग फॉलोअप में नही आते हैं या पाते हैं तो उनकी जागृत हुई  'नवजात-कुण्डलिनी' को किस प्रकार से "श्री माँ" के सम्पर्क में लाया जाए ताकि वो पुष्ट हो सके ?

मेरी चेतना के अनुसार इसके दो तरीके हो सकते हैं:-

प्रथम तरीके में हम आत्मसाक्षात्कार के तुरंत बाद जो लोग "श्री माँ" का चित्र लेना चाहते हैं उन्हें बड़े प्रेम से उस 'चित्र' के रख रखाव के तरीके समझा कर उन्हें चित्र बांट दें।ताकि वो अपने अपने घर में उस चित्र को स्थापित कर सकें।

जब जब वो "श्री माँ" के सामने से गुजरेंगे अथवा ध्यान में बैठेंगे तो "श्री माँ" की 'प्रेममयी शक्ति' उनकी जागृत हुई कुण्डलिनी की उचित देखभाल कर पायेगी और धीरे धीरे उनकी कुण्डलिनी का पोषण होता जाएगा।

और दूसरा तरीका उन लोगों के लिए है जिनको किन्ही सोचों के चलते "श्री माँ" का चित्र नहीं दिया गया अथवा जिन्होंने स्वेच्छा से 'चित्र' लेने से मना कर दिया।

ऐसे सभी नए लोगों के लिए हमें अपने गहन ध्यान अवस्था में सर्वप्रथम अपने सहस्त्रार मध्य हृदय में 'दिव्य ऊर्जा' को एक दो मिनट तक महसूस करना होगा

और उसके बाद उन सभी नए जागृति प्राप्त किये लोगों के सहस्त्रार पर अपना चित्त 4-5 मिनट तक टिका कर अपने मध्य हृदय से "श्री माँ" के प्रेम को अपने चित्त की सहायता से उनके मध्य हृदय में अगले 2-3 मिनट तक प्रवाहित करना होगा

ये कार्य हम सभी अपने अपने ध्यान की प्रत्येक बैठक में कम से कम 10-15 दिन तक कर सकते हैं ताकि उन सभी नए लोगों की उठी हुई कुण्डलिनी को पोषण प्राप्त होता रहे।

यदि उनकी कुण्डलिनी को जागृत होने के उपरांत कुछ दिन तक लगातार भोजन मिलता रहेगा तो उन लोगों के "श्री चरणों" में आने के चांस बन सकते हैं।

जब भी कहीं आत्मसाक्षात्कार का कार्य होना हो उससे पूर्व हम सभी को ध्यानस्थ अवस्था में अपने अपने ध्यान की बैठक में "श्री माँ" से कार्यक्रम की सफलता की प्रार्थना करें।

साथ ही कम से कम 5 मिनट तक उस स्थान उस स्थान के लोगों के समस्त लोगों को अपने चित्त में लाकर उनके सहस्त्रार मध्य हृदय में अपने चित्त की सहायता से 'चैतन्य' प्रेषित करना चाहिए।

ऐसा करने से उस स्थान के 'स्थान- देवी स्थान-देवता' जागृत हो जाएंगे और वे उस स्थान की समस्त नकारात्मकता को वे समाप्त कर उस स्थान पवित्र कर देंगे।

साथ ही उस स्थान के लोगों की कुण्डलनियाँ भी उन सभी लोगों को जागृति के कार्यक्रम में आने के लिए भीतर से प्रेरित भी करेंगी। चित्त के द्वारा ये कार्य करना हम सभी जागरूक सहजियों का दायित्व होना चाहिए।

ऐसा करने से हमारा स्वम् का ध्यान भी विकसित होता जाएगा क्योंकि ये सभी चित्त के कार्य केवल और केवल ध्यानस्थ अवस्था में ही हो सकते हैं।
क्योंकि चित्त के द्वारा कार्य करने से हमें उन स्थानों के जागृत देवी/देवताओं का आशीर्वाद 'उनकी' 'ऊर्जा' के रूप में मिलेगा।

साथ ही उन स्थान के लोगों की उठी हुई कुण्डलनियों का प्रेम भी हमें प्राप्त होगा जिससे हमारा चित्त, चेतना चितन और भी प्रखर शक्तिशाली होता जाएगा।"
------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"