Tuesday, September 18, 2018

'अनुभूति'--- "हकीकत"---13 (29-12-06-2.30am)

                                         "हकीकत"

"ऐ मेरी जिंदगी, तू मुझसे हमेशा नाराज रहना,


तब कहीं जा कर मानूंगा, मैं अपने "रहबर" का कहना,

जितना हो सके मुझसे, बेबफाई करना,

देख कर तेरी बेबफाई मुझसे, पड़ेगा "उनको" हर दम मेरे साथ चलना,

इतनी बेरुखी दिखा कि सारी कायनात हिल जाए,

तेरी बेरुखी से खौफ खाकर, मुझे "श्री माँ" मिल जाएं,

इतनी बेइज्जती तू मेरे 'इश्क' की सरे आम कर,

आना पड़ेगा मेरी "श्री माँ" को, आंखों में अश्क भरकर,

छोड़ देना मुझको बनाकर बेसहारा,

हर जगह खड़ी मिलेंगी "वो" बनकर मेरा सहारा,


बैठ जाना किसी के पहलू में, मुझको छोड़कर,

तड़पकर गले लगा लेंगी "वो" मुझे अपने से लिपटाकर,

शिद्दत से नफरत कर मुझसे दूरी बढ़ाकर,

दौड़ कर आ जाएंगी "वो", जन्नत को छोड़ कर,

वक्त वक्त पर तूने मेरे दिलो दिमाग पर बहुत चोट लगाई है,

हर चोट "उन्होंने" मेरी, बड़े प्रेम से सहलाई है,

झूठी तसल्ली देकर तूने, मेरे जख्मों को नासूर बनाया है,

घावों को चूम चुम कर "उन्होंने" मेरे,

"अपना" सुरूर चढ़ाया है,


बार बार चालाकी दिखाकर तूने, मुझे बहुत छला है,

हर बार तेरा वो छलना, मुझे बहुत फला है,

तेरी मतलब परस्ती से, मैं दिल ही दिल में रोया हूँ,

फिर "उनके" 'नूरानी चेहरे' में, मैं हर बार खोया हूँ,

तेरी हरदम दौड़ने की आदत से, मैं आजिज आ गया हूँ,

ऐसा लगता है कि जैसे, मैं "उनके" बहुत करीब आ गया हूँ।


ये मेरी शायरी नहीं, शायद उसी 'कुदरत' का करिश्मा है,

इस अनपढ़ गंवार को 'उसने' शायर का दर्जा बक्शा है,

ये सब कुछ 'उसने' केवल जगाने के लिए रखा है,

मेरी कलम इस्तेमाल कर, 'उसने' ये राज गहरा दर्शाया है,

ये मेरे अलफाज नहीं, 'उसी' कुदरत के आंसू हैं,

लगता है जब जख्म गहरा, किसी के दिलों दिमाग पर,

स्याही के रंग में रंगकर पन्ने पर ढलक आता है,

फिर यही 'दिले-एहसास', शायरी में ढलकर उभर आता है,

ऐसी शायरी से ही तो 'रूह' बेनकाब होती है,

जिस्म के जर्रे जरे में 'जिसकी' रिहाइश होती है,

फिर क्यूँ मैं महरूम रहूं, इस,  'रूहे-नाजनीन' से,


जिसे "तेरी" शक्ल देकर लगाया मैंने कलेजे से,

अब ये 'मुहब्बत' परवान चढ़ जाएगी,

मिटा कर अपने वजूद को अमिट हो जाएगी।"

--------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


अनुभूति-13-(29-12-06-2.30am)




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