Monday, January 30, 2017

"Impulses"--338--"बसन्त ऋतू"

"बसन्त ऋतू"

"बसन्त ऋतू निर्लिप्तता के आनद का प्रतीक हैइसके आगमन पर समस्त बृक्ष व् पौधे अपनी प्रिय पत्तियों व् पुराने पुष्पों का सहर्ष त्याग कर कोपलों से फूटते नए पत्तों के स्वागत में हर्षित होते हैं।

इसी प्रकार से एक जागृत मानव अपने भूतकाल से सम्बंधित समस्त 
नाकारात्मक घटनाओंदुखद स्मृतियों व् पीड़ादायक रिश्तों का हृदय से 
त्याग कर वर्तमान के आनंद के साथ जीवन व्यतीत करते हैं।

और अपने साथ साथ अपने चारों ओर रहने वाले मानवों का जीवन सुन्दर बनाने के लिए सदा तत्पर रहते है, एक पूर्ण रूप से जागृत मानव के जीवन में वसंत ऋतू का यही वास्तविक मायने होता है।"



("Basant Ritu"(Spring) is the Symbol of 'Real Detachment', when it comes then all the trees and plants leave all their old Loved Flowers and Leaves very happily and welcome Blooming new flowers and Sprouting new leaves.

So same with an Enlightened Soul who becomes detached from the memories of his/her negative past and painful relations and enjoy the joy of present.

And such a person is always ready to make other's life beautiful and joyous including his/her own life.

This is the actual meaning of "Spring" in the life of a fully Enlightened Soul.")

---------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

Friday, January 27, 2017

"Impulses"--337--"पीड़ा दायक रिश्तों का निराकरण "

"पीड़ा दायक रिश्तों का निराकरण"

"हममे से ज्यादातर साधक/साधिका समय समय पर अपने नजदीकी रिश्तों की, ईर्ष्या, लोभ, अहंकार, षड्यंत्र व् उपेक्षा का शिकार होते रहते हैं और भीतर ही भीतर पीड़ित व् दुखी होते रहते हैं।

इस प्रकार के लोगों की निम्न स्तर की मानसिकता के कारण काफी कष्ट उठाते रहते है और उनको क्षमा करते रहते हैं उनपर अपना 'अनमोल' प्रेम लुटाते रहते हैं, पर उनसे कुछ कहते नहीं हैं क्योंकि सोचते रहते हैं कि "श्री माँ" सबकुछ जानती हैं वो सब अपने आप ठीक कर लेंगी।

क्या हमने कभी चिंतन किया है कि कभी किसी "बिच्छु" को प्रेम से सुन्दर संगीत सुनाने वाले "झींगुर" में परिवर्तित होते देखा हैस्वम् "रचयिता" भी यानि 'माता प्रकृति' व् "परम शक्ति" भी ये कार्य नहीं कर पाती हैं तो हम भला हम 'सरल बच्चों' की क्या बिसात।

बिच्छु की प्रवृति व् प्रकृति है कि जो भी नजदीक जाए उसको डंक मारे और अपने जहर से पीड़ा पहुंचा कर उसे निष्क्रिय कर उसका भक्षण करे।क्या हम इस प्रकार के 'स्वभावधारी' को अपने निश्छल प्रेम से परिवर्तित कर उसे "श्री माँ" के 'श्री चरणों" में बैठने योग्य बना पाएंगे।

यदि हम कभी परेशान होकर ऐसे लोगों से दुखी व् नाराज होकर कुछ कहते भी हैं तो वो तुरंत हमको धूर्तता से कह देते हैं कि तुम तो सहज योगी हो फिर भी इतना क्रोध दिखा रहे हो। 

उनके इस वक्तव्य पर हमें "श्री माँ" की बातें याद आती हैं और हम उनसे कुछ भी कहना बंद कर देते हैं और फिर से भीतर ही भीतर अपराध बोध से भर जाते हैं और स्वम् को उत्पीड़ित होता महसूस करते हैं और ऐसे लोग हमें "दोष भाव" में धकेल कर हम पर राज कर रहे होते हैं।

तो आखिर किया क्या जाए ? मेरी चेतना के मुताबिक ऐसे लोगों से बचने के हमारे पास चार उपाय है:-

i) ऐसे लोगों से इतना दूरी बना ली जाए कि वो हमें डंक मार सकें।

ii)अपने अस्तित्व को 'टाइटेनियम धातु' में परिवर्तित कर लिया जाए ताकि हलके भी रहें और कठोर भी हों ताकि 'सज्जन लोगों'के लिए हृदय से प्रेममई और इस किस्म के दुष्ट प्रवृति के लोगों के लिए अत्यंत कठोर बनें, यदि डंक मारें भी तो उन्ही का डंक टूट जाए व् जहर का भी असर हो।

iii) उनके डंक को तोड़ दिया जाए व् "माँ कल्कि" के संहारक शक्ति रूपी "धधकते क्रोध" रूपी ज्वालाओं से उनके भीतर चलने वाली जहर बनाने वाली प्रक्रिया को ही जला कर नष्ट कर दिया जाए।

iv) या अंतिम मार्ग, यानि अपने जीवन से उन्हें पूर्णतया बेदखल कर दिया जाए ताकि वो हमारे संपर्क से सदा के लिए दूर हो जाएँ और हमें कष्ट पहुंचाने की स्थिति में ही रहें।

यदि बाहरी रूप से बेदखल करना संभव तो भीतर से इस प्रकार के लोगों से सम्बन्ध समाप्त कर लिए जाएँ ताकि अन्त:करण में कोई पीड़ा उत्पन्न हो पाये। हाँ पर इस विकल्प को चुनने पर कुछ कष्ट हमें अवश्य हमें महसूस हो सकते हैं परंतु पहली अवस्था से तो काफी कम ही होंगे।

जैसे भी अपनी स्थिति हो उसी के मुताबिक इन चार विकल्पों में से ही हमें विकल्प चुनना होगा या एक एक विकल्प को आजमाते हुए अंतिम को चुनना होगा ताकि स्वम् से भी कोई शिकायत रहे।


इन दुष्ट प्रकृति के लोगों के लिए कैसा दया भाव, ये तो ऐसा ही हुआ की हम अपने शरीर में प्रवेश कर चुके "कीटाणु" पर प्रेम लुटा लुटा कर उसको और भी फलने फूलने का मौका देकर अपने ही शरीर के कष्ट बढ़ा रहें हों और साथ ही अपने माध्यम से अन्य लोगों के शरीर में भी कीटाणु का इन्फेक्शन फैलाने में मदद कर रहें हों।"

                        ----------------------------Narayan
"Jai Shree Mat Ji"