Tuesday, January 3, 2017

"Impulses"---329---"पीड़ा-परिवर्तन"

"पीड़ा-परिवर्तन"

"अक्सर साधक/साधिका कुछ समस्याओं के चलते बेहद दुखी हो जाते हैं और सोचने लगते हैं कि ये परेशानियां कब ख़त्म होंगी, कब वो समय आएगा की हम चैन की सांस ले पाएंगे और मुक्त आकाश में पंछी बन कर उड़ेंगे।

समय बीतता जाता है पर वो शुभ दिन आने का नाम ही नहीं लेता और इधर साधकों/साधिकाओं के मन में धीरे धीरे उस इन्तजार का एहसास भी मिटने लगता है और एक दिन वो ख्याल ही मिट जाता है।

परंतु आश्चर्य की बात ये होती है की अब वो परेशानियों हमें परेशान करना बंद कर देती है, सब कुछ वैसा ही चल रहा होता है किन्तु हमारा नजरिया ही बदल जाता है क्योंकि वो पीड़ाएँ जीवन का हिस्सा बनकर हमारे साथ ही रहने लगती हैं और अब उनसे पीड़ा होनी बंद हो जाती है।

जैसे यदि किसी की हड्डी टूटने पर उसे 6-7 दिन तो काफी दिक्कत महसूस होती है परंतु धीरे धीरे उस अवस्था की आदत होने की कारण वो अवस्था से वह ज्यादा परेशान नहीं होता।

जरा चिंतन करके देखें तो पाएंगे कि सबकुछ जल्दी ठीक होने की अपेक्षा ही हमें अधीर कर रही थी और हम उसी आशा के कारण स्वम् को अनजाने में तकलीफ दे रहे थे किन्तु जब उम्मीद ही समाप्त हो गई तो पीड़ा भी ख़त्म हो गई।

क्योंकि ये समझ गया है कि हमारा जीवन मालिक के द्वारा दी गई एक कार के सामान है जिसके हम ड्राइवर हैं, अपनी इच्छा से हम इसे कहीं भी ले जा नहीं सकते और ही इसका स्वम् के लिए उपयोग ही कर सकते हैं'"

--------------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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