Thursday, January 19, 2017

"Impulses"---334

"Impulses"

1)"एक जागरूक सहजी के लिए आवश्यक आवश्यकताओं का पूरा हो पाना भी वरदान बन जाता है क्योंकि वो निराश होने के स्थान पर उन समस्त जरूरतों को "श्री माँ" की इच्छा पर छोड़ देता है। यानि वो स्वेच्छा से समर्पण की ओर ही अग्रसर होता जाता है जिससे उसकी आध्यात्मिक तरक्की होती जाती है।

और दूसरी ओर अपनी सांसारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वो "माँ" से कुछ मांगता भी नहीं है, परन्तु "श्री माँ" पर पूरी तरह छोड़ देने के कारण कहीं कहीं उसके हृदय में उन आवश्यकताओं के पूरा हो पाने की आशा भी विद्द्यमान रहती है।

क्योंकि वो जानता है कि "श्री माँ" अपने बच्चों के लिए कुछ कुछ बेहतर अवश्य करती हैं। इसीलिए स्वम् की कभी चिंता नहीं रहती।जिसके कारण वो अपने सांसारिक जीवन का निर्वाह पूरे उत्साह से करता है क्योंकि वो आशा उसको कभी निराश नहीं होने देती वरन उसको और भी ज्यादा कर्तव्य परायण व् जागरूक बनाती जाती है।"


2)"हममे से कुछ सहजी अपने सूक्ष्म यंत्र में "दिव्य ऊर्जा" के प्रवाह को अक्सर महसूस कर रहे होते जबकि उस वक्त हम ध्यान में बैठे भी नहीं होते हैं। बल्कि अपने दैनिक जीवन के कार्य संपन्न कर रहे होते हैं परंतु इतने अच्छे वाइब्रेशन क्यों रहे होते है वो अक्सर समझ नहीं पाते।

वास्तव में एक जागृत सहजी का चित्त आम जीवन में भी किसी किसी सहजी पर, साधारण लोगों पर, किन्ही सोची गई बातों पर या किन्ही स्थानों पर जाता रहता है। जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप हमारे सहस्त्रार, मध्य हृदय व् सूक्ष्म यंत्र के विभिन्न स्थानों पर कभी ऊर्जा महसूस होती है तो कभी महसूस नहीं होती। और यदि किसी अच्छी अवस्था के साधक/साधिका पर चित्त जाता है तो और भी तीव्र ऊर्जा महसूस होती है।

इसके अतिरिक्त हम कुछ कुछ विचार भी कर रहे होते हैं जो विचार सत्य होते हैं उनसे भी ऊर्जा बढ़ती है और असत्य विचारों से ऊर्जा कम भी होती रहती है।ये सिलसिला चलता रहता है।


यदि हम अपने चित्त के प्रति पूर्ण जागरूक रहेंगे व् इसकी ओर एकाग्रता पूर्वक ध्यान देंगे तो इस ऊर्जा के उतार चढ़ाव के माध्यम से हम चित्त की प्रतिक्रिया को अपने यंत्र में घटित होने वाली ऊर्जा की हलचलों के द्वारा प्रगट होने वाले वास्तविक सत्य को जान जाएंगे।"
----------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

No comments:

Post a Comment