Thursday, July 22, 2021

"Impulses"--550-- 'बाह्य-धर्म एक बाधा'

 'बाह्य-धर्म एक बाधा'

"जब तक हम किसी भी 'बाह्य-धर्म' तक सीमित हैं तब तक "परमात्मा" से जुड़ नहीं सकते।

क्योंकि "वे" 'धर्मातीत' हैं,"उनसे" जुड़ने के लिए हमें सभी धर्मों से ऊपर उठ 'मानव-धर्म' में स्थित होना होगा।

जितने भी धर्म हमें अपने चारों ओर दिखाई देते हैं।

इनकी स्थापना, काल परिस्थितयों की आवश्यकता के अनुसार हमारे 'पूर्व-ज्ञानियों' ने 'सद-मानव' बनने की प्रेरणा देने के लिए ही किया था।

यदि हम "ईश्वर" से जुड़ना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें 'स्वयं' के 'प्रकृति' के प्रति विशुद्ध प्रेम को अपने हृदय में अनुभव करते रहना होगा।

क्योंकि 'हमारा' 'प्रकृति' का निर्माण "परमेश्वरी" ने स्वयं 'अपने' हाथों से किया है।"


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"Jai Shree Mata Ji"'


30-10-20

Monday, July 19, 2021

"Impulses"--549--"श्री माँ" की माला के मोती"

"श्री माँ" की माला के मोती"


"हममें से अनेको सहज अभ्यासियों ने "श्री माता जी" के उस लेक्चर को जरूर सुना होगा, जिसमें "श्री माँ" ने बताया था कि,

*जब "वे" "श्री दुर्गा" के रूप में राक्षसों से संघर्ष कर रहीं थीं तो "उनके" "श्री कंठ" में सुशोभित होने वाली माला टूट गयी थी और उसके सारे मोती बिखर गए थे।*

फिर "उन्होंने" आगे बताया था कि,

*आप सभी मेरे वही मोती हैं जिनको "मैं" फिर से चुनने आईं हूँ।*

यह सब बातें "श्री मुख" से सुनकर हम गौरान्वित अनुभव करते हैं कि हम सभी को "उनके" हार के मोती बनने का सैभाग्य प्राप्त हो गया है।

क्या हमने कभी गम्भीरता से चिंतन किया है कि,

जितने भी लोग आज तक आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर सहज का अनुसरण कर रहे है, क्या ये सभी "श्री माता जी" की माला के मोती हैं ?

अथवा "श्री माँ" हमें यह कह कर संकेत दे रहीं थी कि हम सभी में "उनके" 'कंठ-माला' के मोती बनने की संभावना छुपी हुई है।

जिसे पूर्ण श्रद्धा, समर्पण, विश्वास, लगन, प्रेम से परिपूर्ण गहन-ध्यान में अपने अंतःकरण के भीतर उतरकर "श्री साम्राज्य" की विभिन्न विभूतियों का अनुभव करते हुए।

चेतना जागृति को निर्विकल्पता से भी परे "श्री पारब्रह्म परमेश्वर" के साथ पूर्ण एकाकारिता के स्तर तक उन्नत करना है।

तभी जाकर हम "उनके" 'कंठ-हार' के मोती बन कर "उनके" "श्री कंठ" की शोभा बढ़ाने की योग्यता हांसिल कर पाएंगे।

इस स्तर तक विकसित होने के लिए हमारे भीतर कुछ लक्षणों को होना आवश्यक है:-

1.यदि ऐसे साधक/साधिका मोती के समान हैं जिसके छिद्र के दोनों सिरे पूर्ण रूप से खुले हों।

यानि उन साधक/साधिकाओं के सहस्त्रार मध्य हृदय पूर्ण रूप से खुले होने चाहिएं।

2.ऐसे मोतियों के दोनों छिद्रों के बीच का भाग पूरी तरह से खाली स्वच्छ होना चाहिए यानि उनका छिद्र किसी भी प्रकार के कूड़े/कचरे/धूल से बंद हो।

यानि साधक/साधिकाओं के हॄदय पूर्णतया स्वच्छ होने चाहिएं जिनमें किसी भी अन्य सहजी के लिए किसी भी प्रकार के विकार नहीं होने चाहिएं।

यानि, भेद-भाव,अपना-पराया,ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा,नया-पुराना, पदस्थ-साधारण,महान-निम्न आदि आदि के विचार हो,

और ही उनमें भीतर,पद, पैसा, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि,प्रशंसा पहचान की ओर झुकाव हो,

जो कभी भी किसी भी प्रकार के मोह, अहंकार,आक्रमकता,अवसाद, हीनता, अपराध बोध, तूलना, प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या, लोभ, इच्छा, महत्वकांशा,संचय भाव, शोक, राजनीति आदि में उलझता हो,

जो हर प्रकार की कंडीशनिंग,भय, उदासी,दुख पीड़ा के एहसास,लालसा, नियम, पाबंदी, अपेक्षा, मांग,चापलूसी, गुलामी,खोने पाने के भावों से मुक्त हो,

जिसकी चेतना सभी के भीतर "श्री माँ" की उपस्थिति/अनुपस्थिति,उनकी आत्मा की जागृत/सुप्त अवस्था,उनकी जीवात्मा का करुण क्रंदन/प्रसन्नता, उनके भीतर के देवी-देवताओं की सक्रियता/निष्क्रियता, उनके यंत्र में स्थित ग्रह/नक्षत्रों के क्रोध/प्रेम आदि को अनुभव करने में सक्षम हो,

जो मान-अपमान, हानि-लाभ आदि के विचारों से ऊपर हो अन्यों के साथ कभी भी झूठ, फरेब, धोखा, छल कभी करता हो।

3.इन मोतियों के ऊपरी सिरे का मुख धागे यानि "श्री प्रेम" की ओर हो और दूसरा सिरा उस धागे में पिरने के लिए खुला हो ताकि दूसरा मोती भी उनके भीतर से पिरने वाले उस धागे में पिरोया जा सके।

यानि उनका सहस्त्रार पूर्ण रूप से "श्री प्रेम" को अच्छे से आत्मसात कर मध्य हृदय के माध्यम से अन्य सुयोग्य सहजी के सहस्त्रार तक पहुंचाने की क्षमता रखता हो।

यानि "श्री माँ" से ग्रहण करने वाले 'निर्मल प्रेम' को ये सभी सहजी एक के बाद दूसरे के हृदय में अपनी सुंदर सुंदर अनुभूतियों भावों को "श्री प्रेम" के साथ मिला कर प्रवाहित करते रहें।

ताकि एक विलक्षण अलौकिक ऊर्जा का एक सर्किट सभी ऐसे सहजियों के अंतःकरण में लगातार परिक्रमा करता रहे।

और जिस स्थान पर भी चित्त चेतना जाए वहां पर सभी के हृदयों में भ्रमण करती यह 'दिव्य ऊर्जा' उस स्थान को स्वच्छ करना प्रारम्भ कर दे।

यदि उपरोक्त विशेषताओं से सुसज्जित सहजी जब "श्री माँ" को उपलब्ध होते जाएंगे तभी जाकर "वे" अपनी माला को पुनः तैयार करवा कर धारण कर पाएंगी।

अब यह हमारी शुद्ध स्वतंत्र इच्छा पर निर्भर करता है कि हम "श्री माता जी" की माला के मोती बन कर "उनके" साथ बने रहना चाहते हैं।

अथवा इधर उधर अन्यंत्र बिखर कर अपने मोती होने के मिले इस अवसर को यूं ही गवाना चाहते हैं।

यदि ऐसा चाहते हैं तो ध्यानस्थ अवस्था में "श्री माँ" से विनम्रता के साथ निवेदन करना होगा कि इस ओर प्रस्थान करने की दिशा में कोई मार्ग सुझाएँ।

अथवा किसी उच्च अवस्था तक विकसित हुए किसी माध्यम की व्यवस्था करवा दें जिसकी साधना,गहनता अनुभव सद अनुभूति का लाभ उठाया जा सके।

यह बात भी सत्य है कि सभी सहज अनुयायी मोती में तब्दील नहीं हो पाएंगे जबकि सभी में वह मोती बनने की संभावना विद्यमान है।

क्योंकि किसी मोती का रुख धागे की ओर नहीं होगा, तो किसी मोती के दोनों सूराख बंद होंगे, तो किसी का एक सूराख बंद होगा तो किसी के सूराख के बीच में मैल जमा होगा।

किन्तु यदि आप पूरी तन्मयता के साथ "श्री माता जी" से एकाकार हो जाएंगे तो भी यह कार्य बन जायेगा।

या फिर "श्री माँ" की अनुकंपा से आपको उचित माध्यम उपलब्ध हो जाएगा तो वह अत्यंत प्रेम लगन के साथ मोतियों के दोनों सूराखों को खोलने इस सूराख को साफ रखने का आसान उपाय बता देगा।

बस आपको उसका पूर्ण निष्ठा सम्मान के साथ सहयोग करना होगा, क्योंकि बिना आपके सहयोग के यह कार्य बन नहीं पायेगा।

और जब सौभाग्य से ऐसा माध्यम "श्री माँ" की अनुकम्पा से उपलब्ध हो जाये तो अपनी समस्त पूर्व कण्डीशनिंग, संस्कारों, विचारों, पठन, श्रवण मानसिक समझ से ऊपर उठ कर।

उसके द्वारा सुझाये गए मार्ग पर चलने के लिए गहन ध्यान में उतर कर अपने अंतः करण में स्थित अपनी अनेको अलौकिक विभूतियों के प्रेम ऊर्जा को आत्मसात करने का अभ्यास बनाना होगा।

एक समय ऐसा आएगा जब आपकी आंतरिक समझ सूक्ष्म से सूक्षतर होती हुई आपको आपके स्वयं के "स्व" से जोड़ देगी।

और फिर इस स्थिति के बाद आपकी चेतना "परमेश्वरी" से एकाकार होने की ओर अग्रसर हो जाएगी।

"उनसे" एकाकारिता स्थापित होने के बाद आपकी चेतना में भी उपरोक्त वर्णित तीनो प्रकार की स्थितियों का एहसास होने लगेगा और फिर आप भी वैसे ही मोती में परिवर्तित होते जाएंगे।

किन्तु एक विशेष बात के लिए आप सभी को तैयार रहना होगा कि वह माध्यम आपको अपने स्वयं के अभ्यास 'आत्मज्ञान' के जरिये ही अनुभव करवाएगा।

जो आप सभी की चेतना के स्तर यंत्र की स्थिति के अनुसार आपके लिए एकदम नया, अलग, अविश्वसनीय उलझन भरा भी हो सकता है।

क्योंकि उन मार्गों की जानकारी आपके मन की स्मृति में उपलब्ध नहीं होगी जिसके कारण आपका दायां आगन्या अति सक्रिय हो सकता है आपके मन में संघर्ष भी उत्पन्न हो सकता है।

जिसकी वजह से आपको उस तरीके से ध्यान-ऊर्जा को महसूस करने, ध्यान की गहनता उतरने नई स्थिति को अपनाने में हिचक अड़चन महसूस हो सकती है।

क्योंकि हमारे मन की एक विशेषता है कि यदि उसकी स्मृति से कोई बात यदि मैच करे तो वह भय की उत्पत्ति करता है।

किन्तु यदि आपके भीतर मोती बनने की तीव्र अभिलाषा है तो आपको डरने की कोई आवश्यकता नहीं है

"श्री माता जी" पर पूर्ण विश्वास रखते हुए सच्ची लगन के साथ बताए गए अभ्यास करते जाएं।

और साथ ही अभ्यास के परिणामो का अपनी चेतना में वास्तविक अनुभवों अनुभूतियों के आधार पर आंकलन भी करते जाएं।

इससे आपके स्वयं के विश्वास में वृद्धि होगी उत्साह भी बढ़ता जाएगा जो आपको नए नए प्रकार की प्रेरणा भी प्रदान करता जाएगा।

यह चेतना पूर्ण हृदय शुद्ध इच्छा के साथ आप सभी के लिए सुंदर मोती बनने के लिए "श्री माँ" से प्रार्थना करते हुए सप्रेम शुभ कामनाएं प्रेषित करती है।"

'......................मी................'

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"Jai Shree Mata Ji"

09-10-2020