Friday, March 1, 2019

"Impulses"--481--"सामूहिक ध्यान उत्थान कैसे हो" (भाग-4)

"सामूहिक ध्यान उत्थान कैसे हो"
(भाग-4)

"बंधन की प्रक्रिया के उपरांत हम सभी सामूहिक रूप से अपनी दोनों नाड़ियों के सन्तुलन की प्रक्रिया को अंजाम देते हैं।

इसके लिए जब हम अपना बायां हाथ "श्री माता जी" के स्वरूप के आगे करते हैं तो उस क्षण अपनी चेतना को अत्यंत प्रेममयी अनुग्रह के साथ "श्री चरणों" में स्थापित कर देना है।

और हृदय में "उनसे", आग्रह करना है, "श्री माँ" अपने 'इस' यंत्र की बाईं नाड़ी को अपने प्रेममयी चैतन्य से भर दीजिए।

इस निवेदन के साथ अपने चित्त को अपने सहस्त्रार पर "माँ आदि" के साथ जोड़कर "उनकी" ऊर्जा को अपनी बाईं नाड़ी में कुछ देर तक प्रवाहित होता हुआ महसूस करना है।

इस प्रक्रिया में जब तक अपने बाएं भाग में ऊर्जा की एक शीतल लकीर दौड़ती महसूस हो तब तक अपनी चेतना को लगातार "मां आदि शक्ति" के साथ बनाये रखना है।

इसी प्रक्रिया के दौरान हम अपने चित्त के दूसरे छोर को अपनी बाईं हथेली में भी टिका कर रखेंगे और शीतल लहरियों का भी आनंद लेते रहेंगे।

इसके उपरांत अपनी चित्त को अपने सहस्त्रार पर टिकाए हुए अपनी चेतना को "धरती माता" के साथ जोड़ लेंगे।

और अपनी दाहिनी हथेली को बड़ी विनम्रता से 'धरा' पर रखकर 'उनसे' निवेदन करेंगे कि, 'हे 'धरती माता' जो भी इस यंत्र में 'प्रकृति परमात्मा' के विपरीत हो उसे अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के द्वारा निष्काषित कर दें।

इस अनुग्रह के साथ ही "उनकी" ऊर्जा को अपने दाहिने हाथ में प्रवाहित होते हुए कुछ देर तक महसूस करेंगे।

इसके उपरांत महसूस करेंगे कि सहस्त्रार बाएं हाथ के जरिये "श्री माँ" की ऊर्जा रही है और हमारे यंत्र को तरंगित करती हुई दाहिने हाथ के द्वारा 'धरती माँ' के हृदय में समा रही है।

और धरती से आकर्षण शक्ति दाएं हाथ के जरिए प्रवेश कर रही है और सारे यंत्र में भ्रमण करती हुई सहस्त्रार पर स्थित "माँ आदि" के चरणों में समा रही है।

मानो दोनों 'दिव्य माएँ' एक दूसरे को अपना प्रेम हमारे यंत्र के माध्यम से प्रेषित कर रहीं हों।

यानि तकनीकी रूप से एक ऊर्जा का सर्किट बन रहा है जो सम्पूर्ण यंत्र को चैतन्यतित करता हुआ इसके भीतर के अस्त्तिव को स्वच्छ कर रहा है।
और अब हम अपनी दाहिनी नाड़ी को संतुलित करने का उपक्रम करते हैं,

अपने दाएं हाथ की हथेली को "श्री माता जी" की ओर कर लेंगे और अपने बाएं हाथ की हथेली को आकाश की ओर कर लेंगे और फिर अपनी चेतना को 'पिता आकाश' "श्री माँ"' के साथ जोड़ लेंगे।

साथ ही अपने चित्त के एक छोर को आकाश की अनंत ऊंचाइयों में ले जाएंगे और अपने चित्त के दूसरे छोर को "श्री चरणों" के जोड़ कर रखेंगे।

अब हम कुछ देर तक महसूस करेंगे कि अनंत आकाश से कुछ ऊर्जा रूपी शक्तियां हमारे बाएं हाथ सहस्त्रार के जरिये हमारे यंत्र में प्रवेश कर समूर्ण यंत्र में विचरण करती हुई "श्री चरणों" में समा रही हैं।

और "श्री माँ" की 'प्रेम-शक्ति' ऊर्जा रूप में हमारी दायीं हथेली के द्वारा हमारे दाएं बाजू में प्रवाहित होती हुई हमारी विशुद्धि के जरिये सम्पूर्ण यंत्र में दौड़ रही है और हमारे सहस्त्रार से फव्वारे के रूप में प्रस्फुटित हो रही है।

"श्री माँ"' अपना प्रेम वात्सल्य हमारे सूक्ष्म स्थूल यंत्र के माध्यम से 'पिता आकाश' तक पहुंचा रही हैं और 'पिता आकाश' अपना अनुग्रह प्रेम "श्री माँ" के "श्री चरणों" में प्रवाहित कर रहे हैं।

एक अलौकिक ऊर्जा का सर्किट जागृत हो गया है जो समस्त प्रकार की अशुद्धियों को अपने साथ बहा कर ले जा रहा है।

इस अवस्था में हम महसूस कर रहे होंगे कि हमारी बाईं हथेली आकाश के साथ जुड़ गई है और इसमें से कुछ खींच कर आकाश में विलीन होता जा रहा है।

और दाहिने हाथ की हथेली में ऐसा महसूस हो रहा होगा मानो कोई शक्ति दाहिने हाथ की हथेली से ऊपर की ओर खिंच कर आकाश में विलीन हो रही हो।

जब तक उपरोक्त ऊर्जा की अनुभूतियां हमारी दोनों हथेलियों, सहस्त्रार विशुद्धि में हो तो समझना चाहिए कि नाड़ियों के सन्तुलन की प्रक्रिया अभी घटित नहीं हो पाई है।

5.अब हम आते हैं 'महामंत्र' के उच्चारण की प्रक्रिया की ओर;

जब सहजी महा मंत्र ले रहे होते हैं तो उनकी चेतना महा मंत्र में लिए जाने वाले सभी शब्दों में उच्चारित 'उच्च शक्तियों' के साथ जुड़ी होनी चाहिए।
यानि जैसे महा मंत्र 'ओम' के उच्चारण से प्रारम्भ होता है:-

'.............. ........,

इस उच्चारण के साथ महसूस करना है, कि हमारी चेतना अब इस रचना के पूर्व होने वाले 'बड़े धमाके'(Big Bang) के साथ जुड़ रही है।

जो वास्तव में इस सम्पूर्ण सृष्टि में गुंजायमान होने वाला 'दिव्य संगीत' है जो इस रचना के कण कण में विद्यमान है और इसको पोषित कर रहा है।

इस 'ओम' के उच्चारण से उत्पन्न होने वाली तरंगों को 1-2 मिनट तक अपने यंत्र में अपनी रीड की हड्डी सहस्त्रार पर महसूस करेंगे।

और इस 'ओम' की ध्वनि की रस्सी को पकड़ कर अपनी चेतना को इस ब्रह्मांड से परे रहने वाली "माँ आदि शक्ति" के" श्री चरणों" तक अपनी चेतना को ले जाएंगे।

यदि ध्यान से पूर्व 'ओम' के उच्चारण को मूलाधार से सहस्त्रार तक चित को ले जाते हुए 7-8 बार कर लिया जाए तो ध्यान तुरंत लग जाता है।
इसके उपरांत......'त्वमेव.. साक्षात, "श्री महा लक्ष्मी",

यानि हमारी चेतना 'ओम' के उदभाव के साथ इस रचना को चलाने के लिए उत्पन्न होने वाली सबसे पहली 'निराकार शक्ति', "श्री महालक्ष्मी" के साथ योग कर रही है।

इस जुड़ाव की प्रतिक्रिया हम अपनी सुषुम्ना नाड़ी में बहती हुई ऊर्जा के रूप में आभासित करेंगे है।

"महा..............सरस्वती"...

के उच्चारण के साथ महसूस करेंगे कि हमारी पिंगला नाड़ी में यह निराकार शक्ति प्रवेश करके इस पर स्थित समस्त चक्रों को तरंगित करती हुई हमारे दाहिने आगन्या में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है।

"महा........का......ली"..... के उच्चारण के साथ महसूस करेंगे कि हमारी चेतना उनकी निराकार शक्ति को अपनी इड़ा नाड़ी में बाएं मूलाधार से बाएं आगन्या तक दौड़ता हुआ महसूस कर रही है।

इस प्रवाहित होने वाली 'ऊर्जा' से हमारी बाईं नाड़ी के समस्त चक्र झंकृत हो रहे होते हैं।

और जब उच्चारण होता है'

"त्रिगुणात्मिका"..........
.
ऐसी अवस्था में हमें अपनी 'कुंडलिनी माँ' की उपस्थिति को कुछ देर तक हलचल के रूप में उस स्थान पर अपने यंत्र के रूप में महसूस करना है जहां पर वह मौजूद हैं।

'कुंडलिनी साक्षात'..."श्री आदि शक्ति"

के उच्चारण के साथ कुंडलिनी को सहस्त्रार में "आदि माँ" के रूप में महसूस करेंगे।

'श्री निर्मला देवी'......नमो नमः'

के उच्चारण के साथ हम अपनी चेतना को "उनके" "श्री चरणों"' में महसूस करेंगे।

'ओम.......त्वमेव.....साक्षात "श्री कल्कि.........साक्षात'

इस उच्चारण के साथ हम अपनी चेतना को अपने दोनों भवों के बीचों बीच(त्रिकुटी) में ले जाकर "माँ की ऊर्जा" को महसूस करेंगे।

'श्री आदि शक्ति..... माता जी....श्री निर्मला देवी नमो नमः'

के उच्चारण के साथ ही अपनी चेतना को "श्री माता जी" के स्वरूप के साथ जोड़ लेंगे।

'ओम......त्वमेव........साक्षात....श्री सहस्त्रार स्वामिनी'.......

इस उच्चारण के साथ हम अपनी चेतना को अपने सहस्त्रार पर टिका देंगे और "उनकी" निराकार स्थिति को ऊर्जा के रूप में महसूस करेंगे।

'मो......क्ष.....प्रदायिनी'..........

के उच्चारण के साथ "श्री सदाशिव" के साथ अपनी चेतना के जोड़ लेंगे।

'मा......ता.......जी........ 'श्री निर्मला.. देवी............नमो नमः'

और अंत में "श्री माँ" को "माँ निर्मला" के स्वरूप में अपने मध्य हॄदय में महसूस करेंगे।

यदि चाहें तो उपरोक्त प्रक्रिया को एक बार महसूस करके देखें और अपने यंत्र की स्थिति को अनुभव करें।"



---------------------------------------------Narayan


"Jai Shree Mata Ji"


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