Wednesday, April 20, 2011

चिंतन-----22----चेतना के विभिन्न आयाम --प्रथम--तृतीय(Different Dimension of Human Awareness)

"मानवीय चेतना के विभिन्न आयाम"

(Different Dimension of Human Awareness)



मेरे समस्त, सहज साथियों कों, हृदय से नमन,
अभी कुछ रोज पहले लखनऊ सहज सेमीनार में जाना हुआ, वहां पर श्री रोमिल जी (परम पूजनीय श्री माता जी श्री निर्मला देवी जी के छोटे दामाद) को सुना। इससे पूर्व अगस्त 2010 में 'बोध गया' में भी सुनने का सौभाग्य मिला। 'आपकी' सादगी खोजी भाव ने प्रभावित किया।

आपने दोनों ही बार 'चतुर्थ' 'आयाम' के बारे में बात-चीत की, काफी उत्सुकता दिखाई कि 'श्री माता जी' ने अक्सर चौथे आयाम (forth dimension) का जिक्र किया और 'वो' भी 'बोध चातुर्य' के खोजी हैं। आपने बताया कि आरंभिक काल में 'वो' पर्वतों पर 'शिव' कों खोजते रहते थे। और 'वे' चाहते हैं कि चौथे आयाम के अनुभव कर पायें या किसी से जान पायें।

तो आज इसी सन्दर्भ में 'हृदय' में कुछ प्रवाह रहा है तो सोचा क्यों इसको आप सबके बीच बांटा जाए। मैं कोई विद्वान् नहीं हूँ, मेरी पढाई बहुत ही साधारण रही है, ही मेरे पास कोई डिग्री है, और ही मेरी रूचि ही पढाई में रही है, और ही मैंने कोई शास्त्र, ग्रन्थ,वेद, उपनिषद, या धार्मिक पुस्तकों का गहराई से अध्यन ही किया है।

वास्तव में बाह्य रूप से मेरा व्यक्तित्व एक प्रकार से नास्तिक वाला ही रहा है।कभी मंदिरों इत्यादि में मेरी रूचि श्रद्धा नहीं रही। हाँ, मैंने 'माता प्रकृति' कों सदा सम्मान दिया है, 'इनसे' ही समय समय कुछ कुछ सीखना चलता रहा है। 'यही' मेरी "भगवान" रही हैं। पर्वतो में जाने का पर्वतों की कुछ चोटियों पर चढ़ने का शौक भी रहा है। सन, 1982 से उस 'देव-भूमि' पर जाने का मौका कुदरत सदा देती रही है। 

"मेरे लिए पर्वत मेरे 'पिता' हैं, जिन्होंने मुझे हर अवसर पर बहुत कुछ दिया है।"

पूर्व जन्मों के कुछ 'सुकर्मो' के प्रताप से मार्च, 2000 में "श्री माँ" ने अपने "श्री चरणों' में आने का अवसर दिया। जो भी "श्री माँ" ने अपने गहन अनुभवों के नक़्शे (प्रवचन) प्रदान किये उन में से कुछ पर चल-चल के देखा और कसौटी पर खूब कस-कस कर देखा और पाया उन सब में सत्यता थी। क्योंकि वो कसौटी प्रारंभिक काल में मेरा ही सूक्ष्म' यंत्र थी, "मैं ही स्वम, 'अंतर निहित' अपनी ही 'अनुसन्धान शाला' 'प्रयोग शाला' का 'चूहा' था।"

और बाद में अपने प्रयोगों अनुभवों के आधार पर बहुत से लोगों पर ढेरों प्रयोग किये, जिनमें "श्री माँ"सफलता प्रदान करती ही चली गईं और मेरा अस्तित्व धीरे-धीरे "उस" "देवी माँ" के "श्री चरनन" में नतमस्तक व् समर्पित होता गया। और 'अंतस' में कहीं 'उसकी' अभिव्यक्ति क्रमिक रूप में होती ही चली गयी। और आज "दिव्य श्री माँ'' के विश्वास के प्रति ये चेतना पूर्ण रूप से विश्वस्त है।

तो अब चलते हैं विभिन्न प्रकार के आयामों की ओर, जो मेरी चेतना समय समय पर अपने भीतर अनुभव करती रही है। छमा कीजियेगा यदि कोई मेरा अनुभव आपके अनुभवों से मेल खाए तो उसका बुरा मत मानियेगा। सहज संस्था में इस चेतना ने कई बार अनुभव किया है कि अक्सर कुछ सहजी दूसरों के अनुभवों कों परखे बगैर ही बहुत बुरा मान जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानों हमने उनकी कोई अनमोल वस्तु छीन ली हो।

"प्रथम आयाम"
(First Dimension)


इस आयाम में हमारी चेतना केवल अपने शरीर से ही सम्बंधित आवशयकताओं की पूर्ति के लिए ही जागरूक होती हैं। हम मानवीय देह इससे सम्बंधित जुड़े संसार को ही हम सब कुछ मानते है। जैसे कि इस पृथ्वी पर अनेको योनियों के रूप में जितने भी प्राणि हैं वे सभी अपना सारा जीवन अपने बाहरी स्वरुप को तुष्ट करने में ही व्यतीत कर देते है। यानि केवल भोक्ता बनकर ही रहते हैं।

एक छोटी सी प्राणी 'चींटी' अपने सारे जीवन को अपने लिए खाद्य पदार्थों के संग्रह में ही लगा देती है। और प्रथम आयाम से प्रभावित मानव भी केवल इस शरीर की जरूरतों को पूरा करने में ही सारा 'अनमोल' जीवन नष्टकर देता है। यानि मानवीय चेतना 'निम्नतम' स्तर तक ही सीमित रह जाती है।

यहाँ तक कि सहज योग से जुड़े हममे से कुछ सहजी भी 'श्री माँ' के उच्चतम दर्जे के प्रेम को केवल अपने शरीर की बिमारियों अपने चक्रों कों ठीक करने अपने शरीर से सम्बंधित जरूरतों को पूरा करने तक ही सीमित रहते है।


"दूसरा आयाम"

(Second Dimension)


मानवीय जीवन, चेतना के द्वितीय आयाम से जब गुजरता है तो मानव अपने मस्तिष्क का प्रयोग करते हुए अपने जीवन को और ज्यादा आराम सुविधा में रख पाने के लिए विभिन्न प्रकार की खोज करता है।वो निरंतर कुछ कुछ सोचता रहता है। वह अपने दोनों गोलार्धो (two hemisphere,left & right brain) का उपयोग करता है, पुरानी स्मृतियों के आधार पर अपने वर्तमान भविष्य के जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रयासरत रहता है।

यहीं से ही भौतिक जीवन के विकासक्रम की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है, जिसका जीता जागता उदहारण 'विज्ञान' है। और कई बार सोचने की चरम सीमा पर पहुँच कर मानव असंतुलित हो जाता है तनाव से ग्रसित हो जाता है, और तनाव उसके नर्वस सिस्टम कों अत्यधिक छति पहुंचता है।

जिसका एक रूप कुछ समय पूर्व महान वैज्ञानिकों द्वारा चाँद' पर गोले बरसाना है। गोले बरसाकर चाँद कों तोड़ कर पानी निकलना चाहते हैं, जिस पर इतना पैसा खर्च होता है कि इतने में तो हमारी 'माँ पृथ्वी' और सुन्दर हो जाएँ और किसी भी मानव कों परेशानी हो। एक और दूसरा प्रयोग और किया जा रहा है, मानव के मस्तिष्क द्वारा एक ऐसी मशीन का निर्माण किया गया जिससे 'ब्रहम्मांड' की रचना कैसे हुई उसका पता लगाया जा सके।

बदकिस्मती से दोनों ही प्रयोग असफल हुए। ब्रहम्मांड की रचना को जानना चाहते हैं तो 'इसको' बनाने वाले से जुड़ने पर ही पता चलेगा न। "रचनाकार" ही 'अपनी रचना' का ज्ञाता है।" एक तथ्य की बात है, "परमपिता" उन्ही प्रयोगों कों सफल बनाते हैं जिससे सम्पूर्ण मानव जाती समस्त प्राणियों प्रकृति का कल्याण होता है।

जैसे कि आज ऐसे-ऐसे उपकरण बना लिए गए है जिससे 'परमात्मा' की शक्तियों का पता लगाया जा सकता है।'शांति कुञ्ज' हरिद्वार, उत्तर-प्रदेश में एक 'ब्रह्म् वर्चस्व' नाम का संस्थान है जहाँ पर मानव के 'सूक्ष्म शरीर' पर स्थित विभिन्न 'शक्ति केन्द्रों' की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
"परम पूजनीय श्री माता जी श्री निर्मला देवी" द्वारा स्थापित दो हस्पतालों, जो 'वाशी' मुंबई नौएडा में स्थित हैं, परमात्मा की चैतन्य लहरियों' द्वारा शरीर के रोगों का इलाज किया जाता है।

द्वीतिय आयाम से प्रभावित हम में से कुछ सहजी परमात्मा की शक्तियों का प्रयोग केवल अपने मस्तिष्क को और विकसित कर इससे भरपूर भौतिक लाभ उठाना चाहते है। यानि जब ध्यान में रहेंगे तो हमें अपने व्यापार, व्यवसाय या नौकरी को ठीक ठाक रखने के लिए नए-नए विचार आएंगे और हम और भी ज्यादा सुख-साधनों का संग्रह करके और भी ज्यादा सुखी रह सकेंगे।

"तीसरा आयाम"
(Third Dimension)


मानवीय चेतना के तीसरे आयाम के प्रभाव से मानव अपनी भावनात्मक आवश्यकताओं के प्रति पूर्ण जागरूक होता है। और वह ऐसे मानवों के साथ समय बिताना चाहता है जो उसको सुरक्षा प्रदान करें, जिनसे वो अपने सभी प्रकार के सुखों-दुखो को बाँट सके। और इसी कारण मानव की विकास प्रक्रिया में मानवीय रिश्तों का प्रादुर्भाव हुआ है।

स्त्री-पुरुष का रिश्ता चार रूपों में विकसित हुआ जो माता-पिता, बहिन-भाई, पुत्री-पुत्र, पति-पत्नी के रूप में हमारे आज के समाज में प्रगट हो रहा है। और इनके साथ एक और रिश्ता विकसित हो जाता है और वह है 'मित्र' का, जो कि इन चारों ही रिश्तों में व्याप्त है। चारों ही प्रकार के रिश्तों में 'मित्रता' एक ऐसा फैक्टर है जो सदा मधुरता समर्पण बनाये रखता है।

हर मानव का अक्सर कोई कोई मित्र अवश्य होता है जो अक्सर परिवार से बाहर का ही होता है जो एक-दूसरे के साथ काफी आत्मीयता महसूस करते है अपने-अपने सीक्रेट्स भी शेयर करतें है। इस मित्रता वाले भाव में उपरोक्त चार रिश्तों के भाव भी समाये होते हैं। इस प्रकार से मानव भावनात्मक रूप में अपने को शांत सुरक्षित महसूस करता है।

इसी तीसरे आयाम में मानवीय चेतना एक 'व्यक्तित्व' का निर्माण करती है जिसमे उपरोक्त दो आयाम भी शामिल होते है। हर मानव अपने व्यक्तित्व से बहुत ही प्रेम करता है और इसकी आवश्यकताओ को पूरा करने में ही अपना पूरा जीवन खपा देता है। कई जन्मों से हम लोग अपने-अपने व्यक्तित्वों को बड़े ही प्रेम से पालते-पोसते रहे है, और इसी की पसंद-नापसंदगी को अपने-अपने कन्धों पर ढोते रहे है।

'इसके' मुताबिक कोई चीज मिल गई तो खुश वर्ना अनंत दुःख में डूब जाते हैं और कभी तो अपनी किस्मत को कोसते हैं तो काभी दूसरों को दोष देते है। तो इस प्रकार से एक साधारण मानव 'त्रि-आयामी'(Three Dimensional) होता है। इसी के कारण मानव अपने नजदीकी लोगों के साथ रहकर ही खुश होता है और वो उन्ही को अपना सब कुछ समझता है।और अक्सर अपनी-अपनी पसंद के मुताबिक रिश्ते बनाता है और अपना जीवन जीता चला जाता है।

हमारे कुछ सहजी भी ध्यान का उपयोग अक्सर आपसी रिश्तों को सुन्दर बनाने आपसी गलत-फहमियों को दूर करने अपने आपको आनंद में स्थित रखने तक ही सीमित रखतें है।

जब भी किसी सहजी से पूछो क्या चाहते हो तो 'वो' कहेगा कि बस मुझे तो 'आनंद' मिल जाय। इसी भ्रम वश 'वो' सोचेगा कि सभी परिवार के सदस्य केवल उसकी बात माने उसके हिसाब से चलें, और यदि ऐसा हो जाए तो आनंद जाएगा। और इसी उधेड़-बुन में'वो' खूब देर-देर तक बैठ कर ध्यान करेगा और हृदय में भाव रखेगा कि कोई उसे परेशान करे। 

और परिवार के लोग सोचेंग कि ये तो 'नकारा' हो गया, जिम्मेदारियों को छोड़ कर 'ध्यान -मगन' रहने लगा है। और यदि परिवार के सदस्य उसके अनुरूप नहीं ढल पाते तो 'वो' उस आनंद को बनाये रखने के लिए यहाँ-वहां जाना प्रारम्भ कर देता है।

कभी वो 'भजन-संध्या' का आनंद लेना चाहेगा तो कभी भजनों पर 'ठुमके' लगाएगा, कभी जोर-जोर से मन्त्रों-चारण करेगा तो कभी बात-बात में 'बंधन' लगाएगा, कभी फूट-सोकिंग करेगा, तो कभी केंडलइंग केम्फरिंग करेगा, कभी जूता पीटेगा तो कभी अल्लाह-हो-अकबर अलापेगा, तो कभी 'चक्र चलाएगा तो कभी नाड़ियाँ संतुलित करेगा। 'वो' ये सारे कार्य अपने आनंद को बढ़ाने के लिए ही करेगा। 'उसका' सारा का सारा काम करने का उद्देश्य केवल और केवल अपने को ही खुश करने का ही होगा।"

-------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"
..................................to be continued

No comments:

Post a Comment