Saturday, June 2, 2018

"Impulses"--448--"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'-भाग-3"

"ऊर्जा-संकेत"-'एक मौन वार्तालाप'-भाग-3"
(26-12-17)


तो सर्वप्रथम हम इन नकारात्मक सकारात्मक संकेतो के प्रकार को समझने का प्रयास करेंगे।

प्रथम स्थान(पाँव) के सकारात्मक संकेत:-इन संकेतों को हम लगभग चार भागों में बांट सकते हैं।

i) ठंडा लगना:जब भी कभी हमारे किसी पाँव के तलवे में ढंडक महसूस हो तो हमें समझना चाहिए कि उस पाँव से सम्बंधित नाड़ी की शक्ति भौतिक उपलब्धि के लिए ठीक प्रकार से कार्य कर रही है।

ऐसे ही यदि किसी पाँव की उंगली के पोरवे में ठंडक महसूस हो तो हमें समझना चाहिए कि उस चक्र से सम्बंधित किसी भी सांसारिक वस्तु/स्थिति/स्थान/व्यक्ति/अवस्था पर हमारा चित्त है, उसके उपलब्ध होने की संभावना बन रही है।

ii) शीतल हलचलों का होना:जब भी हमारे पाँव की उंगलियों के पोरवों में ठंडी ठंडी हलचलें आने लगें तो समझ जाना चाहिए कि उस उंगली से सम्बंधित हमारी किसी इच्छित वस्तु/ स्थान/स्थिति/व्यक्ति की प्राप्ति की दिशा में 'शक्तियों' का कार्य प्रारम्भ हो गया है।

iii) स्पंदन का होना:-किसी भी पाँव की उंगली के पोरवे में यदि स्पंदन होता महसूस हो तो इसका मतलब है कि उस चक्र के देवता प्रसन्न होकर हमें हमारी इच्छित वस्तु जिस पर हमारा चित्त है उपलब्ध कराने जा रहे हैं।

iii) शीतल वायु प्रवाह:-जब किसी भी पाँव की उंगली के पोरवे में हमारे चित्त की प्रतिक्रिया स्वरूप हमें शीतल वायु प्रस्फुटित होती महसूस हो तो हमें समझना चाहिए कि दैवीय शक्तियों ने हमारी मनोकामना पूर्ण कर दी हैं जिसका हमें शीघ्र पता चल जाएगा।

प्रथम स्थान के नकारात्मक संकेत:-इन संकेतों को हम पांच भागों में बांट सकते हैं जो पाँव के तलवों पाँव की उंगलियों के पोरवो पर हमारे चित्त की प्रतिक्रिया स्वरूप महसूस देते हैं:-

i)गर्माहट का होना:-जब ये अवस्था हमारे पाँव तालु में महसूस हो तो हमे समझना होगा कि उक्त पाँव की नाड़ी की देवी हमारे चित्त में उपस्तित कोई भी भौतिक वस्तु, स्थान, स्थिति की प्राप्ति में हमारी मदद नहीं कर रही हैं।

और जब ये एहसास पाँव की किसी उंगली के पोरवे में तभी आती है जब हम अपनी उन भौतिक रुचियों के बारे में विचार कर रहे होते हैं जो वास्तव में हमें कभी उपलब्ध ही नहीं होंगी।अतः उन सभी के बारे में निर्थक विचार करके कुछ भी लाभ नहीं होने वाला।

ii)दर्द का होना:-पाँव की किसी भी उंगली के पोरवे में दर्द होना इस बात का प्रतीक होता है कि उक्त उंगली से जुड़ी जिस वस्तु की हम कामना कर रहे हैं/किसी के बारे में सोच रहे हैं वो हमारे लिए उपयुक्त नहीं है।अतः उसका विचार ही त्याज्य है।

iii) ऐंठन का होना:-हमारी उंगली के पोरवे में ऐंठन तभी होती है जब हम उस पोरवे में होने वाले दर्द को नजर अंदाज करके बारम्बार उन्ही चीजो के बारे में विचार कर रहे होते हैं।तो 'ईश्वरी शक्ति' हमें ऐंठन देकर हमें सत्य बताना चाहती हैं।

iv) जलन का होना:-पाँव की किसी भी उंगली के पोरवे में यदि किसी भी प्रकार की जलन होती प्रतीत हो तो समझना चाहिए कि उस उंगली से सम्बंधित उक्त चीज के मिलने की सम्भावना ही नहीं है अतः उस चीज से सम्बंधित इच्छा करना/उस पर चित्त रखना ही व्यर्थ है।

v) तीव्र चुभन का होना:-जब हमारे पाँव के तलवे में तीखी सुई जैसे चुभने का अनुभव हो।

तो हमें समझना होगा कि उस पाँव की नाड़ी की 'शक्ति' उन भौतिक स्थितियों को प्राप्त करने में हमारी मदद नहीं करेंगी जिसके बारे में हम निरंतर सोच विचार कर रहे है।

और यदि किसी उंगली के पोरवे में तीखी चुभन हो तो उस उंगली से सम्बंधित हमारी कोई चिरप्रतीक्षित वस्तु/स्थान/स्थिति/अवस्था/मॉनव हमें कभी भी उपलब्ध नहीं होंगे।

अथवा उस तीखी चुभन देने वाली उंगली से सम्बंधित कोई भी भौतिक संसाधन/स्थान/वस्तु/व्यक्ति को हम खोने जा रहे हैं।"



---------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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