Friday, April 20, 2018

"Impulses"--440--"अच्छे दिन-??????????"(April 8 at 2018)

"अच्छे दिन-??????????"                                    
1.इमरजेंसी रूपी पूर्णतया विफल नोटबन्दी के बाद से हमारे देश में अत्याधिक बेरोजगारी बढ़ी। साथ ही नए व बेकार नोटों की छपाई के एवज में देश का हजारो करोड़ रुपया व्यर्थ गया।

2.विदेशी बैंकों में जमा कालेधन धन को देश में वापस लाकर 15-15 लाख रुपये गरीबों के बैंक अकाउंट में जमा कराने वाले वायदे को चुनावी जुमला करार दे दिया गया।

साथ ही अपने ही देश के समस्त उद्यमियो, व्यापारियों, व्यवसाइयों को वर्तमान सरकार के द्वारा चोर डिक्लेयर कर दिया गया जिनसे प्राप्त होने वाले टैक्स पर समूचा राजतंत्र व उनका मंत्रिमंडल मौज कर रहा हैं। जबकि बड़े बड़े नेताओं के बैंक खातों व सम्पत्ति की कोई जांच होने का कोई नियम नहीं बनाया गया।

3. नोट बंदी के दौरान 250000/- तक बैंक में कैश जमा कराने की छूट के वादे से मुकर कर इसे बाद में 200000/-कर दिया और इस रकम से ऊपर जमा कराने की सूचना इनकम टैक्स रिटर्न में आवश्यक कर दी। ताकि घूसखोर इनकम टैक्स अधिकारी जांच के नाम पर आम जनता का रहा सहा खून भी चूस सकें।

पहले जांच में 'सही रिटर्न' को सही साबित कराने के लिए थोड़ा बहुत सुविधा शुल्क लगता था किन्तु अब उसकी कीमत विभाग द्वारा सख्ती के नाम पर चार गुना कर दी गई है।

4.वैसे तो नोटबन्दी के दौरान डिजिटलाइजेशन का खूब ढिंढोरा पीटा गया और आम आदमी से एक एक पैसे का हिसाब देने के सख्त नियम बना दिये गए।

वहीं दूसरी ओर उत्तरप्रदेश के विधान सभा चुनाव व गुजरात के निकाय चुनावों में होने वाली चुनावी रैलियों के भारी भरकम खर्चों (कैश)का हिसाब जनता के सामने नहीं लाया गया।

5.GST के अनाप शनाप टैक्स व त्रुटिपूर्ण GST पोर्टल ने सूक्ष्म व लघु उद्दोगों की कमर ही तोड़ कर रख दी है।

6.काम की कमी के वाबजूद कच्चे माल व डीजल की बढ़ती हुई कीमतों ने अनेको उद्यमों को बंदी के कगार पर ला कर खडा कर दिया है और अनेको छोटे छोटे उद्योग बन्द भी हो चुके हैं।

7.राम मंदिर का तुरंत हल निकाल कर उसे बनवाने व जम्मू कश्मीर में सत्ता सम्हालते ही धारा 370 हटाने के वादे भी बेचारे सत्तालोलुपता में दफन हो चुके हैं।

8.उन चुनावी वादो को पूरा करने की बातें भुलाने के लिए और भी नए नए अव्यवहारिक मुद्दे देश की जनता का ध्यान बटाने के लिए उठा दिए गए।

9.अभी चंद रोज पहले तथाकथित इस ईमानदार सरकार द्वारा विदेशों से मिलने वाले चंदे के बारे कभी भी जांच न हो सकने के एक तरफा विधेयक को लोकसभा में बिना किसी चर्चा के गुपचुप तरीके से पास कराकर हमारे देश के संविधान की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर कुठारा घात किया गया है ।

देश के सच्चे हित चिंतकों को शंका है कि भगोड़े 'चहेतों' के द्वारा बैंक घोटालों में हड़पे गए जनता के हजारों करोड़ रुपयों में से बड़ी बड़ी रकमो को NRI वर्ग से पार्टी फंड के नाम पर चुपचाप ले कर ऐसे अपराधियों को बड़ी चालाकी से बचा लिया जाएगा अथवा उनके खिलाफ थोड़ी बहुत कार्यवाही जनता को दिखा कर सन्तुष्ट कर दिया जाएगा।

यदि आम आदमी को अपना घर बनवाना हो तो जितना उसे लोन मिलना है उससे कई गुना कीमत की जमीन के कागजात बैंक में गिरवी रख कर व दो प्रतिष्ठित लोगों की गारंटी लेने के बाद ही बैंक लोन देता है।

तो हजारों करोड़ के लोन बिना किसी चीज के गिरवी रखे ऐसे फ्राडइयों  को बैंक किनके कहने पर दे देता हैं ? ये बात विचारणीय है।

10. इस विधेयक के पास होने के तीन चार दिन बाद ही वर्तमान सरकार ने दागी व आपराधिक रिकार्ड के नेताओं को पदच्युत करने के सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी किये गए दिशानिर्देशों के खिलाफ जाकर सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल न देने के लिए दवाब भी बनाया था।

11.और अभी ताजा ताजा हमारे देश से सबसे ज्यादा अहितकारी SC/ST Act के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 20 मार्च 2018 को दिए गए फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर फैंसला वापस लेने के लिए दंगे वाले दिन दवाब बनाया गया।ताकि दलित सनगंठनो के वोट आगामी चुनावों में मिल सकें।

इसका मतलब तो ये हुआ जिस वर्ग की जो भी नाजायज/जायज मांग होगी वो सड़कों पर उतर कर आम जनता को मारेगा, लूटपाट करेगा, आगजनी करेगा और सरकारें वोट लेने के लिए उनको और बढ़ावा देंगी। आश्चर्य की बात ये है कि ये दंगे उन राज्यों में ही हुए जिनमें केंद्र सरकार की पार्टी का ही राज है।

जिस प्रकार से धरना प्रदर्शन की आड़ में किराए के गुंडों के द्वारा हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़, लूटपाट, मारपीट, हत्या व महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ है यंहा तक कि एक साल की छोटी सी बच्ची को भी डंडा मार कर मार दिया गया।

साथ ही "श्री हनुमान जी" की फोटो पर थुकवा कर जूते मार कर लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़का कर दंगे करवाने के लिए उकसाया गया।

इन घटनाओं से साफ जाहिर होता है कि 2019 के चुनाव जीतने के लिए राजनैतिक पार्टियां कितना भी गिर सकती हैं।सारे समाज को घृणा के माध्यम से छिन्न भिन्न कर राज करने के स्वप्न देख रही हैं।

प्रत्यक्ष में तो इन घटनाओं को गुंडों और मवालियों के द्वारा दलितों का रंग रूप देकर कर करवाया गया ताकि सारा का सारा दोष संगठित दलित वर्गों पर मढ़ा जा सके जिससे साधारण लोग दलितों से घृणा करें और दलितों को समाज के अन्य वर्गों का सहयोग न मिल पाए।

और अब ये सब नीच कार्य कराने वाले लोग एक दूसरे पर शक पैदा करने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।और सभी राजनैतिक पार्टियां दलित वर्ग की हितैषी बन गई हैं।

ये नागरिक मान ही नहीं सकता कि दलित लोग सनातनी धर्म के देवी देवताओं का अपमान कर सकते हैं। सम्पूर्ण दलित वर्ग प्राचीनतम सनातन धर्म से ही ताल्लुक रखते है, यहां तक कि इस्लाम धर्म भी सनातन धर्म से ही उदय हुआ है।

क्योंकि मक्का में "श्री शिव" के अन्य रूप "श्री मक्केश्वर" एक विशाल शिवलिंग के रूप में उपस्थित हैं बाद में इस शिवलिंग के चारो ओर दीवारे बना कर उसे ढक दिया गया।

और अब हज पर जाने वाले लोग इस पवित्र शिवलिंग के सात चक्कर लगा कर अपने गुनाहों से तौबा करते हैं। भारतीय समाज व इसकी संस्कृति व सभ्यता को नष्ट कर हमारे देश के समाजिक रूप से कई टुकड़े करके इस देश पर तानाशाही पूर्ण राज करने का स्वप्न देखा जा रहा है।

12. पिछले 4 सालों से हमारा देश घटिया राजनीति से प्रेरित अनेको प्रकार के जातिगत, धार्मिक, आर्थिक त्रासदियों से जल रहा है।

जिधर भी नजर दौड़ाओ देश के कोने कोने में जहां तहां दंगे ही दंगे हो रहे हैं।जिनके कारण हमारे देश के लोगों के बीच आपस में धृणा व वैमनस्य फैलता ही जा रहा है।

जम्मू-कश्मीर के हालात बेकाबू हुए जा रहे हैं, जितने सैनिक सुरक्षाबलों, पुलिस व सेना के इन चार सालों में शहीद हुए हैं उतने तो पिछले 10-15 सालों में भी नहीं मारे गए।

अब तो प्रतिदिन तीन चार सैनिकों, सुरक्षा कर्मियों व पुलिस के जवानों के शहीद होने की सूचनाएं आती ही रहती हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे कोई मनहूस साये ने हमारे देश के सौहार्द पूर्ण व शांत वातावरण को निगल लिया है।चारों ओर एक हड़कंप मचा हुआ है हर कोई हर रूप में असुरक्षित महसूस कर रहा है।

उत्तरप्रदेश के चुनाव के समय तो ये बड़े जोर शोर से मीडिया के जरिये प्रचलित कराया गया व सनातनी धर्म के लोगों में डर बैठाया गया कि वोट हमको दे दो वरना मुसलमान सारे हिंदुओं को मार कर राज करेंगे।

देश के हित चिंतक व शुभचिंतक नागरिकों, जरा थोड़ी देर विवेकशीलता से चिंतन करके बताएं कि पिछले 70 सालों में इस देश पर शासन करने वाली सरकारों के कार्यकाल में क्या वास्तव में मुसलमानों ने इस राष्ट्र के अधिकतर सनातन धर्म के अनुयायियों को मार डाला या जबरन मुसलमान बना दिया ?

न जाने सनातन धर्म के अनुयायियों को कब और किसने 'हिन्दू' बना दिया।

हिन्दू तो समस्त भारत के नागरिक हैं क्योंकि हमारा देश अन्य देशों के द्वारा प्राचीन काल से ही हिंदुकुश की पहाड़ियों के नाम पर हिन्दप्रदेश के नाम से जाना गया जो बाद में मुगल बादशाहों के द्वारा हिंदुस्तान के नाम से प्रचलित हुआ।जिस हिन्दुतान के भाग बांग्लादेश, बर्मा, भूटान, नेपाल, पाकिस्तान आदि हुआ करते थे।

इस नाम का सम्बंद किसी भी धर्म से नहीं है बल्कि ये तो इसका भौगोलिक नाम है।इस आधार पर तो इस देश में रहने वाले हर धर्म के सभी लोग हिन्दू हुआ करते थे।

तो इसका मतलब ये हुआ कि क्या हिन्दू ही हिंदुओं को मारेंगे, क्योंकि यहां रहने वाले मुसलमान भी हिन्दू ही कहलायेंगे।तो फिर कौनसे मुसलमान हिंदुओं को मार डालेंगे।

इस बात का एक सीधा सा मतलब ये है जो मुसलमान इस प्राचीन हिंदुस्तान का हिस्सा नहीं थे, यानी अफगानिस्तान से आये थे केवल वही अपने को सच्चा व श्रेष्ठ मुसलमान मानते हैं केवल वही हिंदुओं यानि इस मुल्क में रहने वाले समस्त लोगो लूटने व मारकर राज करने का ख्वाब देखते थे।

इसका मतलब ये भी हुआ कि वो लोग कभी भी इस देश में रहने वाले मुसलमानों को भी नहीं बख्शेंगे।तो ये बात सभी को ठीक प्रकार से समझनी होगी तभी इस देश में सुकून आएगा।

जैसे 800 साल पहले चंगेज खान, मोहम्मद गजनी आदि ने इस देश पर आक्रमण किया व लूट पाट की और इस देश के नागरिकों को हिंसा के जोर पर जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने को मजबूर किया।

ये कार्य औरंजेब के कार्यकाल तक लगातार चलता रहा।इससे ये साबित होता है कि भारतवर्ष में जो मुस्लिम हैं वो सभी सनातन धर्म के अपनाने वाले ही थे जो जबरन मुस्लिम बना दिये गए थे।

क्योंकि सनातम धर्म से पहले कोई धर्म था ही नहीं और बाद में अलग अलग समय पर ऊंचे दर्जे की चेतनाओं के द्वारा काल व क्षेत्र के अनुसार 'ईश्वर' को प्राप्त करने के लिए अनेको मार्गो को जोड़ा गया।

किन्ही लोभी व सत्ता के भूखे लोगों के द्वारा हमारे भारतवर्ष में जातपांत, धर्म, बिरादरी, ऊँचनीच, छुआछूत की बीमारी फैलाकर इस देश की एकता व सम्प्रभुता को छिन्न भिन्न कर दिया गया और हमारा देश टुकड़े, टुकड़े होकर बिखरता ही गया।

और ये सिलसिला आज भी उन्ही सत्तालोलुपों व लालची लोगों के द्वारा अपनाया जा रहा है और देश की जनता के साथ बहुत ही भयानक खिलवाड़ किया जा रहा है।

न जाने किस दूषित व संकीर्ण मानसिकता के लोभी व धूर्त लोगों ने सनातन धर्म को मानने वाले लोगों को तथाकथित 'हिन्दू' बना छोड़ दिया और हिन्दू-मुसलमानों के बीच झगड़ा पैदा करा दिया। चुनाव के समय देश के नागरिकों के बीच इस प्रकार की अनर्गल बातें करके नादान लोगों को दिग्भ्रमित किया जाता रहता है।

अब हिन्दू-मुसलमान के साथ साथ दलितों-सवर्णों, लिंगायतों-ब्राह्मणों, अमीरों-गरीबों, गुर्जर-जाटों, न जाने कितने नामों, धर्मो जातियों के आधार पर सैंकड़ो मुद्दे वोट पाने के लिए राजनैतिक दलों के द्वारा जनता के बीच उछाले जाते रहते और जनता के बीच फुट डालने के लिए आपस में लड़वाया जाता रहता है।

जिनसे आम जनता के बीच डर का माहौल पैदा किया जा सके और फिर 2019 में हिंदुओं का भला, मुसलमानों के साथ न्याय व दलितों पर अत्याचार रोकने के नाम पर फिर वोट बटोर कर फिर से राज किया जा सके।

यूं तो दंगे कराकर वोटों का लाभ लेने का प्रचलन बहुत पुराना है किंतु बात ये है कि 'तथाकथित ईमानदारी, देशभक्ति' व सामूहिक विकास का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार से इन सब दूषित बातों की अपेक्षा नहीं की गई थी।

पुरानी सरकारों को रातदिन कोसना और कहना कि 70 साल में देश का विकास नहीं हुआ है।क्या पिछले 4 सालों में कोई भी उल्लेखनीय विकास हो पाया है।

अरे हमतो भूल ही गए विकास का एजेंडा तो 2024 के लिए ही सुनिश्चित किया गया है। अभी तो देश व देश के लोगों की हर प्रकार से बर्बादी के एजेंडे पर रातदिन काम चल रहा है:

पहला एजेंडा:- देश के आम लोगों के पैसे विभिन्न प्रकार के अनाप शनाप टैक्स व नियमों के आधार पर लूट कर उन्हें पूरी तरह से आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया जाएं।

दूसरा एजेंडा:-देश के लोगों के बीच धर्म व जाती के नाम पर हिंसा व झगड़ों के द्वारा इस कदर आपसी घृणा व वैमनस्य इतना बढ़ा दिया जाय कि लोग आपस में बात करने से भी कतराने लगे।

ताकि हर रूप में इस देश की जनता इतनी कमजोर व निराश हो जाये कि किसी भी प्रकार की आशा की किरण लोगों के दिलों में शेष न रह जाये।ऐसे में राज करना अत्यंत सुगम हो जाता है।

तीसरा एजेंडा:-छोटे छोटे सूक्ष्म, कॉटेज व लघु उद्योगों को पूरी तरह मिटा दिया जाए जो वास्तव में केवल और केवल अपने रिस्क पर देश को आत्मनिर्भर बनाये रखने में रातदिन अपनी भूमिका ईमानदारी से अदा कर रहे हैं।

कुछ स्वार्थी राजनयिक चाहते हैं कि केवल 'अपने चहेते' बहुत बड़े बड़े व्यापारी ही विभिन्न प्रकार के बहुत बड़े उद्योग चला सकें। और 'पार्टी फंड', रूपी गहरे कुओं को रातदिन भरते रहें और इन कुओं से सरकार के समस्त नेता पानी भरते रहें।

और बेचारे किस्मत के मारे, सरकारी लूट से पीड़ित छोटे छोटे व्यपारी व उनकी संताने या तो सरकार की गुलामी करें या इन बहुत बड़े 'धनकुबेरों' के घर भरने में रात दिन एक करदें।

यदि ये भी काम करने योग्य न हों तो फिर अपना व अपने परिवार का पेट भरने के लिए पकोड़े का ठेला या पंचर लगाने का खोखा ही लगा पाएं।

चौथा एजेंडा:-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों व तथाकथित निम्न जाति के लोगों के स्वाभिमान को नष्ट करने के लिए विभिन्न प्रकार के आरक्षणों को बढ़ावा देते हए मुफ्तखोरी की आदत डाली जाय ताकि वो लोग निकम्मे बनकर सरकार को जिताने के लिए वोट बैंक के रूप में सदा बनें रहे और कभी भी वास्तविक रूप से तरक्की न कर पाएं।

ताकि अपने मुल्क की ऐसी निकृष्टतम स्थिति में पूरे देश पर तानाशाही करना और भी आसान हो जाए।

हमारे देश में सब से कम प्रतिशत हमारे सिख नागरिकों का है फिर भी आज तक हमने किसी सिख को मुफ्त में कोई चीज लेते नहीं देखा और न ही कभी भीख मांगते देखा है। इन्होंने कभी भी अपने लिए किसी भी प्रकार के कोटे व आरक्षण की मांग भी नहीं की।

यदि स्वाभिमान, प्रेम, श्रद्धा, देशप्रेम व सेवा भाव में जीना सीखना हो तो हमारे अपने सिख समुदाय के लोगों से सीखना चाहिए।

विश्व के सभी गुरुद्वारों में हर धर्म के लोगों के लिए बिना किसी भेदभाव व ऊँचनीच के आश्रय व भोजन उपलब्ध है। कुछ दिनों से सिख मत के युवा सीरिया में बम्बार्डमैन्ट में घायल लोगों के भोजन व इलाज के लिए सक्रिय है।

अभी भी नोटबन्दी के दौरान व कुछ ही दिन पूर्व होने वाली आरक्षण से सम्बंधित हिंसा के कारण जगह जगह फंसे हुए लोगों के भोजन पानी का प्रबंध करते दिखाई दिए।

जबकि वास्तव में जहां तक मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, सन 1990 से 2014 तक हमारे देश में हजारों किस्म के नए नए उद्योग लगातार लगते चले गए और हमारे देश में 1990 के बाद से बड़ी तेजी से रोजगार के साथ साथ आम आदमियों के साथ साथ व आर्थिक रूप से निम्न तबकों भी में सम्पन्नता बढ़ती गई।

लेकिन अब तो ऐसा प्रतीत होने लगा है कि पिछले 2 वर्षों से हम वास्तविक रूप में कंगाली ओर ही अग्रसर होने लग रहे हैं।पिछले 29 साल से जीवन चलाने के लिए सीधे सच्चे ईमानदारी पूर्ण कार्य करते हुए कमरतोड़ मेहनत करने के बाद निरंतर बढ़ती हुई आयु के इस दौर में जबकि इतनी काम करने की क्षमता शेष नहीं रह गई है।

वर्तमान सरकार के अविवेकशील व अदूरदर्शी निर्णयो के कारण हमारे देश में उद्योंगो के लिए काम निकलना बेहद कम हो गया है।

जिससे इस देश की सामूहिक आर्थिक स्थिति पूर्णतया खराब होने के परिणाम स्वरूप अपनी व अपने परिवार की आजीविका चलाना अत्यंत कठिन प्रतीत हो रहा है।

2014 से पहले "वो" कहते थे कि पूर्व सरकारों ने अनेको घोटाले किये सबको जेल में भेज दिया जाएगा।और देश को तीव्र विकास के मार्ग पर ले जाया जाएगा। किन्तु हम तो इंतजार ही करते रह गए पिछले 4 सालों से कि कब वो घोटालों के राज फाश होंगे।

इस कारण से सारे देश के लोगों ने 'उनके' द्वारा किये गए वादों और दिखाए गए तथाकथित अच्छे दिनों के स्वप्नों के कारण 'उनको' वोट देकर जिताया था क्या इन्ही दुःखद दिनों के लिए।

कांगेस मुक्त भारत के नारे को प्रचलित कर वोट हांसिल किये गए और अब कांग्रेसियों को जेल में डालना तो दूर बल्कि उन 'उनके' अनुसार इन तथाकथित 'बेईमानो' व भ्रष्टाचारियों से राजनीति के नाम पर सांठ-गाठ करके अपने में ही मिलाया जा रहा है।

हाँ एक दो चुनिदा 'महारथियों' को जेल तो भेजा गया जिन्होंने 'इनके' साथ मेल करने से मना कर दिया। क्या पिछली तथाकथित बेईमान सरकार के कारिंदे अपने में मिलाने से ईमानदार हो जाएंगे ?

अथवा 'प्रधान सेवक जी' के नेतृत्व में चलने वाली पार्टी अप्रत्यक्ष रूप में 'कांग्रेस नम्बर 2' के नाम से पहचान बनाएगी ?
क्या तथाकथित 'ईमानदार' सरकार की ये गतिविधियां अनेको शंकाओं को जन्म नहीं दे रही हैं ?

क्या उन 'तथाकथित चोरों' से अपने में शामिल करके उनको जिम्मेदारी के पदों पर बैठाकर ईमानदारी का पालन कराते हुए देश सेवा ली जा सकती है ?  यदि 'वे'' अत्याधिक ईमानदार हैं और आम जनता को भी ईमानदारी का पालन करने के लिए कहते हैं।

तो पिछले कई सालों से बदनाम' भ्रष्टाचारियों को अपने ईमानदार परिवार में किस उद्देश्य से आपके एक 'विधायक तोड़ो' 'स्पेशलिस्ट' के द्वारा 'उनकी' ही की इच्छा से जोड़ा जा रहा है व लगातार आपकी पार्टी में मिलाया जा रहा है ?

'उनके' द्वारा आरोपित वो बरसो पुराने तथाकथित 'चोर' व भ्रष्टाचारी क्या 'उनसे' मिलते ही सोने के हो गए ? अथवा सन्त बन गए ? मानो 'वो' तो 'पारस' हो गए, जिसे भी गले लगाएंगे या हाथ छुआ देंगे वो सोने का बन जायेगा ?

क्षमा कीजियेगा, कहने को तो 'वे'' अत्यंत 'गरीबी' से आये हैं जिनका पूरा विवरण व इतिहास बिकाऊ मीडिया के द्वारा बड़े ही मर्मस्पर्शी रूप में दिखया गया है कि पेट भरने के लिए अत्यंत छोटे छोटे कार्य करने पड़े।

अरे साहब हमने भी शिद्दत के साथ आर्थिक गरीबी जन्म से ही जी है। 48-48 घंटे व 72-72 घंटे वाली अथक शारीरिक श्रम की सैकड़ो शिफटें बिना सोए की हैं।

खून-पसीना निकालने वाली बरसों तक मेहनत की है। किन्तु कभी भी किसी से किसी भी प्रकार की अपेक्षा अथवा याचना नहीं की और न ही कभी अपनी गरीबी का किसी के सामने रोना ही रोया है।

किंतु आजतक भी हम हमारे द्वारा अपनाई गई ईमानदारी व मेहनत के बल पर राजसिक ठाठ बाट का आनंद नहीं ले पाए।
बल्कि 29 साल श्रम करने के बाद भी हमारा भविष्य आर्थिक रूप से संकट में ही नजर आता है।

किंतु इतने बड़े गरीबों के 'हमदर्द' होने के बाद भी 'उनके' सारे शौक तो अत्यंत ठाठ-बाट वाले हैं जिनमें सादगी व त्याग तो दम तोड़ते ही दिखाई देते हैं।और उनका ड्रेस सेंस तो बड़ी बड़ी सेलिब्रेटिज को भी मात देता है।

क्या भारत सरकार 'उनको' इतनी तनख्वाह देती है कि इतने महंगे महंगे वस्त्रों में उनका व्यक्तित्व सुशोभित हो सके। यहां तक कि उनका सनग्लास भी डेढ़ दो लाख से कम का नहीं होगा।

अरे ऐसा बैभवशाली जीवन तो हमारी दलितों की सच्ची हितैषी व हमदर्द 'दीदी' भी नहीं जी पाईं जिन्होंने अपने जीते जी ही अपनी अनेको मूर्तियां बनवा कर अमरत्व को पा लिया।

ऊपर से नीचे तक उनके वस्त्रों व आभूषणों का आंकलन किया जाय तो उनकी कीमत लाखों में बैठती है। पर 'इनके' व्यक्तित्व, रहन सहन का खर्चा को देख कर तो अरब के शेख भी पानी पानी हो जाएं।

अमेरिकन राष्ट्रपति भी हींन भावना से ग्रसित होकर बगलें झांकने लगें।साहब क्या कहने हैं 'उनकी' अदा व चाल ढाल के।
हमें अभी अभी याद आया तो वो 'दीदी' भी तो 'उनके' मुताबिक भ्रष्टाचार में लिप्त पाई गईं है।उनके' अनुसार उन्होंने भी तो अपने प्रदेश को जी भर के लूटा है।

किन्तु 'ये सच्चे सेवक' तो ईमानदारी,गरीबी और देशभक्ति की जीवंत मिसाल हैं तो फिर 'इनकी' ये रईसी किस प्रकार से प्रगट हो रही है।

अच्छा अच्छा, समझ आया 'इनके' सम्बन्ध तो 'इनके' 'चहेते', देश के बहुत बड़े बड़े कुछ व्यापारियों से बहुत अच्छे है, जरूर ये सारी शानोशौकत उनसे गिफ्ट के रूप में मिलती रहती ही होगी।

क्योंकि बहुत बड़े बड़े कामो के ठेके तो केवल और केवल 'इनके' नजदीकियों को ही मिलते हैं चाहे वो उन कार्यों को करने का अनुभव व योग्यता न भी रखते हों।

क्योंकि देश के बहुत बड़े बड़े उद्यमियों को भी वो कार्य न मिल पाए जिन कार्यों के वो एक्सपर्ट थे। किन्तु 'इनकी' दरिया दिली के कारण बिना किसी तजुर्बे के किन्ही बहुत बड़े व्यापारी भी तर गए।धन्य हैं 'इनकी' ईमानदारी व देश के प्रति निष्ठा व प्रेम।

यदि किसी के सादगी पूर्ण रहन-सहन की बात की जाय तो पूर्व प्रधान मंत्री 'लाल बहादुर शास्त्री जी' और निवर्तमान राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम का कोई सानी नहीं है।

और सबसे बड़े उदाहरण तो सादगी व त्याग से 'महात्मा गांधी' ही हैं जिन्होंने अपने देश के हालात देश की गरीब जनता को सांत्वना देने व उनका हौंसला बढ़ाने के लिए जाड़ा, गर्मी बरसात व शीत ऋतु में अपना तन तक नहीं ढका, भूखे भी रहे, देश की गुलामी को दूर करने के लिए हजारों तकलीफे भी सहीं।

हाँ याद आया, 'इन्होंने' भी बहुत भावुक होकर बताया था कि देश सेवा के लिए 'इन्होंने' अपना घर बार,अपनी माता, अपनी पत्नी, अपने भाई-बहनों को छोड़ दिया था।

वाकई में गांधी जी 'इनसे' बड़े त्यागी नहीं थे क्योंकि उन्होंने अपने किसी भी परिजन को नहीं त्यागा था, बल्कि बाद में तो उनकी धर्मपत्नी "बा" भी स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बन गईं थीं। गांधी जी ने तो अपने देश के लोगों के लिए' जो कुछ भी उनके पास था कुर्बान कर दिया था।

और 'इन्होंने' देश के तथाकथित विकास के नाम पर केवल और केवल अपनी अनुचित व अनियंत्रित मेहत्वाकांशाओं को पूर्ण करने के लिए हर भारतीय से चाहे व गरीब हो या अमीर हर स्तर पर विभिन्न नियमो व कानूनों के नाम पर जिबह होने वाले बकरों की तरह बलात-कुर्बानी कराई जा रही हैं।

'इनकी' भाषा शैली व अंदाजे बया तो ऐसा है कि सुनने वाले हमारे देशवासी सोच सोच कर पानी पानी हो कर शर्म से धरती में ही गढ़ जाए कि हमारे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन शख्सियत को तो उस सर्वोच्च पद की गरिमा का खयाल तक नहीं है।

शायद अल्प आयु में देश सेवा के जज्बे के कारण जल्दी परिवार व पारिवारिक माहौल छोड़ देने की वजह से 'उनके' भीतर सुसंस्कार पड़ ही नहीं पाए जो इंसान को निखारते है।

कहते हैं सबसे प्रथम गुरु इंसान के माता पिता ही होते हैं जिनकी छत्र छाया में बालक सुसंकृत होता है व प्रेम, करुणा व सही कर्म का पाठ सीखता है।

मतलब सर्वोच्च पद पर आसीन होकर नोटबंदी के 5-6 दिन बाद 'ये' देश के श्रमिक वर्ग को खुले आम बेईमान बनने की प्रेरणा दे रहे है।

20-20 साल पुराने कामगारों से उनके मालिको के द्वारा उनके बैंकों में जमा कराए गए पैसों को हड़पने की सीख दे रहें हैं, क्या इस उच्चतम पद पर आसीन व्यक्ति को ये व्यवहार व वक्तव्य शोभा देते हैं ?

यकायक 'उनके' द्वारा लिए गए अविवेकशील व बचकाना नोटबन्दी के निर्णय के कारण हमारे देश के हर वर्ग, जाती व धर्म की करोड़ों माताओं, बहनों, भाइयो, बूढ़े, युवाओं यहां तक कि कुछ किन्नरों ने भी इनको आत्मा से कोसा है व जी भर भर कर गालियां दी हैं।

शायद 'ये साहेब' दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति होंगे जिसको इतनी गालियां व बद्दुआएं एक साथ मिली होंगी। किन्तु फिर भी 'इनको' लगता है कि 'ये' ही देश का सबसे अच्छा विकास कर रहे हैं व सबका भला कर रहे हैं।

ये नागरिक सत्य कहने के लिए किसी का न तो मोहताज है और न ही किसी से भयभीत ही है। हो सकता है इस नागरिक की इन सच्ची बातों के लिए कुछ लोग नाराज हो जाएं या झगड़ा शुरू कर दें।

या स्वम् इस 'राजतंत्र' के पिट्ठू कुछ हानि पहुंचाने का प्रयास करें क्योंकि पिछले 4 सालों से या तो मीडिया खरीद लिया गया है या फिर मीडिया को धमका दिया गया है।

यदि शांत भाव से अपने देश के हित व सर्वांगीण विकास के लिए गम्भीर चिंतन करें तो पाएंगे कि वास्तव में हमारे मुल्क के संतुलित विकास लिए बहु दल सरकार ही उचित है।

इतिहास गवाह है कि जिस किसी दल को भी एक छत्र राज करने का अवसर मिला उस दल ने हमारे देश के लोगों का अमन चैन चीन कर उन्हें केवल और केवल उत्पीड़ित ही किया है।

यदि हम सभी देश के नागरिक इस देश में सुकून से रहना चाहते हैं तो हम सभी नागरिकों को चाहिए कि चुनावों के अवसर पर अपने घर के सदस्यों के द्वारा सभी दलों को वोट दिलवाएं और मिलीजुली सरकार बनाने में मदद करें। ताकि कोई भी दल हमारे जीवन व स्वतंत्रता पर अपना अधिकार जमा कर हमें पीड़ित न कर सके।

ये चेतना "परमात्मा" के द्वारा बनाये इस सम्पूर्ण विश्व व अपने देश के सभी अच्छे, भोले भाले व सीधे साधे लोगों से अत्यंत प्रेम व स्नेह रखती है। अतः सम्पूर्ण विश्व में शांति, अमन-चैन बनाये रखने के लिए "प्रभु" से प्रतिदिन प्रार्थना भी करती है।

साथ ही इस जगत की सामूहिक शांति, सौहार्द व खुशहाली के लिए इस शरीर के मृत होने के बाद भी ये चेतना सदा सक्रिय रहेगी और मानवता, प्रकृति, व "परमात्मा" की खिलाफत करने वालों से निरंतर संघर्षरत रहेगी।

आज ये चेतना "परमपिता" की अनुकंम्पा से अपने स्तर पर सम्पूर्ण विश्व के लिए यही सहयोग करने के लिए कटिबद्ध है।
और यदि "परमेश्वरी" इस चेतना से कुछ और भी कराना चाहें तो ये "उनकी" मर्जी है।

ये नागरिक किसी भी विशेष राजनैतिक पार्टी, धर्म, जातिवाद, पंथ, साम्प्रदाय, समुदाय व विचारधारा की अनुयायी व पक्षधर नहीं है।

बल्कि ये तो केवल और केवल सत्य व मानवता का ही अनुसरण करता है और आपसी सौहार्द व प्रेम में ही विश्वास करता है।
इस चेतना के इन उद्भावों का एक मात्र कारण अपने देश के लोगो की दुर्दशा व पीड़ा ही है एवम ये चिंतन किसी भी प्रकार की राजनैतिक प्रतिद्वंदता व विद्वेष से प्रेरित नहीं है।

न ही ये चेतना किसी भी व्यक्ति विशेष से किसी भी कारण से घृणा, ईर्ष्या व शत्रुता ही रखती है। किन्तु ये चेतना उन बुराइयों व शैतानियत की कट्टर शत्रु है जिसने मानवों के सर चढ़कर इस विश्व के व देश के वातावरण को दूषित कर दिया है।

इस चेतना का उद्देध्य किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं है बल्कि केवल और केवल अपनी समझ व अपनी अंतर्चेतना के मुताबिक सत्य को आप सभी के समक्ष रखना ही है।

क्या पता मानवता की रक्षा के लिए इस चेतना के द्वारा सच्चे हृदय द्वारा "प्रभु" से की गई करुण पुकार से "परमात्मा" 'इनका' व इन जैसे अनेको लोगों का हृदय सकारात्मक रूप में परिवर्तित कर दें और हमारे सम्पूर्ण देश के नागरिकों के साथ साथ इनको भी पीड़ित होने से बचा लें।

अन्यथा "माता प्रकृति" व 'ईश्वरीय' शक्तियों के द्वारा दी जाने वाली भयानक सजा के लिए ऐसे नकारात्मक लोगों को तैयार हो जाना चाहिए।

अब सजा का कार्य प्रारंभ हो चुका है, 'इनके मुख्य' खजांची', विदेश मंत्री, पूर्व दोनो किडनियां साथ छोड़ ही चुकी हैं।साथ ही 'इनकी' गलत नीतियों में सहयोग देने वाले पूर्व रक्षा मंत्री तो मृत्यु शय्या पर काफी अर्से से झूल ही रहे हैं।

उन्होंने अपनी मृत्यु को दिन प्रतिदिन नजदीक आने का अनुभव करने के उपरांत एक मार्मिक चिंतन सभी सत्ता की 'बेहोशी' में डूबे लोगों को आगाह करने के लिए प्रेषित किया है।

अब देखना ये कि अगला नम्बर किसका आने वाला है।सोच लीजिए ये आखरी अवसर है "परमात्मा" व 'माता प्रकृति' की ओर से।

एक देश का अच्छा नागरिक होने के नाते हमने ये राज की बात ',इनसे' व अन्य आप सभी के समक्ष रख दी है हमारी किसी से भी कोई किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत शत्रुता व घृणा की नहीं है।

हम जैसे सरल व साधारण मानव तो सभी के शुभचिंतक व हित चिंतक है व 'इनसे' भी इसी मानवता के नाते हृदय से प्रेमभाव रखते हैं।

अन्त में एक बात पुनः दोहराना चाहेंगे कि ये बात 'इनको' याद रखनी चाहिए कि इस देश के सभी वर्गों, धर्मो, सम्प्रदाय के लोगों ने इस देश में एक अच्छे परिवर्तन की चाह में ही 'इनको' चुनावों में जितवाया था।

किन्तु 'इनकी' अति महत्वाकांशी नीतियों व तानाशाही के चलते इस देश लोगों के वर्तमान व भविष्य के जीवन पर बड़ा भारी संकट आ गया है।

अधिकतर लोग आर्थिक रूप से अत्यंत दुर्बल व शंकित हो गए है जो अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण है। और साथ ही यह भी बताना चाहेंगे कि 'इनकी' अवांछित राजनैतिक गतिविधियों ने 'इनकी' पार्टी की प्रतिष्ठा व साख को भी भारी क्षति पहुंचाई है।

जिसका खमियाजा हर कोई वर्तमान में भी भुगत रहा है और भविष्य में भी भुगतेगा। हकीकत यह है कि अच्छे दिन तो अब क्या आएंगे अब तो आम लोगों को अपने परिवार के साथ सड़क पर निकले हुए भी भय लगता है।

कि कहीं कोई गंदी राजनीति से प्रेरित जलूस व प्रदर्शन हिंसक होकर लूटपाट, तोड़ फोड़, आगजनी करते हुए महिलाओं के साथ अभद्रता व रेप जैसा घृणित कुकर्म न करदे।

ये चेतना पूर्ण हृदय से प्रार्थना करती है कि "ईश्वर" 'इन' सभी को सद बुद्धि, शांति, उचितमार्ग दर्शन व सुविवेक प्रदान करें ताकि अज्ञानता से वशीभूत होकर 'ये' व 'इनके' साथी अपना व अन्यों का अहित करके अनेको प्रकार के नरकों के भागी न बनें।"----Narayan 🙏😔


'जय जवान, 

              जय किसान, 

                                 जय उद्यमी महान'

                                                                    "जय हिंद"

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