Wednesday, February 2, 2011

"Impulses"----Contemplation--चिंतन--------9----------02.02.11

"Impulses"-----"चिंतन"



1) "एक सहज साधक अमूमन तीन प्रकार के रिश्तों के साथ जीवन व्यतीत करता है:--
प्रथम, दैहिक रिश्ते,जो हमारे खून के धर्म के रिश्तों के रूप में हमें मिलते है,जो हम पर आश्रित होते हैं, जिनके प्रति हमारे बाहरी कर्तव्य होते है, जो परमात्मा ने हमें प्रारब्ध के परिणाम स्वरुप हमें दिए है, उनके प्रति पूरी इमानदारी निष्ठां के साथ उन्हें निभाना चाहिए जब तक कि वे रिश्ते हमारे साथ बेईमानी या धोखा नहीं देते, धोखा देते ही उन रिश्तों के प्रति हमारा कर्तव्य समाप्त हो जाता है हम उनसे मुक्त हो जाते हैं उन्हें केवल इंसानियत के कारण निभा लेना चाहिए अपने शरीर के इर्द-गिर्द रखकर जो उनके लिए बन पड़े कर देना चाहिए क्योंकि एक साधक के शरीर से निकलने वाली चैतन्य लहरियों से उनकी अच्छे से धुलाई होती है उनकी कुछ बुराइयाँ कम होती जाती हैं और एक दिन उनकी कुंठित आत्मा जागृत जरूर हो जाती है

दूसरे कष्टकारी रिश्ते जो रात दिन हमें तकलीफ देते है, हमें पीड़ित करते है, हमारा नाजायज फायदा उठाते है,हमें अकारण ईर्ष्या लालच के कारण सतातें हैं, हमारा सभी कुछ छीन लेना चाहतें हैं,हमारे ऊपर शासन करना चाहते हैं, हम भी उनकी शक्ल नहीं देखना चाहते,उनकी बुराइयों से हम खूब घृणा करतें हैं, ऐसे रिश्तों में आपसे ईर्ष्या रखने वाले सहजी भी हो सकतें हैं ऐसे समस्त मानवो की सूक्ष्म चेतनाओं को अपने हृदय में स्थान देना चाहिए, स्थूल रूप में उनसे दूर रहना चाहिए, क्योंकि हमारे हृदय में स्थित "माँ" जगदम्बा" से प्रेम पाकर उनकी समस्त प्रकार की खराबियां बुराइयाँ दूर हो सकती हैं और वे भी अच्छे इंसान बन सकतें हैं और उनके मानवीय जीवन नष्ट होने से बच सकते हैं

तीसरे, आनंद दाई निर्वाज्य प्रेम के रिश्ते, जिनसे मिलकर हमें सदा परमात्मा के प्रेम की अनुभूति होती है, जिनके लिए सदा हमारे हृदय से दुआ ही निकलती है, जो हमारे बारे में सदा अच्छा ही सोचते हैं, हमें वास्तव में प्रेम करते हैं, और हम भी उनपर जान छिडकते हैं, और जिनको हम चित्त के माध्यम से "माँ आदि शक्ति" के द्वारा या "श्री माँ" निर्मला" के द्वारा जाग्रति दिलवाते हैं, ऐसे समस्त मानवों की चेतनाओं को सदा अपने सहस्त्रार में "माँ आदि शक्ति" के "श्री चरणों" में स्थान देना चाहिए, क्योंकि "माँ आदि" के प्रेम आशीर्वाद से ऐसे मानवो की शक्तियां बढती जाती हैं उनके द्वारा समस्त मानव जाती का कल्याण होता है सम्पूर्ण विश्व में प्रेम शांति का संचार होता है"

2) "हम सब सहजी खुद के शिल्प कार है, "श्री माँ" बड़े प्रेम से हमारी स्वम की सुन्दर मूर्ती को घड़ने की प्रेरणा देतीं हैं, "वे" बड़ी ही कुशलता से हमारे नाकारात्मक प्रारब्ध का प्रयोग करतीं हैं, हम सभी जागृत साधक अपने-अपने प्रारब्ध की "छैनी" अनेको दुःख तकलीफों की चोट के द्वारा अपनी ही "दिव्य मूरत" को घड़ते हें


3) "सर्व प्रथम हम सभी सहजी "श्री माँ आदि" के कोर्डीनेटर हैं जो उनकी बातें ध्यान दुनिया को बताते सिखाते हैं और दुनिया की परेशानियाँ तकलीफें "माँ आदि"तक पहुंचाते हैं बाद में ही यदि चाहें तो सहज संस्था में कोई भी पद पर आसीन होकर कर सहज के किसी भी प्रकार के कार्य में हाथ बंटा सकतें हैं।"
("First of all, we all are the coordinator of "Maa Adi" then we may be the coordinator of Sahaj Sanstha", it hardly matters.")

4) "अक्सर देखने में आता है कि जब भी कोई सहज का आत्मसाक्षात्कार का कार्यक्रम होता है कोई साधक के माध्यम से कुण्डलिनी जागरण "माँ आदि" के द्वारा रखा जाता है तो कई बार "कोर्डीनेटर जी" उसको बताना शुरू कर देते है कि ऐसे बताना वैसे बताना, वे ये बात भूल जाते हैं कि जिस स्तर के नए लोग होंगे "माँ आदि" उनको उसी स्तर का ज्ञान उसके माध्यम से दिलवा देंगी, क्यों अपने दिमाग में भरी पुरानी जानकारी के आधार पर नए लोगों को ध्यान कराया जाए।"

5) "एक बात देख कर बहुत ही हंसी आती है, जब भी कोई सहजी किसी भी सामूहिकता को आसान नए तरीके से ध्यान कराता है अन्य सहजी उस तरीके के माध्यम से "श्री माँ"(वायब्रेशन) को अपने भीतर अच्छे से महसूस करतें हैं, उसके साथ बहुत प्रेम पूर्ण व्यवहार करतें हैं उसको अपने करीब महसूस करतें है तथा उससे और कुछ नया सीखना चाहतें हैं, यह देख कर पुराने सहजी ईर्ष्या वश तुरंत सलाह देना शुरू कर देते है कि, किसी भी व्यक्ति विशेष से नहीं जुड़ना चाहिए केवल "माँ" से ही जुड़ना चाहिए वर्ना आप सभी का पतन हो जायेगा, अफ़सोस की बात है कि वे स्वम सभी को अपने साथ जोड़कर रखना चाहते हैं, और चाहते हैं कि सभी उनका सम्मान करेंएवम "श्री माँ" की बात भी भूल जाते हैं कि "श्री माँ" सभी से प्रेम से जुड़ने पर ही बल देती हैं और कहती हैं कि "आप सभी सच्चे रिश्ते से बांध गए होआप सभी एक "माँ" की संतान होआप सभी एक हैं।"



---------------------------------नारायण


"जय श्री माता जी "










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