Tuesday, February 8, 2011

"Impulses"----Contemplation---चिंतन---------11---------08.02.11

"Impulses"-----"चिंतन"


1)"We all Sadhakas and Sadhikas are just like 'Poplar Tree' who absorb 'Carbon Di Oxide' and Emit 'Oxygen' to maintain the equilibrium of anything like Nature, Emotion, Matter and of course The Spirit. We all are designated by "Shree Maa" 'Herself'."(हम सभी सहजी 'पीपल' के वृक्ष के सामान हैं जो कार्बन डाई आक्साइड ग्रहण करते हैं और आक्सीजन छोड़ते हैहमें "माँ आदि" के द्वारा ही तैयार किया गया है।)

2)"स्थूल जगत,जो हमें खुली आँखों से दीखता है, जो हमारी मृत्यू के साथ नहीं जा पाता उसको समझने के लिएपरमात्मा' ने हमें मस्तिष्क दिया है , और सूक्ष्म जगत, जिसको हमारी आँखे साधारण अवस्था में नहीं देख सकतीं, जिसकी छाया स्थूल जगत है, इसको केवल हृदय से ही समझा जा सकता है और इसी की वास्तविक कमाई हमारेशरीर की आयु समाप्त होने के बाद हमारे साथ जाती है।"(The Subtle World cannot be understood with our Brain, it can be absorbed only by our "Heart". The brain might understand which is visible through our eyes.)

3)"एक विवाद अक्सर सहजियों के बीच "आत्म साक्षात्कार" देने के मामले में चलता रहता है, कोई चाहता है कि सारे चक्रों का ज्ञान जो उसने स्वम १०-१२ साल में पाया है, नए लोगों में एक-डेड़ घंटे में ही अच्छी तरह से उतार दे , कोई कहता है "श्री माता जी" की पुरानी विडियो रेकार्डिंग के द्वारा जिसमे "उन्होंने" सारे चक्रों पर हाथ रखवा-रखवाकर चक्रो को वायब्रेट करके जाग्रति दी है, जिसमे काफी समय लगता है, लैप टाप,एल सी डी या प्रोजेक्टर का इस्तेमाल करके ही दिया जाए, 


कोई अत्यंत सरल तरीके से "श्री माँ" के फोटो के सामने हाथ करवा कर "श्री माता जी" से प्रार्थना करवाते हैं,'श्री माता जी मुझे अपना प्रेम दे दीजिये ', 

कुछ भजन गायक भजन गा- गा कर ही आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयास करते है, 

और कुछ सहजी अपने सहस्त्रार पर उपस्थित "माँ आदि" शक्ति की धाराओं को अपने चित्त की सहायता से नए लोगों के सहस्त्रारों पर डालकर उनके हृदय में 'माँ' के प्रेम को पहुंचा कर, उन्ही के देवी-देवताओं गुरुओं के प्रति सच्ची 'श्रद्धा' का प्रयोग करते हुए उन्हें जाग्रति देते हैं 'श्री माता जी" के चित्र से बहने वाले चैतन्य को प्रमाणित भी करते हैं जिसके कारण नए लोग बड़ी ही श्रद्धा से 'श्री माता जी' के फोटो को अपने साथ ले जाते हैं और बिना किसी विवाद के सहज योग से जुड़ जाते है

"वास्तव में जाग्रति देने वाली तो "आदि शक्ति" ही होतीं हैं। ये सारे ही तरीके ठीक ही हैं 

यदि नए लोगों में चैतन्य बहने लगे, जिसकी जो स्थिती होती है वह वही तरीका अपनाता है, बस केवल एक ही बात देखनी चाहिए कि तरीका समयानुकूल अति सरल होना चाहिए जिससे नए लोग आसानी से जुड़ सकेंनए लोगों को सबसे पहले अनुभूति करानी चाहिए उसके बाद ही चक्रों के बारे में बताना चाहिए क्योंकि कुण्डलिनी उठने के बाद ही वह चक्रों को समझ सकता है क्योंकि नए लोगों के मस्तिष्क को सहज का ज्ञान नहीं होता जबकि कुण्डलिनी ही सहज की जन्म दाता है। 

इसके लिए "श्री माँ" ने अपने एक लेक्चर में कहा है,"You should use emotional intellect" यानि जिस स्तर के लोग हों वही तरीका भाषा अपनानी चाहिएऔर लोग किस स्तर के होंगे ये हमारा मस्तिष्क कभी नहीं जान सकता ये तो केवल हमारा हृदय ही जान सकता है 

यदि हमारा चित्त जाग्रति देते हुए अपने सहस्त्रार हृदय पर है और हम दोनों केन्द्रों पर ऊर्जा महसूस कर रहे होते है, ऐसी स्थिति में हम 'माँ आदि' के साथ होते हैं जो कण-कण में व्याप्त हैं वे नए लोगों के हृदय में भी होती हैं और हमारे चित्त के माध्यम से उनके हृदयों में भी जाग जाती हैं व हमें उनकी जानकारी भी दे देती हैं तभी हम सामने बैठे हुए लोंगों की स्थिति जान सकतें है हमारे शब्द हृदय में डूबे हुए होते हैं उनमे चैतन्य होते हैं तभी उनके मन मुताबिक 'ध्यान 'करा सकतें है 

लैप टाप या एल सी डी के पास हृदय नहीं होता इसीलिए लोग अक्सर समझ नहीं पाते और केवल एक फिल्म समझ कर देखतें हैं चले जाते हैं और अक्सर वापस नहीं आते, और हमारे उन सहजियों की मेहनत को विफल कर देते हैं जिन्होंने लोगों को बुलाने के लिए रात-दिन एक कर दिए होते हैं कभी-कभी तो खाना भी नहीं खा पाए ठीक से सो भी नहीं पाए। 

दुःख तब और भी बढ़ जाता है जब कुछ सहजी जिन्होंने मेहनत नहीं की होती बड़े मजे से कह देते है कि "श्री माता जी उन लोगों को जाग्रति नहीं देना चाहती थीं, ऐसा कहने वाले, सहजी कहलाने योग्य ही नहीं है, वे केवल सहज योग संस्था को रोटरी या लायंस क्लब की तरह "सहज क्लब" ही समझते हैं और अपने पद की अपनी अहमियत को बनाये रखने के लिए जोड़-तोड़ करते रहते हैऐसा करना "माँ आदि शक्ति" के प्रति सबसे बड़ा गुनाह है ऐसा करने वालों को गण-देवता बहुत बड़ी सजा देते हैसमझना चाहिए।"

-----------------------------------------------------नारायण


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"जय श्री माता जी"

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