Wednesday, February 16, 2011

"Impulses"---Contemplation----चिंतन--------17-------16.02.11

"चिंतन"


1)"अक्सर सहजी सुबह-सुबह उठ पाने के लिए सदा चिंतित रहते है अपने को अपराधी महसूस करते हैं, पूरे दिन उदास रहते हैं, अपने को हारा हुआ महसूस करते हैं, बहुत कोशिश करने के बाद भी नहीं उठ पाते है। रात में 4.30 p.m बजे का अलार्म लगा कर सोतें हैं, और सुबहे अलार्म भी बजता है, उनका एक हाथ घडी की ओर बढता है और उसे बंद कर देता है और वे मन में अपने से कहते हैं कि अभी उठते हैं और उसके बाद दुर्भाग्य से उनकी आँख नहीं खुल पाती और वे लेट उठते हैं, ये सिल सिला चलता ही रहता है। और यदि कभी-कभी उठ भी जाते हैं और ध्यान के लिए बैठ जाते है, पर थोड़ी ही देर में उन्हें नींद जाती है और वे सो जाते हैं। और बाद में उठकर ये सोचते हैं कि जरूर उनके अन्दर कोई निगेटिविटी है जो उन्हें ध्यान नहीं करने दे रही है।

पर वे अपने रूटीन पर नहीं ध्यान देते कि वे सोते कब हैं। आजकल लग-भग सभी लोग काफी लेट सोतें हैं, और हमारे इस शरीर को कम से कम सात से आठ घंटे की नींद अवश्य चाहिए, यदि सोने के घंटे कम होंगे तो हम आसानी से जल्दी नहीं उठ पाएंगे, तो इस तथ्य को समझ कर शांत रहना चाहिए।

यह बात सच है कि ब्रह्म-महुरत में उठना सर्वश्रेष्ठ होता है, क्योंकि वातावरण काफी शांत होता है, इस उषा काल में पवित्रता होती है, नकारात्मक भाव न्यूनतम होते है, इस समय साधारण मानव के अतिरिक्त परिंदे अन्य प्राणी जागते है जो कि निर-विकार होते हैं विकार केवल मनुष्य के मस्तिष्क से ही प्रसारित होते हैं, विकार युक्त मानव यानि रोगी भोगी इस काल में सोये ही होते है 

रोगी रात भर तकलीफ के कारण जागता है परन्तु इस काल तक अक्सर परेशान हो- हो कर सो जाता है, इस सुन्दर अमृत-बेला में एक सच्चा योगी ही जागता है जो परमात्मा को पाना चाहता है, परमात्मा से पूर्ण रूप से एकाकार होना चाहता है, उसके हृदय से परमात्मा के लिए प्रेम फूट रहा होता है और हृदय का प्रेम उसके मस्तिष्क को पोषित कर रहा होता है तब ऐसी अवस्था में उसके मस्तिष्क से सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार हो रहा होता है, जो उस काल में ध्यान कर रहे साधकों के विशुद्धि चक्र सहस्त्रार चक्र के द्वारा उनके भीतर जा रही होती है

इसीलिए 'श्री माँ' ने सूर्योदय से पूर्व के काल को अतिसुन्दर काल कहा है और अभ्यासियों को इस समय ध्यान करने के लिए कहा हैकिन्तु यदि किसी साधक के लिए प्रतिदिन उठना संभव नहीं है तो कोई चिंता करें, केवल हर समय अपने सहस्त्रार के द्वारा अपने चारों ओर उपस्थित 'निराकारा माँ' को अपने भीतर में शोषित करने का प्रयास करे तो कुछ ही दिनों में उसे अपने सहस्त्रार मध्य हृदय पर चैतन्य धाराएँ महसूस होने लगेंगी और वह हमेशा ध्यानस्थ रहेगाप्रयोग करके देखियेगा

"जब भी हम सहस्त्रार पर 'माँ आदि' के 'श्री चरणों ' के स्पर्श का एहसास करने का प्रयास करते है तो ' महुरत' निकलता है और जब 'उनका' स्पर्श महसूस होता है तो "ब्रह्म" प्रगट होते है।" तो हो गया 'ब्रह्म-महुरत'। "

2)"अधिकतर सहजी केवल सहज सेंटर जाने पर ही बल देते है और हर सप्ताह केवल सेंटर जाकर सोचते है कि हमारा कल्याण हो जायेगाऔर जो कोई अन्य सहजी कभी-कभी सेंटर जाता है तो उसको ऐसी द्रृष्टि से देखेंगे कि जैसे कि वो कोई बहुत बड़ा अपराधी हो, चाहे वो निरंतर आत्मसाक्षात्कार देने के कार्य में ही लगा हो, फिर भी उसको यही कहतें रहेंगे कि सामूहिकता में जरूर आना चाहिए, और तो और उसको ये भी कह देंगे कि यह लेफ्ट-साइडिड है या राईट-साइडिड है

ये लोग नहीं समझ पाते कि जाग्रति देते समय स्वम 'श्री माँ' उपस्थित होती हैं उनके साथ समस्त देव-गण भी होते हैं उससे अच्छी और कौनसी सामूहिकता हो सकती है, वो सभी हर हफ्ते बिना नागा सेंटर जाने को ही सहज योग समझते हैजबकि 'श्री माँ ' ने अपने लग-भग सभी लेच्क्चर्स में जाग्रति देने के कार्य को सर्वश्रेष्ठ बताया हैवास्तव में 'सहज संस्था' तो एक 'प्राइमरी' विद्यालय है जहाँ पर 'नर्सरी' के स्तर की ट्रेनिंग मिलती है तो अब क्या पूरी जिन्दगी केवल 'प्रार्थमिक' शिक्षा ही ग्रहण करते रहना चाहिए या फिर कहीं नौकरी या कार्य भी करना चाहिए, केवल प्रारंभिक पढाई करते रहने से भला कल्याण हो सकता है क्या ? विवेक शीलता से विचार करने की जरुरत है

("You should try to travel around. Go, establish some centre , look after that. Then go somewhere else, establish that centre and look after."---H.H Shree Mata Ji Shree Nirmala Devi.....09.02.1983 Jang Pura New Delhi, India)


---------------------------------------------Narayan


"Jai Shree Mata ji"


No comments:

Post a Comment