Wednesday, July 5, 2017

"Impulses"--384--"मृत्यु-तैयारी"

"मृत्यु-तैयारी"

"यदि 'ध्यान' में उतरने से पूर्व ध्यान की तैयारी से सम्बंधित कोई भी क्रिया या प्रक्रिया शरीर के किसी भी अंग-प्रत्यंग, जुबान या मस्तिष्क के प्रयोग के बिना की जाए।

यानि केवल चित्त के माध्यम से ही की जाये तो सर्वश्रेष्ठ होता है। क्योंकि हमारे शरीर की मृत्यु के बाद केवल हमारा चित्त ही हमारी चेतना में समा कर हमारे साथ जाता है।

यदि जीवित अवस्था में हमने अपने चित्त के माध्यम से "परमात्मा" को अपनी चेतना में आभासित करने का अभ्यास अच्छा बना लिया है।  "माँ आदि शक्ति" की प्रवाहित होती 'शक्तियों' को अपने यंत्र में महसूस होते रहने  की आदत डाल ली है, तभी "परमेश्वरी" हमारे शरीर रूपी यात्रा के अंतिम समय में हमारा साथ दे पाएंगी।

क्योंकि उस कठिनतम समय में जुबान खिंच जाती है, ऑंखें पथराने लगती हैं, हाथ-पाँव हिलने डुलने बंद हो जाते हैं व् दिमाग शिथिल होने लगता है। यानि हमारी समस्त इन्द्रियां शरीर की मृत्यु से कुछ देर पूर्व सबसे पहले अपना कार्य बंद कर देती हैं।"

----------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


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