Wednesday, July 12, 2017

"Impulses"--386--"सामूहिकता"

"सामूहिकता"

"ये अक्सर देखने में आता है कि ज्यादातर सहाजियों का झुकाव सहज का कार्य कर नए लोगों को आत्मसाक्षात्कार के द्वारा जोड़ने, व् नए व् पुराने सहाजियों को छोटी छोटी 'सामूहिक ध्यान साधना' के जरिये अपने ध्यान अनुभवों के माध्यम से उनके आध्यात्मिक उत्थान में सहायता देने के स्थान परकेवल अपनी बीमारियां ठीक करने या भजन-कीर्तन में मस्त रहने या लोगों से मिलने जुलने का आनंद उठाने के लिए ही 'सेंटर' जाने की ओर रहता है।

उनका सदा यही प्रयास रहता है कि किसी भी तरह से वो हर हफ्ते सेंटर जरूर जाएँ। जिस तरह वो सहज योग से जुड़ने से पूर्व मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारे , चर्च आदि में जाया करते थे। बहुत आश्चर्य होता है जब कई कई साल से लगातार सेंटर जाने व् प्रतिदिन क्लीयरिंग करने के वाबजूद भी उनके चक्र कभी भी स्वच्छ नहीं रह पाते और वो सदा अपने चक्रों के प्रति व् निगेटिविटी के प्रति शंकित ही रहते है और लगातार सहज क्रियाओं में लिप्त रहते है।

ऐसे सहज-अनुयायी केवल और केवल अपने कल्याण के लिए ही "श्री माता जी" से प्रार्थना करते रहते हैं और प्रतिदिन बारम्बार कान पकड़ कर क्षमा मांगते रहते हैं। और यदि कोई अन्य सहजी अन्य स्थानों पर सहज कार्य करते रहने के कारण साप्ताहिक ध्यान के लिए सेंटर नहीं पाता, तो ऐसे कार्य करने वाले सहजी की ये लोग आलोचना करते हैं और अक्सर दूसरे सहाजियों से कहते हैं कि "श्री माता जी" ने उसे सहज से बाहर कर दिया है या उसने सहज छोड़ दिया है।

इनके अनुसार सहज योग से जुड़े होने का मतलब केवल लगातार सेंटर जाना ही है, अन्यथा इस प्रकार से सहज के कार्य करने वाले सहज से बाहर ही माने जाते है। यदि चिंतन करके देखा जाय तो पाएंगे कि यदि हम केवल सेंटर तक सीमित हो जाते हैं तो जड़ता हमारे मन में अपने पाँव पसारने लगती है, और हमारा ऊर्जा स्तर गिरता ही चला जाता है और हमारे चक्र खराब होने लगते हैं।

हम सभी "श्री माँ" के यंत्र है जिनके माध्यम से "श्री माता जी" अपने सन्देश व् प्रेम उन 'सच्चे खोजियों' तक पहुंचाती रहती हैं। जिन्होंने इस काल में अपने पूर्व-प्रतीक्षित' मोक्ष के अधिकारी बनने के लिए"माँ आदि शक्ति" से जुड़ना है। यदि हमारे यंत्र के माध्यम से ये कार्य नहीं हो पायेगा तो इस यंत्र की उपयोगिता ही नष्ट हो जायेगी और ये यंत्र किसी भी काम का नहीं रह जाएगा।

ये बिलकुल ऐसे ही है कि हम एक समस्त सुविधाओं से सुसज्जित कार खरीद कर अपने घर के पोर्च में खड़ी कर लें।प्रतिदिन उसे स्वच्छ करें और फिर उस पर कवर ढक दें किन्तु उसे चलाएं ही नहीं। धीरे धीरे उस गाड़ी में जंग लग जाएगा और उसकी मशीनरी खराब होती चली जायेगी, और एक दिन ऐसा आएगा जब वो गाडी स्टार्ट होना ही बंद कर देगी।

बिलकुल यही स्थिति ऐसे सेंटर-प्रिय सहाजियों की होती है, कि उनका यंत्र पूरी तरह खराब हो जाता है।और "श्री माँ" चाह कर भी ऐसे यंत्रों से कार्य नहीं ले पाती। मेरी चेतनानुसार, उत्थान की ओर निरंतर अग्रसर होने वाले साधक/साधिका को 'पर-कल्याण' के लिए निरंतर अपने यंत्र का उपयोग करते रहना चाहिए।

यदि किसी भी कारण बाहर जा सकते हों उसे चार कार्य अपने स्थान पर बैठे बैठे अवश्य करने चाहिए।

1) अपने सहस्त्रार व् मध्य हृदए में ऊर्जा को महसूस करने के उपरान्त जितने भी सहाजियों से आप हृदए से जुड़े है, उन सभी के मध्य हृदए व् सहस्त्रार से 7-8 मिनट तक चित्त की सहायता से जुड़कर एक दूसरे के भीतर बहने वाली ऊर्जा का आनंद उठायें।

2)'पूर्ण ध्यानस्थ' अवस्था में, जब मध्य हृदए व् सहस्त्रार पर ऊर्जा महसूस हो रही हो तब 5-10 लोगों की कुण्डलिनी चित्त की सहायता से अवश्य उठानी चाहिए।

3)किसी किसी गंभीर समस्या से ग्रसित सहज-साधकों/साधिकाओं के मध्य हृदए में "श्री माँ" का प्रेम सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से '4 पाइंट कनेक्टिविटी' (अपना मध्य हृदए>अपना सहस्त्रार>दूसरे का सहस्त्रार>दूसरे का मध्य हृदए) के जरिये 5-7 मिनट तक प्रतिदिन प्रवाहित करना चाहिए।

यानि सर्वप्रथम अपने सहस्त्रार व् मध्य हृदए में 'चैतन्य' महसूस करें, फिर अपना चित्त पीड़ा से घिरे उस सहजी/सहाजियों के सहस्त्रार पर 30-40 सेकिंड तक रखें और फिर उसके मध्य हृदए में चित्त रखकर अपने मध्य हृदए की ऊर्जा को उसके मध्य हृदए में चित्त के द्वारा प्रवाहित करें।

4) हमारे विश्व/देश/प्रदेश/क्षेत्र की किन्ही गंभीर समस्याओं पर 8-10 मिनट तक गहन ध्यानस्थ अवस्था में प्रतिदिन चित्त रखें जब हमारे मध्य हृदए व् सहस्त्रार में ऊर्जा आभासित होने लगे। यदि कुछ कारणों से घर से बाहर जाना संभव होता हो तो अपने ही स्थान पर एक छोटी सी साप्ताहिक/15 दिवसीय सामूहिकता में ध्यान का आनंद उठाया जा सकता है। या इन्टरनेट पर एक सामूहिक ग्रुप बनाकर ध्यान का समय सुनिश्चित करके भी सामूहिक ध्यान का लुत्फ उठाया जा सकता है।

सामूहिकता का वास्तविक मायने अपनी चेतना व् चित्त को एक दूसरे की चेतनाओं व् कुण्डलिनियों से जोड़कर "माँ आदि शक्ति" के साथ जुड़ाव को बनाये रखना ही होता है। ताकि 'सामूहिक चेतना' सभी चेतनाओं को विभिन्न शक्तियों के माध्यम से उन्नत कर सके। इस 'विलक्षण सामूहिकता' का आनंद उठाने के लिए हमारे बाहय आवरण यानि स्थूल शरीर की सामूहिकता की कोई विशेष आवश्यकता ही नहीं होती है।


स्थूल रूप से कार्य करने की आवश्यकता तो केवल "श्री माँ" के सन्देश को जन जन तक पहुंचाने व् नए लोगों को सहज-परिवार से जोड़ने के लिए ही पड़ती है ताकि "श्री माँ" कुछ और 'सहज-योद्धाओं' को तैयार कर सकें।"
-----------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

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