Tuesday, October 13, 2015

"Impulses"---258

"Impulses"

 Happy "Navratre" to all Enlightened Souls,...........))))))))))))

"समस्त जागृत चेतनाओं को "नव-देवियों" की शक्ति व् प्रेम के माध्यम से अपने भीतर में घटित होने वाले "नव-जागरण" के 'सुन्दर व् पावन अवसर' का पूर्ण जागरूकता के साथ लाभ उठाने के लिए इस चेतना की ओर से "नवरात्रों"की सार्थकता के लिए हृदय-प्रेम से परिपूर्ण अनेकानेक शुभकामनाएं।
इन श्रेष्ठतम दिवसों लाभ उठाने के लिए ध्यानस्थ अवस्था में अपने मन, चित्त व् चेतना को निरंतर अपने सहस्त्रार व् हृदय में बनाये रखते हुए "माँ" की पवित्र ऊर्जा को महसूस करते हुए "माँ भगवती" से प्रार्थना करें कि,--------

"हे श्री माँ" मेरे मन के भीतर अभी भी यदि कोई कोई भूत, राक्षस या शैतान निवास करता हो तो कृपया उन सभी को नष्ट कर मुझे सदा के लिए अपने "श्री चरणों" में बनाये रखने का सामर्थ्य प्रदान कीजिये और मेरे हृदय से समस्त प्रकार की "परमात्मा व् प्रकृति" विरोधी दूषित भावनाओं को नष्ट कर मुझे अपनी "आत्मा" के आनंद में स्थित कर दीजिये।"

वास्तव में हमारा मस्तिष्क या तो मन के आधीन कार्य करता है और हमें नित नए झमेलों में फंसाता रहता है और हमें पतन के गर्त में धकेलता जाता है और अंत में हमें पूर्ण रूप से नष्ट कर देता है।

या फिर हृदय से संचालित होता है और हृदय के संरक्षण में गतिशील रहकर अनेको प्रकार के रचनासत्मक कार्य करने की हमें प्रेरणा देता है जिसके कारण हम अपने साथ साथ अन्य लोगों के भी हर क्षेत्र में कल्याण का माध्यम बनते हैं।

अतः हृदय का पूर्ण लाभ उठाने के लिए हमें अपने हृदय में "माँ जगदम्बा" को जागृत करना होगा जो मन की मलिनता रुपी काई के साफ होने पर ही जागृत हो सकती हैं और ये मलिनता केवल और केवल "ध्यानस्थ अवस्था" में सहस्त्रार से हृदय में आने वाली "दिव्य ऊर्जा" रूपी अमृत से ही नष्ट हो सकती है।

वर्ना मानव अपने मन में स्थित नकारात्मक शक्तियों के चंगुल में फंस कर अपने अनमोल मानवीय जीवन को पूर्णतया नष्ट कर डालता है और अनेको प्रकार के नरकों का भागी बनता है।"

"या देवी सर्वभूतेषु............. "शक्ति"रूपेण संस्थिता........नमस्तस्य........नमस्तस्य.........न मस्तस्य.......नमो नमः"

----------------Narayan


"Jai Shree Mata ji"

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