Monday, January 8, 2018

"Impulses"--424--"ध्यान-उन्नति की बाधाएं"

"ध्यान-उन्नति की बाधाएं"

हम सभी कभी कभी, कहीं कहीं अपने मन में ये जरूर सोचते हैं कि हमारी ध्यान में उन्नति अपेक्षाकृत रूप से ठीक प्रकार हो क्यों नही रही है ?
ध्यान में नित्य बैठने के वाबजूद भी हमारे भीतर ध्यान की प्रगति के प्रति कुछ असंतुष्टि सी क्यों प्रतीत होती है ?

आखिर वो कौनसी अड़चने हैं जो हमें गहनता में डुबकी नही लगाने देतीं ? क्या हम ध्यान के दौरान किन्ही भ्रामक भावनाओं उन भावनाओं से सम्बंधित विचारों का शिकार तो नही हो जाते ?

इन सभी अवरोधों को ठीक प्रकार से समझने उनके कारणों को आत्मसात करने के लिए हम सभी अपने चित्त को अपने मध्य हृदए पर रखेंगे।और "श्री माँ" की उपस्थित का आनंद उठाने के लिए मध्य हृदए में उपस्थित होकर "उनके" "श्री चरणों" में नतमस्तक हो जाएंगे 10-15 मिनट के लिए ध्यान में जाएंगे।

इसके उपरान्त अपनी 'चेतना' को अपनी 'आत्मा' के साथ जोड़ लेंगे और इसके प्रेम को अपनी चेतना में महसूस करते हुए आत्मा के आलोक में अपने हृदए के चारों ओर छाये हुए विकारों की ओर अपने चित्त को रखेंगे।

और अवलोकन करेंगे कि हम अभी भी किन किन नकारात्मक सोचो में अपनी चेतना को उलझाते रहते हैं और स्वम् को अपने पूर्व संस्कारो में बाधित करते रहते है।वही संस्कार हमारे उत्थान की वास्तविक बाधा हैं।

वो कुछ संस्कार निम्न हैं :-

1.हमें क्या पसंद है और क्या नापसंद हैं,

2.ये मेरा उद्देश्य है,

3.मुझे ये हांसिल करना है,

4.मुझे अपनी इमेज वैसी बनानी है,

5.मुझे सभी के सामने स्वम् को श्रेष्ठ दिखाना है,

6.मुझे अपने आध्यात्मिक उन्नति का सभी के सामने प्रदर्शन करना है, ताकि सभी मेरी बात मान सकें,

7.मुझे "श्री माँ" का कार्य अच्छे से करके सभी के लिए उदहारण बनना है,

8.मुझे सभी की प्रशंसा का पात्र बनना है,

9.जिन्होंने मुझे पीड़ा पहुंचाई है उन्हें निम्न साबित करना है,

10.मुझे सर्वश्रेष्ठ सहज साधक/साधिका बनना है,

11.मुझे इतना ज्ञान पाना है कि मैं हर प्रश्न का उत्तर जान सकूँ और सभी को उन प्रश्नों व् उनके उत्तर से अवगत करा सकूं,

12.मैं "श्री माँ" का सबसे अच्छा बालक/बालिका सिद्ध हो सकूं,

13.विश्व के समस्त सहजियों के बीच में मैं पहचाना जाऊं,

14.सभी सहजी मेरा मान करें और मेरी बातों को महत्व दें,

15.मैं सारी दुनिया में "श्री माँ" का संदेश प्रचारित कर "माँ" के अवतरण के बारे में सभी को साबित कर दूँ,

16.मैं अपने मोक्ष को प्राप्त करूँ, इसके लिए मुझे अनेको प्रयास करने है, आदि, आदि,

ये उपरोक्त प्रकार की आंतरिक भावनाएं ही हमारे 'सत्य' के मार्ग की वास्तविक बाधाएं हैं। क्योंकि ये सभी हमारे मन से उत्पन्न हुई हैं जो केवल और केवल पूर्व संस्कारों पर ही आधारित होता है।

वास्तव में जो भी हम सोचते हैं उससे द्वारा हम 'शास्वत सत्य' को स्पर्श भी नहीं कर सकते। किन्तु अपनी चेतना की गहनता से हम उसे स्पर्श अवश्य कर सकते हैं।

अतः इन समस्त भावनाओं को "श्री चरणों" में हमें समर्पित कर अपनी चेतना को इन भ्रमो के भार से मुक्त कर देना चाहिए। हमें पूर्ण रूप से रिक्त होकर हर स्तर पर "श्री माँ" के सानिग्ध्य का आनंद उठाना है।

इस आनंद का पूर्ण लाभ लेने के लिए अपनी स्वांसों में, अपनी रोम रोम में, अपने सम्पूर्ण सूक्ष्म यंत्र में, अपने चारों ओर, हर स्थान पर 'निराकारा' "माँ" को ऊर्जा के रूप में महसूस करते हुए ध्यान समाधि में उतर कर कम से कम 15 मिनट तक विचार रहित अवस्था में ध्यानस्थ रहना है।

यदि चाहें तो इस प्रक्रिया की बारम्बार पुनरावर्ती कर सकते हैं, जितनी भी बार करेंगे उतना ही लाभान्वित होंगे।"

                             -------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"


1 comment:

  1. जै श्री माता जी ,आपने बताया == इस आनंद का पूर्ण लाभ लेने के लिए अपनी स्वांसों में, अपनी रोम रोम में, अपने सम्पूर्ण सूक्ष्म यंत्र में, अपने चारों ओर, हर स्थान पर 'निराकारा' "माँ" को ऊर्जा के रूप में महसूस करते हुए ध्यान समाधि में उतर कर कम से कम 15 मिनट तक विचार रहित अवस्था में ध्यानस्थ रहना है।.....सच में,अद्भुत अनुभूति और आनंद


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