Monday, August 5, 2019

"impulses"--500--"समाधान-धारणा"


"समाधान-धारणा"


हममें से अनेको सहजी अक्सर आपस में 'समाधानी' होने की चर्चा करते हैं। और एक दूसरे को कठिन समय से उबरने के लिए समाधान की स्थिति में आने की सलाह भी दे देते हैं।

"श्री माता जी" ने भी कई बार अपने वक्तव्यों में समाधानी होने पर बल दिया है।

अब प्रश्न यह उठता है कि व्यवहारिक रूप में समाधान किस प्रकार से प्राप्त किया जाय ?

क्या समाधान घंटो ध्यान में बिताने से प्राप्त हो सकता है ?

क्या समाधान 'निर्विचारिता' में रहने से उपलब्ध हो पायेगा ?

अथवा यह 'निर्विकल्प' की देन होगी?

क्या यह मंत्रोचारण से सिद्ध हो सकता है ?

या यह समस्त चक्रों नाड़ियों की क्लियरिंग से मिल जाएगा ?

या यह अवस्था निरंतर आत्मसाक्षात्कार देने से मिलेगी ?

या अन्य सहजियो को ध्यान की गहराई में उतारने में मदद करने से ग्रहण की जा सकती है ?

या इसकी प्राप्ति के लिए कोई विशेष पूजा, हवन अथवा कोई अनुष्ठान करना होगा ?

या इस स्थिति में हम प्रतिदिन रात्रि में 'आत्म-निरीक्षण' के माध्यम से सकते है ?

या हर समय, हर परिस्थिति में सहस्त्रार पर चित्त रखने से यह स्थिति हमको मिल पाएगी ?

अथवा चिंतन-मनन के जरिये हम इस मकसद को हांसिल कर सकते है?

मेरी चेतना के अनुसार समाधान अचानक से कभी भी प्राप्त नही किया जा सकता। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे एक चींटी खाद्यय पदार्थों के कणों को एक एक करके एकत्रित करती है।

यह एक प्रकार से बूंद बूंद को एकत्रित करके 'घट' भरने के समान प्रक्रिया है। यह ऐसा मालूम देता है जैसे कि हम अपने नवजन्मे बच्चे को नित्य बड़ा होते देखते हैं।

और उसकी सारी आनंदाई गतिविधियों को अपनी चेतना में शनै शनै दर्ज करते जाते हैं। इसकी प्रक्रिया ऐसी प्रतीत होती है कि अपने घर के गमले में लगाये गए पुष्प के पौधे को निरंतर खाद पानी देते हुए।

उस पर खिलने वाले पुष्प की आस में प्रतिदिन उसे निहारते हुए उसके खिलने की प्रतीक्षा करते हैं। मेरी चेतना लघु समझ के अनुसार समाधान एक क्रमिक आंतरिक घटनाक्रम है।

जो अपने सूक्ष्म यंत्र के दोनों मुख्य चक्रों यानि सहस्त्रार मध्य हृदय में "परम माता" की ऊर्जा को निरंतर अनुभव करते हुए।

किसी भी विषय पर मन-रहित अवस्था में बिना मन में संचित सूचनाओं को स्मरण किये अपने चित्त को उक्त विषय पर केंद्रित कर।

अपनी चेतना में शांत भाव से अपनी आत्मा को अनुभव करते हुए पूर्ण साक्षी भाव में उतरकर अपने हृदय में यकायक उठने वाली प्रेरणाओं को अपने संज्ञान में लेकर।

उन प्रेणाओं पर इसी ध्यान अवस्था में तब तक चिंतन-मनन करें जब तक हृदय में यकायक उत्पन्न होने वाले किन्ही विचारों के रूप में कोई मार्ग मिले उस मार्ग को अपनाने की सोच से राहत शांति मिलती अनुभव हो।

अपने दैनिक जीवन में उन प्रगट होने वाली मार्ग सोच को अपना कर अथवा उस पर चल कर भविष्य में मिलने वाले उसके परिणामों को "श्री चरणों" में अर्पित करने की अच्छी आदत डालने पर ही प्राप्त होता है।

यदि आपको यह प्रक्रिया अच्छी लगे तो कुछ दिन इसे अपनाकर अवश्य देखें, "श्री माँ" की कृपा अनुकंम्पा से आपके जीवन में समाधान उत्पन्न हो सकते हैं।

इस चेतना की ओर से आपकी इस समाधान यात्रा के लिए अनेकानेक शुभ कामनाएं।"

-----------------------------------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"





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