Friday, August 16, 2019

"Impulses"--502--"सत्य/असत्य"





'सत्य' स्वयं "परमात्मा" का प्रतिनिधित्व करता है। और 'यह' समस्त देवी देवता, सद्गुरुओं गणों के द्वारा संचालित रक्षित होता हैं।
मानवता के हित में 'समस्त परमेश्वरी शक्तियां' 'इसे' स्थापित करती हैं।

'असत्य' को अक्सर भयभीत,भ्रमित लोभी मानव ही उत्पन्न करता है। और अपने अनुचित उद्देश्यों को साधने के लिए बड़ी धूर्तता चालाकी के साथ इसे संचालित कर स्थापित करने का प्रयत्न करता है।

किन्तु वह घोर अज्ञानता से घिरा होने के कारण नहीं जानता कि 'असत्य' को यही देवी देवता अनावृत कर इसे स्वयं नष्ट कर देते हैं।
असत्य के अनावरण में जो समय लगता है अथवा देर होती है।

वह केवल इस लिए होती है कि "परमपिता" ऐसे मानव को सकारात्मक रूप से परिवर्तित होने के लिए कुछ अवसर प्रदान करते हैं।

यदि वह परिवर्तित नहीं होता/होना नहीं चाहता तो फिर "वही" "भ्रांति देवी" की मदद से उसके समस्त षडयंत्रो को कामयाब होता अनुभव कराते जाते हैं।

और जब वह पूरी तरह सफलता के नशे में चूर हो जाता है तो फिर वह और भी ज्यादा 'प्रकृति'/"परमात्मा"/मानवता विरोधी कार्य तीव्रता से करता जाता है।

और अपने पापों के घड़े को स्वयम जल्दी से भर लेता है और अंत में "परमपिता" के द्वारा अत्यंत पीड़ा दायक सजा पाता है। उपरोक्त तथ्यों को केवल और केवल 'इशभक्ति' से जागृत हुई 'निष्पक्ष विवेकशीलता' के द्वारा ही समझा जा सकता है।

साधारण स्थितियों में आम मानव धूर्त लोगों की विभिन्न प्रकार की कपट पूर्ण विचार धाराओं की गिरफ्त में आकर आजीवन गुलामी करता हुआ स्वयं की 'आत्मा' की आवाज को नष्ट कर देता है।

जिसके कारण वह युगों युगों तक मानसिक गुलामी का शिकार होकर हर जन्म में अधोगति को प्राप्त होता है। 

'या देवी सर्वभूतेषु भ्रांति रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्ये, नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नमः'

'सत्य की रक्षा करने के लिए "भ्रांति देवी" स्वयं अनेको भ्रमों का निर्माण कर अंत में असत्य को पूर्ण रूप से अनावृत कर देती हैं।'

"सत्यमेव जयते"

---------------------------Narayan
"Jai Shree Mata Ji"

April 1 2019



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